1857 की क्रान्ति-1857 की क्रांति के सामाजिक कारण

1857 Ki Kranti Ke Samajik Karan

1857 की क्रांति के सामाजिक कारण

1. ब्रितानियों द्वारा भारतीयों के सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप : ब्रितानियों ने भारतीयों के सामाजिक जीवन में जो हस्तक्षेप किया, उनके कारण भारत की परम्परावादी एवं रूढ़िवादी जनता उनसे रुष्ट हो गई। लार्ड विलियम बैन्टिक ने सती प्रथा को गैर कानूनी घोषित कर दिया और लोर्ड कैनिंग ने विधवा विवाह की प्रथा को मान्यता दे दी। इसके फलस्वरूप जनता में गहरा रोष उत्पन्न हुआ। इसके अलावा 1856 ई. में पैतृतक सम्पति के सम्बन्ध में एक कानुन बनाकर हिन्दुओं के उत्तराधिकार नियमों में परिवर्तन किया गया। इसके द्वारा यह निश्चित किया गया कि ईसाई धर्म ग्रहण करने वाले व्यक्ति का अपनी पैतृक सम्पति में हिस्सा बना रहेगा। रूढ़िवादी भारतीय अपने सामाजिक जीवन में ब्रितानियों के इस प्रकार के हस्तक्षेप को पसन्द नहीं कर सकते थे। अतः उन्होंने विद्रोह का मार्ग अपनाने का निश्चय किया। जवाहर लाल नेहरू के अनुसार, " क्रान्ति सामाजिक परिवर्तनों को असफल करने का एक अंशपूर्ण प्रयास था, जिसमें नये ढाँचे की विजय हुई।"

2. पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव : पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीय समाज की मूल विशेषताओं को समाप्त कर दिया। आभार प्रदर्शन, कर्तव्यपालन, परस्पर सहयोग आदि भारतीय समाज की परम्परागत विशेषता थी, किन्तु ब्रितानी शिक्षा ने इसे नष्ट कर दिया। इसके सम्बन्ध में जान ब्राइट ने 1853 ई. में हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा था, च् जिस देश में शिक्षण व्यवस्था का इतना प्रसार था कि हर गाँव में अध्यापक वैसे ही नियमित रूप से मिलता था, जैसे मुखिया और पटेल, उस व्यवस्था को सरकार ने लगभग समूचा नष्ट कर दिया है। जो रिक्त (खाली) स्थान बना है, उसकी पूर्ति के लिए या उसकी जगह और अच्छी व्यवस्था कायम रखने के लिए उसने कुछ भी नहीं किया। हिन्दुस्तान के लोग निर्धनता और ह्यस की दशा में हैं, जिसकी मिसाल इतिहास में नहीं मिलती।" पाश्चात्य सभ्यता ने भारतीयों के रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, शिष्टाचार एवं व्यवहार में क्रान्तिकारी परिवर्तन किया। इससे भारतीय सामाजिक जीवन की मौलिकता समाप्त होने लगी। ब्रितानियों द्वारा अपनी जागीरें छीन लेने से कुलीन नाराज थे, ब्रितानियों द्वारा भारतीयों के सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप करने से भारतीयों में यह आशंका उत्पन्न हो गई कि ब्रितानी पाश्चात्य संस्कृति का प्रसार करना चाहते हैं। भारतीय रूढ़िवादी जनता ने रेल, तार आदि वैज्ञानिक प्रयोगों को अपनी सभ्यता के विरूद्ध माना।

3. भारतीयों के प्रति भेद-भाव नीति : ब्रितानी भारतीयों को निम्न कोटि का मानते थे तथा उनसे घृणा करते थे। उन्होंने भारतीयों के प्रति भेद-भाव पूर्ण नीति अपनायी। वे भारतीयों को अपमानित करते थे, उन्हें मारते थे एवं उनकी स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। भारतीयों को रेलों में प्रथम श्रेणी के डब्बे में सफर करने का अधिकार नहीं था। ब्रितानियों द्वारा संचालित क्लबों तथा होटलों में भारतीयों को प्रवेश नहीं दिया जाता था। इन क्लबों तथा होटलों की तख्तियों पर "कुत्तों तथा भारतीयों" के लिए प्रवेश वर्जित लिखा रहा था। ब्रितानियों की भावना का पता आगरा के मजिस्ट्रेट के इस आदेश से चलता है, "किसी भी कोटि के भारतीयों के लिए कठोर सजाओं की व्यवस्था करके उसे विवश किया जाना चाहिए कि वह सड़क पर चलने वाले प्रत्येक ब्रितानी को सलाम करे और यदि कोई भारतीय घोड़े पर चढ़ा हो या किसी गाड़ी में हो, तो उसे नीचे उतरकर आदर प्रदर्शित करते हुए उस समय तक खड़ा रहना चाहिए, जब तक कि उक्त ब्रितानी चला नहीं जाता।"

इस बात के कई उदाहरण है, जिनमें यह पता चलता है कि ब्रितानी भारतीयों के साथ भेद-भाव पूर्ण व्यवहार करते थे। मद्रास परिषद् के सदस्य मि. मेलकम ने लिखा है, "समाज के सदस्यों की हैसियत से हम दोनों अर्थात् ब्रितानी और हिन्दुस्तानी एक दूसरे से अपरिचित हैं। हमारा एक दूसरे से मालिक और गुलामों जैसा सम्बन्ध है। हमनें प्रत्येक ऐसी वस्तु भारतीयों छीन ली है, जो उन्हें मनुष्य की हैसियत से ऊँचा कर सकती थी। हमने उन्हें जाति भ्रष्ट कर दिया है, उनके उत्तराधिकार के नियमों को रद्द कर दिया है, हमने वैवाहिक संस्थाओं को बदल दिया है, उनके धर्म के पवित्रम रिवाजों की अवहेलना की है। उनके मंदिरों की जायदादों को ज़ब्त कर लिया है। अपने सरकारी लेखों में हमने उन्हें क़ाफ़िर कहकर कलंकित किया है, अपनी लूट खसोट से हमने देश को बरबाद कर दिया है और लोगों से ज़बरदस्ती माल-गुज़ारी वसूल की है। हमने संसार के सबसे प्राचीन उच्च परिवारों को गिराकर पतित शूद्रों की स्थिति में धकेलने की चेष्टा की है।"

4. पाश्चात्य संस्कृति को प्रोत्साहन : ब्रितानियों ने अपनी संस्कृति को प्रोत्साहन दिया तथा भारत में इसका प्रचार किया। उन्होंने यूरोपीय चिकित्सा विज्ञान को प्रेरित किया, जो भारतीय चिकित्सा विज्ञान के विरूद्ध था। भारतीय जनता ने तार एवं रेल को अपनी सभ्यता के विरूद्ध समझा। ब्रितानियों ने ईसाई धर्म को बहुत प्रोत्साहन दिया। स्कूल, अस्पताल, दफ़्तर एवं सेना ईसाई धर्म के प्रचार के केंद्र बन गए। अब भारतीयों को विश्वास हुआ कि ब्रितानी उनकी संस्कृति को नष्ट करना चाहते हैं। अतः उनमें गहरा असंतोष उत्पन्न हुआ, जिसने क्रांति का रूप धारण कर लिया।


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