सिरोंज (Sironj) = Sironj
सिरोंज के वर्तमान विधायक-शरणम कुमार अग्रवालयह स्थान विदिशा से ५० मील की दूरी पर एक तहसील है। मध्यकाल में इस स्थान का विशेष महत्व था। कई इमारतें व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है। सिरोंज के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है। इसे उषा का मंदिर कहा जाता है। इसी नाम के कारण कुछ लोग इसे बाणासुर की राजधानी श्रोणित नगर के नाम से जानते थे। संभवतः यही शब्द बिगड़कर कालांतर में "सिरोंज' हो गया। नगर के बीच में पहले एक बड़ी हवेली हुआ करती थी, जो अब ध्वस्त हो चुकी है, इसे रावजी की हवेली के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण संभवतः मराठा- अधिपत्य के बाद ही हुआ होगा। ऐसी मान्यता है कि यह मल्हाराव होल्कर के प्रतिनिधि का आवास था। सिरोंज के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर काले पत्थरों के ऐसे सहस्रों उद्गम है, जो जलहरी सहित शिवलिंग की भाँति दिखाई देते हैं। ऐसा संभवतः भुकंप के कारण हुआ है। आल्हखण्ड के रचयिता जगनक भाट भी इसी स्थान से जुड़े हैं। वैसे तो उनसे संबद्ध निश्चित स्थान का पता नहीं है, परंतु यह स्थान बाजार में स्थित एक प्राचीन मंदिर के आस- पास ही कहीं होने की संभावना है, जहाँ राजमहलों के होने का भी अनुमान है। सिरोंज कभी राजस्थान के कोटा जिला के एक शहर(तहसील) हुआ करती थी इसके बाद इसे मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में जगह मिली फिलहार सिरोंज विदिशा जिले की एक तहसील हैं। सेमरखेड़ी सिरोंज के पास स्थित है। यह संत तारण की दीक्षा स्थली है। यहाँ मंदिर दर्शनीय है। टोंक के एक नवाब, जिसके अधिपत्य में यह क्षेत्र था, ने एक बार इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा।
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