लोई (Loie) = Cotton
लोई ^1 संज्ञा स्त्रीलिंग [सं॰ लोप्ती = प्रा॰ लोबी] गुँधे हुए आटे का उतना अंश जो एक रोटी मात्र के लिये निकालकर गोली के आकार का बनाया जाता है और जिसे बेलकर रोटी बनाते हैं । उ॰— भाजी भावती है महा मोदक मही की शोभा पूरी रची है कर लोनाई बिधि लोई में । —रघुनाथ (शब्द॰) । लोई ^2 संज्ञा स्त्रीलिंग [सं॰ लोमीय (= लोई)] एक प्रकार का कंबल जो पतले ऊन से बुना जाता है और कंबल से कुछ अधिक लंबा और चौड़ा होता है । इसकी बुनावट प्राय: दुसुत्ती की सी होती है । उ॰—सीतलपाटी टाट, लोई कम्बल ऊन के । बची न एकौ हाट, खेस निवारहि आदिहै । —सूदन (शब्द॰) । लोई ^3 संज्ञा पुं॰ [सं॰ लोक] लोग । दे॰ 'लोई' । उ॰—(क), नागर नवल कुँआर वर सुंदर मारग जात लेत मन गोई । —सूर (शब्द) । (ख) सूरश्याम मनहरण मनोहर गोकुल बसि मोहे सब लोई । —सूर (शब्द॰) । (ग) बल बसदेव कुशल सबू लोई । अर्जुन यह सुन दीने रोई । —सूर (शब्द॰) ।
लोई ^1 संज्ञा स्त्रीलिंग [सं॰ लोप्ती = प्रा॰ लोबी] गुँधे हुए आटे का उतना अंश जो एक रोटी मात्र के लिये निकालकर गोली के आकार का बनाया जाता है और जिसे बेलकर रोटी बनाते हैं । उ॰— भाजी भावती है महा मोदक मही की शोभा पूरी रची है कर लोनाई बिधि लोई में । —रघुनाथ (शब्द॰) । लोई ^2 संज्ञा स्त्रीलिंग [सं॰ लोमीय (= लोई)] एक प्रकार का कंबल जो पतले ऊन से बुना जाता है और कंबल से कुछ अधिक लंबा और चौड़ा होता है । इसकी बुनावट प्राय: दुसुत्ती की सी होती है । उ॰—सीतलपाटी टाट, लोई कम्बल ऊन के । बची न एकौ हाट, खेस निवारहि आदिहै । —सूदन (शब्द॰) ।
लोई ^1 संज्ञा स्त्रीलिंग [सं॰ लोप्ती = प्रा॰ लोबी] गुँधे हुए आटे का उतना अंश जो एक रोटी मात्र के लिये निकालकर गोली के आकार का बनाया जाता है और जिसे बेलकर रोटी बनाते हैं । उ॰— भाजी भावती है महा मोदक मही की शोभा पूरी रची है कर लोनाई बिधि लोई में । —रघुनाथ (शब्द॰) ।
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