तन्त्रालोक (Tantralok) = Tantalok
तन्त्रालोक अभिनवगुप्त द्वारा रचित एक तांत्रिक ग्रन्थ है। तन्त्रालोक की रचना हेतु निमित्तभूत शिष्य, सहयोगी और पारिवारिक वातावरण दो कारणों ने अभिनवगुप्त को तन्त्रालोक लिखने हेतु सर्वाधिक प्रेरित किया वे अपने शिष्यों और सहपाठियों जनो द्वारा अत्यन्त दृढ़ और श्रद्धापूर्ण निवेदन तथा अपने गुरु ‘सोमशम्भु’ अथवा शंम्भुनाथ की आज्ञा वशवर्शी होकर एक पूर्ण शास्त्ररूप तंत्रालोक के लेखन हेतु बाघ्य हो गए। अभिनव तंत्रालोक उपसंहार में तंत्रालोक की रचना सहायक साधनरूप अपने प्रधान शिष्यो का उल्लेख किया है। इनमें उनके भाई मनोरथ का स्थान सर्वप्रथम आता है। जब मनोरथ अभिनव के अखिलशास्त्रविमर्श पूर्ण शाम्भवशक्ति के एक मात्र अधिकारी बने उसी समय उनके अन्य चचेरे भाई भी समान प्रार्थना पूर्वक अभिनव के पास उपस्थित हो कृपा की अभियाचना की। इनमें से सौरि के पुत्रमंद्र, क्षेम, उत्पल अभिनव, चक्रक, पद्यगुप्त (सभी चचेरे भाई) और रामगुप्त का नामोल्लेख पूर्वक वार्णित है। कुछ और लोगों ने अभिनव से कृपा की याचना जिसे कृपालुहृदयवाले आचार्य अभिनव अस्वीकार नही कर सके, किंतु उनके नाम का कहीं वर्णन नही मिलता है। परात्रींशिक विवरण के उपसंहार श्लोकों मे मनोरथ, कर्ण और उत्पल का नाम लिया गया है। अभिनव के भाई मनोरथ सर्वशास्त्रवेत्ता तथा शिव की पराभक्ति से युक्त थे। कर्ण यथापि युवा थे तथापि वे संसारिक आकर्षणों से दूर होकर शैव अनुशासन में गम्भीर प्रवेश पा चुके थे। कर्ण ने मंद्र के साथ अभिनव से यह निवेदन किया था कि वे ‘मालिनीविजयोत्तर’ तंत्र पर एक टीका लिखे। कर्ण के सांसारिक वृत्ति से सर्वथा दूर और अपने नाम के अनुरूप गुण वाले योगेश्वरीदत्त नाम एक पुत्र भी था। कर्ण की युवा पत्नी, अम्बा, जो कि अभिनव की भगिनी भी थी, वेे अपने पति की अल्प अवस्था में ही मृत्यु के बाद समस्त लोकेषणाओं से मुक्त शिवपादपाों के गहन भक्ति में प्रविष्ट हो चुकी थी। यद्यपि वे अभिनव से ज्येष्ठ थी तथापि वे अभिनव को गुरु मानती थी न कि उन्हें बन्धु बुद्धि से देखती थी। आगे हम रामगुप्त का वर्णन पाते है जिन्हे अभिनव ‘परात्रींशिका विवरण’ में रामदेव कहते है। परात्रींशिका विवरण के अनुसार रामदेव व्याकरण, मीमांसा और तर्कशास्त्र (न्याय) के निष्णात विद्वान थे। अभिनव के पांचो चचेरे भाई जिनका वर्णन अभिनव ने उपसंहार श्लोकेां में किया है वे सभी समस्त वि
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