संयोगिता (Sanyogita) = Sanyogita
संयोगिता ( ( सुनें) /ˈsəmjoʊɡɪtɑː xɔːhɑːnə/) (संस्कृत: संयोगिता चौहान, अंग्रेज़ी: Sanyogita Chauhan) पृथ्वीराजतृतीय की पत्नी थी। पृथ्वीराज के साथ गान्धर्वविवाह कर के वें पृथ्वीराज की अर्धाङ्गिनी बनी थी। भारत के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में संयोगिताहरण गिना जाता है। पृथ्वीराज की तेरह राज्ञीओं में से संयोगिता अति रूपवती थी। संयोगिता को तिलोत्तमा, कान्तिमती, संजुक्ता इत्यादि नामों से भी जाना जाते थे। उनके पिता कन्नौज के राजा जयचन्द थे। जिन्होंने पृथ्वीराज के विरद्ध घोरी को युद्ध में सहायता की थी। संयोगिता का जन्म कन्नौज प्रदेश में हुआ था। उसके पिता का नाम जयचन्द था। पृथ्वीराजरासो काव्य के संयोगितास्वयंवर नाम के विभाग में उल्लिखित है कि, संयोगिता पूर्व जन्म में रम्भा नामक अप्सरा थी। कसी ऋषि के शाप के कारण वह संयोगिता के नाम से पृथ्वी पर अवतरित हुई। संयोगिता का उल्लेख विवेध काव्यों में भिन्न रूप में प्राप्य है। यथा पृथ्वीराजरासो काव्य में संयोगिता, पृथ्वीराजविजय महाकाव्य में तिलोत्तमा और सुरजनचरितमहाकाव्य में कान्तिमती। पृथ्वीराजरासो काव्य में और सुरजनचरित महाकाव्य में स्पष्टोल्लेख है कि, संयोगिता जयचन्द की पुत्री थी। पृथ्वीराजविजय महाकाव्य का महान् भाग क्षतियुक्त है। परन्तु वहाँ भी गङ्गा नदी के तट पर विकसित किसी ग्राम में संयोगिता का जन्म हुआ था ये उल्लेखः प्राप्य है। इतिहासविदों का मत है कि, वो नगर निश्चय ही कन्नौज था । संयोगिता जब यौवन को प्राप्त हुई, उस समय सम्पूर्ण भारत में पृथ्वीराज की वीरता की चर्चाएँ हो रही थी। संयोगिता ने जब पृथ्वीराज की वीरता की कथा सुनी, तब वह पृथ्वीराज के प्रेम पाश में बंध गई। प्रेमशास्त्र में एसी कन्याओं को मुग्धा कहा गया है। मुग्ध संयोगिता के हृदयस्थ प्रेम के विषय में जब जयचन्द को संज्ञान हुआ, तो उसने अन्य राजा के साथ अपनी पुत्री का विवाह करने के लिये उद्यत हुआ। क्योंकि जयचन्द और पृथ्वीराज के मध्य सम्बन्ध वैमनस्यपूर्ण थे। उसके बाद जयचन्द ने अश्वमेधयज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ के अन्त में संयोगिता के स्वयंवर की भी घोषणा कर दी। स्वयंवर के अवसर पर उसने सम्पूर्ण भारत के सभी राजाओं को निमन्त्रण दिया परन्तु पृथ्वीराज को निमन्त्रण नहीं दिया। पृथ्वीराज की इस प्रकार अपमान करने पर भी जयचन्द सन्तुष्ट नहीं हुआ। अतः उसने ल
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Sanyogita ka paryayvachi kya hoga