कम्पनी के प्रकार
निजी कंपनी
कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार, निजी कंपनी का अभिप्राय ऐसीकंपनी से है जिसकी न्यूनतम प्रदत्त पूँजी एक लाख रूपये हो। इसकी विशेषताएँ हैं -
- अपने सदस्यों के अंशों के हस्तांतरण के अधिकार को प्रतिबन्धित करती है।
- सदस्यों की अधिकतम संख्या पचास हो सकती है।
- अपने अंशों अथवा ऋण-पत्रों में अभिदान हेतु जनता को आमंत्रित नहीं कर सकती।
- अपने सदस्यों, संचालकों अथवा उनके सम्बन्धियों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों सेजमा स्वीकार नहीं कर सकती तथा न ही ऐसा आमंत्रण दे सकती है।
चार्टर कम्पनी-
इनकी स्थापना करने के लिये सरकार द्वारा विशेष आज्ञा जारी की जाती हैं। ये कम्पनियाँ विशेष अधिकार का प्रयोग करने के लिये स्थापित की जाती हैं। पूर्व में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी थी अब इस प्रकार की कोई कंपनी भारत में नहीं हैं।
विशेष विधान द्वारा निर्मित कम्पनियाँ-
ऐसी कम्पनियां जो संसद में विशेष अधिनियम पास करके बनाायी जाती हैं विशेष विधान द्वारा निर्मित कम्पनियाँ कहलाती है। जैसे- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम आदि।
कम्पनी अधिनियम द्वारा निर्मित कम्पनियाँ-
ऐसी कम्पनियां जिनका निर्माण कम्पनी अधिनियम 1956 के अधीन अथवा उसके पूर्व के वर्षों के कम्पनी अधिनियम के अंतर्गत हुआ हो, कम्पनी अधिनियम के अधीन निर्मित कम्पनियां कहलाती है।, जैसे- टाटा, टेल्को रिलायंस आदि।
सीमित कंपनी-
सीमित कम्पनियों में सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा क्रय किये गये अंशों की राशि तक सीमित रहती है तथा ऐसी कम्पनियों को अपने नाम के साथ लिमिटेड शब्द का प्रयोग करना अनिवार्य होता हैं। ये कम्पनियाँ दो प्रकार की होती हं-ै
- अंशो द्वारा सीमित- ऐसी कंपनी में अंशधारी का दायित्व उनके द्वारा क्रय किये गये अंशों की राशि तक सीमित होता हैं। यदि अंशधारी ने अंश का पूरा मूल्य नहीं चुकाया हैं तो उसका दायित्व अदत्त राशि तक ही रहता हैं।
- गारंटी द्वारा सीमित कम्पनियां- उत्तरदायित्वों- गारंटी द्वारा सीमित कम्पनी की दशा में अंशधारी कम्पनी को यह गारंटी देते हैं कि यदि उनके अंशधारी रहते समय अथवा सदस्यता त्यागने के 1 वर्ष के अंदर अगर कंपनी दीवालिया हो जाती हैं तो वे एक निर्धारित सीमा तक दायित्वों का भुगतान व्यक्तिगत रूप से करेंगे। ऐसी कम्पनी गारंटी द्वारा सीमित कम्पनी कहलाती है।
असीमित दायित्व वाली कम्पनी-
ऐसी कम्पनियां जिनके अंशधारियों का दायित्व असीमित होता हैं, असीमित दायित्व वाली कम्पनियां कहलाती हैं। इसमें अंशधारी साझेदारी की भांउत्तरदायित्वोंति व्यक्तिगत रूप से ऋणो को चुकाने के लिये उत्तरदायी होते हैं। वर्तमान में इन कंपनियों का प्रचलन नहीं है।
सरकारी कंपनी
कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार एक कंपनी जिसकी प्रदत्त अंश पूँजी का न्यूनतम 51प्रतिशत केन्द्र अथवा राज्य सरकार के पास हो, वहसरकारी कंपनी है। इसमें उसकी सहायक कंपनियाँ भीसम्मिलित हैं। सरकारी कंपनियों का अंकेक्षण भारत केनियंत्राक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा किया जाता है तथाउसकी रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जाती है।
प्रमुख सरकारी कंपनियों के उदाहरण हैं- एच.एम.टीलिमिटेड,कोल इंडिया लिमिटेड, स्टील अथॉरिटी ऑपफइंडिया लिमिटेड, एन.टी.पी.सी. लिमिटेड, महानगरटेलीपफोन निगम लिमिटेड, ओ.एन.जी.सी. लिमिटेड आदि।एक सरकारी कंपनी की विशेषताओं की सूची इस प्रकार है :
- इसका स्वतंत्रा वैधनिक अस्तित्व होता है।
- प्रदत्त अंश पूँजी का न्यूनतम 51 प्रतिशत सरकार के पास होता है।
- सभी अथवा अिध्कांश संचालकों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है।
- इसके कर्मचारी लोक सेवक नहीं होते।
सार्वजनिक कम्पनी-
कंपनी अधिनियम के अनुसार ऐसी कंपनी जो निजी कंपनी नही उत्तरदायित्वों हैं। सार्वजनिक कम्पनी कहलाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सार्वजनिक कम्पनी वह है-
- जिसमें न्यूनतम सात सदस्य होते है।
- सदस्य की अधिकतम संख्या अंशों की संख्या के बराबर होती है।
- जिसके अंशों के हस्तांतरण पर कोई प्रतिबंध नहीं हेाता।
- जो अपने अंश क्रय करने जनता को आमंत्रित करती है तथा जिसे अपने वार्षिक लेखे प्रकाशित करना आवश्यक होता है।
बहुराष्ट्रीय कंपनी
यह ऐसी कंपनी है जो अपना व्यवसाय अपने समामेलन वाले देश के साथ-साथ एक या अधिक अन्य देशों में भी चलाती है। इस तरह की कंपनियां वस्तुओं का उत्पादन अथवा सेवाओं की व्यवस्था एक अथवा अनेक देशों में करती हैं और उन्हें उन्हीं देशों अथवा अन्य देशों में बेचती हैं। आपने निश्चित रूप से कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विषय में सुना होगा, जो कि भारत में व्यापार करती हैं जैसे पिफलिप्स, एलजी, हुंडई, जनरल मोटर्स, कोका कोला, नेस्ले, सोनी, मैक डोनाल्ड्स, सिटी बैंक, पेप्सी पफूड, कैडबरी आदि। राष्ट्रीय सीमाओं के पार बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा वितरण के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अध्कि कमाई होती है। जिससे इन्हें कई लाभ प्राप्त होते हैं।
सूत्रधारी कंपनी-
सूत्रधारी कंपनी वह होती हैं, जिसका किसी दूसरी कंपनी पर नियंत्रण होता हैं। सूत्रधारी कंपनी को दूसरी कंपनी के नियंत्रण का आधार तब प्राप्त होता हैं जब वह उन कम्पनियों के आधे से अधिक अंशो का स्वामित्व प्राप्त कर लेती हैं।
सहायक कंपनी-
सूत्रधारी कंपनी के नियंत्रण में कार्य करने वाली कम्पनी सहायक कम्पनी कहलाती हैं।