Buddhi Ko Prabhavit Karne Wale Kaarak बुद्धि को प्रभावित करने वाले कारक

बुद्धि को प्रभावित करने वाले कारक



Pradeep Chawla on 09-09-2018

बुद्धि का सिद्धान्त

बुद्धि के स्वरूप एवं बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence) - दोनों ही बुद्धि के विषय के बारे में विचार प्रकट करते हैं परन्तु फिर भी दोनों में भिन्नता दृष्टिगत होती है। बुद्धि के सिद्धान्त उसकी संरचना को स्पष्ट करते हैं जबकि स्वरूप उसके कार्यों पर प्रकाश डालते हैं।


गत शताब्दी के प्रथम दशक से ही विभिन्न देशों के मनोवैज्ञानिकों में इस बात की रूचि बढ़ी की बुद्धि की संरचना कैसी है तथा इसमें किन-किन कारकों का समावेश है। इन्हीं प्रश्नों के परिणाम स्वरूप विभिन्न कारकों के आधार पर बुद्धि की संरचना की व्याख्या होने लगी। अमेरिका के थार्सटन, थार्नडाईक, थॉमसन आदि मनोवैज्ञानिकों ने कारकों (factors) के आधार पर 'बुद्धि के स्वरूप' विषय में अपने-अपने विचार व्यक्त किये। इसी तरह फ्रांस में अल्फ्रेड बिने, ब्रिटेन में स्पीयरमेन ने भी बुद्धि के स्वरूप के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये।

बिने का एक कारक सिद्धान्त (Uni-factor Theory)

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन फ्रांस के मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) ने 1911 में किया तथा अमेरिका के मनोवैज्ञानिक टर्मन तथा जर्मनी के मनोवैज्ञानिक एंबिगास ने इसका समर्थन किया। इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि वह शक्ति है जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है। इस सिद्धान्त के अनुयाइयों ने बुद्धि को समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करने वाली एक शक्ति के रूप में माना है। उन्होंने यह भी माना है कि बुद्धि समग्र रूप वाली होती है और व्यक्ति को एक विशेष कार्य करने में अग्रसित करती है। यह एक एकत्व का खंड है जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता है। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि व्यक्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में निपुण है तो वह अन्य क्षेत्रों में भी निपुण रहेगा। इसी एक कारकीय सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए बिने ने बुद्धि को व्याख्या-निर्णय की योग्यता माना है। टर्मन ने इसे विचार करने की योग्यता माना है तथा स्टर्न ने इसे नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता के रूप में माना है।

द्वितत्व सिद्धान्त (Bi-factor Theory)

इस सिद्धान्त के प्रवर्तक ब्रिटेन के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्पीयर मेन हैं। उन्होंने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों तथा अनुभवों के आधार पर बुद्धि के इस द्वि-तत्व सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनके मतानुसार बुद्धि दो शक्तियों के रूप में है या बुद्धि की संरचना में दो कारक हैं। इनमें से एक को उन्होंने 'सामान्य बुद्धि' (General or G-factor) तथा दूसरे कारक को 'विशिष्ट बुद्धि' (Specific S- factor) कहा है। सामान्य कारक से उनका तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों में कार्य करने की एक सामान्य योग्यता होती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति कुछ सीमा तक प्रत्येककार्य कर सकता है। ये कार्य उसकी सामान्य बुद्धि के कारण ही होते हैं। सामान्य कारक व्यक्ति की सम्पूर्ण मानसिक एवं बौद्धिक क्रियाओं में पाया जाता है परन्तु यह विभिन्न मात्राओं में होता है। बुद्धि का यह सामान्य कारक जन्मजात होता है तथा व्यक्तियों को सफलता की ओर इंगित करता है।


व्यक्ति की विशेष क्रियाएं बुद्धि के एक विशेष कारक द्वारा होती है। यह कारक बुद्धि का विशिष्ट कारक (specific factor) कहलाता है। एक प्रकार की विशिष्ट क्रिया में बुद्धि का एक विशिष्ट कारक कार्य करता है तो दूसरी क्रिया में दूसरा विशिष्ट कारक। अतः भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट क्रियाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। ये विशिष्ट कारक भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। इसी कारण वैयक्तिक भिन्नताएं पाई जाती हैं।


बुद्धि के सामान्य कारक जन्मजात होते हैं जबकि विशिष्ट कारक अधिकांशतः अर्जित होते हैं।


बुद्धि के इस दो-कारक सिद्धान्त के अनुसार सभी प्रकार की मानसिक क्रियाओं में बुद्धि के सामान्य कारक कार्य करते हैं जबकि विशिष्ट मानसिक क्रियाओं में विशिष्ट कारकों को स्वतंत्र रूप से काम में लिया जाता है। व्यक्ति के एक ही क्रिया में एक या कई विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। परन्तु प्रत्येक मानसिक क्रिया में उस क्रिया से संबंधित विशिष्ट कारक के साथ-साथ सामान्य कारक भी आवश्यक होते हैं। जैसे- सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, दर्शन एवं शास्त्र अध्ययन जैसे विषयों को जानने और समझने के लिए सामान्य कारक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं वहीं यांत्रिक, हस्तकला, कला, संगीत कला जैसे विशिष्ट विषयोंं को जानने ओर समझने के लिए विशिष्ट कारकों की प्रमुख रूप से आवश्यकता होती है। इससे स्पष्ट है कि किसी विशेष विषय या कला को सीखने के लिए दोनों कारकों का होना अत्यन्त अनिवार्य है।

त्रिकारक बुद्धि सिद्धान्त (Three factors theory of Intelligence)

स्पीयरमेन ने सन् 1904 में अपने पूर्व बुद्धि के द्विकारक सिद्धान्त में संशोधन करते हुए एक कारक और जोड़कर बुद्धि के त्रिकारक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। बुद्धि के जिस तीसरे कारक को उन्होंने अपने सिद्धान्त में जोड़ा उसे उन्होंने 'समूह कारक' (ग्रुप फेक्टर) कहा। अतः बुद्धि के इस सिद्धान्त में तीन कारक-

  1. सामान्य कारक
  2. विशिष्ट कारक
  3. समूह कारक

सम्मिलित किये गये हैं।


स्पीयरमेन के विचार में सामान्य तथा विशिष्ट कारकों के अतिरिक्त समूह कारक भी समस्त मानसिक क्रियाओं में साथ रहता है। कुछ विशेष योग्यताएं जैसे यांत्रिक योग्यता, आंकिक योग्यता, शाब्दिक योग्यता, संगीत योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा बौद्धिक योग्यता आदि के संचालन में समूह कारक भी विशेष भूमिका निभाते हैं। समूह कारक स्वयं अपने आप में कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता बल्कि विभिन्न विशिष्ट कारकों तथा सामान्य कारक के मिश्रण से यह अपना समूह बनाता है। इसीलिए इसे समूह कारक कहा गया है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस सिद्धान्त में किसी प्रकार की नवीनता नहीं है। थार्नडाइक जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धान्त की आलोचना करते हुए कहा है कि समूह कारक कोई नवीन कारक नहीं है अपितु यह सामान्य एवं विशिष्ट कारकों का मिश्रण मात्र है।

थार्नडाइक का बहुकारक बुद्धि सिद्धान्त

थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त में बुद्धि को विभिन्न कारकों का मिश्रण माना है। जिसमें कई योग्यताएं निहित होती हैं। उनके अनुसार किसी भी मानसिक कार्य के लिए, विभिन्न कारक एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। थार्नडाइक ने पूर्व सिद्धान्तों में प्रस्तुत 'सामान्य कारकों' की आलोचना की और अपने सिद्धान्त में सामान्य कारकों की जगह मूल कारकों (Primary factors) तथा सर्वनिष्ठ कारकों (कॉमन फैक्टर्स) का उल्लेख किया। मूल कारकों में मूल मानसिक योग्यताओं को सम्मिलित किया है। ये योग्यताएं जैसे- शाब्दिक योग्यता, आंकिक योग्यता, यांत्रिक योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा भाषण देने की योग्यता आदि हैं। उनके अनुसार ये योग्यताएं व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।


थार्नडाइक इस बात को भी मानते हैं कि हर व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट योग्यता अवश्य पायी जाती है। परन्तु उनका यह भी मानना है कि व्यक्ति की एक विषय की योग्यता से दूसरे विषय में योग्यता का अनुमान लगाना कठिन है। जैसे कि एक व्यक्ति यांत्रिक कला में प्रवीण है तो यह आवश्यक नहीं कि वह संगीत में भी निपुण होगा। उनके अनुसार जब दो मानसिक क्रियाओं के प्रतिपादन में यदि धनात्मक सहसंबंध पाया जाता है तो उसका अर्थि व्यक्ति में सर्वनिष्ट कारक भी हैं। ये उभयनिष्ठ कारक कितनी मात्रा में हैं यह सहसंबंध की मात्रा से ज्ञात हो सकता है।

थर्स्टन का समूह कारक बुद्धि सिद्धान्त (Thurston’s Group factors Intelligence Theory)

थर्स्टन के समूह कारक सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि न तो सामान्य कारकों का प्रदर्शन है न ही विभिन्न विशिष्ट कारकों का, अपितु इसमें कुछऐसी निश्चित मानसिक क्रियाएं होती हैं जो सामान्य रूप से मूल कारकों में सम्मिलित होती है। ये मानसिक क्रियाएं समूह का निर्माण करती हैं जो मनोवैज्ञानिक एवं क्रियात्मक एकता प्रदान करते हैं। थर्स्टन ने अपने सिद्धान्त को कारक विश्लेषण के आधार पर प्रस्तुत किया। उनके अनुसार बुद्धि की संरचना कुछ मौलिक कारकों के समूह से होती है। दो या अधिक मूल कारक मिलकर एक समूह का निर्माण कर लेते हैं जो व्यक्ति के किसी क्षेत्र में उसकी बुद्धि का प्रदर्शन करते हैं। इन मौलिक कारकों में उन्होंने आंकिक योग्यता, प्रत्यक्षीकरण की योग्यता (Perceptual ability), शाब्दिक योग्यता (Verbal ability), दैशिक योग्यता (Spatial ability), शब्द प्रवाह (Word fluency), तर्क शक्ति और स्मृति शक्ति (mental power) को मुख्य माना।


थर्स्टन ने यह स्पष्ट किया कि बुद्धि कई प्रकार की योग्यताओं का मिश्रण है जो विभिन्न समूहों में पाई जाती है। उनके अनुसार मानसिक योग्यताएं क्रियात्मक रूप से स्वतंत्र है फिर भी जब ये समूह में कार्य करती है तो उनमें परस्पर संबंध या समानता पाई जाती है। कुछ विशिष्ट योग्यताएं एक ही समूह की होती हैं और उनमें आपस में सह-संबंध पाया जाता है। जैसे विज्ञान विषयों के समूह में भौतिक, रसायन, गणित तथा जीव-विज्ञान भौतिकी एवं रसायन आदि। इसी प्रकार संगीत कला को प्रदर्शित करने के लिए तबला, हारमोनियम, सितार आदि बजाने में परस्पर सह-संबंध रहता है।






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Comments Pallavi on 10-01-2024

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Priya on 18-07-2021

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Anjani on 30-06-2020

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sidra on 11-06-2020

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