वर्तमान शिक्षा पद्धति कमियां एवं विकल्प
वर्तमान शिक्षा पद्धति : कमियां एवं विकल्प
वर्तमान शिक्षा में गुरु या अध्यापक श्रध्दा का पात्र न होकर वेतन भोगी नौकर बन गया। अध्यापक की भूमिका गौण हो गई तथा विद्यालय-विश्वविद्यालय के प्रबन्ध तन्त्र की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।
वर्तमान शिक्षा का इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। प्राय: लोग इसे मैकाले की शिक्षा प्रणाली के नाम से पुकारते हैं। लार्ड मैकाले ब्रिटिश पार्लियामेन्ट के ऊपरी सदन (हाउस आफ लार्ड्स) का सदस्य था। 1857 की क्रान्ति के बाद जब 1860 में भारत के शासन को ईस्ट इण्डिया कम्पनी से छीनकर महारानी विक्टोरिया के अधीन किया गया तब मैकाले को भारत में अंग्रेजों के शासन को मजबूत बनाने के लिये आवश्यक नीतियां सुझाने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था। उसने सारे देश का भ्रमण किया। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि यहां झाडू देने वाला, चमड़ा उतारने वाला, करघा चलाने वाला, कृषक, व्यापारी (वैश्य), मंत्र पढ़ने वाला आदि सभी वर्ण के लोग अपने-अपने कर्म को बड़ी श्रध्दा से हंसते-गाते कर रहे थे। सारा समाज संबंधोें की डोर से बंधा हुआ था। शूद्र भी समाज में किसी का भाई, चाचा या दादा था तथा ब्राहमण भी ऐसे ही रिश्तों से बंधा था। बेटी गांव की हुआ करती थी तथा दामाद, मामा आदि रिश्ते गांव के हुआ करते थे। इस प्रकार भारतीय समाज भिन्नता के बीच भी एकता के सूत्र में बंधा हुआ था। इस समय धार्मिक सम्प्रदायों के बीच भी सौहार्दपूर्ण संबंध था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि 1857 की क्रान्ति में हिन्दू-मुसलमान दोनों ने मिलकर अंग्रेजों का विरोध किया था। मैकाले को लगा कि जब तक हिन्दू-मुसलमानों के बीच वैमनस्यता नहीं होगी तथा वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत संचालित समाज की एकता नहीं टूटेगी तब तक भारत पर अंग्रेजों का शासन मजबूत नहीं होगा।
भारतीय समाज की एकता को नष्ट करने तथा वर्णाश्रित कर्म के प्रति घृणा उत्पन्न करने के लिए मैकाले ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली को बनाया। अंग्रेजों की इस शिक्षा नीति का लक्ष्य था संस्कृत, फारसी तथा लोक भाषाओं के वर्चस्व को तोड़कर अंग्रेजी का वर्चस्व कायम करना। साथ ही सरकार चलाने के लिए देशी अंग्रेजों को तैयार करना। इस प्रणाली के जरिए वंशानुगत कर्म के प्रति घृणा पैदा करने और परस्पर विद्वेष फैलाने की भी कोशिश की गई थी। इसके अलावा पश्चिमी सभ्यता एवं जीवन पध्दति के प्रति आकर्षण पैदा करना भी मैकाले का लक्ष्य था।
इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में ईसाई मिशनरियों ने भी महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई। ईसाई मिशनरियों ने ही सर्वप्रथम मैकाले की शिक्षा-नीति को लागू किया। आज स्वतन्त्रता के साठ वर्ष बाद यह स्पष्ट है कि मैकाले की शिक्षा नीति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में पूर्णतया सफल हो चुकी है। इसका प्रमाण है कि देश के एक प्रतिष्ठित प्रदेश का राज्यपाल संस्कृत के मंच से संस्कृत का अपमान करने का साहस जुटा सका। यह हमारे समाज के अभिजात्य वर्ग की मानसिक गुलामी का प्रतीक है। आईएएस, आईपीएस आदि के माध्यम से आज भी देशी अंग्रेज तैयार किए जा रहे हैं। वंशानुगत कर्म के प्रति सभी वर्ण हीन भावना एवं घृणा के शिकार हो चुके हैं। पश्चिमी सभ्यता एवं जीवन पध्दति के प्रति आकर्षण अपने चरम पर है। वर्तमान शिक्षा में गुरु या अध्यापक श्रध्दा का पात्र न होकर वेतन भोगी नौकर बन गया। अध्यापक की भूमिका गौण हो गई तथा विद्यालय-विश्वविद्यालय के प्रबन्ध तन्त्र की भूमिका महत्वपूण्र्ा हो गई है। शिक्षा में मानव को योग्य एवं चरित्रवान बनाने का वास्तविक लक्ष्य छूट गया तथा डिग्री-सर्टिफिकेट का महत्व बढ़ गया। पेशेगत योग्यता की शिक्षा मंहगी हो गई। इसने एक उद्योग (व्यापार) का रूप ग्रहण कर लिया। सेवा भाव का लोप हुआ तथा व्यापारिक मनोवृत्ति हावी हो गई।
कर्म के प्रति श्रध्दा के समाप्त होने से यह मात्र आर्थोपार्जन का साधन बन गया। इससे आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग बन्द हो गया। आहार-विहार में सन्तुलन न होने से शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य में कमी आई तथा आलस्य-प्रमाद के कारण श्रम शक्ति का ह्रास हुआ। इस प्रकार वर्तमान शिक्षा से सामाजिक दायित्व एवं राष्ट्रीय कर्तव्य का ज्ञान न मिलने से विद्यार्थी स्वयं एवं परिवार केन्द्रित होकर अधिक से अधिक अर्थोपार्जन में लगे हैं। वे अधिक से अधिक भौतिक सुख-साधनों के संग्रह-उपभोग को ही जीवन का लक्ष्य समझ बैठे हैं। येन-केन-प्रकारेण अर्थोपार्जन के लक्ष्य ने कर्म के अनुष्ठान में नैतिक मानदण्डों को नष्ट किया है। भौतिक सुखों को भोगने की सीमा टूटने से अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक एवं बौध्दिक समस्याएं उत्पन्न हुईं। अपनी भाषा, संस्कृति तथा राष्ट्र के प्रति गौरव-स्वाभिमान की भावना नष्ट हुई तथा परकीय भाषा, संस्कृति तथा पर-देश के प्रति आदर एवं आकर्षण बढ़ा। कहना न होगा कि वर्तमान शिक्षा विद्यार्थी को शरीर, मन एवं बुध्दि से रुग्ण बनाकर कुसंस्कृत तथा पतनोन्मुख बना रही है। राजनीतिक संघर्ष से भले ही देश को शारीरिक स्वतन्त्रता मिली पर विगत साठ वर्षों में मानसिक-बौध्दिक परतन्त्रता की बेड़ियां मजबूत हुईं हैं।
वर्तमान शिक्षा की किलता को स्वीकार कर विगत दो दशकों से इसमें आमूल परिवर्तन की आवश्यकता की बात को अनेक विद्वानों, विचारकों एवं राजनेताओं ने उठाया है। चूंकि अब तक कोई विचारणीय, अनुकरणीय तथा स्वीकार्य विकल्प प्रस्तुत न हो सका इसलिए वर्तमान शिक्षा को अपनाना लोगों की मजबूरी है। विकल्प के अन्तर्गत दो प्रश्न उठते हैं। पहला यह कि वर्तमान सन्दर्भों में एक सम्यक भारतीय शिक्षा का स्वरूप क्या हो? इसके अलावा वर्तमान शिक्षा में भारतीय परिवेश के अनुसार क्या परिवर्तन हो?
आज जरूरत वर्तमान शिक्षा को स्वदेशी, सार्थक और मूल्य आधारित बनाने की है। इसके लिए भारतीय पध्दति से आधुनिक विषयों की शिक्षा दी जानी चाहिए। साथ ही गुरु एवं शिष्य के बीच भावनात्मक आत्मीय सम्बन्धों के निर्माण पर जोर दिए जाने की जरूरत है। गुरु के महत्व को बढ़ाकर प्रबन्ध तन्त्र के वर्चस्व को घटाना भी आवश्यक है। उच्च-शिक्षा को सर्व सुलभ बनाने के लिए आर्थिक दबाव को तो कम करना ही होगा। इसके अलावा चरित्र निर्माण्ा के लिए विशेष पाठयक्रम एवं प्रयास की आवश्यकता है। शिक्षा के दो प्रमुख आयाम हैं: विधि और विषय। शिक्षा की गुणवत्ता को ‘गुरुकुल पध्दति’ के नाम से जाना जाता है। इस पध्दति में अध्यापक शिक्षा के केन्द्र में तथा विद्यार्थी परिधि पर अवस्थित रहा है। प्रत्येक विषय के अध्यापक अपने-अपने कक्ष में स्थिर रहते थे तथा हर स्तर के विद्यार्थी निर्धारित समयानुसार आकर शिक्षा ग्रहण करते थे। इस पध्दति में अध्यापक-विद्यार्थी के बीच आत्मीय एवं भावनात्मक सम्बन्ध बनता है तथा अध्यापक पर विद्यार्थी को अपने विषय की योग्यता प्रदान करने का दायित्व रहता है।
वर्तमान शिक्षा में अध्यापक विद्यार्थी को योग्य बनाने के दायित्व से रहित है। इसलिये शिक्षा के यान्त्रिक हो जाने से डाक्टर, इंजीनीयर जैसे कल-पुर्जों का निर्माण तो हो रहा है लेकिन मानव का निर्माण बाधित हो गया है। शिक्षा को स्वदेशी, भावनात्मक तथा सार्थक बनाने के लिए सबसे पहले कक्षाओं का निर्माण विषयवार हो और विषय के अनुसार कक्षाओं को सजाया जाए। प्रवेश में अध्यापक की भूमिका निर्णायक हो। प्रबन्ध तन्त्र का वर्चस्व कम हो। अध्यापकों पर विद्यार्थी को योग्य बनाने का भार हो। अध्यापकों के प्रशिक्षण एवं चयन में उनके गुण, शील, चरित्र तथा शिक्षण कार्य के प्रति उनके समर्पण भाव का आकलन हो। जल, जमीन, जंगल एवं जानवरों के महत्व का ज्ञान कराने वाले पाठयक्रम का निर्माण हो। मानवीय चरित्र निर्माण के लिए आवश्यक पाठयक्रम का विकास हो। साथ ही अपने राष्ट्र, संस्कृति, भाषा-भूषा, आहार-व्यवहार के प्रति स्वाभिमान एवं गौरव के भाव का विकास हो। इसके अलावा प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर किताबों का बोझ कम हो और डिग्री-सार्टिफिकेट से अधिक योग्यता के विकास को महत्व दिया जाए।
परीक्षाओं का संचालन एवं नियंत्रण इस प्रकार हो कि विद्यार्थी निर्भय होकर उत्साह से परीक्षा में बैठें। निजी शिक्षण संस्थाओं द्वारा किए जा रहे आर्थिक शोषण पर तो अंकुश लगना ही चाहिए। शिक्षण संस्थानों में प्रवेश एवं नियुक्तियों के संदर्भ में राजनीतिक हस्तक्षेप समाप्त होना चाहिए। महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों एवं अध्यापकों को सक्रिय राजनीति में भाग लेने पर रोक लगे। क्योंकि इससे दोनों स्तर पर एकता एवं सद्भाव का विघटन होता है तथा दोनों विभिन्न राजनीतिक गुटों में बंटकर शैक्षणिक परिसर को राजनीति का अखाड़ा बना देते हैं, जिससे विद्यार्थियों का शैक्षणिक विकास बाधित होता है। विद्यार्थी संघ का चुनाव तो हो लेकिन उसमें राजनीतिक गुटबाजी का प्रवेश निषेध हो। विद्यार्थी संघ का मुख्य कार्य इनके समस्याओं का समाधान एवं कल्याण हो। किसी भी राजनीतिक दल या नेताओं को उच्च शिक्षण संस्थानों में अपनी विचारधारा के प्रचार की अनुमति न हो। सभी जातियों एवं सम्प्रदायों के विद्यार्थियों को सभी स्तर पर शिक्षा का समान अधिकार एवं अवसर प्राप्त हो।
वर्तमान शिक्षा में यदि ये परिवर्तन किए जा सकें तो संभव है विद्यार्थियों के भटकाव पर काफी हद तक लगाम लग जाए। ये बदलाव छात्रें में योग्यता का विकास करने में भी सहायक सिध्द होंगे। इसके परिणामस्वरूप उत्पादक प्रतिभा एवं मानवीय चरित्र से युक्त युवा उत्तम नागरिक बनकर परिवार को सुख, समाज को समृध्दि एवं राष्ट्र को शान्ति प्रदान कर सकेंगे।
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।