मुद्रा पूर्ति क्या है
बाजार में पैसे की आपूर्ति (भारत के मामले में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) अर्थव्यवस्था में मुद्रा केंद्रीय बैंक द्वारा जारी की जाती है । भारत भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार मौद्रिक समुच्चय • M (रिजर्व मनी): प्रवाह में मुद्रा + • M1 + (संकीर्ण (नेरो) मनी): जनता के पास करेंसी + जनता की जमा पूंजी (बैंकिंग प्राणाली के साथ जमा की मांग+ आरबीआई की अन्य जमा) • M2: M1 + डाकघर के साथ बचत जमा। • M3 (ब्रॉड मनी): M1 + • M4 (ब्रॉड मनी): M3+ डाकघर बचत बैंकों के साथ सभी जमा (राष्ट्रीय बचत पत्र को छोड़कर)। सितंबर 2015 में भारत में M3 मुद्रा की आपूर्ति 110835.65 अरब रुपए थोक मूल्य सूचकांक: भारत उन कुछ गिने चुने देशों में जहां महंगाई थोक मूल्य सूचकाक, (WPI) के आधार पर केंद्रीय बैंक द्वारा की जाती है। थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) एक मूल्य सूचकांक है जो थोक मूल्य सूचकांक के लिये एक आधार वर्ष होता है। भारत में अभी थोक मूल्य सूचकांक की गणना हर हफ़्ते होती है सामानों के थोक भाव लेने और सूचकांक तैयार करने में समय लगता है, अब मान लीजिए 13 जून को ख़त्म हुए हफ़्ते में थोक मूल्य सूचकांक 120 थोक मूल्य सूचकांक की कमियां अमरीका, ब्रिटेन, जापान, फ़्रांस, कनाडा, सिंगापुर, चीन जैसे देशों भारत में ख़ुदरा मूल्य सूचकांक औद्योगिक कामगारों, शहरी मज़दूरों, भारत में थोक मूल्य सूचकांक को आधार मान कर महँगाई दर की गणना होती उपभोक्ता मूल्य सूचकांक: सीपीआई वस्तुओं के सीपीआई के प्रकार • औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW)
किसी भी देश के केंद्रीय बैंक की जिम्मेदारी होती है । भारतीय रिजर्व
बैंक, अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति के लिए करेंसी छपवाती है।
सिक्के, वित्त मंत्रालय द्वारा विभिन्न टकसालों में ढलवाए जाते है लेकिन
पूरे देश में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ही वितरित किए जाते हैं।
अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति, मुद्रास्फीति की दर को निर्धारित करती
है। पैसे की आपूर्ति अर्थव्यवस्था में जैसे- जैसे बढ़ती है उसी प्रकार
मुद्रास्फीति भी बढ़ती जाती है।
में मुद्रा की आपूर्ति न्यूनतम आरक्षी प्रणाली (1957) के नियम के अनुसार
की जाती है। इस नियम में यह प्रावधान है कि भारतीय रिजर्व बैंक 200 करोड़ की
कुल संपत्ति (जिसमे कम से कम 115 करोड़ का सोना और 85 करोड़ रुपए की विदेशी
मुद्रा को रखा जाता है ) को अपने पास संरक्षित रखती है। यदि भारतीय रिजर्व
बैंक ने 200 करोड़ की कुल संपत्ति का मानक पूरा कर लिया है तो वह कितनी ही
मात्रा में नयी मुद्रा को छाप सकती है (परन्तु रिजर्व बैंक ऐसा नहीं करता
है क्योंकि देश में मुद्रास्फीति की दर बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है)।
आरबीआई के पास बैंको का जमा + आरबीआई के पास अन्य जमा= आरबीआई का सरकार के
पास नेट क्रेडिट + आरबीआई का वाणिज्यिक क्षेत्र में नेट क्रेडिट +
बैंकों पर आरबीआई का दावा + आरबीआई की कुल विदेशी संपत्तियां + जनता के
लिए सरकार की मुद्रा देनदारियां – आरबीआई की कुल गैर मौद्रिक देनदारियां
बैंकों के साथ समयावधि जमा = सरकार के पास नेट बैंकिंग क्रेडिट + वाणिज्यिक
क्षेत्र में बैंक क्रेडिट + बैंक सेक्टर की कुल विदेशी संपत्ति+ जनता के
प्रति सरकार की मौद्रिक जिम्मेदारियां – बैंकिंग क्षेत्र की कुल गैर
मौद्रिक देनदारियों (समय जमा के अलावा)।
से बढ़कर अक्टूबर 2015 में 112200.55 अरब रुपए हो गई। 1972 से 2015 तक
मुद्रा आपूर्ति में औसतन वृद्धि 18,279.23 अरब रुपए की हुई, 2015 में यह अब
तक के सबसे बड़े स्तर पर थी। 1972 में यह निम्नतम 123.52 अरब रुपए थी।
मुद्रा आपूर्ति (M3 ) की पूर्ति रिजर्व बैंक द्वारा की जाती है।
भारत में मुद्रास्फीति की दर को किस तरह से तय किया जाता है ?
कुछ चुनी हुई वस्तुओं के सामूहिक औसत मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है। भारत
और फिलीपिन्स आदि देश थोक मूल्य सूचकांक में परिवर्तन को महंगाई में
परिवर्तन के सूचक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। किन्तु भारत और संयुक्त
राज्य अमेरिका अब उत्पादक मूल्य सूचकांक (producer price index) का प्रयोग
करने लगे हैं।
2004-05 के आधार वर्ष के मुताबिक थोक मूल्य सूचकांक की गणना हो रही है।
इसके अलावा वस्तुओं का एक समूह होता है जिनके औसत मूल्य का उतार-चढ़ाव थोक
मूल्य सूचकांक के उतार-चढ़ाव को निर्धारित करता है। अगर भारत की बात करें
तो यहाँ थोक मूल्य सूचकांक में 435 पदार्थों को शामिल किया गया है जिनमें
खाद्यान्न, धातु, ईंधन, रसायन आदि हर तरह के पदार्थ हैं और इनके चयन में
कोशिश की जाती है कि ये अर्थव्यवस्था के हर पहलू का प्रतिनिधित्व करें।
आधार वर्ष के लिए सभी 435 सामानों का सूचकांक 100 मान लिया जाता है।
इसलिए मुद्रास्फ़ीति की दर हमेशा दो हफ़्ते पहले की होती है। भारत में हर
हफ़्ते थोक मूल्य सूचकांक का आकलन किया जाता है। इसलिए महँगाई दर का आकलन
भी हफ़्ते के दौरान क़ीमतों में हुए परिवर्तन दिखाता है।
है और यह बढ कर बीस जून को 122 हो गई। तो प्रतिशत में अंतर हुआ लगभग 1.6
प्रतिशत और यही महंगाई दर मानी जाती है।
में महँगाई की दर खुदरा मूल्य सूचकांक के आधार पर तय की जाती है। इस
सूचकांक में आम उपभोक्ता जो सामान या सेवा ख़रीदते हैं उसकी क़ीमतें शामिल
होती हैं। इसलिए अर्थशास्त्रियों के एक तबके का कहना है कि भारत को भी इसी
आधार पर महँगाई दर की गणना करनी चाहिए जो आम लोगों के लिहाज़ से ज़्यादा
सटीक होगी.
कृषि मज़दूरों और ग्रामीण मज़दूरों के लिए अलग-अलग निकाली जाती है लेकिन ये
आँकड़ा हमेशा लगभग एक साल पुराना होता है।
है। हालाँकि थोक मूल्य और ख़ुदरा मूल्य में काफी अंतर होने के कारण इस विधि
को कुछ लोग सही नहीं मानते हैं।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (अंग्रेज़ी: consumer price index या CPI)
घरेलू उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे गये सामानों एवं सेवाओं (goods and
services) के औसत मूल्य को मापने वाला एक सूचकांक है। उपभोक्ता मूल्य
सूचकांक की गणना वस्तुओं एवं सेवाओं के एक मानक समूह के औसत मूल्य की गणना
करके की जाती है। वस्तुओं एवं सेवाओं का यह मानक समूह एक औसत शहरी उपभोक्ता
द्वारा खरीदे जाने वाली वस्तुओ का समूह होता है।
प्रतिनिधित्व और घरों में सेवाओं के उपभोग के रुप में समझा जा सकता है।
हालांकि, भारत में यह जनसंख्या के एक विशेष हिस्से से ही संबंध रखता है।
• कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकां (CPI-AW)
• शहरी गैर-श्रम कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-UNME)
निष्कर्ष:
पैसे की आपूर्ति और मुद्रास्फीति एक दूसरे से सकारात्मक संबंध रखती हैं।
जब अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति बढ़ती है और वस्तुओं की आपूर्ति/
उत्पादन नहीं बढ़ते हैं तो मुद्रास्फीति अनिवार्य रूप से बढ़ती है।
Mudra purti mein kiya sammilitt hoga
Mudra poorti kya hai
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