कुमावत गोत्र और कुलदेवी
कुमावत ( Kumawat ) शब्द होने से इसी पर विस्तार पर बताने जा रहा हूँ की कुम्हार समुदाय में कुमावत शब्द की शुरूआत कैसे हुई।
इसके लिये हमें भाषा विज्ञान पर नजर डालनी होगी। कुमावत शब्द की सन्धि विच्छेद करने पर पता चलता है ये शब्द कुमा + वत से बना है। यहां वत शब्द वत्स से बना है । वत्स का अर्थ होता है पुत्र या पुत्रवत शिष्य अर्थात अनुयायी। इसके लिये हम अन्य शब्दों पर विचार करते है-
निम्बावत अर्थात निम्बार्काचार्य के शिष्य
रामावत अर्थात रामानन्दाचार्य के शिष्य
शेखावत अर्थात शेखा जी के वंशज
लखावत अर्थात लाखा जी के वंशज
रांकावत अर्थात रांका जी के शिष्य या अनुयायी
इसी प्रकार कुमावत का भी अर्थ होता है कुम्हार के वत्स या अनुयायी। कुछ लोग अपने मन से कु मा वत जैसे मन माने सन्धि विच्छेद करते है और मनमाने अर्थ देते है।
कई बन्धु प्रश्न करते है कि कुम्हार शब्द था फिर कुमावत शब्द का प्रयोग क्यों शुरू हुआ। उसके पीछे मूल कारण यही है कि सामान्यतया पूरा समाज पिछड़ा रहा है और जब कोई बन्धु तरक्की कर आगे बढा तो उसने स्वयं को अलग दर्शाने के लिये इस शब्द का प्रयोग शुरू किया। और अब यह व्यापक पैमाने में प्रयोग होता है। कई बन्धु यह भी कहते है कि इतिहास में कुमावतों का युद्ध में भाग लेने का उल्लेख है। तो उन बन्धुओ को याद दिलाना चाहुंगा कि युद्ध में सभी जातियों की थोड़ी बहुत भागीदारी अवश्य होती थी और वे आवश्यकता होने पर अपना पराक्रम दिखा भी देते थे। युद्ध में कोई सैनिकों की सहायता करने वाले होते थे तो कोई दुदुभी बजाते कोई गीत गाते कोई हथियार पैने करते तो कोई भोजन बनाते। महाराणा प्रताप ने तो अपनी सेना में भीलों की भी भर्ती की थी। ये भी संभव है कि इस प्रकार युद्ध में भाग लेने वाले समाज बन्धु ने कुमावत शब्द का प्रयोग शुरू किया।
कुछ बन्धु यह भी कहते है कि इतिहास में पुरानी जागीरों का वर्णन होता है अत: वे राजपूत के वंशज है या क्षत्रिय है। तो उन बन्धुओं का बताना चाहुंगा की जागीर देना या ना देना राजा पर निर्भर करता था। जोधपुर में मेहरानगढ के दुर्ग के निर्माण के समय दुर्ग ढह जाता तो ये उपाय बताया गया कि किसी जीवित व्यक्ति द्वारा नींव मे समाधि लिये जाने पर ये अभिशाप दूर होगा। तब पूरे राज्य में उद्घोषणा करवाई गई कि जो व्यक्ति अपनी जीवित समाधि देगा उसके वंशजों को जागीर दी जाएगी। तब केवल एक गरीब व्यक्ति आगे आया उसका नाम राजाराम मेघवाल था। तब महाराजा ने उसके परिवार जनों को एक जागीर दी तथा उसके नाम से एक समाधि स्थान (थान) किले में आज भी मौजूद है। चारणों को भी उनकी काव्य गीतों की रचनाओं से प्रसन्न हो खूब जागीरे दी गयी। अत: जागीर होना या थान या समाधी होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि वे राजपूत के वंशज थे। और क्षत्रिय वर्ण बहुत वृहद है राजपूत तो उनके अंग मात्र है। कुम्हार युद्ध में भाग लेने के कारण क्षत्रिय कहला सकता है पर राजपूत नहीं। राजपूत तो व्यक्ति तभी कहलाता है जब वह किसी राजा की संतति हो।
भाट और रावाें ने अपनी बहियों में अलग अलग कहानीयों के माध्यम से लगभग सभी जातियों को राजपूतों से जोडा है ताकि उन्हे परम दानी राजा के वंशज बता अधिक से अधिक दान दक्षिणा ले सके।
लेकिन कुमावत और कुम्हारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि राजपूतो में ऐसी गोत्र नहीं होती जैसी उनकी है और जिस प्रकार कुमावत का रिश्ता कुमावत में होता है वैसे किसी राजपूत वंश में नहीं होता। अत: उनको भाट और रावों की झूठी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। राजपूतों मे कुम्भा नाम से कई राजा हुए है अत: हो सकता है उनके वंशज भी कुमावत लगाते रहे हो। पर अब कुम्हारों को कुमावत लगाते देख वे अपना मूल वंश जैसे सिसोदिया या राठौड़ या पंवार लगाना शुरू कर दिया होगा और वे रिश्ते भी अपने वंश के ही कुमावत से ना कर कच्छवाहो परिहारो से करते होंगे।
कुछ बन्धु ये भी तर्क देते है कि हम बर्तन मटके नहीं बनाते और इनको बनाने वालों से उनका कोई संबंध कभी नहीं रहा। उन बंधुओ को कहते है कि आपके पुराने खेत और मकान जायदाद मे तो कुम्हार कुमार कुम्भार लिखा है तो वे तर्क देते है कि वे अज्ञानतावश खुद को कुम्हार कहते थे। यहां ये लोग भूल जाते है कि हमारे पूर्वज राव और भाट के हमारी तुलना में ज्यादा प्रत्यक्ष सम्पर्क में रहते थे। अगर भाट कहते कि आप कुमावत हो तो वे कुमावत लगाते। और कुमावत शब्द का कुम्हारों द्वारा प्रयो्ग ज्यादा पुराना नहीं है। वर्तमान जयपुर की स्थापना के समय से ही प्रचलन में आया है और धीरे धीरे पूरे राजस्थान में कुम्हारों के मध्य लोकप्रिय हो रहा है। और रही बात मटके बनाने की तो हजार में से एक व्यक्ति ही मटका बनाता है। क्योंकि अगर सभी बनाते इतने बर्तन की खपत ही कहा होती। कम मांग के कारण कुम्हार जाति के लोग अन्य रोजगार अपनाते। कुछ खेती करते कुछ भवन निर्माण करते कुछ पशुचराते कुछ बनजारो की तरह व्यापार करते तो कुछ बर्तन और मिट्टी की वस्तुए बनातें। खेतीकर, चेजारा और जटिया कुमार क्रमश: खेती करने वाले, भवन निर्माण और पशु चराने और उन का कार्य करने वाले कुम्हार को कहा जाता था।
कुछ कहते है की मारू कुमार मतलब राजपूत। मारू मतलब राजपूत और कुमार मतलब राजकुमार।
- उनके लिये यह कहना है कि राजस्थान की संस्कृति पर कुछ पढे। बिना पढे ऐसी बाते ही मन मे उठेगी। मारू मतलब मरू प्रदेश वासी। मारेचा मारू शब्द का ही परिवर्तित रूप है जो मरूप्रदेश के सिंध से जुड़े क्षेत्र के लोगो के लिये प्रयुक्त होता है। और कुमार मतलब हिन्दी में राजकुमार होता है पर जिस भाषा और संस्कृति पर ध्यान दोगे तो वास्तविकता समझ आयेगी। यहां की भाष्ाा में उच्चारण अलग अलग है। यहां हर बारह कोस बाद बोली बदलती है। राजस्थान मे कुम्हार शब्द का उच्चारण कुम्हार कहीं नही होता। कुछ क्षेत्र में कुम्मार बोलते है और कुछ क्षेत्र में कुंभार अधिकतर कुमार ही बोलते है। दक्षिण्ा भारत में कुम्मारी, कुलाल शब्द कुम्हार जाति के लिये प्रयुक्त होता है।
प्रजापत और प्रजापति शब्द के अर्थ में कोई भेद नहीं।राजस्थानी भाषा में पति का उच्चारण पत के रूप में करते है। जैसे लखपति का लखपत, लक्ष्मीपति सिंघानिया का लक्ष्मीपत सिंघानिया। प्रजापति को राजस्थानी में प्रजापत कहते है। यह उपमा उसकी सृजनात्मक क्षमता देख कर दी गयी है। जिस प्रकार ब्रहृमा नश्वर सृष्टी की रचना करता है प्राणी का शरीर रज से बना है और वापस मिट्टि में विलीन हो जाता है वैसे है कुम्भकार मिट्टि के कणों से भिन्न भिन्न रचनाओं का सृजन करता है।
कुछ कहते है कि रहन सहन अलग अलग। और कुम्हार स्त्रियां नाक में आभूषण नही पहनती। तो इसके पीछे भी अलग अलग क्षेत्र के लोगो मे रहन सहन के स्तर में अन्तर होना ही मूल कारण है। राजस्थान में कुम्हार जाति इस प्रकार उपजातियों में विभाजित है-
मारू - अर्थात मरू प्रदेश के
खेतीकर - अर्थात ये साथ में अंश कालिक खेती करते थे। चेजारा भी इनमें से ही है जो अंशकालिक व्यवसाय के तौर पर भवन निर्माण करते थे। बारिस के मौसम में सभी जातियां खेती करती थी क्योंकि उस समय प्रति हेक्टेयर उत्पादन आज जितना नही होता था अत: लगभग सभी जातियां खेती करती थी। सर्दियों में मिट्टि की वस्तुए बनती थी। इनमें दारू मांस का सेवन नहीं होता था।
बांडा ये केवल बर्तन और मटके बनाने का व्यवसाय ही करते थे। ये मूलत: पश्चिमी राजस्थान के नहीं होकर गुजरात और वनवासी क्षेत्र से आये हुए कुम्हार थे। इनका रहन सहन भी मारू कुम्हार से अलग था। ये दारू मांस का सेवन भी करते थे।
पुरबिये - ये पूरब दिशा से आने वाले कुम्हारों को कहा जाता थ्ाा। जैसे हाड़ौती क्षेत्र के कुम्हार पश्चिमी क्षेत्र में आते तो इनको पुरबिया कहते। ये भी दारू मांस का सेवन करते थे।
जटिया- ये अंशकालिक व्यवसाय के तौर पर पशुपालन करते थे। और बकरी और भेड़ के बालों की वस्तुए बनाते थे। इनका रहन सहन भी पशुपालन व्यवसाय करने के कारण थोड़ा अलग हो गया था हालांकि ये भी मारू ही थे। इनका पहनावा राइका की तरह होता था।
रहन सहन अलग होने के कारण और दारू मांस का सेवन करने के कारण मारू अर्थात स्थानीय कुम्हार बांडा और पुरबियों के साथ रिश्ता नहीं करते थे।
मारू कुम्हार दारू मांस का सेवन नहीं करती थी अत: इनका सामाजिक स्तर अन्य पिछड़ी जातियों से बहुत उंचा होता था। अगर कहीं बड़े स्तर पर भोजन बनाना होता तो ब्राहमण ना होने पर कुम्हार को ही वरीयता दी जाती थी। इसीलिए आज भी पश्चिमी राजस्थान में हलवाई का अधिकतर कार्य कुम्हार और ब्राहमण जाति ही करती है।
पूराने समय में आवगमन के साधन कम होने से केवल इतनी दूरी के गांव तक रिश्ता करते थे कि सुबह दुल्हन की विदाई हो और शाम को बारात वापिस अपने गांव पहुंच जाये। इसलिये 20 से 40 किलोमीटर की त्रिज्या के क्षेत्र को स्थानीय बोली मे पट्टी कहते थे। वे केवल अपनी पट्टी में ही रिश्ता करते थे। परन्तु आज आवागमन के उन्नत साधन विकसित होने से दूरी कोई मायने नहीं रखती।
pilodrya gothar ki kuldevi kon h plz
Devatwal ki kuldevi konci
Shimmer gotr ki kuldevi konsi h कलवासना gotr ki kuldevi konsi
Bagore gotra ki kuldevi ka name Rajsthan me kaha hai?, Kitani bar puchaa hai maine, malum hai kya, pl. Btaey
Godela gotra ki kuldeevi kon
Marwal goter ki kul devi konsi h kha per h
भोभरिया गौत्र की कुलदेवी कौन सी माता है ?
चंदौरा गौत्र की कुलदेवी कौन है
Kumawat samaj gotra bagri (Bagore) ki kuldevi rajsthan me kha hai baieye
Kumawat samaj gotra bagri (Bagore) ki kuldevi rajsthan me kha hai baieye, kab bataoge
Kumavat samaj gotra bagri ki kuldevi ka name aur sthal in rajsthan
कुमावत "सोथवाल" गोत्र की कुलदेवी कौन है
Manetiya ke Kuldevi kaun si hai Aur Khurana ki Kuldevi kaun si hai
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सार्डीवाल गोत्र की सती माता का नाम और उनका स्थान कहां हैं?
Babariya kon se Kumar h
सिरसवा गौत्र का हितिहास
Jalwania gotra ki kuldevi ka Naam kya hai or unke mandir ka pata kya hai mere WhatsApp mobile number 9529388014 par cordinate jarur kare Jo bhi Jalwania ho
Jisko Apani Kuldevi ka Naam Or Gotra Or Pata Malum Hai Vo Comments box Me Mobile number ke sath jarur dale Aap ke prayas se kisi ko Aapni Kul Devi mil jaye
Tunwal ki kuldevi kon se h
Sirswa gotra ki kuldevi Khandela me hai shrimadhopur ke pas padta hai Google map pe search kerke find ker sakte ho chamunda mata , Khandela
Ghodela ki kul devi kensit hai
kakarwal gotra ki kuldevi Rajasthan me kha hai aur nam kay hai
Gedhar gotra ke kuldevi sankray mata dham kha h
Tangda goutra,kumawat ki kul devi konsi h, pls bataye
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Kumhar or kumawat ek hi he, paise walo ne apne aap ko kumawat shatriya jaati banaya he jo ki kumhar hi he
Kumawat mulewa gotra ki kuldevi kaun si hai aur uska Mandir kaha par he
Gatelwal ki kuldevi kaha h(kumawat)
Hamari gotta enia hai hamare nak and kuldevi kon hai our kaha ki hai
Tatwadia Gotra ki kuldevi kon hai?
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Kukkad wall gotra ki ki utpati Kahan Se Hui aur Inki ki Kuldevi kaun hai
माहुरे की कूलदेवी कोण है
तेलपुर गोत्र की कुलदेवी कोन सी है
Pradeep Chawla ji se _
Maaf kijiye doston mein aap sabhi ko batana chahta hun Ki Pradeep Chawla joki Arora jaati se hai, inse pahle puchna chahta hoon ki dusron ka Itihaas batane wale Tera Itihaas kya hai, tum bataa sakte ho ki Arora kon si jati h .jo Ghadhe, na Ghore vo h Arore.
Mandir ,masjid ,Gurudwara har jagaha tum khade mil jate ho
Tumhe apna Ithaas pata nhi h .
Kumaawat ki kya baat krte ho
Jin muslim logon ko Pakistan se bhagaaya vo Bharat main aakar hindu bangye
Aur jinhe Bharat se bhagaaya vo Pakistan main jakr muslim bangye
Tumhe pata hai Maharaja Agrasen kaun the vo Ek Sen Smaaj ke Raja thhe jinhone ger muslim logo ko Sharan di Thhi
रेणवाल की कुलदेवी kon he sa
Kundalwal ki kuldavi kon he
Kundalwal gotra ki kuldavi kon he
गोत्र कुलदेवी सम्बंधित प्रश्नकर्ताओ अगर आप वर्तमान प्रचलित कुमावत, कुम्हार, प्रजापत, कुम्भहार समाज से है तो श्री यादे मां आपकी कुलदेवी हैं।
Singathiya gotr ki kuldevi ka nam
Nagarkot wali mata nepal h
पुरबिया गोत्र कुलदेवी
मिसरेला(मुलेरा)गोत्र की कुलदेवी कौन व कहाँ है जानकरी दे
Kumawat samaj ma daal gotra ki kuldevi kon h pleas is number par bataye 7627084923
Jalwaniya ki gotra kuldevi
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Kumar jaati ke ghatiya Shakha Ke Log Rajasthan mein kaun si jagah Baithe Hain aneja Jaora gotra ki Kuldevi kya hai
गेदर गौत्र कि उतपत्ति
Jalndhra gotr ki kul devi kon h
Kumawat bilotia parivar ki kuldevi kaun si hai aur kahan hai mera naam ashok kumawat rpilodiya pushkar se
Bagore gotra ki kuldevi ka name photo bataiye
kumawat samaj gotra devtwal ki kuldevi aur kuldevta kon h aur kaha pr h
Lakesar गोत्र ki kul devi kon si ha ji
Kumawat gotr deathwal ki kuldevi ka naam
जाजपरा गोत्र की कुलदेवी कौन सी है
Mujhe ghorela ghot ki kuldevi ke bare me jan na h jo mujhe nhi malum agr kisi ko malum ho to plz batana
जगदाले समाज मध्य प्रदेश
Kumawat gotra nager ki kuldevi kaun hai
हमारी गोत्र सावलेसा हे हमारी कुल देवी कोनसी हे कृपा कर बताये
Godela jati ki kuldevi kon se h
KOI BHAI KO PRAJAPATI SAMAJ KI JALANDHRA GOTRA KI KULDEVI MALUM H TO BATANA PLZ
Chhitoliya ki kuldevi konsi hai
Mangrol Court ke Kuldevi kya hai
Mandhniya ki kul devi
कुम्हार जाती के बहेरा गोत्र की कुलदेवी
जाजपरा गोञ कि कुलदेवी का क्या नाम हैं
Kumawat ki goat Mangal ki kuldevi kaun hai
मार गोत्र की कुल देवी के नाम बताए।
मार गोत्र है या जाति बताएं
Bhobria gotta ki kuldevi konsi h
Mujhe kumawat samaj me godavad gotr me kuldevta kon h ye jaanana h aur kaha pr h .... ham kheti karne vale kumawat h
घोड़ेला की कुलदेवी
जटिया समाज सुवाँसिया परिवार की कुलदेवी कौनसी है
Devatwal ki kuldevi konsi hai
nimeewaal kumhar smaaj ki kuldevi or devta kon h
Chhapola Prajapat ki kuldevi or kuldewta kon h
Banda gotar
Kumawat me marotiya ki kuldevi konsi hai??
Kumawat me marotiya ki kuldevi konsi hai
Jalandra gotta ki kuldevi kon hai
Singathiya gotr ki kul devi kon h
Kudal gotta ki kul devi kon h
गेदर गौत्र की कुलदेवी कौन है
Machhival kumawat ki sati kahan sthit hai
पेंसिया समाज की कूलदेवी kon h
किरोडीवाल की कुल देवी को है
Dambiwal gotta ki kol Devi kha par ha
Ham logo ki yhi kmi h.. Aapas m ladne ki.. Sab ek hi h log apne area k hisab se kumawat verma prajapati etc lagate h.. Sabse pahle hamm logo ko financial strong hona hoga or unity bhi.. Fir apna dabdba kayam kar sakte h.. Mere vichar se jyada confuse hone ki jarurat nhi h.. Plz be strong in all sides.. Thanks
Goyal gotra ki jaati konsi h
Jinjhenodiya kumawat ki kul devi ka name batao
(कुमावत) छापोला गोत्र की कुल देवी कौन सी है
क्षत्रिय कुमावत(कुंबावत ) जाति का इतिहास/kshtriya KUMAWAT(KUMBAWAT) CASTE’S HISTORY
महोदय आपके द्वारा बताया गया कुमावत इतिहास गलत है। कुमावत (कुंबावत) इतिहास न केवल गौरवशाली है अपितु शौर्य गाथाओं से पटा पड़ा है जिसका उल्लेख श्री हनुमानदान ‘चंडीसा’ ने अपनी पुस्तक ‘‘मारू कुंबार’’ में किया है। श्री चंडीसा का परिचय उस समाज से है जो राजपूत एवं कुमावत समाज की वंशावली लिखने का कार्य करते रहे हैं।
कुमावत समाज के गौरवशाली इतिहास का वर्णन करते हुए ‘श्री चंडीसा’ ने लिखा है कि जैसलमेर के महान् संत श्री गरवा जी जोकि एक भाटी राजपूत थे, ने जैसलमेर के राजा रावल केहर द्वितीय के काल में विक्रम संवत् 1316 वैशाख सुदी 9 को राजपूत जाति में विधवा विवाह (नाता व्यवस्था) प्रचलित करके एक नई जाति बनायी। जिसमें 9 (नौ) राजपूती गोत्रें के 62 राजपूत (अलग-अलग भागों से आये हुए) शामिल हुए। इसी आधार पर इस जाति की 62 गौत्रें बनी जिसका वर्णन नीचे किया गया है। विधवा विवाह चूंकि उस समय राजपूत समाज में प्रचलित नहीं था इसलिए श्री गरवा जी महाराज ने विधवा लड़कियों का विवाह करके उन्हें एक नया सधवा जीवन दिया जिनके पति युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
श्री गरवा जी के नेतृत्व में सम्पन्न हुए इस कार्य के उपरांत बैठक ने जाति के नामकरण के लिए शुभ शुक्न (मुहूर्त) हेतु गॉंव से बाहर प्रस्थान किया गया। इस समुदाय को गॉंव से बाहर सर्वप्रथम एक बावत कॅंवर नाम की एक भाटी राजपूत कन्या पानी का मटका लाते हुए दिखी। जिसे सभी ने एक शुभ शुगन माना। इसी आधार पर श्री गरवाजी ने जाति के दो नाम सुझाए- 1. संस्कृत में मटके को कुंभ तथा लाने वाली कन्या का नाम बावत को जोड़कर नाम रखा गया कुंबाबत (कुम्भ+बाबत) राजपूत (जैसे कि सुमदाय की तरफ कुंभ आ रहा था इसलिए इसका एक रूप कुम्भ+आवत ¾ कुमावत भी रखा गया) 2. इस जाति का दूसरा नाम मारू कुंबार भी दिया गया, राजस्थानी में मारू का अर्थ होता है राजपूत तथा कुंभ गॉंव के बाहर मिला था इसलिए कुंभ+बाहर ¾ कुंबार। इस लिए इस जाति के दो नाम प्रचलित है कुंबावत राजपूत (क्षत्रिय कुमावत राजपूत) व मारू कुंबार। इस जाति का कुम्हार, कुम्भकार, प्रजापत जाति से कोई संबंध नहीं है। कालान्तर में जैसलमेर में पड़ने वाले भयंकर अकालों के कारण खेती या अन्य कार्य करने वाले कुंबावत राजस्थान को छोड़कर देश के अन्य प्रांतों जैसे पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में चले गए। इस कारण से कुंबावत (कुमावत) एवं उसकी गोत्रों का स्वरूप बदलता रहा। लेकिन व्यवसाय (सरकारी सेवा, जवाहरात का कार्य व कृषि) एवं राजपूत रीति-रिवाजों को आज तक नहीं छोड़ा है।
कुंबावत जाति की 62 गोत्रें निम्नलिखित हैं-
भाटी चौहान पड़िहार राठौर पंवार तंवर गुहिल सिसोदिया दैया
1.बोरावड़ टाक मेरथा चाडा लखेसर गेधर सुडा ओस्तवाल दैया
2.मंगलाव बंग चांदोरा रावड़ छापोला सांवल कुचेरिया
3.पोड़ सउवाल गम जालप जाखड़ा कलसिया
4.लिम्बा सारड़ीवाल गोहल कीता रसीयड़
5.खुड़िया गुरिया गंगपारिया कालोड़ दुगट
6.भटिया माल मांगर दांतलेचा पेसवा
7.मार घोड़ेला धुतिया पगाला आरोड़
8.नोखववाल सिंगाटिया सुथौड़ किरोड़ीवाल
9.भीड़ानिया निंबीवाल
10.सोखल छापरवाल
11.डाल सरस्वा
12.तलफीयाड़ कुक्कड़वाल
13.भाटीवाल भरिया
14.आर्इतान कलवासना
15.झटेवाल खरनालिया
16.मोर
17.मंगलोड़ा
etc…
जय माताजी रि सा
जय श्री गरवा जी महाराज
जय कुमावत राजपूत
जय राजपुताना।।
THOGARE KULDEVI KAHA HE NAM KAY HE
Taak l konsi kuldevi h
Kumawat Limma gotra ki kuldevi kon he
Baradhiya gotr ki kul devi ka asthan tatha nema batao please
Ghodela gotr ki kuldevi rajasthan me konsi he or kahaper hy
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