कुमावत गोत्र लिस्ट
मावत ( Kumawat ) शब्द होने से इसी पर विस्तार पर बताने जा रहा हूँ की कुम्हार समुदाय में कुमावत शब्द की शुरूआत कैसे हुई।
इसके लिये हमें भाषा विज्ञान पर नजर डालनी होगी। कुमावत शब्द की सन्धि विच्छेद करने पर पता चलता है ये शब्द कुमा + वत से बना है। यहां वत शब्द वत्स से बना है । वत्स का अर्थ होता है पुत्र या पुत्रवत शिष्य अर्थात अनुयायी। इसके लिये हम अन्य शब्दों पर विचार करते है-
निम्बावत अर्थात निम्बार्काचार्य के शिष्य
रामावत अर्थात रामानन्दाचार्य के शिष्य
शेखावत अर्थात शेखा जी के वंशज
लखावत अर्थात लाखा जी के वंशज
रांकावत अर्थात रांका जी के शिष्य या अनुयायी
इसी प्रकार कुमावत का भी अर्थ होता है कुम्हार के वत्स या अनुयायी। कुछ लोग अपने मन से कु मा वत जैसे मन माने सन्धि विच्छेद करते है और मनमाने अर्थ देते है।
कई बन्धु प्रश्न करते है कि कुम्हार शब्द था फिर कुमावत शब्द का प्रयोग क्यों शुरू हुआ। उसके पीछे मूल कारण यही है कि सामान्यतया पूरा समाज पिछड़ा रहा है और जब कोई बन्धु तरक्की कर आगे बढा तो उसने स्वयं को अलग दर्शाने के लिये इस शब्द का प्रयोग शुरू किया। और अब यह व्यापक पैमाने में प्रयोग होता है। कई बन्धु यह भी कहते है कि इतिहास में कुमावतों का युद्ध में भाग लेने का उल्लेख है। तो उन बन्धुओ को याद दिलाना चाहुंगा कि युद्ध में सभी जातियों की थोड़ी बहुत भागीदारी अवश्य होती थी और वे आवश्यकता होने पर अपना पराक्रम दिखा भी देते थे। युद्ध में कोई सैनिकों की सहायता करने वाले होते थे तो कोई दुदुभी बजाते कोई गीत गाते कोई हथियार पैने करते तो कोई भोजन बनाते। महाराणा प्रताप ने तो अपनी सेना में भीलों की भी भर्ती की थी। ये भी संभव है कि इस प्रकार युद्ध में भाग लेने वाले समाज बन्धु ने कुमावत शब्द का प्रयोग शुरू किया।
कुछ बन्धु यह भी कहते है कि इतिहास में पुरानी जागीरों का वर्णन होता है अत: वे राजपूत के वंशज है या क्षत्रिय है। तो उन बन्धुओं का बताना चाहुंगा की जागीर देना या ना देना राजा पर निर्भर करता था। जोधपुर में मेहरानगढ के दुर्ग के निर्माण के समय दुर्ग ढह जाता तो ये उपाय बताया गया कि किसी जीवित व्यक्ति द्वारा नींव मे समाधि लिये जाने पर ये अभिशाप दूर होगा। तब पूरे राज्य में उद्घोषणा करवाई गई कि जो व्यक्ति अपनी जीवित समाधि देगा उसके वंशजों को जागीर दी जाएगी। तब केवल एक गरीब व्यक्ति आगे आया उसका नाम राजाराम मेघवाल था। तब महाराजा ने उसके परिवार जनों को एक जागीर दी तथा उसके नाम से एक समाधि स्थान (थान) किले में आज भी मौजूद है। चारणों को भी उनकी काव्य गीतों की रचनाओं से प्रसन्न हो खूब जागीरे दी गयी। अत: जागीर होना या थान या समाधी होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि वे राजपूत के वंशज थे। और क्षत्रिय वर्ण बहुत वृहद है राजपूत तो उनके अंग मात्र है। कुम्हार युद्ध में भाग लेने के कारण क्षत्रिय कहला सकता है पर राजपूत नहीं। राजपूत तो व्यक्ति तभी कहलाता है जब वह किसी राजा की संतति हो।
भाट और रावाें ने अपनी बहियों में अलग अलग कहानीयों के माध्यम से लगभग सभी जातियों को राजपूतों से जोडा है ताकि उन्हे परम दानी राजा के वंशज बता अधिक से अधिक दान दक्षिणा ले सके।
लेकिन कुमावत और कुम्हारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि राजपूतो में ऐसी गोत्र नहीं होती जैसी उनकी है और जिस प्रकार कुमावत का रिश्ता कुमावत में होता है वैसे किसी राजपूत वंश में नहीं होता। अत: उनको भाट और रावों की झूठी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। राजपूतों मे कुम्भा नाम से कई राजा हुए है अत: हो सकता है उनके वंशज भी कुमावत लगाते रहे हो। पर अब कुम्हारों को कुमावत लगाते देख वे अपना मूल वंश जैसे सिसोदिया या राठौड़ या पंवार लगाना शुरू कर दिया होगा और वे रिश्ते भी अपने वंश के ही कुमावत से ना कर कच्छवाहो परिहारो से करते होंगे।
कुछ बन्धु ये भी तर्क देते है कि हम बर्तन मटके नहीं बनाते और इनको बनाने वालों से उनका कोई संबंध कभी नहीं रहा। उन बंधुओ को कहते है कि आपके पुराने खेत और मकान जायदाद मे तो कुम्हार कुमार कुम्भार लिखा है तो वे तर्क देते है कि वे अज्ञानतावश खुद को कुम्हार कहते थे। यहां ये लोग भूल जाते है कि हमारे पूर्वज राव और भाट के हमारी तुलना में ज्यादा प्रत्यक्ष सम्पर्क में रहते थे। अगर भाट कहते कि आप कुमावत हो तो वे कुमावत लगाते। और कुमावत शब्द का कुम्हारों द्वारा प्रयो्ग ज्यादा पुराना नहीं है। वर्तमान जयपुर की स्थापना के समय से ही प्रचलन में आया है और धीरे धीरे पूरे राजस्थान में कुम्हारों के मध्य लोकप्रिय हो रहा है। और रही बात मटके बनाने की तो हजार में से एक व्यक्ति ही मटका बनाता है। क्योंकि अगर सभी बनाते इतने बर्तन की खपत ही कहा होती। कम मांग के कारण कुम्हार जाति के लोग अन्य रोजगार अपनाते। कुछ खेती करते कुछ भवन निर्माण करते कुछ पशुचराते कुछ बनजारो की तरह व्यापार करते तो कुछ बर्तन और मिट्टी की वस्तुए बनातें। खेतीकर, चेजारा और जटिया कुमार क्रमश: खेती करने वाले, भवन निर्माण और पशु चराने और उन का कार्य करने वाले कुम्हार को कहा जाता था।
कुछ कहते है की मारू कुमार मतलब राजपूत। मारू मतलब राजपूत और कुमार मतलब राजकुमार।
- उनके लिये यह कहना है कि राजस्थान की संस्कृति पर कुछ पढे। बिना पढे ऐसी बाते ही मन मे उठेगी। मारू मतलब मरू प्रदेश वासी। मारेचा मारू शब्द का ही परिवर्तित रूप है जो मरूप्रदेश के सिंध से जुड़े क्षेत्र के लोगो के लिये प्रयुक्त होता है। और कुमार मतलब हिन्दी में राजकुमार होता है पर जिस भाषा और संस्कृति पर ध्यान दोगे तो वास्तविकता समझ आयेगी। यहां की भाष्ाा में उच्चारण अलग अलग है। यहां हर बारह कोस बाद बोली बदलती है। राजस्थान मे कुम्हार शब्द का उच्चारण कुम्हार कहीं नही होता। कुछ क्षेत्र में कुम्मार बोलते है और कुछ क्षेत्र में कुंभार अधिकतर कुमार ही बोलते है। दक्षिण्ा भारत में कुम्मारी, कुलाल शब्द कुम्हार जाति के लिये प्रयुक्त होता है।
प्रजापत और प्रजापति शब्द के अर्थ में कोई भेद नहीं।राजस्थानी भाषा में पति का उच्चारण पत के रूप में करते है। जैसे लखपति का लखपत, लक्ष्मीपति सिंघानिया का लक्ष्मीपत सिंघानिया। प्रजापति को राजस्थानी में प्रजापत कहते है। यह उपमा उसकी सृजनात्मक क्षमता देख कर दी गयी है। जिस प्रकार ब्रहृमा नश्वर सृष्टी की रचना करता है प्राणी का शरीर रज से बना है और वापस मिट्टि में विलीन हो जाता है वैसे है कुम्भकार मिट्टि के कणों से भिन्न भिन्न रचनाओं का सृजन करता है।
कुछ कहते है कि रहन सहन अलग अलग। और कुम्हार स्त्रियां नाक में आभूषण नही पहनती। तो इसके पीछे भी अलग अलग क्षेत्र के लोगो मे रहन सहन के स्तर में अन्तर होना ही मूल कारण है। राजस्थान में कुम्हार जाति इस प्रकार उपजातियों में विभाजित है-
मारू - अर्थात मरू प्रदेश के
खेतीकर - अर्थात ये साथ में अंश कालिक खेती करते थे। चेजारा भी इनमें से ही है जो अंशकालिक व्यवसाय के तौर पर भवन निर्माण करते थे। बारिस के मौसम में सभी जातियां खेती करती थी क्योंकि उस समय प्रति हेक्टेयर उत्पादन आज जितना नही होता था अत: लगभग सभी जातियां खेती करती थी। सर्दियों में मिट्टि की वस्तुए बनती थी। इनमें दारू मांस का सेवन नहीं होता था।
बांडा ये केवल बर्तन और मटके बनाने का व्यवसाय ही करते थे। ये मूलत: पश्चिमी राजस्थान के नहीं होकर गुजरात और वनवासी क्षेत्र से आये हुए कुम्हार थे। इनका रहन सहन भी मारू कुम्हार से अलग था। ये दारू मांस का सेवन भी करते थे।
पुरबिये - ये पूरब दिशा से आने वाले कुम्हारों को कहा जाता थ्ाा। जैसे हाड़ौती क्षेत्र के कुम्हार पश्चिमी क्षेत्र में आते तो इनको पुरबिया कहते। ये भी दारू मांस का सेवन करते थे।
जटिया- ये अंशकालिक व्यवसाय के तौर पर पशुपालन करते थे। और बकरी और भेड़ के बालों की वस्तुए बनाते थे। इनका रहन सहन भी पशुपालन व्यवसाय करने के कारण थोड़ा अलग हो गया था हालांकि ये भी मारू ही थे। इनका पहनावा राइका की तरह होता था।
रहन सहन अलग होने के कारण और दारू मांस का सेवन करने के कारण मारू अर्थात स्थानीय कुम्हार बांडा और पुरबियों के साथ रिश्ता नहीं करते थे।
मारू कुम्हार दारू मांस का सेवन नहीं करती थी अत: इनका सामाजिक स्तर अन्य पिछड़ी जातियों से बहुत उंचा होता था। अगर कहीं बड़े स्तर पर भोजन बनाना होता तो ब्राहमण ना होने पर कुम्हार को ही वरीयता दी जाती थी। इसीलिए आज भी पश्चिमी राजस्थान में हलवाई का अधिकतर कार्य कुम्हार और ब्राहमण जाति ही करती है।
पूराने समय में आवगमन के साधन कम होने से केवल इतनी दूरी के गांव तक रिश्ता करते थे कि सुबह दुल्हन की विदाई हो और शाम को बारात वापिस अपने गांव पहुंच जाये। इसलिये 20 से 40 किलोमीटर की त्रिज्या के क्षेत्र को स्थानीय बोली मे पट्टी कहते थे। वे केवल अपनी पट्टी में ही रिश्ता करते थे। परन्तु आज आवागमन के उन्नत साधन विकसित होने से दूरी कोई मायने नहीं रखती।
मावत ( Kumawat ) शब्द होने से इसी पर विस्तार पर बताने जा रहा हूँ की कुम्हार समुदाय में कुमावत शब्द की शुरूआत कैसे हुई।
इसके लिये हमें भाषा विज्ञान पर नजर डालनी होगी। कुमावत शब्द की सन्धि विच्छेद करने पर पता चलता है ये शब्द कुमा + वत से बना है। यहां वत शब्द वत्स से बना है । वत्स का अर्थ होता है पुत्र या पुत्रवत शिष्य अर्थात अनुयायी। इसके लिये हम अन्य शब्दों पर विचार करते है-
निम्बावत अर्थात निम्बार्काचार्य के शिष्य
रामावत अर्थात रामानन्दाचार्य के शिष्य
शेखावत अर्थात शेखा जी के वंशज
लखावत अर्थात लाखा जी के वंशज
रांकावत अर्थात रांका जी के शिष्य या अनुयायी
इसी प्रकार कुमावत का भी अर्थ होता है कुम्हार के वत्स या अनुयायी। कुछ लोग अपने मन से कु मा वत जैसे मन माने सन्धि विच्छेद करते है और मनमाने अर्थ देते है।
कई बन्धु प्रश्न करते है कि कुम्हार शब्द था फिर कुमावत शब्द का प्रयोग क्यों शुरू हुआ। उसके पीछे मूल कारण यही है कि सामान्यतया पूरा समाज पिछड़ा रहा है और जब कोई बन्धु तरक्की कर आगे बढा तो उसने स्वयं को अलग दर्शाने के लिये इस शब्द का प्रयोग शुरू किया। और अब यह व्यापक पैमाने में प्रयोग होता है। कई बन्धु यह भी कहते है कि इतिहास में कुमावतों का युद्ध में भाग लेने का उल्लेख है। तो उन बन्धुओ को याद दिलाना चाहुंगा कि युद्ध में सभी जातियों की थोड़ी बहुत भागीदारी अवश्य होती थी और वे आवश्यकता होने पर अपना पराक्रम दिखा भी देते थे। युद्ध में कोई सैनिकों की सहायता करने वाले होते थे तो कोई दुदुभी बजाते कोई गीत गाते कोई हथियार पैने करते तो कोई भोजन बनाते। महाराणा प्रताप ने तो अपनी सेना में भीलों की भी भर्ती की थी। ये भी संभव है कि इस प्रकार युद्ध में भाग लेने वाले समाज बन्धु ने कुमावत शब्द का प्रयोग शुरू किया।
कुछ बन्धु यह भी कहते है कि इतिहास में पुरानी जागीरों का वर्णन होता है अत: वे राजपूत के वंशज है या क्षत्रिय है। तो उन बन्धुओं का बताना चाहुंगा की जागीर देना या ना देना राजा पर निर्भर करता था। जोधपुर में मेहरानगढ के दुर्ग के निर्माण के समय दुर्ग ढह जाता तो ये उपाय बताया गया कि किसी जीवित व्यक्ति द्वारा नींव मे समाधि लिये जाने पर ये अभिशाप दूर होगा। तब पूरे राज्य में उद्घोषणा करवाई गई कि जो व्यक्ति अपनी जीवित समाधि देगा उसके वंशजों को जागीर दी जाएगी। तब केवल एक गरीब व्यक्ति आगे आया उसका नाम राजाराम मेघवाल था। तब महाराजा ने उसके परिवार जनों को एक जागीर दी तथा उसके नाम से एक समाधि स्थान (थान) किले में आज भी मौजूद है। चारणों को भी उनकी काव्य गीतों की रचनाओं से प्रसन्न हो खूब जागीरे दी गयी। अत: जागीर होना या थान या समाधी होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि वे राजपूत के वंशज थे। और क्षत्रिय वर्ण बहुत वृहद है राजपूत तो उनके अंग मात्र है। कुम्हार युद्ध में भाग लेने के कारण क्षत्रिय कहला सकता है पर राजपूत नहीं। राजपूत तो व्यक्ति तभी कहलाता है जब वह किसी राजा की संतति हो।
भाट और रावाें ने अपनी बहियों में अलग अलग कहानीयों के माध्यम से लगभग सभी जातियों को राजपूतों से जोडा है ताकि उन्हे परम दानी राजा के वंशज बता अधिक से अधिक दान दक्षिणा ले सके।
लेकिन कुमावत और कुम्हारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि राजपूतो में ऐसी गोत्र नहीं होती जैसी उनकी है और जिस प्रकार कुमावत का रिश्ता कुमावत में होता है वैसे किसी राजपूत वंश में नहीं होता। अत: उनको भाट और रावों की झूठी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। राजपूतों मे कुम्भा नाम से कई राजा हुए है अत: हो सकता है उनके वंशज भी कुमावत लगाते रहे हो। पर अब कुम्हारों को कुमावत लगाते देख वे अपना मूल वंश जैसे सिसोदिया या राठौड़ या पंवार लगाना शुरू कर दिया होगा और वे रिश्ते भी अपने वंश के ही कुमावत से ना कर कच्छवाहो परिहारो से करते होंगे।
कुछ बन्धु ये भी तर्क देते है कि हम बर्तन मटके नहीं बनाते और इनको बनाने वालों से उनका कोई संबंध कभी नहीं रहा। उन बंधुओ को कहते है कि आपके पुराने खेत और मकान जायदाद मे तो कुम्हार कुमार कुम्भार लिखा है तो वे तर्क देते है कि वे अज्ञानतावश खुद को कुम्हार कहते थे। यहां ये लोग भूल जाते है कि हमारे पूर्वज राव और भाट के हमारी तुलना में ज्यादा प्रत्यक्ष सम्पर्क में रहते थे। अगर भाट कहते कि आप कुमावत हो तो वे कुमावत लगाते। और कुमावत शब्द का कुम्हारों द्वारा प्रयो्ग ज्यादा पुराना नहीं है। वर्तमान जयपुर की स्थापना के समय से ही प्रचलन में आया है और धीरे धीरे पूरे राजस्थान में कुम्हारों के मध्य लोकप्रिय हो रहा है। और रही बात मटके बनाने की तो हजार में से एक व्यक्ति ही मटका बनाता है। क्योंकि अगर सभी बनाते इतने बर्तन की खपत ही कहा होती। कम मांग के कारण कुम्हार जाति के लोग अन्य रोजगार अपनाते। कुछ खेती करते कुछ भवन निर्माण करते कुछ पशुचराते कुछ बनजारो की तरह व्यापार करते तो कुछ बर्तन और मिट्टी की वस्तुए बनातें। खेतीकर, चेजारा और जटिया कुमार क्रमश: खेती करने वाले, भवन निर्माण और पशु चराने और उन का कार्य करने वाले कुम्हार को कहा जाता था।
कुछ कहते है की मारू कुमार मतलब राजपूत। मारू मतलब राजपूत और कुमार मतलब राजकुमार।
- उनके लिये यह कहना है कि राजस्थान की संस्कृति पर कुछ पढे। बिना पढे ऐसी बाते ही मन मे उठेगी। मारू मतलब मरू प्रदेश वासी। मारेचा मारू शब्द का ही परिवर्तित रूप है जो मरूप्रदेश के सिंध से जुड़े क्षेत्र के लोगो के लिये प्रयुक्त होता है। और कुमार मतलब हिन्दी में राजकुमार होता है पर जिस भाषा और संस्कृति पर ध्यान दोगे तो वास्तविकता समझ आयेगी। यहां की भाष्ाा में उच्चारण अलग अलग है। यहां हर बारह कोस बाद बोली बदलती है। राजस्थान मे कुम्हार शब्द का उच्चारण कुम्हार कहीं नही होता। कुछ क्षेत्र में कुम्मार बोलते है और कुछ क्षेत्र में कुंभार अधिकतर कुमार ही बोलते है। दक्षिण्ा भारत में कुम्मारी, कुलाल शब्द कुम्हार जाति के लिये प्रयुक्त होता है।
प्रजापत और प्रजापति शब्द के अर्थ में कोई भेद नहीं।राजस्थानी भाषा में पति का उच्चारण पत के रूप में करते है। जैसे लखपति का लखपत, लक्ष्मीपति सिंघानिया का लक्ष्मीपत सिंघानिया। प्रजापति को राजस्थानी में प्रजापत कहते है। यह उपमा उसकी सृजनात्मक क्षमता देख कर दी गयी है। जिस प्रकार ब्रहृमा नश्वर सृष्टी की रचना करता है प्राणी का शरीर रज से बना है और वापस मिट्टि में विलीन हो जाता है वैसे है कुम्भकार मिट्टि के कणों से भिन्न भिन्न रचनाओं का सृजन करता है।
कुछ कहते है कि रहन सहन अलग अलग। और कुम्हार स्त्रियां नाक में आभूषण नही पहनती। तो इसके पीछे भी अलग अलग क्षेत्र के लोगो मे रहन सहन के स्तर में अन्तर होना ही मूल कारण है। राजस्थान में कुम्हार जाति इस प्रकार उपजातियों में विभाजित है-
मारू - अर्थात मरू प्रदेश के
खेतीकर - अर्थात ये साथ में अंश कालिक खेती करते थे। चेजारा भी इनमें से ही है जो अंशकालिक व्यवसाय के तौर पर भवन निर्माण करते थे। बारिस के मौसम में सभी जातियां खेती करती थी क्योंकि उस समय प्रति हेक्टेयर उत्पादन आज जितना नही होता था अत: लगभग सभी जातियां खेती करती थी। सर्दियों में मिट्टि की वस्तुए बनती थी। इनमें दारू मांस का सेवन नहीं होता था।
बांडा ये केवल बर्तन और मटके बनाने का व्यवसाय ही करते थे। ये मूलत: पश्चिमी राजस्थान के नहीं होकर गुजरात और वनवासी क्षेत्र से आये हुए कुम्हार थे। इनका रहन सहन भी मारू कुम्हार से अलग था। ये दारू मांस का सेवन भी करते थे।
पुरबिये - ये पूरब दिशा से आने वाले कुम्हारों को कहा जाता थ्ाा। जैसे हाड़ौती क्षेत्र के कुम्हार पश्चिमी क्षेत्र में आते तो इनको पुरबिया कहते। ये भी दारू मांस का सेवन करते थे।
जटिया- ये अंशकालिक व्यवसाय के तौर पर पशुपालन करते थे। और बकरी और भेड़ के बालों की वस्तुए बनाते थे। इनका रहन सहन भी पशुपालन व्यवसाय करने के कारण थोड़ा अलग हो गया था हालांकि ये भी मारू ही थे। इनका पहनावा राइका की तरह होता था।
रहन सहन अलग होने के कारण और दारू मांस का सेवन करने के कारण मारू अर्थात स्थानीय कुम्हार बांडा और पुरबियों के साथ रिश्ता नहीं करते थे।
मारू कुम्हार दारू मांस का सेवन नहीं करती थी अत: इनका सामाजिक स्तर अन्य पिछड़ी जातियों से बहुत उंचा होता था। अगर कहीं बड़े स्तर पर भोजन बनाना होता तो ब्राहमण ना होने पर कुम्हार को ही वरीयता दी जाती थी। इसीलिए आज भी पश्चिमी राजस्थान में हलवाई का अधिकतर कार्य कुम्हार और ब्राहमण जाति ही करती है।
पूराने समय में आवगमन के साधन कम होने से केवल इतनी दूरी के गांव तक रिश्ता करते थे कि सुबह दुल्हन की विदाई हो और शाम को बारात वापिस अपने गांव पहुंच जाये। इसलिये 20 से 40 किलोमीटर की त्रिज्या के क्षेत्र को स्थानीय बोली मे पट्टी कहते थे। वे केवल अपनी पट्टी में ही रिश्ता करते थे। परन्तु आज आवागमन के उन्नत साधन विकसित होने से दूरी कोई मायने नहीं रखती।
बालोदिया गोत्र की कुलदेवी ओर हमारे पूर्वज किस गाँव से है ?
Eheruc
Kya Laduna gottr kumwat me aati h ya ladanva h batana ji
Kumawat dantlecha
Kumhar jati ke Limba gotra ki kuldevi kon h
Bakrecha gotra ki kuldevi mata kinsi hai
मुझे ये कतई बर्दाश्त नहीं कि भात को झूठा बता दिया जाए कुमावत और राजपूतो कि गीतू कि कुलदेवी सामान है
अरे भाई क्यों बकवास कर रहा है मन रचित बातें लिखनी बंद कर और जो सत्य है उस को स्वीकार कर
Mawar gotar ke log kon hote h
Gotta jajpuriya h kuldevi konsi h
Bharat me Kumawat samaj me gotra ki sakhya ki list
Barawal gotra ki Kuldevi kaun si hai
Meri gotta hame riya hai meri kul devi Konsi mata hai
Rajasthan mein Ladne Parivar kitne
मांणधणीया कि कुल की देवी कोन है बताओ
गोत्र सीमार कुमार जाति की कुलदेवी माता कौन है
Naraniya gotta
डैय्या परिवार की कुलदेवी कौन है।
Gola jati ke kumhar kese hote h
ये आपकी बकवास है क्योंकि लिखित में है कि हम कैसे राजपूतों से निकले तुम्हारी बकवास सही है और तुम किस आधार पर लिखे इतिहास को गलत बोल सकते हो... इसलिए चुप रहो... बड़ा आया ज्ञानी
Kumawat kshatriya smaj me total 750 se bhi adhik gotar hai sir
Tulseniya
Sir Kawadiya gotra kisme Aati h maru kumhar hoti h ya banda kumhar please jaldi jwab do
छापौला गौत्र की कुलदेवी कौन हैं? और क्यों है? इसका किसी को पता है तो मुझे chhapola.rk79@gmail.com पर मेल करें।
Limbival gotra kumawat Bhat ka number
Sir kumawat samaj ki jalandara gotra ki kuldevi konsi h
Suda gotra ki kuldevi
Sir Dadarwal gotra ka nikas kahan se hai
Kumawat Mandora ki kul Devi kon he
Tulseniya Gotr nhi h
Kumawat Samaj Kariwal gotra ine ki Kuldevi ka naam bataiye
कुमावत समाज मैं मरमट गौत्र कि तिलदानी कौनसी हैं और कहा पर है ।।।।पता हो तो जल्दी समपर्क करे 8209147153
कुमावत समाज मैं मरमट गौत्र कि कुलदेवी कौनसी हैं और कहा पर है ।।।।पता हो तो जल्दी समपर्क करे 8209147153
Malethia gotra konse kumawat hai ji
Humari kul devi jeen maa hai.
kumawat.madniya kuldevi name
Maliwad gotr khi kuldevi ka nam
सुरेशकुमावत॥गोत्र॥गेँदर॥माँताजी॥कुल॥देवी॥का॥मंदिर॥कहाहे
SIR JI NAMSTE MERA NAAM RAKESH KUMAWAT HE ME YAH JANNA CAHATA HU KI MERI ORIZNOL JATI KONSI HE
MENE LOGO KE MUH SE SUNA HE KI KUMAWAT JATI BHI 4 PARKAR KI HOTI HE YA ME KUMHAR JATI KA HU
AND ME UNKO MERI JATI SE SANTUST NAHI KAR PATA HU PLEASE MUJHE ISKE BARE ME INFORMETION DE
NAME - RAKESH KUMAWAT
GOTRA - MAWAR
RESI. - MANDANA KOTA RAJASTHAN
EMAIL - kumawatr271@gmail.com
PLEASE SIR JO BHI SAHI HO MUJHE MAIL KARE
OK TANKS
सर भाटिवाल गोत्र कि कुल देवी कोन है
Bedwal or byadwal ek hi gotra hai ya alag alag ?
Kucheriya .....ki kul devi kon h ....
राव रिया की कुलदेवी कौन सी है
कुमावत समाज एक है इसको संगठीत रखो इसका उपजातियों में विभाजन मत करो
Khatuwal. Vansh ki kuldevi kon hai agar pata chale to kamnakhatuwal2001@gmail.com par mail kijiye
कुमावत में कितने गोत्र है जी
कुमावत में कुल कितने गोत्र है
Kumawat samajh ke gotra list
Shivram kumawat Maliwad gotr ki kuldevi kon he name batao
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।