सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक
भूपृष्ठ और उसके वायुमंडल को गरम करने में धूप का विशेष महत्व है। किंतु आतपन, अर्थात् किसी स्थान के भूपृष्ठ को गरम करने, में धूप का अंशदान दिवालोक की अवधि के अतिरिक्त अनेक अन्य बातों पर भी निर्भर करता है, जिनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं :
आतपन सौर उच्चता, या सौर किरणों द्वारा क्षितिज पर बनाए हुए कोण, पर निर्भर करता है। किसी क्षैतिज पृष्ठ पर आतपन की तीव्रता इस कोण की ज्या (sine) की अनुलोमानुपाती होती है। भूअक्ष के झुकाव के कारण ज्यों ज्यों कोई गोलार्ध सूर्य के सम्मुख होता जाता है, त्यों त्यों किसी स्थान पर सौर किरणों द्वारा क्षितिज पर बनाया गया यह कोण वर्ष भर, प्रत्येक क्षण बदलता रहता है।
दीर्घवृत्ताकार पथ पर परिक्रमा करते समय पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी वर्ष भर बदलती रहती है। जनवरी में पृथ्वी सूर्य के निकटतम और जुलाई में दूरतम होती है। स्पष्ट है पृथ्वी पर आतपन की तीव्रता जनवरी में जुलाई की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए। आतपन में वृद्धि तो होती है, लेकिन बहुत कम। बहुधा यह वृद्धि, आतपन को कम करनेवाले कुछ अन्य कारकों से, क्षतिपूरित हो जाती है।
वायुमंडल में पारेषण (ट्रांसमिशन), अवशोषण (एब्जॉर्ब्सन) तथा विकिरण (रेडिएशन) घटनाओं की परस्पर जटिल क्रिया होती है। सूर्यकिरणों की तरंग लघुदैर्ध्य के आपतित विकिरण का लगभग 42 प्रति शतअंश पृथ्वी के वायुमंडल की बाह्य सीमा से ही अंतरिक्ष को तत्काल लौट जाता है। शेष विकिरण का लगभग 15 प्रतिशत वायुमंडल द्वारा और 43 प्रतिशत भूपृष्ठ द्वारा सीधे अवशोषित हो जाता है। इस अवशोषित विकिरण के आठ प्रति शत को भूपृष्ठ पुन: दीर्घतरंगों के रूप में विकिरण करता है और 35 प्रतिशत को वायुमंडल में पारेषित करता है। पारेषण द्वारा प्राप्त विकिरण को वायुमंडल दीर्घतरंग ऊष्मा विकिरण के रूप में अंतरिक्ष को पुन: विकीर्ण करके, आगामी लघुतरंग और प्रगामी दीर्घतरंग विकिरणों में संतुलन करता है। इस प्रकार धूप में हेरफेर होने पर भी भूपृष्ठ का माध्य ताप व्यवहारत: लगभग एक सा रहता है।
किसी दिन, किसी स्थान पर धूप की कुल अवधि बदली, कोहरा आदि आकाश को धुँधला करनेवाले अनेक घटकों पर निर्भर करती है। धूप अभिलेखक (Sunshine Recorder) नामक उपकरण से वेधशालाओं में धूप के वास्तविक घंटों का निर्धारण किया जाता है। इस उपकरण में एक चौखटे पर काच का एक गोला स्थापित रहता है, जिसे इस प्रकार समंजित किया जा सकता है कि गोले का एक व्यास ध्रुव की ओर संकेत करे। गोले के नीचे उपयुक्त स्थान पर समांतर रखे, घंटों में अंशाकिंत पत्रक (card) पर सौर किरणों को फोकस करते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच जब भी बदली, कोहरा आदि नहीं होते, तब फोकस पड़ी हुई किरणें पत्रक को समुचित स्थान पर जला देती हैं।
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