गोरा बादल की कथा के लेखक का नाम
गोरा बादल युद्ध खण्ड
लेखक-मलिक मुहम्मद जायसी
मतैं बैठि बादल औ गोरा । सो मत कीज परै नहिं भोरा ॥
पुरुष न करहिं नारि-मति काँची । जस नौशाबा कीन्ह न बाँची ॥
परा हाथ इसकंदर बैरी । सो कित छोडि कै भई बँदेरी ?॥
सुबुधि सो ससा सिंघ कहँ मारा । कुबुधि सिंघ कूआँ परि हारा ॥
देवहिं छरा आइ अस आँटी । सज्जन कंचन, दुर्जन माटी ॥
कंचन जुरै भए दस खंडा । फूटि न मिलै काँच कर भंडा ॥
जस तुरकन्ह राजा छर साजा । तस हम साजि छोडावहिं राजा ॥
पुरुष तहाँ पै करै छर जहँ बर किए न आँट ।
जहाँ फूल तहँ फूल है, जहाँ काँट तहँ काँट ॥1॥
सोरह सै चंडोल सँवारे । कुँवर सजोइल कै बैठारे ॥
पदमावति कर सजा बिवानू । बैठ लोहार न जानै भानू ॥
रचि बिवान सो साजि सँवारा । चहुँ दिसि चँवर करहिं सब ढारा ॥
साजि सबै चंडोल चलाए । सुरँग ओहार, मोति बहु लाए ॥
भए सँग गोरा बादल बली । कहत चले पदमावति चली ॥
हीरा रतन पदारथ झूलहिं । देखि बिवान देवता भूलहिं ॥
सोरह सै संग चलीं सहेली । कँवल न रहा, और को बेली ?॥
राजहि चलीं छोडावै तहँ रानी होइ ओल ।
तीस सहस तुरि खिंची सँग, सोरह सै चंडोल ॥2॥
राजा बँदि जेहि के सौंपना । गा गोरा तेहि पहँ अगमना ॥
टका लाख दस दीन्ह अँकोरा । बिनती कीन्हि पायँ गहि गोरा ॥
विनवा बादसाह सौं जाई । अब रानी पदमावति आई ॥
बिनती करै आइ हौं दिल्ली । चितउर कै मोहि स्यो है किल्ली ॥
बिनती करै, जहाँ है पूजी । सब भँडार कै मोहि स्यो कूँजी ॥
एक घरी जौ अज्ञा पावौं । राजहि सौंपि मँदिर महँ आवौं ॥
तब रखवार गए सुलतानी । देखि अँकोर भए जस पानी ॥
लीन्ह अँकोर हाथ जेहि, जीउ दीन्ह तेहि हाथ ।
जहाँ चलावै तहँ चलै, फेरे फिरै न माथ ॥3॥
लोभ पाप कै नदी अँकोरा । सत्त न रहै हाथ जौ बोरा ॥
जहँ अँकोर तहँ नीक न राजू । ठाकुर केर बिनासै काजू ॥
भा जिउ घिउ रखवारन्ह केरा । दरब-लोभ चंडोल न हेरा ॥
जाइ साह आगे सिर नावा । ए जगसूर चाँद चलि आवा ॥
जावत हैं सब नखत तराईं । सोरह सै चँडौल सो आईं ॥
चितउर जेति राज कै पूँजी । लेइ सो आइ पदमावति कूँजी ॥
बिनती करै जोरि कर खरी । लेइ सौंपौं राजा एक घरी ॥
इहाँ उहाँ कर स्वामी दुऔ जगत मोहिं आस ॥
पहिले दरस देखावहु तौ पठवहु कबिलास ॥4॥
आज्ञा भई, जाइ एक घरी । छूँछि जो घरी फेरि बिधि भरी ॥
चलि बिवान राजा पहँ आवा । सँग चंडोल जगत सब छावा ॥
पदमावति के भेस लोहारू । निकसि काटि बँदि कीन्ह जोहारू ॥
उठा कोपि जस छूटा राजा । चढा तुरंग, सिंघ अस गाजा ॥
गोरा बादल खाँडै काढे । निकसि कुँवर चढि चढि भए ठाढे ॥
तीख तुरंग गगन सिर लागा ।केहुँ जुगुति करि टेकी बागा ॥
जो जिउ ऊपर खडग सँभारा । मरनहार सो सहसन्ह मारा ॥
भई पुकार साह सौं ,ससि औ नखत सो नाहिं ।
छरकै गहन गरासा, गहन गरासे जाहिं ॥5॥
लेइ राजा चितउर कहँ चले । छूटेउ सिंघ, मिरिग खलभले ॥
चढा साहि चढि लागि गोहारी । कटक असूझ परी जग कारी ॥
फिरि गोरा बादल सौं कहा । गहन छूटि पुनि चाहै गहा ॥
चहुँ दिसि आवै लोपत भानू । अब इहै गोइ, इहै मैदानू ॥
तुइ अब राजहि लेइ चलु गोरा । हौं अब उलटि जुरौं भा जोरा ॥
वह चौगान तुरुक कस खेला । होइ खेलार रन जुरौं अकेला ॥
तौ पावौं बादल अस नाऊँ । जौ मैदान गोइ लेइ जाऊँ ॥
आजु खडग चौगान गहि करौं सीस-रिपु गोइ ।
खेलौं सौंह साह सौं, हाल जगत महँ होइ ॥6॥
तब अगमन होइ गोरा मिला । तुइ राजहि लेइ चलु, बादला ॥
पिता मरै जो सँकरे साथा । मीचु न देइ पूत के माथा ॥
मैं अब आउ भरी औ भूँजी । का पछिताव आउ जौ पूजी ?॥
बहुतन्ह मारि मरौं जौ जूझी । तुम जिनि रोएहु तौ मन बूझी ॥
कुँवर सहस सँग गोरा लीन्हे । और बीर बादल सँग कीन्हे ॥
गोरहि समदि मेघ अस गाजा । चला लिए आगे करि राजा ॥
गोरा उलटि खेत भा ठाडा । पूरुष देखि चाव मन बाढा ॥
आव कटक सुलतानी, गगन छपा मसि माँझ ।
परति आव जग कारी, होत आव दिन साँझ ॥7॥
होइ मैदान परी अब गोई । खेल हार दहुँ काकरि होई ॥
जोबन-तुरी चढी जो रानी । चली जीति यह खेल सयानी ॥
कटि चौगान, गोइ कुच साजी । हिय मैदान चली लेइ बाजी ॥
हाल सो करै गोइ लेइ बाढा । कूरी दुवौ पैज कै काढा ॥
भइँ पहार वै दूनौ कूरी । दिस्टि नियर, पहुँचत सुठि दूरी ॥
ठाढ बान अस जानहु दोऊ । सालै हिये न काढै कोऊ ॥
सालहिं हिय, न जाहिं सहि ठाढे । सालहिं मरै चहै अनकाढे ॥
मुहमद खेल प्रेम कर गहिर कठिन चौगान ।
सीस न दीजै गोइ जिमि, हाल न होइ मैदान ॥8॥
फिरि आगे गोरा तब हाँका । खेलौं, करौं आजु रन-साका ॥
हौं कहिए धौलागिरि गोरा । टरौं न टारे, अंग न मोरा ॥
सोहिल जैस गगन उपराहीं । मेघ-घटा मोहि देखि बिलाहीं ॥
सहसौ सीस सेस सम लेखौं । सहसौ नैन इंद्र सम देखौं ॥
चारिउ भुजा चतुरभुज आजू । कंस न रहा और को साजू ?
हौं होइ भीम आजु रन गाजा । पाछे घालि डुंगवै राजा ॥
होइ हनुवँत जमकातर ढाहौं । आजु स्वामि साँकरे निबाहौं ॥
होइ नल नील आजु हौं देहुँ समुद महँ मेंड ।
कटक साह कर टेकौं होइ सुमेरु रन बेंड ॥9॥
ओनई घटा चहूँ दिसि आई । छूटहिं बान मेघ-झरि लाई ॥
डोलै नाहिं देव अस आदी । पहुँचे आइ तुरुक सब बादी ॥
हाथन्ह गहे खडग हरद्वानी । चमकहिं सेल बीजु कै बानी ॥
सोझ बान जस आवहिं गाजा । बासुकि डरै सीस जनु वाजा ॥
नेजा उठे डरै मन इंदू । आइ न बाज जानि कै हिंदू ॥
गोरै साथ लीन्ह सब साथी । जस मैमंत सूँड बिनु हाथी ॥
सब मिलि पहिलि उठौनी कीन्ही । आवत आइ हाँक रन दीन्ही ॥
रुंड मुंड अब टूटहि स्यो बखतर औ कूँड ।
तुरय होहिं बिनु काँधे, हस्ति होहिं बिनु सूँड ॥10॥
ओनवत आइ सेन सुलतानी । जानहुँ परलय आव तुलानी ॥
लोहे सेन सूझ सब कारी । तिल एक कहूँ न सूझ उघारी ॥
खडग फोलाद तुरुक सब काढे । दरे बीजु अस चमकहिं ठाढे ॥
पीलवान गज पेले बाँके । जानहुँ काल करहिं दुइ फाँके ॥
जनु जमकात करसिं सब भवाँ । जिउ लेइ चहहिं सरग अपसवाँ ।
सेल सरप जनु चाहहिं डसा । लेहिं काढि जिउ मुख बिष-बसा ॥
तिन्ह सामुहँ गोरा रन कोपा । अंगद सरिस पावँ भुइँ रोपा ॥
सुपुरुष भागि न जानै, भुइँ जौ फिरि लेइ ।
सूर गहे दोऊ कर स्वामि -काज जिउ देइ ॥11॥
भइ बगमेल, सेल घनघोरा । औ गज-पेल अकेल सो गोरा ॥
सहस कुँवर सहसौ सत बाँधा । भार-पहार जूझ कर काँधा ॥
लगे मरै गोरा के आगे । बाग न मोर घाव मुख लागे ॥
जैस पतंग आगि दँसि लेई । एक मुवै, दूसर जिउ देई ॥
टूटहिं सीस, अधर धर मारै । लोटहिं कंधहि कंध निरारै ॥
कोई परहिं रुहिर होइ राते । कोई घायल घूमहिं माते ॥
कोइ खुरखेह गए भरि भोगी । भसम चढाइ परे होइ जोगी ॥
घरी एक भारत भा, भा असवारन्ह मेल ।
जूझि कुँवर सब निबरे, गोरा रहा अकेल ॥12॥
गोरै देख साथि सब जूझा । आपन काल नियर भा, बूझा ॥
कोपि सिंघ सामुहँ रन मेला । लाखन्ह सौं नहिं मरै अकेला ॥
लेइ हाँकि हस्तिन्ह कै ठटा । जैसे पवन बिदारै घटा ॥
जेहि सिर देइ कोपि करवारू । स्यो घोडे टूटै असवारू ॥
लोटहिं सीस कबंध निनारे । माठ मजीठ जनहुँ रन ढारे ॥
खेलि फाग सेंदुर छिरकावा । चाचरि खेलि आगि जनु लावा ॥
हस्ती घोड धाइ जो धूका । ताहि कीन्ह सो रुहिर भभूका ॥
भइ अज्ञा सुलतानी, "बेगि करहु एहि हाथ ।
रतन जात है आगे लिए पदारथ साथ " ॥13॥
सबै कटक मिलि गोरहि छेका । गूँजत सिंघ जाइ नहिं टेका ॥
जेहि दिसि उठै सोइ जनु खावा । पलटि सिंघ तेहि ठावँ न आवा ॥
तुरुक बोलावहिं, बोलै बाहाँ । गोरै मीचु धरी जिउ माहाँ ॥
मुए पुनि जूझि जाज, जगदेऊ । जियत न रहा जगत महँ केऊ ॥
जिनि जानहु गोरा सो अकेला । सिंघ के मोंछ हाथ को मेला ?
सिंघ जियत नहिं आपु धरावा । मुए पाछ कोई घिसियावा ॥
करै सिंघ मुख -सौहहिं दीठी । जौ लगि जियै देइ नहिं पीठी ॥
रतनसेन जो बाँधा , मसि गोरा के गात ।
जौ लगि रुधिर न धोवौं तौ लगि होइ न रात ॥14॥
सरजा बीर सिंघ चढि गाजा । आइ सौंह गोरा सौ बाजा ॥
पहलवान सो बखाना बली । मदद मीर हमजा औ अली ॥
लँधउर धरा देव जस आदी । और को बर बाँधै, को बादी ?
मदद अयूब सीस चढि कोपे । महामाल जेइ नावँ अलोपे ॥
औ ताया सालार सो आए । जेइ कौरव पंडव पिंड पाए ॥
पहुँचा आइ सिंघ असवारू । जहाँ सिंघ गोरा बरियारू ॥
मारेसि साँग पेट महँ धँसी । काढेसि हुमुकि आँति भुइँ खसी ॥
भाँट कहा, धनि गोरा तू भा रावन राव ।
आँति समेटि बाँधि कै तुरय देत है पाव ॥15॥
कहेसि अंत अब भा भुइँ परना । अंत त खसे खेह सिर भरना ॥
कहि कै गरजि सिंघ अस धावा । सरजा सारदूल पहँ आवा ॥
सरजै लीन्ह साँग पर घाऊ । परा खडग जनु परा निहाऊ ॥
बज्र क साँग, बज्र कै डाँडा । उठा आगि तस बाजा खाँडा ॥
जानहु बज्र बज्र सौं बाजा । सब ही कहा परी अब गाजा ॥
दूसर खडग कंध पर दीन्हा । सरजे ओहि ओडन पर लीन्हा ॥
तीसर खडग कूँड पर लावा । काँध गुरुज हुत, घाव न आवा ॥
तस मारा हठि गोरे, उठी बज्र के आगि ।
कोइ नियरे नहिं आवै सिंघ सदूरहि लागि ॥16॥
तब सरजा कोपा बरिबंडा । जनहु सदूर केर भुजदंडा ॥
कोपि गरजि मारेसि तस बाजा । जानहु परी टूटि सिर गाजा ।
ठाँठर टूट, फूट सिर तासू । स्यो सुमेरू जनु टूट अकासू ॥
धमकि उठा सब सरग पतारू । फिरि गइ दीठि, फिरा संसारू ॥
भइ परलय अस सबही जाना । काढा कढग सरग नियराना ॥
तस मारेसि स्यो घोडै काटा । घरती फाटि, सेस-फन फाटा ॥
जौ अति सिंह बरी होइ आई । सारदूल सौं कौनि बडाई ?॥
गोरा परा खेत महँ, सुर पहुँचावा पान ।
बादल लेइगा राजा, लेइ चितउर नियरान ॥17॥
(1) मतैं = सलाह करते हैं । कीज = कीजिए । नौशाबा = सिकंदरनामा के अनुसार एक रानी जिसके यहाँ सिकंदर पहले दूत बन कर गया था । उसने सिकंदर को पहचान कर भी छोड दिया । पीछे सिकंदर ने उसे अपना अधीन मित्र बनाया और उसने बडी धूमधाम से सिकंदर की दावत की देवहि छरा = राजा को उसने (अलाउद्दीन ने) छला । आइ अस आँठी = इस प्रकार अमठी पर चढकर अर्थात् कब्जे में आकर भी । भंडा = भाँडा, बरतन । न आँट = नहीं पार पा सकते
(2) चंडोला = पालकी । कुँवर = राजपूत सरदार । सजोइल = हथियारों से तैयार । बैठ लोहार...भानू = पद्मावती के लिये जो पालकी बनीं थी उसके भीतर एक लुहार बैठा, इस बात का सूर्य को भी पता न लगा । ओहार = पालकी ढाँकने का परदा । कँवल...जब पद्मावती ही नहीं रही तब और सखियों का क्या ? ओल होइ = ओल होकर, इस शर्त पर बादशाह के यहाँ रहने जाकर कि राजा छोड दिए जायँ कोई व्यक्ति जमानत के तौर पर यदि रख लिया जाता है तो उसे ओल कहते हैं) । तुरि = घोडियाँ ।
(3) सौंपना = देखरेख में, सुपुर्दगी में । अगमना = आगे पहले । अँकोर = भेंट, घूस, रिश्वत । स्यो = साथ, पास । किल्ली = कुंजी । पानी भए = नरम हो गए । हाथ जेहि = जिसके हाथ से ।
(4) घिउ भा = पिघलकर नरम हो गया । न हेरा = तलाशी नहीं ली, जाँच नहीं की । इहाँ उहाँ कर स्वामी = मेरा पति राजा । कबिलास = स्वर्ग, यहाँ शाही महल ।
(5) छूँछि...भरी = जो घडा खाली था ईश्वर ने फिर भरा, अर्थात् अच्छी घडी फिर पलटी । जस = जैसे ही । जिउ ऊपर = प्राण रक्षा के लिये । छर कै गहन....जाहिं = जिनपर छल से ग्रहण लगाया था वे ग्रहण लगाकर जाते हैं ।
(6) कारी कालिमा, अंधकार । फिरि = लौटकर, पीछे ताककर । गोइ = गोय, गेंद । जोरा = खेल का जोडा या प्रतिद्वंद्वी । गोइ लेइ जाऊँ = बल्ले से गेंद निकाल ले जाऊँ । सीस रिपु = शत्रु के सिर पर । चौगान = गेंद मारने का डंडा । हाल = कंप, हलचल ।
(7) अगमन = आगे ।सँकरे साथ = संकट की स्थिति में । समदि = बिदा लेकर । पुरुष = योद्धा । मसि = अंधकार ।
(8) गोई = गेंद । खेल = खेल में । काकरि = किसकी । हाल करै = हलचल मचावै, मैदान मारे । कूरी = धुस या टीला जिसे गेंद को लँघाना पडता है । पैज = प्रतिज्ञा । अनकाढे = बिना निकाले ।
(9) हाँका = ललकारा । गोरा = गोरा सामंत श्वेत । सोहिल = सुहैल, अगस्त्य तारा । डुँगवै = टीला या धुस्स । पीछे घालि..राजा = रत्नसेन को पहाड या धुस्स के पीछे रखकर । साँकरे = संकट में । निबाहों = निस्तार करूँ । बेंड = बेंडा, आडा ।
(10) देव = दैत्य । आदी = बिलकुल, पूरा । बादी = शत्रु । हरद्वानी = हरद्वान की तलवार प्रसिद्ध थी । बानी = कांति, चमक । गाजा = वज्र । इंदू = इंद्र । आइ न बाज...हिंदू = कहीं हिंदू जानकर मुझ पर न पडे । गोरै = गोरा ने । उठौनी = पहला धावा । स्यो = साथ । कुँड =लोहे की टोपी जो लडाई में पहनी जाती है ।
(11) ओनवत = झुकती और उमडती हुई । लोहे = लोहे से । सूझ = दिखाई पडती है । फोलाद = फौलाद । करहिं दुइ फाँके = चीरना चाहते हैं । फाँके = टुकडे । जककात = यम का खाँडा, एक प्रकार का खाँडा । भवाँ करहिं = घूमते हैं । अपसवाँ चहहिं = चल देना चाहते हैं । सेल = बरछे । सरप = साँप । भुइँ लेइ = गिर पडे सूर = शूल भाला ।
(12) बगमेल = घोडो का बाग से बाग मिलाकर चलना, सवारों की पंक्ति का धावा । अधर धर मारै = धड या कबंध अधर में वार करता है । कंध = धड । निरारै = बिल्कुल, यहाँ से वहाँ तक ।भोगी = भोग-विलास करनेवाले सरदार थे । भारत = घोर युद्ध । कुँवर = गोरा के साथी राजपूत । निबरे = समाप्त हुए ।
(13) गोरै = गोरा ने । करवारू = करवाल, तलवार । स्यो = साथ । टूटै = कट जाता है । निनारे = अलग । धूका = झुका । रुहिर = रुधिर से । भभूका = अंगारे सा लाल । एहि हाथ करहु = इसे पकडो ।
(14) गूँजत = गरजता हुआ । टेका = पकडा । पलटि सिंह...आवा = जहाँ से आगे बढता है वहाँ पीछे हटकर नहीं आता । बोलै बाहाँ (वह मुँह से नहीं बोलता है ) उसकी बाहें खडकती हैं । गोरै = गोरा ने । जाज, जगदेऊ = जाजा और जगदेव कोई ऐतिहासिक वीर जान पडते हैं । घिसियावा = घसीटे, घिसियावे । रतनसेन जो....गात = रत्नसेन जो बाँधे गए इसका कलंक गोरा के शरीर पर लगा हुआ है । रुहिर = रुहिर से । रात = लाल, अर्थात् कलंक रहित ।
(15) मीर हमजा = मीर हमजा मुहम्मद साहब के चचा थे जिनकी बीरता की बहुत सी कल्पित कहानियाँ पीछे से जोडी गईं । लँधउर = लंधौरदेव नामक एक कल्पित हिंदू राजा जिसे मीर हमजा ने जीत कर अपना मित्र बनाया था मीर हमजा के दास्तान में यह बडे डील-डौल का बडा भारी वीर कहा गया है । मदद.अली = मानो इन सब वीरों की छाया उसके ऊपर थी । बर बाँधे = हठ या प्रतिज्ञा करके सामने आए । वादी = शत्रु । महामाल = कोई क्षत्रिय राजा या वीर । जेइ = जिसने । सालार = शायद सालार मसऊद गाजी (गाजी मियाँ) बरियारू = बलवान । हुमुकि = जोर से । काढेसि हुमुकि = सरजा ने जब भाला जोर से खींचा । खसी =गिरी ।
(16) सरजै = सरजा ने । जनु परा निहाऊ = मानो निहाई पर पडा (अर्थात् साँग को न काट सका) डाँडा = दंड या खंग । ओडन = ढाल । कूँड = लोहे का टोप । गुरुज = गुर्ज, गदा । काँध गुरुज हुत = कंधे पर गुर्ज था (इससे) । लागि = मुठ भेड या युद्ध में ।
(17) बरिवंडा = बलवान । सदूर = शार्दूल । तस बाजा = ऐसा आघात पडा । ठाँठर = ठठरी । फिरा संसारू = आँखों के सामने संसार न रह गया । स्यो = सहित । सुर पहुँचाया पान = देवताओं ने पान का बीडा, अर्थात् स्वर्ग का निमंत्रण दिया ।
गोरा बादल की कथा का विवरण पद्मावत में मिलता है जो कि मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखा गया था
गोरा और बादल पौराणिक योद्धा हैं, जिनकी कहानी गोरा बादल पद्मिनी चौपाई (1589 सीई) और इसके बाद के अनुकूलन में दिखाई देती है। मुहन्नत नैनी के ऐतिहासिक दस्तावेजों मारवाड़ आरआर परगना री विगेट और अन्य दस्तावेजों सहित मारवार और मेवार की किंवदंतियों के मुताबिक वे एक चाचा-भतीजे जोड़ी थे जो जलोरे के शासक परिवार से आए थे। [उद्धरण वांछित] गोरा और बादल ने रतन सेन की सेवा की, चित्तौड़गढ़ के शासक। उन्होंने अपनी रानी महारानी पद्मिनी गुहिला के अनुरोध पर रतन सेन के बचाव के लिए दिल्ली सल्तनत शासक अलाउद्दीन खलजी से लड़े
Managar shishak sabad chitra ke lekhak kaun hai?
Gora basal ki katha ke lekhak hai name
Ras ki shringar ras Mandal gora badal saraswati lekhak ka naam bataiye
The doctor cured her the disease
Mangar shirshak sabd Ka chitra ke lekhak kaun h?
gora badal ki katha ke lekhak hai
Gora Badal ke lekhak
गोवा बादल के लेखक
कोन है
Gaura kis lekhika ke gay Ka naam hai?
Gora badal ki katha ke lekhak
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