कान्हड़ देव का जीवन परिचय
वीर योद्धा जालोर शासक कान्हड़देव
जालौर का शक्तिशाली शासक कान्हड़देव
राजस्थान की वीरभूमि ने जिन बलिदानी वीर रत्नों को जन्म देकर मां भारती का गौरव बढ़ाया है उनमें जालौर के चौहान वंशी शासक को अपने समकालीन हिंदू शासकों का सक्रिय सहयोग नही मिला, अन्यथा वह इतिहास की दिशा को परिवर्तित करने की क्षमता और सामथ्र्य से संपन्न था। इस परिस्थिति पर विचार करते हुए डा. के.एस. लाल ने अपनी पुस्तक च्च्खलजी वंश का इतिहास च्च्में लिखा है:-‘‘पराधीनता से घृणा करने वाले राजपूतों के पास शौर्य था, किंतु एकता की भावना नही थी। कुछेक ने प्रबल प्रतिरोध किया, किंतु उनमें से कोई भी अकेला दिल्ली के सुल्तान के सम्मुख नगण्य था। यदि दो या तीन राजपूत राजा भी सुल्तान के विरूद्घ एक हो जाते तो वे उसे पराजित करने में सफल हो जाते।’’
भारतवर्ष के इतिहास के ऐसे अनेकों नररत्न हैं, जो उपेक्षा के पात्र बने पड़े हैं, और हम आज तक उन्हें उनका अपेक्षित स्थान इतिहास में दे नही पाये हैं, कान्हड़देव भी उन्हीं उपेक्षित नररत्नों में से एक है। इतिहास के मर्मज्ञ विद्वान डा. शक्ति कुमार शर्मा ‘शकुन्त’ ने इस नररत्न के विषय में लिखा है-‘‘चाहमान (चौहान) के वंशजों ने यायव्य कोण से आने वाले विदेशियों के आक्रमणों का न केवल तीव्र प्रतिरोध किया अपितु 300 वर्षों तक उनको (अपने देश में) जमने नही दिया। फिर चाहे वह मुहम्मद गजनवी हो गौरी हो, अलाउद्दीन खिलजी हो, चौहानों के प्रधान पुरूषों ने उन्हें चुनौती दी उनके अत्याचारों के रथ को रोके रखा, तथा अंत में आत्म बलिदान देकर भी देश और धर्म की रक्षा अंतिम क्षण तक करते रहे।’’
ऐसा था चौहान शासक कान्हड़ देव, जिसकी प्रशंसा में जितना लिखा जाए उतना अल्प ही कहा जाएगा। हमने पूर्व में उल्लेख किया है कि पृथ्वी राज चौहान की मृत्यु के पश्चात उसकी एक शाखा ने रणथम्भौर में जाकर शासन स्थापित किया तो उसी की एक शाखा पहले नाडौल गयी और फिर नाडौल से भी एक शाखा जालौर चली गयी। कीर्तिपाल नामक (पृथ्वीराज चौहान का वंशज) व्यक्ति ने वहां जाकर नये राजवंश की स्थापना की। जिसमें कई शासकों के होने के उपरांत कान्हड़देव वहां का शासक बना। कान्हड़देव में प्रारंभ से ही अपने पूर्वजों का स्वातंत्रय प्रेम स्पष्ट झलकता था। वह स्वाभिमानी था और किसी भी स्थिति परिस्थिति में अपने स्वाभिमान को क्षतिग्रस्त होते देखना नही चाहता था। इसके पिता राजा समंत सिंह थे।
जिस समय दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी भारत में अपने अभिमान पूर्ण विजय अभियान को चला रहा था और उसका राज्य निरंतर विस्तार पाता जा रहा था, उस समय उसका सामना करना हर किसी के वश की बात नही थी। खिलजी ने गुजरात के अपने विजय अभियान के समय सोमनाथ के मंदिर में जीर्णोद्घार होने के उपरांत लौटी भव्यता को पुन: विनष्ट करने का मन बनाया। सोमनाथ सदियों से हमारी धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा था, उसके विनाश की बात कोई भी स्वाभिमानी हिन्दू वीर सोच भी नही सकता था। उसकी प्रतिष्ठा के लिए हजारों लाखों हिन्दुओं ने अपने बलिदान दिये थे, इसलिए उन बलिदानों को व्यर्थ करना लोग अपने लिए कृतघ्नता का कारण मानते थे।
अलाउद्दीन खिलजी के ‘गुजरात अभियान’ के वास्तविक लक्ष्य (अर्थात सोमनाथ का पुन: विध्वंस) की जब सही सूचना कान्हड़देव को मिली तो कान्हड़देव की भुजाएं फडक़ने लगीं। अलाउद्दीन खिलजी ने कान्हड़देव से अपने राज्य से निकलने का रास्ता देने का अनुरोध किया और इस उपकार के बदले उसे खिलअत से सुशोभित करने का वचन भी दिया। परंतु कान्हड़देव ने अलाउद्दीन खिलजी को उसके पत्र का उत्तर इस प्रकार दिया-
‘‘तुम्हारी सेना अपने प्रयाण मार्ग में आग लगा देती है, उसके साथ विष देने वाले व्यक्ति होते हैं, वह महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करती है, ब्राह्मणों का दमन करती है, और गायों का वध करती है यह सब कुछ हमारे धर्म के अनुकूल नही है, अत: हम तुम्हें रास्ता नही दे सकते।’’
अलाउद्दीन खिलजी को कान्हड़देव से ऐसे उत्तर की अपेक्षा नही थी, इसलिए उसने क्रोधित होकर अपने सेनापति उलुग खां को आज्ञा दी कि गुजरात से लौटते समय कान्हड़देव की ‘देशभक्ति का उपचार’ किया जाए। जब उलुगखां गुजरात से लौट रहा था तो उसने कान्हड़देव के राज्य के सकराणा नामक दुर्ग पर हमला बोल दिया। हमारे वीरों ने अपने नायक जैता के नेतृत्व में उलुग खां के आक्रमण का सफलता पूर्वक प्रतिराध किया और उन्होंने एक ही हमले में उलुग खां की सेना को भागने के लिए विवश कर दिया। उलुग खां हाथ मलता रह गया। उसने जैता वीर से ऐसे प्रतिरोध की अपेक्षा नही की थी। जैता ने उलुग खां से सोमनाथ मंदिर से लायी गयी पांच मूत्र्तियों को भी छीन लिया। इतना ही नही इस युद्घ में जैता वीर ने सुल्तान के एक भतीजे मलिक एजुद्दीन तथा नुसरत खां के एक भाई को भी जहन्नुम की आग में फेंक दिया।
अलाउद्दीन ने शेर को छल से जाल में फंसा लिया
भारत के इस शेर कान्हड़देव को 1308 ई. में सुल्तान अलाउद्दीन ने अपने एक विश्वसनीय व्यक्ति के माध्यम से अपने दरबार में बुलावा भेजा। दुर्भाग्यवश कान्हड़देव जाल में फंस गया और सुल्तान के दरबार में पहुंच गया। वहां अलाउद्दीन ने हिंदू समाज के पौरूष और वीरता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कह दिया कि मेरे सामने कोई भी हिंदू युद्घ क्षेत्र में रूक नही पाता।
स्वाभिमानी कान्हड़देव का च्च्हिंदूज्ज् जाग गया और वह तुरंत सिंह गर्जना कर उठा कि आपकी चुनौती मुझे स्वीकार है। अलाउद्दीन यही चाहता था। कान्हड़देव ये भूल गया था कि वह किसी षडयंत्र का शिकार हो चुका है, और वर्तमान क्षणों में वह कहां बैठा हुआ है? हिंदुओं के लिए अपमानजनक शब्दों पर तीखे बाण छोडक़र और सुल्तान को बुरा भला कहकर कान्हड़देव सुल्तान के दरबार से निकल गया और जालौर पहुंच गया।
१311 ई. में अलाउद्दीन ने कान्हड़देव को दण्डित करने के लिए सेना भेजी। कान्हड़देव जानता था कि दिल्ली दरबार में हुई घटना की प्रतिक्रिया क्या होगी? इसलिए वह भी अपनी तैयारी से था। इस हिंदू वीर ने सुल्तान की सेना को कई स्थानों पर पराजित किया। गुजराती महाकाव्य ‘कान्हड़ दे प्रबंध’ के अनुसार संघर्ष कुछ वर्षों तक चला और शाही सेनाओं को अनेक बार मुंह की खानी पड़ी। तब सुल्तान ने कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में शक्तिशाली तुर्क सेना भेजी। इस सेना का सामना सिवाणा के सामंत शीतल देव ने किया। दोनों के मध्य जैसा संघर्ष हुआ वैसे युद्घ की कल्पना भी तुर्कों ने नही की होगी। फलस्वरूप हिंदू वीर योद्घा सीतलदेव ने शक्तिशाली तुर्क सेना को भागने के लिए विवश कर दिया। एक सामंत होकर सुल्तान की शक्तिशाली सेना को भगाने का काम एक हिंदू वीर ही कर सकता था जो उसने कर दिखाया। तब सुल्तान अलाउद्दीन स्वयं सेना लेकर जालौर गया। सुल्तान ने जालौर जाकर छल का सहारा लिया और एक भापला नामक ‘देशद्रोही’ को भारी धनराशि देकर अपनी ओर मिला लिया। जिसने अपने स्वामी के साथ छल करते हुए किले का द्वार खोल दिया। सुल्तानी सेना दुर्ग में प्रवेश कर गयी। हमारी महिलाएं जौहर करने की तैयारी करने लगीं, राजपूत ‘शेरों’ ने जमकर संघर्ष करना आरंभ कर दिया। उन्होंने जीते जी ‘समर्पण’ करना अपमान समझा, इसलिए बड़ा भयंकर संघर्ष हुआ। मुट्ठी भर हिंदू सैनिक युद्घ करते हुए कुछ ही समय में समाप्त हो गये। कान्हड़देव ने 18 वर्ष तक अलाउद्दीन को नाकों चने चबाए थे, उसे बता दिया था कि हिंदू कैसे सामना करते हैं, और यदि दुष्ट भापला बीच में न आता तो परिणाम कुछ और ही होता। इसके पश्चात कान्हड़देव कहां गया, या उसके साथ क्या किया गया, इस पर तो कोई प्रामणिक जानकारी नही है, परंतु कान्हड़देव हमारे स्वतंत्रता संघर्ष का एक अमर पात्र अवश्य है। पराजित हो जाने से वह आभाहीन नही हो जाता है अपितु उसका गौरव इसमें है कि उसने क्षात्र धर्म के स्वाभिमान के लिए 18 वर्ष तक संघर्ष किया, उसी के लिए जिया और मरा। निश्चित ही वह एक वंदनीय पात्र है।
कान्हड देव की पत्नी का नाम क्या था
Seetaldev ki patni ka name kya tha
Jetal de Kansas dev ki patni ka nam
Ji
Jetal dev kahnhad dev ki patni ka nam
कान्हड़ देव चौहान की पत्नी का नाम क्या था
Kahand de ki patni ka Nam kya tha
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।