गर्मी में टमाटर की खेती
टमाटर की खेती
टमाटर एक लोकप्रिय सब्जी है । इस फसल को सम्पूर्ण भारतवर्ष में सफलतापूर्वक उगाया जाता है । टमाटर में कार्बोहाइड्रेट, बिटामिन, कैल्शियम, आयरन तथा अन्य खनिज लवण प्रचुर मात्रा में उपस्थित रहते है । इसके फल में लाइकोपीन नामक वर्णक (पिगमेंट) पाया जाता है । जिसे विश्व का सबसे महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट बताया गया है । इन सबके अलावा कैरोटिनायडस एवं विटामिन सी भी टमाटर में बहुतायत मात्रा में पाए जाते है । ताजे फल के अतिरिक्त टमाटर को परिरक्षित करके चटनी, जूस, अचार, सास, केचप, प्यूरी इत्यादि के रूप में उपयोग में लाया जाता है । इसके पके फलों की डिब्बाबन्दी भी की जाती है। भारतवर्ष से टमाटर का निर्यात मुख्या रूप से पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमीरात, बांग्लादेश, नेपाल, सउदी अरब, ओमान, मालद्विप, बहरीन एवं मलावी को किया जाता है ।
टमाटर की अच्छी उपज में तापमान का बहुत बड़ा योगदान होता है । फसल के लिए आदर्श तापमान 20 - 250 सेन्टीग्रेट होता है । तापमान अधिक होने पर फूल एवं अपरिपक्व फल टूटकर गिरने लगते है । जब तापक्रम 130 से कम एवं 350 से ज्यादा होता है, तब परागकण का अंकुरण बहुत कम हो जाता है बाजार में माग कम होने पर टमाटर को कुछ दिनों तक भण्डारित किया जा सकता है जैसे: अपरिपक्व हरे फल को 12.50 सेन्टीग्रेट तापमान पर 30 दिनों तक जबकि परिपक्व फल को 4 - 50 सेन्टीग्रेट तापमान पर 10 दिनों तक रखा जा सकता है । उपरोक्त भण्डारण के समय सापेक्षिक आर्द्रता लगभग 85 - 90 प्रतिशत होनी चाहिए । परिणामस्वरूप फल कम लगते है साथ ही फलों का स्वरुप भी बिगण जाता है।
खेत की तैयारी
समुचित जल निकास वाली जीवाष्म युक्त बलुई दोमट या दोमट मिट्टी, जिसका pH मान 6.0 - 7.0 बीच हो, ऐसे खेत में टमाटर की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है । तैयार पौध की रोपाई से पहले, खेत की पहली गहरी जुताई मिट्टी पलट हल से करें, तपश्चात 3 से 4 आड़ी-तिरछी जुताई कल्टीवेटर से करके मिट्टी को भुरभुरी व समतल बना लेना चाहिए ।
उन्नत प्रभेद
संकर प्रभेद
खाद एवं उर्वरक
खाद एवं उर्वरक की मात्र का निर्धारण हमेशा मिट्टी जांच के आधार पर करना हितकर होता है । सामान्य तौर पर 200 - 250 कुन्तल सडी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद के साथ 100 - 150 कि. ग्रा. नत्रजन, 60 - 80कि. ग्रा. स्फुर एवं 50 - 60 कि. ग्रा. पोटाश का व्यवहार करना चाहिए । नत्रजन की एक तिहाई तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व व्यवहार करें। नत्रजन की शेष मात्रा को दो बराबर भागों में बांट कर 25 - 30 दिनों एवं 45 - 50 दिनों बाद खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में व्यवहार करें ।
बीज की मात्रा
एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के संकुल एवं संकर किस्मो की क्रमशः 350 - 400 ग्राम एवं 200 - 250 ग्राम स्वस्थ बीज की आवश्यकता पड़ती है ।
टमाटर बीज की बुआई का समय
वैसे तो टमाटर की खेती पूरे वर्ष भर की जा सकती है । शरदकालीन फसल के लिए जुलाई से सितम्बर, बसंत या ग्रीष्मकालीन फसल के लिए नवम्बर से दिसम्बर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल महीनों में बीज की बुआई फायदेमंद होता है ।
टमाटर पौध की तैयारी
पौध की तैयारी के लिए जीवांशयुक्त बलुवर दोमट मिट्टी की जरुरत होती है । स्वस्थ एवं मजबूत पौध तैयार करने के लिए 10 ग्राम डाईअमोनियमफास्फेट और 1.5 - 2.0 कि.ग्रा. सड़ी हुयी गोबर की खाद प्रति वर्ग मीटर की दर से व्यवहार करना चाहिए। क्यारियों की लंबाई लगभग 3.0 मीटर, चौडाई लगभग 1.0 तथा भूमि की सतह से उचाई कम से कम 25 - 30 सें.मी. रखना उचित होता होता है । इसप्रकार की ऊची क्यारियों में बीज की बुआई पंक्तियों में करना चाहिए, जिनकी आपसी दूरी 5.0 - 6.0 से.मी. रखना चाहिए, जबकि पौध से पौध की दूरी 2.0 - 3.0 से.मी. रखना चाहिए । बुआई के बाद क्यारियों को सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट से ढक दें । इसके बाद फुहारे से हल्की सिचाई करें । अब इन क्यारियों को घास-फूस या सरकंडे के आवरण से डाक दें । आवश्यकतानुसार हल्की सिचाई करते रहें । बुआई के 20 - 25 दिनों बाद पौध रोपाई योग्य तैयार हो जाती है।
टमाटर पौध की रोपाई
जब पौध में 4 - 6 पत्तियां आ जाये तथा ऊचाई लगभग 20 - 25 से.मी. हो जाये तब पौध रोपाई के लिए तैयार समझना चाहिए । रोपाई के 3 - 4 दिनों पूर्व पौधशाला की सिचाई बन्द कर देनी चाहिए । जाड़ें के मौसम पौध को पाला से बचने के लिए क्यारियों को पालीथीन चादर की टनेल बनाकर ऊपर से ढक देना चाहिए । पंक्ति से पंक्ति एवं पौध से पौध की दूरी फसल की किस्म, भूमि की उर्वरता, रोपाई के मौसम एवं क्षेत्र विशेष को ध्यान में रख कर करना हितकर होता है, जिसका विवरण इस प्रकार है:
क्षेत्र/मौसम
बुआई का समय
रोपाई का समय
दूरी (पंक्ति X पौध)
सीमित बढवार
असीमित बढवार
मैदानी/शरदकालीन
जुलाई से सितम्बर
अगस्त से अक्टूबर
60 से.मी. X 60 से.मी.)
60 से.मी. X 60 से.मी.)
वसंत एवं ग्रीष्मकालीन
जुलाई से सितम्बर
अगस्त से अक्टूबर
60 से.मी. X 60 से.मी.)
60 से.मी. X 60 से.मी.)
पहाड़ी
जुलाई से सितम्बर
अगस्त से अक्टूबर
60 से.मी. X 60 से.मी.)
60 से.मी. X 60 से.मी.)
सिचाई
पौध रोपण के तुरंत बाद एवं प्रारम्भ के 3 - 4 दिनों तक पौधों को हजारे से पानी देना चाहिए, तत्पश्चात क्यारी या नाली जो भी हो उसमे पानी देना चाहिए । अच्छा होता है यदि मेड एवं नाली बना कर पौध लगाया जाय । क्योंकि इस विधी में सिचाई जल एवं स्थान का भरपूर उपयोग होता है । शरदकालीन फसलों में 10 - 15 दिनों के अंतराल पर जबकि ग्रीष्मकालीन फसलों को 6 - 8 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिचाई करना चाहिए । फसल में अधिक पानी लगाने से पौधों में उकठा एवं विषाणु जनित पत्ती सिकुडन रोग की संभावना बढ जाती है ।
टमाटर में खरपतवार प्रबंधन
खेतों में उगने वाले खरपतवारों को समय रहते खुर्पी या कुदाल से गुडाई करके निकाल लेना हितकर होता है । अन्यथा खरपतवारों की तेज वृद्धी से फसल के अधिकतम नुकसान की संभावना बनी रहती है । जिन क्षेत्रों में दीमक की समस्या नही हो । ऐसे क्षेत्रों में सूखे घास – फूस की पलवार (मल्च) पौधों के नीचे बिछाने से भी खरपतवार कम उगते है । वैसे पलवार के लिए हम 30 माइक्रोन मोटी कण घनत्व वाली पालीथिन (LDPE) की चादर का भी उपयोग करके खरपतवार के जमाव को कम कर सकते है ।
टमाटर में अंत: सस्य क्रियायें
फसल से अच्छी पैदावार लें के लिए पौधों के आस - पास हल्की निकाई – गुडाई करें एवं पौधों के जड़ के पास मिट्टी अवस्य चढा दें, जिससे पौधों के बढवार पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा । असीमित बढवार वाली प्रभेदो के पौधों को लकड़ी गाढ कर सहारा देने से भी उपज पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है, साथ ही फल का मिट्टी से संपर्क न होने से विभिन्न रोगों का प्रभाव स्वत: कम हो जाता है ।
टमाटर में समेकित नाशीजीव प्रबंधन
टमाटर की फसल में खरपतवारों के अतिरिक्त ढेर सारे नाशीजीवों जैसे: कवक, जीवाणु, विषाणु, सूत्रकृमी एवं विभिन्न प्रकार हानिकारक कीटों का प्रकोप देखने को मिलता है । सभी हानिकारक नाशीजीव फसल प्रभेदों के उत्पादन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है । अत: फसल अवस्था अनुरूप इनका प्रबंधन इसप्रकार है :
टमाटर बुवाई से पहले
टमाटर बुवाई के समय
वानस्पतिक वृद्धि
पुष्पन एवं फलन
फलों की तुड़ाई
टमाटर के फलों की तुडाई उसके उपयोग पर निर्भर करती है । यदि आस-पास के बाजार में बेचना हो तो फल पकने के बाद तुडाई करें । यदि दूर के बाजार में भेजना हो तो जैसे ही फल के रंग में परिवर्तन होना शुरू हो तुडाई कर लेना चाहिए ।
उपज एवं भण्डारण
फसल की उपज, प्रभेद, बुवाई की विधि एवं समय, खाद एवं उर्वरक की मात्रा, मौसम, फसल प्रबन्धन आदि पर निर्भर करती है । टमाटर की औसत उपज 300 - 350 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है । अच्छी उत्पादन तकनीकी एवं उन्नत प्रभेद अपनाने से 800 - 1000 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त कर सकते है । बाजार में माग कम होने पर टमाटर को कुछ दिनों तक भण्डारित भी किया जा सकता है जैसे: अपरिपक्व हरे फल को 12.50 सेन्टीग्रेट तापमान पर 30 दिनों तक जबकि परिपक्व फल को 4 - 50 सेन्टीग्रेट तापमान पर 10 दिनों तक रखा जा सकता है । उपरोक्त भण्डारण के समय सापेक्षिक आर्द्रता लगभग 85 - 90 प्रतिशत होनी चाहिए ।
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