Garmi Me Tamatar Ki Kheti गर्मी में टमाटर की खेती

गर्मी में टमाटर की खेती



Pradeep Chawla on 19-10-2018


टमाटर की खेती


टमाटर एक लोकप्रिय सब्जी है । इस फसल को सम्पूर्ण भारतवर्ष में सफलतापूर्वक उगाया जाता है । टमाटर में कार्बोहाइड्रेट, बिटामिन, कैल्शियम, आयरन तथा अन्य खनिज लवण प्रचुर मात्रा में उपस्थित रहते है । इसके फल में लाइकोपीन नामक वर्णक (पिगमेंट) पाया जाता है । जिसे विश्व का सबसे महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट बताया गया है । इन सबके अलावा कैरोटिनायडस एवं विटामिन सी भी टमाटर में बहुतायत मात्रा में पाए जाते है । ताजे फल के अतिरिक्त टमाटर को परिरक्षित करके चटनी, जूस, अचार, सास, केचप, प्यूरी इत्यादि के रूप में उपयोग में लाया जाता है । इसके पके फलों की डिब्बाबन्दी भी की जाती है। भारतवर्ष से टमाटर का निर्यात मुख्या रूप से पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमीरात, बांग्लादेश, नेपाल, सउदी अरब, ओमान, मालद्विप, बहरीन एवं मलावी को किया जाता है ।


टमाटर की अच्छी उपज में तापमान का बहुत बड़ा योगदान होता है । फसल के लिए आदर्श तापमान 20 - 250 सेन्टीग्रेट होता है । तापमान अधिक होने पर फूल एवं अपरिपक्व फल टूटकर गिरने लगते है । जब तापक्रम 130 से कम एवं 350 से ज्यादा होता है, तब परागकण का अंकुरण बहुत कम हो जाता है बाजार में माग कम होने पर टमाटर को कुछ दिनों तक भण्डारित किया जा सकता है जैसे: अपरिपक्व हरे फल को 12.50 सेन्टीग्रेट तापमान पर 30 दिनों तक जबकि परिपक्व फल को 4 - 50 सेन्टीग्रेट तापमान पर 10 दिनों तक रखा जा सकता है । उपरोक्त भण्डारण के समय सापेक्षिक आर्द्रता लगभग 85 - 90 प्रतिशत होनी चाहिए । परिणामस्वरूप फल कम लगते है साथ ही फलों का स्वरुप भी बिगण जाता है।


खेत की तैयारी


समुचित जल निकास वाली जीवाष्म युक्त बलुई दोमट या दोमट मिट्टी, जिसका pH मान 6.0 - 7.0 बीच हो, ऐसे खेत में टमाटर की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है । तैयार पौध की रोपाई से पहले, खेत की पहली गहरी जुताई मिट्टी पलट हल से करें, तपश्चात 3 से 4 आड़ी-तिरछी जुताई कल्टीवेटर से करके मिट्टी को भुरभुरी व समतल बना लेना चाहिए ।


उन्नत प्रभेद

  1. स्वर्णा नवीन: इस प्रभेद की बुवाई जुलाई से सितम्बर एवं अप्रैल से मई माह में की जा सकती है, जिसकी उपज क्षमता 600 - 650 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रभेद जीवाणु जनिक उकठा रोग के प्रति सहनशील है ।
  2. स्वर्णा लालीमा: इस प्रभेद की बुवाई जुलाई से सितम्बर एवं फरवरी से अप्रैल माह में की जा सकती है, जिसकी उपज क्षमता 600 - 700 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रभेद जीवाणु जनिक उकठा रोग के प्रति सहनशील है ।
  3. काशी अमन: इस प्रभेद की उपज क्षमता 500 - 600 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रभेद विषाणु जनिक पर्ण कुंचन रोग के प्रति सहनशील है ।
  4. काशी विशेष: इस प्रभेद की उपज क्षमता 450 - 600 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रभेद विषाणु जनिक पर्ण कुंचन रोग के प्रति सहनशील है ।

संकर प्रभेद

  1. स्वर्णा वैभव (F1): इस प्रभेद की बुवाई सितम्बर से अक्टूबर माह में की जा सकती है, जिसकी उपज क्षमता 900 - 1000 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है ।
  2. स्वर्णा सम्पदा (F1): इस प्रभेद की बुवाई अगस्त से सितम्बर एवं फरवरी से मई माह में की जा सकती है, जिसकी उपज क्षमता 1000 - 1500 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रभेद जीवाणु जनिक उकठा रोग के प्रति सहनशील है ।
  3. काशी अभिमान: यह दूरस्थ विपणन के लिए उपयुक्त संकर प्रभेद है। इसकी उपज क्षमता 750 - 800 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रभेद विषाणु जनिक पर्ण कुंचन रोग के प्रति सहनशील है ।

खाद एवं उर्वरक


खाद एवं उर्वरक की मात्र का निर्धारण हमेशा मिट्टी जांच के आधार पर करना हितकर होता है । सामान्य तौर पर 200 - 250 कुन्तल सडी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद के साथ 100 - 150 कि. ग्रा. नत्रजन, 60 - 80कि. ग्रा. स्फुर एवं 50 - 60 कि. ग्रा. पोटाश का व्यवहार करना चाहिए । नत्रजन की एक तिहाई तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व व्यवहार करें। नत्रजन की शेष मात्रा को दो बराबर भागों में बांट कर 25 - 30 दिनों एवं 45 - 50 दिनों बाद खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में व्यवहार करें ।


बीज की मात्रा


एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के संकुल एवं संकर किस्मो की क्रमशः 350 - 400 ग्राम एवं 200 - 250 ग्राम स्वस्थ बीज की आवश्यकता पड़ती है ।


टमाटर बीज की बुआई का समय


वैसे तो टमाटर की खेती पूरे वर्ष भर की जा सकती है । शरदकालीन फसल के लिए जुलाई से सितम्बर, बसंत या ग्रीष्मकालीन फसल के लिए नवम्बर से दिसम्बर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल महीनों में बीज की बुआई फायदेमंद होता है ।


टमाटर पौध की तैयारी


पौध की तैयारी के लिए जीवांशयुक्त बलुवर दोमट मिट्टी की जरुरत होती है । स्वस्थ एवं मजबूत पौध तैयार करने के लिए 10 ग्राम डाईअमोनियमफास्फेट और 1.5 - 2.0 कि.ग्रा. सड़ी हुयी गोबर की खाद प्रति वर्ग मीटर की दर से व्यवहार करना चाहिए। क्यारियों की लंबाई लगभग 3.0 मीटर, चौडाई लगभग 1.0 तथा भूमि की सतह से उचाई कम से कम 25 - 30 सें.मी. रखना उचित होता होता है । इसप्रकार की ऊची क्यारियों में बीज की बुआई पंक्तियों में करना चाहिए, जिनकी आपसी दूरी 5.0 - 6.0 से.मी. रखना चाहिए, जबकि पौध से पौध की दूरी 2.0 - 3.0 से.मी. रखना चाहिए । बुआई के बाद क्यारियों को सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट से ढक दें । इसके बाद फुहारे से हल्की सिचाई करें । अब इन क्यारियों को घास-फूस या सरकंडे के आवरण से डाक दें । आवश्यकतानुसार हल्की सिचाई करते रहें । बुआई के 20 - 25 दिनों बाद पौध रोपाई योग्य तैयार हो जाती है।


टमाटर पौध की रोपाई


जब पौध में 4 - 6 पत्तियां आ जाये तथा ऊचाई लगभग 20 - 25 से.मी. हो जाये तब पौध रोपाई के लिए तैयार समझना चाहिए । रोपाई के 3 - 4 दिनों पूर्व पौधशाला की सिचाई बन्द कर देनी चाहिए । जाड़ें के मौसम पौध को पाला से बचने के लिए क्यारियों को पालीथीन चादर की टनेल बनाकर ऊपर से ढक देना चाहिए । पंक्ति से पंक्ति एवं पौध से पौध की दूरी फसल की किस्म, भूमि की उर्वरता, रोपाई के मौसम एवं क्षेत्र विशेष को ध्यान में रख कर करना हितकर होता है, जिसका विवरण इस प्रकार है:


क्षेत्र/मौसम


बुआई का समय


रोपाई का समय


दूरी (पंक्ति X पौध)


सीमित बढवार


असीमित बढवार


मैदानी/शरदकालीन


जुलाई से सितम्बर


अगस्त से अक्टूबर


60 से.मी. X 60 से.मी.)


60 से.मी. X 60 से.मी.)


वसंत एवं ग्रीष्मकालीन


जुलाई से सितम्बर


अगस्त से अक्टूबर


60 से.मी. X 60 से.मी.)


60 से.मी. X 60 से.मी.)


पहाड़ी


जुलाई से सितम्बर


अगस्त से अक्टूबर


60 से.मी. X 60 से.मी.)


60 से.मी. X 60 से.मी.)


सिचाई


पौध रोपण के तुरंत बाद एवं प्रारम्भ के 3 - 4 दिनों तक पौधों को हजारे से पानी देना चाहिए, तत्पश्चात क्यारी या नाली जो भी हो उसमे पानी देना चाहिए । अच्छा होता है यदि मेड एवं नाली बना कर पौध लगाया जाय । क्योंकि इस विधी में सिचाई जल एवं स्थान का भरपूर उपयोग होता है । शरदकालीन फसलों में 10 - 15 दिनों के अंतराल पर जबकि ग्रीष्मकालीन फसलों को 6 - 8 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिचाई करना चाहिए । फसल में अधिक पानी लगाने से पौधों में उकठा एवं विषाणु जनित पत्ती सिकुडन रोग की संभावना बढ जाती है ।


टमाटर में खरपतवार प्रबंधन


खेतों में उगने वाले खरपतवारों को समय रहते खुर्पी या कुदाल से गुडाई करके निकाल लेना हितकर होता है । अन्यथा खरपतवारों की तेज वृद्धी से फसल के अधिकतम नुकसान की संभावना बनी रहती है । जिन क्षेत्रों में दीमक की समस्या नही हो । ऐसे क्षेत्रों में सूखे घास – फूस की पलवार (मल्च) पौधों के नीचे बिछाने से भी खरपतवार कम उगते है । वैसे पलवार के लिए हम 30 माइक्रोन मोटी कण घनत्व वाली पालीथिन (LDPE) की चादर का भी उपयोग करके खरपतवार के जमाव को कम कर सकते है ।


टमाटर में अंत: सस्य क्रियायें


फसल से अच्छी पैदावार लें के लिए पौधों के आस - पास हल्की निकाई – गुडाई करें एवं पौधों के जड़ के पास मिट्टी अवस्य चढा दें, जिससे पौधों के बढवार पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा । असीमित बढवार वाली प्रभेदो के पौधों को लकड़ी गाढ कर सहारा देने से भी उपज पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है, साथ ही फल का मिट्टी से संपर्क न होने से विभिन्न रोगों का प्रभाव स्वत: कम हो जाता है ।


टमाटर में समेकित नाशीजीव प्रबंधन


टमाटर की फसल में खरपतवारों के अतिरिक्त ढेर सारे नाशीजीवों जैसे: कवक, जीवाणु, विषाणु, सूत्रकृमी एवं विभिन्न प्रकार हानिकारक कीटों का प्रकोप देखने को मिलता है । सभी हानिकारक नाशीजीव फसल प्रभेदों के उत्पादन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है । अत: फसल अवस्था अनुरूप इनका प्रबंधन इसप्रकार है :


टमाटर बुवाई से पहले

  • अधिक जल जमाव एवं खराब जल निकास व्यवश्था वाली खेतों का चुनाव टमाटर की खेती के लिए नही करें ।
  • खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें । साथ ही 15 से.मी. ऊँचा बेड बनाना सुनिश्चित करें ।
  • खेत में 100 किलोग्राम प्रतिएकड़ की दर से नीम की खली का व्यवहार करें ।
  • बेड को 0.45 मि.मी. मोटी पॉलीथिन की चादर से ढककर तीन सप्ताह के लिए छोड़ दें ।
  • पर्यावर्णीय अभियंत्रण के अंतर्गत खेत के चारो तरफ एवं प्रत्येक 10 लाइन मुख्य फसल के बाद एक लाइन गेंदा की रोपाई करे, ध्यान रखे कि मुख्य फसल की रोपाई के कम से कम 15 दिनों पहले गेंदा की रोपाई सुनिश्चित कर लें । जिससे फल छेदक कीट की मादा मुख्य फसल को छोड़कर गेंदा के पौधों पर अपना अंडा रखेगी । फलस्वरूप टमाटर में होने वाली क्षति कम होगी ।

टमाटर बुवाई के समय

  • प्रतिरोधक एवं सहनशील प्रभेदों का चुनाव करे ।
  • वीज का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि जिन पौधों से वीज लिया गया हो वह पौधा रोग ग्रसित न हो ।
  • ट्राईकोडर्मा 9.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के दर से टमाटर के वीज को उपचारित करें ।
  • फसक चक्र जैसे: लोविया-मक्का-पत्तागोभी, भिन्डी-लोविया-मक्का, मक्का-लोविया-बैगन इत्यादि अपनाना चाहिए।
  • फसल चक्र में गेहूँ, सरसों, सूर्यमुखी, अलसी इत्यादि फसलों का भी समावेश किया जा सकता है ।
  • अन्तःवर्ती फसल के रूप में प्याज, मक्का, लोविया, धनिया, उरद या मूंग, कद्दू वर्गीय, धान्य, गोभीवर्गीय फसले अधिक लाभकारी होती है ।

वानस्पतिक वृद्धि

  • खेत को खरपतवार से मुक्त रखें, जिसके लिए रोपाई के क्रमश: 15 एवं 30 दिनों बाद एक-एक निकाई एवं गुडाई अवश्य सुनिश्चित करें ।
  • अवश्यकतानुसार हल्की सिचाई करें । ध्यान इस बात का रखे कि जल जमाव की स्थिति न बने ।
  • खेतों की निगरानी निश्चित अंतराल पर करते रहे तथा रोग ग्रसित पौधों को उखाड कर मिट्टी में दबा दें । यदि कोई असमान्य पौधा दिखे तो विशेषज्ञ (जिला के कृषि विज्ञान केन्द्र, जिला एवं प्रखंड स्तरीय कृषि पदाधिकारी या इनके प्रतिनिधि) से परामर्श अवश्य ले ।
  • सफेद मक्खी के प्रकोप को कम करने के पीला चिपचिपा ट्रैप या कार्ड @ 10 प्रति एकड़ की दर से लगाना चाहिए ।
  • 5 प्रतिशत नीम के वीज का सत (NSKE) का छिडकाव करें, जिससे पौधों के सतह रहने वाले कीटो एवं रोग कारको की क्रियाशीलता में कमी आयेगी ।
  • अगेती एवं पछेती झुलसा व्याधि के प्रबंधन के लिए ग्रसित पौधों को उखाडकर नष्ट कर दें साथ ही साथ मेन्कोजेब 75 डब्लू.पी. @ 600 - 800 ग्रा. या फमोक्साडोन 16.6 एस.सी/ + सायमोक्सानिल 22.1 एस.सी. @ 200 ग्रा. या कापरओक्सीक्लोराइड 50 डब्लू.पी. @ 1000 ग्रा. को 150 - 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए ।
  • टमाटर के पत्ती कुंचन (पत्ती सिकुडन) रोग के प्रबंधन के लिए सर्वप्रथम रोग ग्रसित पौधों को जड़ से उखाडकर मिट्टी में दबा दे । तत्पश्चात डाइमेंथोएट 30 इ.सी. @ 400 मि.ली. या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल. @ 60 - 70 मि.ली. या थियामेंथोक्जाम 25 डब्लू.जी. @ 80 ग्रा. को 150 - 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव सुनिश्चित करें ।
  • कीटो की निगरानी के लिए 4 - 5 प्रति एकड़ की दर से फेरोमोन ट्रैप लगा सकते है । ध्यान इस बात का देना है कि प्रत्येक 2 से 3 सप्ताह बाद फेरोमोन ट्रैप का ल्योर बदलना होता है ।
  • फसलीय पर्यावरण में नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या बढ़ाने के उद्धेश्य से बर्ड पर्चर @ 20 प्रति एकड़ की दर से लगाया जा सकता है । साथ ही साथ अंडपरजीवी ट्राईकोग्रामा स्पेसीज @ 20,000 अंडा प्रति एकड़ प्रति सप्ताह की दर से कम से कम 4 बार खेत में छोड़ना चाहिए ।
  • यदि फसल की निगरानी के समय, यह अनुभव हो कि अमूक कीट या रोग कारक जीव अपने आर्थिक क्षति पर पहुँचाने वाला है साथ ही इनके प्राकृतिक शत्रुओं की क्रियाशीलता सामान्य से कम हो, तो विशेषज्ञ (जिला के कृषि विज्ञान केन्द्र, जिला एवं प्रखंड स्तरीय कृषि पदाधिकारी या इनके प्रतिनिधि) से परामर्श लेकर इन नाशीजीवों की संख्या कम करने के लिए रसायनों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सकता है ।

पुष्पन एवं फलन

  • फसल की इस अवश्था में शेष बचे हुए खरपतवारों को हाथ से निकोनी करके निकाल लेना चाहिए क्योंकि इस समय के बचे हुए खरपतवार से उत्पन्न वीज आने वाली फसल के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है ।
  • फल को मिट्टी के सम्पर्क में आने से बचने के लिए, पौधों को चारो तरफ से सहारा देने की आवश्यकता होती है, जिससे फल सडन की समस्या कम होती है ।
  • फली छेदक कीट के प्रबंधन के लिए एच.ए. एन.पी.वी. 0.43 ए.एस. @ 600 मि.ली. या बैसिलस थुरिनजिएन्सिस @ 400 - 500 ग्रा. की दर 150 - 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव किया जा सकता है ।
  • फल छेदक कीट कीट की संख्या यदि आर्थिक क्षति स्तर पर पहुँचाने की संभावना हो तो इनडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. @ 160 - 200 मि.ली. या फ्लूवेन्डामाइड 20 डब्लू.जी. @ 40 ग्रा. या नुवाल्यूरोन 10 ई.सी. @ 300 मि.ली. या क्लोरेनट्रानिलिप्रोले 18.5 एस.सी. @ 60 मि.ली. को 150 से 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिडकाव करें ।

फलों की तुड़ाई


टमाटर के फलों की तुडाई उसके उपयोग पर निर्भर करती है । यदि आस-पास के बाजार में बेचना हो तो फल पकने के बाद तुडाई करें । यदि दूर के बाजार में भेजना हो तो जैसे ही फल के रंग में परिवर्तन होना शुरू हो तुडाई कर लेना चाहिए ।


उपज एवं भण्डारण


फसल की उपज, प्रभेद, बुवाई की विधि एवं समय, खाद एवं उर्वरक की मात्रा, मौसम, फसल प्रबन्धन आदि पर निर्भर करती है । टमाटर की औसत उपज 300 - 350 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है । अच्छी उत्पादन तकनीकी एवं उन्नत प्रभेद अपनाने से 800 - 1000 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त कर सकते है । बाजार में माग कम होने पर टमाटर को कुछ दिनों तक भण्डारित भी किया जा सकता है जैसे: अपरिपक्व हरे फल को 12.50 सेन्टीग्रेट तापमान पर 30 दिनों तक जबकि परिपक्व फल को 4 - 50 सेन्टीग्रेट तापमान पर 10 दिनों तक रखा जा सकता है । उपरोक्त भण्डारण के समय सापेक्षिक आर्द्रता लगभग 85 - 90 प्रतिशत होनी चाहिए ।





सम्बन्धित प्रश्न



Comments Bharat.kushvaha on 14-09-2022

Ham.bansi.me.rehta.hu.hamere.jile.ka.name.lalitpur.hi.tamttar.lagana.chahte.kon.si.prajati.lagaye.hamara.no.8176994860

अनिल on 07-07-2022

हमे अप्रैल में टमाटर की बोआई करनी है

Shilanand tigga on 26-05-2022

May mein tamatef lagana hai


Laksman mali on 14-05-2022

स्वर्ण सम्पदा f1tamater kese mangwaye

Naresh oraon on 08-03-2022

Mujhe feberwary me tamater lagana hai to kosa veraity sahi haib

Uttam kumar on 09-12-2021

May mahine me tamatar ka paidawar ho sakta hai ya nahi jankari dijiye sir

SHRI meena on 10-10-2021

Garmiyon Ke Din Ki top variety tamatar ki batao


ANIL KUSHWAH on 17-06-2021

Tamatar ka konsa been lagay



Rajesh on 16-01-2020

Muche tamatar ki khetee Karne ke liye pessa chaiye

Khagendr Singh Raghuwanshi on 20-04-2020

Tamatar lagane ka konsa samay sahi hai

Lakhan Singh on 20-05-2020

स्वर्ण सम्पदा f1tamatar seeds ko ke mangwaye

Prem shankar on 13-10-2020

05/05/2018 is tempreture me Tamatar ki pattiya bilkul sikud gayi hai Allahabad UP


Dharmendra kushvaha on 17-10-2020

Ham March ke mahine mein mein tamatar ki kheti karna chahte hain gram bar post bamori tehsil mauranipur district Jhansi Uttar Pradesh

Dharmendra Kumar on 26-10-2020

March ke mahine mein main ham tamatar lagana chahte Hain hamare yahan domat mitti hai Kaun sa bij acchi paidawar dega hamara mobile number 80 81 15 66 63 gram bar post bamori tahsil mauranipur district Jhansi Uttar Pradesh

Rahul Nagar on 23-12-2020

Gehu ke baad Kon si sabji bo sakte he

Galitverma on 30-12-2020

Beej ka name

Rameshmalvi on 25-01-2021

Tamatar,me,kon,si,khad,dalna,hai



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