Sapt Pagoda सप्त पैगोडा

सप्त पैगोडा



GkExams on 12-05-2019

सातवीं शती में बना जापान का पांचमंजिला पगोडा

पगोडा शब्द का प्रयोग नेपाल, भारत, वर्मा, इंडोनेशिया, थाइलैंड, चीन, जापान एवं अन्य पूर्वीय देशों में भगवान् बुद्ध अथवा किसी संत के अवशेषों पर निर्मित स्तंभाकृति मंदिरों के लिये किया जाता है। इन्हें स्तूप भी कहते हैं। एक अनुमान यह है कि पगोडा शब्द संस्कृत के "दगोबा" के अपभ्रंश रूप में प्रयुक्त हुआ होगा। बर्मी ग्रंथों में पगोडा लंका की भाषा सिंहली के शब्द "डगोबा" का विगड़ा रूप बताया गया है और डगोबा को संस्कृत के शब्द धातुगर्भा से संबंधित कहा गया है, जिसका अर्थ है "पुनीत अवशेषों की स्थापना का स्थल"।


परिचय

पगोडे प्राय: सूचीस्तंभीय (पिरैमिड आकार के), गुंबदीय, अथवा बुर्ज की आकृति के होते हैं। 13 मंजिलों और 200 फुट ऊँचाई तक के पगोडे बने हैं। भारत तथा पूर्वी एशिया के पगोडों के शिखर पर एक मस्तूल पर बहुत सी राजकीय छतरियाँ लगी हुई होती हैं। भारत में पगोडे प्राय: मंदिरों के द्वार पर अथवा मुख्य मूर्तिस्थल के ऊपर बनाए जाते हैं। चीन तथा जापान के पगोडों में स्तंभ वर्गीय, बहुभुजीय, अथवा वृत्तीय आकृति का होता है। उसमें अनेक, बहुधा पाँच, मंजिलें होती हैं। प्रत्येक मंजिलें पर बाहर को निकलती हुई छतें होती हैं जिनमें काँसे की घंटियाँ लटकी होती हैं। संपूर्ण ऊँचाई लगभग 150 फुट होती है और भवन पत्थर, ईंट, अथवा लकड़ी का बना होता है। नीचे की मंजिल में मूर्तियों अथवा मंदिरों की स्थापना की हुई होती है। स्याम देश में पगोडा को "फ्रा" कहते हैं और यह या तो बेलनाकार बुर्जयुक्त सूचीस्तंभ होता है या पतले कुंतल शिखर युक्त एवं घंटाकार होता है।



महाबलीपुरम का सप्त पगोडा
महाबलीपुरम के रथ मंदिर अर्थात् सप्त पगोडा
दक्षिण भारत मेंमहाबलीपुरम अथवा मामल्लपुरम में स्थित
‘सप्त पगोडा’ महाभारत महाकाव्य के पांडव भाइयों के रथों के रूप में निर्मित है। महाबलीपुरम् की वास्‍तुकला की तीन प्रमुख शैलियों कासम्‍बंध राजा मामल्‍य, उनके बेटे नरसिंह वर्मन और राजसिंह के शासनकाल से है । महाबलीपुरम् की शैली सबसे प्राचीन और सरल है जो चट्टान को काटकर बनाये गये मंदिरों में पायी जाती है । लगभग 8 वीं तथा उसके बाद नरसिंहवर्मन और राजसिंह काल में ग्रेनाइट पत्‍थर के शिला-खंडों से मंदिरों का निर्माण किया गया था ।
विष्णु प्रतिमा, मामल्लपुरम
मामल्ल शैली का विकास नरसिंह वर्मन प्रथम के काल में हुआ। इसके अन्तर्गत रथ मंदिरों का निर्माण किया गया। ये मंदिर मामल्लपुरम में हैं। रथ मंदिर में द्रौपदी रथ सबसे छोटा है। इसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं है। धर्मराज रथ के रथ मंदिर पर नरसिंह वर्मन की मूर्ति अंकित है। ग्रेनाइट पत्‍थर के पत्थरों से बनाए जाने तथा सात की संख्या में होने के कारण इन रथों को सप्त पगोडा भी कहा जाता है। सप्त पगोडा के अन्तर्गत निम्नलिखित रथ बनें- धर्मराज रथ, भीम रथ, अर्जुन रथ, सहदेव रथ, गणेश रथ, वलैयकुट्ई रथ और पीदरी रथ। कोणार्क का सूर्य मंदिर अर्थात् ब्लैक पगोडा औरमहाबलीपुरम का सप्त पगोडा भारतीय शिल्प एवं स्थापत्य कला की कालजयी धरोहर हैं।



Comments Dinesh on 07-09-2023

Saptpegoda ki paribhasa short me batato ?

Satish on 09-08-2023

Saptpegoda ki paribhasha

Kamini yadav on 24-05-2023

Sapt Pagoda mandir kis vans ke shasko ne banvaya tha?


Ruchi Maurya on 11-01-2020

Sapt paigoa Mandir k baare me aur jankari chahiye





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