Aapat Upbandh आपात उपबंध

आपात उपबंध



GkExams on 22-12-2018

352. आपात की उद्‍घोषणा--(1) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि गंभीर आपात विद्यमान है जिसे युद्ध या बाह्य आक्रमण या 1[सशस्त्र विद्रोह] के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह उद्‍घोषणा द्वारा 2[संपूर्ण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के संबंध में जो उद्‍घोषणा में विनिर्दिष्ट किया जाए] इस आशय की घोषणा कर सकेगा।


3[स्पष्टीकरण--यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि युद्ध या वाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह का संकट सन्निकट है तो यह घोषित करने वाली आपात की उद्‍घोषणा कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है, युद्ध या ऐसे किसी आक्रमण या विद्रोह के वास्तव में होने से पहले भी की जा सकेगी।


4[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्‍घोषणा में किसी पश्चात्‌‌वर्ती उद्‍घोषणा द्वारा परिवर्तन किया जा सकेगा या उसको वापस लिया जा सकेगा।
(3) राष्ट्रपति, खंड (1) के अधीन उद्‍घोषणा या ऐसी उद्‍घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्‍घोषणा तब तक नहीं करेगा जब तक संघ के मंत्रिमंडल का (अर्थात्‌ उस परिषद का जो अनुच्छेद 75 के अधीन प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल स्तर के अन्य मंत्रियों से मिलकर बनती है) यह विनिश्चय कि ऐसी उद्‍घोषणा की जाए, उसे लिखित रूप में संसूचित नहीं किया जाता है।
(4) इस अनुच्छेद के अधीन की गई प्रत्येक उद्‍घोषणा संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी और जहाँ वह पूर्ववर्ती उद्‍घोषणा को वापस लेने वाली उद्‍घोषणा नहीं है वहाँ वह एक मास की समाप्ति पर, यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है तो, प्रवर्तन में नहीं रहेगी:


परन्तु यदि ऐसी कोई उद्‍घोषणा (जो पूर्ववर्ती उद्‍घोषणा को वापस लेने वाली उद्‍घोषणा नहीं है) उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक सभा का विघटन इस खंड में निर्दिष्ट एक मास की अवधि के दौरान हो जाता है और यदि उद्‍घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्‍घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो, उद्‍घोषणा उस तारीख से जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्‍घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।


(5) इस प्रकार अनुमोदित उद्‍घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, खंड (4) के अधीन उद्‍‌घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे संकल्प के पारित किए जाने की तारीख से छह मास की अवधि की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी:


परन्तु यदि और जितनी बार ऐसी उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है तो और उतनी बार वह उद्‍घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से जिसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवर्तन में नहीं रहती, छह मास की और अवधि तक प्रवृत्त बनी रहेगी :


परन्तु यह और कि यदि लोक सभा का विघटन छह मास की ऐसी अवधि के दौरान हो जाता है और ऐसी उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अवधि के दौरान पारित नहीं किया गया है तो, उद्‍घोषणा उस तारीख से जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।


1 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 37 द्वारा2 (20-6-1979 से) ''आभ्यंतरिक अशान्ति'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
2 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 48 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।
3 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित।
4 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2), खंड (2क) और खंड (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित।


(6) खंड (4) और खंड (5) के प्रयोजनों के लिए, संकल्प संसद के किसी सदन द्वारा उस सदन की कुल सदस्य संख्‍या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा ही पारित किया जा सकेगा।
(7) पूर्वगामी खंडों में किसी बात के होते हुए भी, यदि लोक सभा खंड (1) के अधीन की गई उद्‍घोषणा ऐसी उद्‍घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्‌घोषणा का, यथास्थिति, अननुमोदन या उसे प्रवृत्त बनाए रखने का अननुमोदन करने वाला संकल्प पारित कर देती है तो राष्ट्रपति ऐसी उद्‍घोषणा को वापस ले लेगा।


(8) जहाँ खंड (1) के अधीन की गई उद्‍घोषणा या ऐसी उद्‍घोषणा में परिवर्तन करने वाली उद्‍घोषणा का, यथास्थिति, अननुमोदन या उसको प्रवृत्त बनाए रखने का अननुमोदन करने वाले संकल्प को प्रस्तावित करने के अपने आशय की सूचना लोक सभा की कुल सदस्य संख्‍या के कम से कम दसवें भाग द्वारा हस्ताक्षर करके लिखित रूप में, --
(क) यदि लोक सभा सत्र में है तो अध्‍यक्ष को, या
(ख) यदि लोक सभा सत्र में नहीं है तो राष्ट्रपति को,
दी गई है वहाँ ऐसे संकल्प पर विचार करने के परियोजन के लिए लोक सभा की विशेष बैठक, यथास्थिति, अध्‍यक्ष या राष्ट्रपति को ऐसी सूचना प्राप्त होने की तारीख से चौदह दिन के भीतर की जाएगी।


1[2[(9)] इस अनुच्छेद द्वारा राष्ट्रपति को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत, युद्ध या बाह्य आक्रमण या 3[सशस्त्र विद्रोह] के अथवा युद्ध या बाह्य आक्रमण या 3[सशस्त्र विद्रोह] का संकट सन्निकट होने के विभिन्न आधारों पर विभिन्न उद्‍घोषणाएँ करने की शक्ति होगी चाहे राष्ट्रपति ने खंड (1) के अधीन पहले ही कोई उद्‍घोषणा की है या नहीं और ऐसी उद्‍घोषणा परिवर्तन में है या नहीं।
4* * * *


353. आपात की उद्‍घोषणा का प्रभाव--जब आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है तब--
(क) संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को इस बारे में निदेश देने तक होगा कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का किस रीति से प्रयोग करे;
(ख) किसी विषय के संबंध में विधियाँ बनाने की संसद की शक्ति के अंतर्गत इस बात के होते हुए भी कि वह संघ सूची में प्रगणित विषय नहीं है, ऐसी विधियाँ बनाने की शक्ति होगी जो उस विषय के संबंध में संघ को या संघ के अधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियाँ प्रदान करती हैं और उन पर कर्तव्य अधिरोपित करती हैं या शक्तियों का प्रदान किया जाना और कर्तव्यों का अधिरोपित किया जाना प्राधिकृत करती है :


5[परन्तु जहाँ आपात की उद्‍घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में परिवर्तन में है वहाँ यदि और जहाँ तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहाँ तक,--
(i) खंड (क) के अधीन निदेश देने की संघ की कार्यपालिका शक्ति का, और
(ii) खंड (ख) के अधीन विधि बनाने की संसद की शक्ति का,
विस्तार किसी ऐसे राज्य पर भी होगा जो उस राज्य से भिन्न है जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में हैं।


354. जब आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है तब राजस्वों के वितरण संबंधी उपबंधों का लागू होना--(1) जब आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है तब राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, यह निदेश दे सकेगा कि इस संविधान के अनुच्छेद 268 से अनुच्छेद 279 के सभी या कोई उपबंध ऐसी किसी अवधि के लिए, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए और जो किसी भी दशा में उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति से आगे नहीं बढ़ेगी, जिसमें ऐसी उद्‍घोषणा प्रवर्तन में नहीं रहती है, ऐसे अपवादों या उपान्तरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे जो वह ठीक समझे।


1 संविधान (अडतीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित ।
2 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (4) को खंड (9) के रूप में पुनःसंख्‍यांकित किया गया।
3 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) ''आभ्यंतरिक अशान्ति'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (5) का लोप किया गया।
5 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 49 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।


(2) खंड (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात्‌ यथाशक्य शीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।


355. बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्य की संरक्षा करने का संघ का कर्तव्य--संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशान्ति से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाया जाना सुनिश्चित करे।


356. राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध--(1) यदि राष्ट्रपति का किसी राज्य के राज्यपाल 1*** से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें उस राज्य का शासन इस संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो राष्ट्रपति उद्‍घोषणा द्वारा—


(क) उस राज्य की सरकार के सभी या कोई कृत्य और 2[राज्यपाल] में या राज्य के विधान-मंडल से भिन्न राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी में निहित या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई शक्तियाँ अपने हाथ में ले सकेगा;
(ख) यह घोषणा कर सकेगा कि राज्य के विधान-मंडल की शक्तियाँ संसद द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी;
(ग) राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी से संबंधित इस संविधान के किन्हीं उपबंधों के प्रवर्तन को पूर्णतः या भागतः निलंबित करने के लिए उपबंधों सहित ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध कर सकेगा जो उद्‍घोषणा के उद्देश्यों को प्रभावी करने के लिए राष्ट्रपति को आवश्यक या वांछनीय प्रतीत हों:


परन्तु इस खंड की कोई बात राष्ट्रपति को उच्च न्यायालय में निहित या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य किसी शक्ति को अपने हाथ में लेने या उच्च न्यायालयों से संबंधित इस संविधान के किसी उपबंध के प्रवर्तन को पूर्णतः या भागतः निलंबित करने के लिए प्राधिकृत नहीं करेगी।
(2) ऐसी कोई उद्‍घोषणा किसी पश्चात्‌वर्ती उद्‍घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी या उसमें परिवर्तन किया जा सकेगा।
(3) इस अनुच्छेद के अधीन की गई प्रत्येक उद्‌घोषणा संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी और जहाँ वह पूर्ववर्ती उद्‍घोषणा को वापस लेने वाली उद्‍घोषणा नहीं है वहाँ वह दो मास की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है:


परन्तु यदि ऐसी कोई उद्‍घोषणा (जो पूर्ववर्ती उद्‍घोषणा को वापस लेने वाली उद्‍घोषणा नहीं है) उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक सभा का विघटन इस खंड में निर्दिष्ट दो मास की अवधि के दौरान हो जाता है और यदि उद्‍घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्‍घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो, उद्‍घोषणा उस तारीख से जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्‍घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।


(4) इस प्रकार अनुमोदित उद्‍घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, 3[ऐसी उद्‍घोषणा के किए जाने की तारीख से छह मास] की अवधि की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी :


1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख'' शब्दों का लोप किया गया।
2 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''यथास्थिति, राज्यपाल या राजप्रमुख'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
3 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) ''खंड (3) के अधीन उद्‍घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे के पारित हो जाने की तारीख से एक वर्ष'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) मूल शब्द ''छह मास'' के स्थान पर ''एक वर्ष'' शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।


(2) खंड (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात्‌ यथाशक्य शीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।


परन्तु यदि और जितनी बार ऐसी उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है तो और उतनी बार वह उद्‍घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से जिसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवर्तन में नहीं रहती है, 1[छह मास] की अवधि तक प्रवृत्त बनी रहेगी, किन्तु ऐसी उद्‍घोषणा किसी भी दशा में तीन वर्ष से अधिक प्रवृत्त नहीं रहेगी:


परन्तु यह और कि यदि लोक सभा का विघटन 2[छह मास] की ऐसी अवधि के दौरान हो जाता है और ऐसी उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अवधि के दौरान पारित नहीं किया गया है तो, उद्‍घोषणा उस तारीख से, जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है:


2[परन्तु यह भी कि पंजाब राज्य की बाबत 11मई, 1987 को खंड (1) के अधीन की गई
उद्‌घोषणा की दशा में, इस खंड के पहले परन्तुक में ''तीन वर्ष'' के प्रति निर्देश का इस प्रकार अर्थ लगाया जाएगा मानो वह 3[पांच वर्ष] के प्रति निर्देश हो।
4[(5) खंड (4) में किसी बात के होते हुए भी, खंड (3) के अधीन अनुमोदित उद्‍घोषणा के किए जाने की तारीख से एक वर्ष की समाप्ति से आगे किसी अवधि के लिए ऐसी उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने के संबंध में कोई संकल्प संसद के किसी सदन द्वारा तभी पारित किया जाएगा जब--


(क) ऐसे संकल्प के पारित किए जाने के समय आपात की उद्‍घोषणा, यथास्थिति, अथवा संपूर्ण भारत में संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग में प्रवर्तन में है; और
(ख) निर्वाचन आयोग यह प्रमाणित कर देता है कि ऐसे संकल्प में विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान खंड (3) के अधीन अनुमोदित उद्‍घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखना, संबंधित राज्य की विधान सभा के साधारण निर्वाचन कराने में कठिनाइयों के कारण, आवश्यक है:
5[परन्तु इस खंड की कोई बात पंजाब राज्य की बाबत 11 मई, 1987 को खंड (1) के अधीन की गई उद्‍घोषणा को लागू नहीं होगी।

357. अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उद्‍घोषणा के अधीन विधायी शक्तियों का प्रयोग--(1) जहाँ अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उद्‍घोषणा द्वारा यह घोषणा की गई है कि राज्य के विधान-मंडल की शक्तियाँ संसद द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी वहाँ--
(क) राज्य के विधान-मंडल की विधि बनाने की शक्ति राष्ट्रपति को प्रदान करने की और इस प्रकार प्रदत्त शक्ति का किसी अन्य प्राधिकारी को, जिसे राष्ट्रपति इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, ऐसी शर्तों के अधीन, जिन्हें राष्ट्रपति अधिरोपित करना ठीक समझे, प्रत्यायोजन करने के लिए राष्ट्रपति को प्राधिकृत करने की संसद को,
(ख) संघ या उसके अधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियाँ प्रदान करने या उन पर कर्तव्य अधिरोपित करने के लिए अथवा शक्तियों का प्रदान किया जाना या कर्तव्यों का अधिरोपित किया जाना प्राधिकृत करने के लिए, विधि बनाने की संसद को अथवा राष्ट्रपति को या ऐसे अन्य प्राधिकारी को, जिसमें ऐसी विधि बनाने की शक्ति उपखंड (क) के अधीन निहित है,


1 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) ''खंड (3) के अधीन उद्‍घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे के पारित हो जाने की तारीख से एक वर्ष'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) ''छह मास'' मूल शब्द के स्थान पर ''एक वर्ष'' शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
2 संविधान (चौसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1990 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
3 संविधान (सड़सठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1990 की धारा 2 द्वारा और तत्पश्चात्‌ संविधान (अड़सठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 की धारा 2 द्वारा संशोधित होकर वर्तमान रूप में आया।
4 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) खंड 5 के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (अड़तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 6 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (5) अंतःस्थापित किया गया था।
5 संविधान (तिरसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1989 की धारा 2 द्वारा (6-1-1990 से) लोप किया गया जिसे संविधान (चौसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1990 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित किया गया था।


(ग) जब लोक सभा सत्र में नहीं है तब राज्य की संचित निधि में से व्यय के लिए, संसद की मंजूरी लंबित रहने तक ऐसे व्यय के प्राधिकृत करने की राष्ट्रपति को, क्षमता होगी।


1[(2) राज्य के विधान-मंडल की शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद द्वारा, अथवा राष्ट्रपति या खंड (1) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट अन्य प्राधिकारी द्वारा, बनाई गई ऐसी विधि, जिसे संसद अथवा राष्ट्रपति या ऐसा अन्य प्राधिकारी अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उद्‍घोषणा के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होता, उद्‍घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात्‌ तब तक प्रवृत्त बनी रहेगी जब तक सक्षम विधान-मंडल या अन्य प्राधिकारी द्वारा उसका परिवर्तन या निरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है।


358. आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उपबंधों का निलंबन--2[(1)] 3[जब युद्ध या बाह्य आक्रमण के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा के संकट में होने की घोषणा करने वाली आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है] तब अनुच्छेद 19 की कोई बात भाग 3 में यथा परिभाषित राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की या कोई ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई करने की शक्ति को, जिसे वह राज्य उस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के लिए सक्षम होता, निर्र्बंधित नहीं करेगी, किन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई विधि उद्‍घोषणा के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय तुरन्त प्रभावहीन हो जाएगी, जिन्हें विधि के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है:


4[परन्तु 5[जहाँ आपात की ऐसी उद्‍घोषणा] भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहाँ, यदि और जहाँ तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहाँ तक, ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबंध में, जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में नहीं है, इस अनुच्छेद के अधीन ऐसी कोई विधि बनाई जा सकेगी या ऐसी कोई कार्यपालिका कार्रवाई की जा सकेगी।]
6[(2) खंड (1) की कोई बात,--


(क) किसी ऐसी विधि को लागू नहीं होगी जिसमें इस आशय का उल्लेख अंतर्विष्ट नहीं है कि ऐसी विधि उसके बनाए जाने के समय प्रवृत्त आपात की उद्‍घोषणा के संबंध में है; या
(ख) किसी ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख अंतर्विष्ट करने वाली विधि के अधीन न करके अन्यथा की गई है।
359. आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलबंन--(1) जहाँ आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है वहाँ राष्ट्रपति, आदेश द्वारा यह घोषणा कर सकेगा कि 7[(अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रदत्त ऐसे अधिकारों] को प्रवर्तित कराने के लिए, जो उस आदेश में उल्लिखित किए जाएँ, किसी न्यायालय को समावेदन करने का अधिकार और इस प्रकार उल्लिखित अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए किसी न्यायालय में लंबित सभी कार्यवाहियाँ उस अवधि के लिए जिसके दौरान उद्‍घोषणा प्रवृत्त रहती है या उससे लघुतर ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, निलंबित रहेंगी।


1 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 51 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
2 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छेद 358 को उसके खंड (1) के रूप में पुनःसंख्‍यांकित किया गया।
3 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) ''जब आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 52 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।
5 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) ''जब आपात की उद्‍घोषणा'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
6 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित।
7 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) ''भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।


1[(1क) जब 2[(अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रदत्त किन्हीं अधिकारों] को उल्लिखित करने वाला खंड (1) के अधीन किया गया आदेश प्रवर्तन में है तब उस भाग में उन अधिकारों को प्रदान करने वाली कोई बात उस भाग में यथापरिभाषित राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की या कोई ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई करने की शक्ति को, जिसे वह राज्य उस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के लिए सक्षम होता, निर्र्बंधित नहीं करेगी, किन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई विधि पूर्वोक्त आदेश के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय तुरन्त प्रभावहीन हो जाएगी, जिन्हें विधि के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है :


3[परन्तु जहाँ आपात की उद्‍घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहाँ, यदि और जहाँ तक भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है तो और वहाँ तक, ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में या उसके संबंध में, जिसमें या जिसके किसी भाग में आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में नहीं है, इस अनुच्छेद के अधीन ऐसी कोई विधि बनाई जा सकेगी या ऐसी कोई कार्यपालिका कार्रवाई की जा सकेगी।]


4[(1ख) खंड (1क) की कोई बात--
(क) किसी ऐसी विधि को लागू नहीं होगी जिसमें इस आशय का उल्लेख अंतर्विष्ट नहीं है कि ऐसी विधि उसके बनाए जाने के समय प्रवृत्त आपात की उद्‍घोषणा के संबंध में है; या
(ख) किसी ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई को लागू नहीं होगी जो ऐसा उल्लेख अंतर्विष्ट करने वाली विधि के अधीन न करके अन्यथा की गई है।
(2) पूर्वोक्त रूप में किए गए आदेश का विस्तार भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग पर हो सकेगा :
5[परन्तु जहाँ आपात की उद्‍घोषणा भारत के राज्यक्षेत्र के केवल किसी भाग में प्रवर्तन में है वहाँ किसी ऐसे आदेश का विस्तार भारत के राज्यक्षेत्र के किसी अन्य भाग पर तभी होगा जब राष्ट्रपति, यह समाधान हो जाने पर कि भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा, भारत के राज्यक्षेत्र के उस भाग में या उसके संबंध में, जिसमें आपात की उद्‍घोषणा प्रवर्तन में है, होने वाले क्रियाकलाप के कारण संकट में है, ऐसा विस्तार आवश्यक समझता है।]
(3) खंड (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात्‌ यथाशक्य, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।


6359क.[ इस भाग का पंजाब राज्य को लागू होना--संविधान (तिरसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1989 की धारा 3 द्वारा (6-1-1990 से) निरसित]।
360. वित्तीय आपात के बारे में उपबंध--(1) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व या प्रत्यय संकट में है तो वह उद्‍घोषणा द्वारा इस आशय की घोषणा कर सकेगा।
7[(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्‍घोषणा--


1 संविधान (अड़तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 7 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित ।
2 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) ''भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
3 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित ।
4 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित।
5 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।
6 संविधान (उनसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1988 की धारा 40 द्वारा अंतःस्थापित। यह इस अधिनियम के प्रारंभ से, अर्थात्‌ 1988 के मार्च के तीसवें दिन से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात्‌ प्रवृत्त नहीं रहेगी।
7 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।


(क) किसी पश्चात्‌‌वर्ती उद्‍घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी या परिवर्तित की जा सकेगी;
(ख) संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी;
(ग) दो मास की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है:


परन्तु यदि ऐसी कोई उद्‍घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोकसभा का विघटन उपखंड (ग) में निर्दिष्ट दो मास की अवधि के दौरान हो जाता है और यदि उद्‌घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्‌घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो उद्‌घोषणा उस तारीख से, जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात्‌ प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्‍घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।


(3) उस अवधि के दौरान, जिसमें खंड (1) में उल्लिखित उद्‍घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबंधी ऐसे सिद्धांतों का पालन करने के लिए निदेश देने तक, जो निदेशों में विनिर्दिष्ट किए जाएँ, और ऐसे अन्य निदेश देने तक होगा जिन्हें राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिए देना आवश्य क और पर्याप्त समझे।


(4) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,--
(क) ऐसे किसी निदेश के अंतर्गत--
(i) किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के वेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने वाला उपबंध;
(ii) धन विधेयकों या अन्य ऐसे विधेयकों को, जिनको अनुच्छेद 207 के उपबंध लागू होते हैं, राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित किए जाने के पश्चात्‌ राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के लिए उपबंध, हो सकेंगे;


(ख) राष्ट्रपति, उस अवधि के दौरान, जिसमें इस अनुच्छेद के अधीन की गई उद्‍घोषणा प्रवृत्त रहती है, संघ के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के, जिनके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश हैं, वेतनों और भत्तों में कमी करने के लिए निदेश देने के लिए सक्षम होगा।
1***


1 संविधान (अड़तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 8 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (5) अंतःस्थापित किया गया था और उसका संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) लोप किया गया।





Comments Sachin on 23-07-2020

Aapat upbandh kis desh se liya gya h

Shashi on 23-07-2020

Sabse jayada bar rastpati sasan kaha par lagu huaa





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment