संगीत के प्रकार
शास्त्रीय संगीत में समय का महत्व
शास्त्रीय संगीत में समय का महत्व
राग परिचय
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में समयानुसार गायन प्रस्तुत करने की पद्धति है, तथा उत्तर भारतीय संगीत-पद्धति में रागों के गायन-वादन के विषय में समय का सिध्दांत प्राचीन काल से ही चला आ रहा है, जिसे हमारे प्राचीन पंडितों ने दो भागों में विभाजित किया है। प्रथम भाग दिन के बारह बजे से रात्रि के बारह बजे तक और दूसरा रात्रि के बारह बजे से दिन के बारह बजे तक माना गया है। इसमें प्रथम भाग को पूर्व भाग और दुसरे को उत्तर भाग कहा जाता है। इन भागों में जिन रागों का प्रयोग होता है, उन्हें सांगीतिक भाषा में “पूर्वांगवादी राग” और “उत्तरांगवादी राग” भी कहते है। जिन रागों का वादी स्वर जब सप्तक के पूर्वांग अर्थात
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संगीत के स्वर
संगीत के प्रकार
शास्त्रीय संगीत के राग
संगीत की परिभाषा
भारतीय शास्त्रीय संगीत
शास्त्रीय संगीत की शैलियाँ
भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास
शास्त्रीय संगीत मराठी
चमत्कार या लुप्त होती संवेदना एक लेख
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संगीत और हमारा जीवन
गीत स्वयं की अनुभूति है, स्वयं को जानने की शक्ति है एवं एक सौन्दर्यपूर्ण ध्वनि कल्पना है जिसका सृजन करने केलिए एक ऐसे अनुशासन की सीमा को ज्ञात करना है, जिसकी सीमा में रहते हुए भी असीम कल्पना करने का अवकाश है। मनुष्य अनुशासन की परिधि में रहकर संगीत को प्रकट करता है, किन्तु प्रत्येक व्यक्ति के विचार, संवेदना, बुद्धिमता एवं कल्पना में विविधता होने के कारण प्रस्तुति में भी विविधता अवश्य होती है। इसी प्रकार देश एवं काल क्रमानुसार संगीत के मूल तत्व समाज में उनके प्रयोग और प्रस्तुतिकरण की शैलियों में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। संगीत कला में भी प्रत्येक गुण की राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक अवस्थाओं
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संगीत की जानकारी
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संगीत संबंधी कुछ परिभाषा
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राग परिचय
संगीत- बोलचाल की भाषा में सिर्फ़ गायन को ही संगीत समझा जाता है मगर संगीत की भाषा में गायन, वादन व नृत्य तीनों के समुह को संगीत कहते हैं। संगीत वो ललित कला है जिसमें स्वर और लय के द्वारा हम अपने भावों को प्रकट करते हैं। कला की श्रेणी में ५ ललित कलायें आती हैं- संगीत, कविता, चित्रकला, मूर्तिकला और वास्तुकला। इन ललित कलाओं में संगीत को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
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हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में प्रचलित गायन के प्रकार
हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में प्रचलित गायन के प्रकार
भारतीय शास्त्रीय संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में निम्न गायन के प्रकार प्रचलित हैं - ध्रुवपद, लक्षण गीत, टप्पा, सरगम, कव्वाली, धमार, ठुमरी, तराना, भजन, गीत, खयाल, होरी, चतुरंग, गज़ल, लोक-गीत, नाट्य संगीत, सुगम संगीत, खटके और मुरकियाँ ।
ध्रुवपद-
गंभीर सार्थ शब्दावली, गांभीर्य से ओतप्रोत स्वर संयोजन द्वारा जो प्रबन्ध गाये जाते हैं वे ही हैं ध्रुवपद। गंभीर नाद से लय के चमत्कार सहित जो तान शून्य गीत हैं वह है ध्रुवपद। इसमें प्रयुक्त होने वाले ताल हैं - ब्रम्हताल, मत्तताल, गजझंपा, चौताल, शूलफाक आदि। इसे गाते समय दुगनी चौगनी आड़ी कुआड़ी बियाड़ी लय का काम करना होता है।
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शास्त्रीय संगीत की शैलियाँ
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ध्रुवपद
लक्षण गीत
टप्पा
सरगम
कव्वाली धमार
ठुमरी
तराना
भजन
गीत
खयाल अथवा ख्याल
होरी
चतुरंग अथवा चतरंग
ग़ज़ल
खटके और मुरकियाँ
लोक गीत
नाट्य संगीत
संगीत का विकास और प्रसार
संगीत का विकास और प्रसार
भारतीय शास्त्रीय संगीत
हिन्दू मतानुसार मोक्ष प्राप्ति मानव जीवन का लक्ष्य है। नाद-साधन (म्यूजिकल साउँड) भी मोक्ष प्राप्ति का ऐक मार्ग है। नाद-साधन के लिये ऐकाग्रता, मन की पवित्रता, तथा निरन्तर साधना की आवश्यक्ता है जो योग के ही अंग हैं। आनन्द की अनुभूति ही संगीत साधना की प्राकाष्ठा है। संगीत के लिये भक्ति भावना अति सहायक है इस लिये संगीत आरम्भ से ही मन्दिरों, कीर्तनों (डिस्को), तथा सामूहिक परम्पराओं के साथ जुडा रहा है। भारत का अनुसरण करते हुये पाश्चात्य देशों में भी संगीत का आरम्भ और विकास चर्च के आँगन से ही हुआ था फिर वह नाट्यशालाओं में विकसित हुआ, और फिर जनसाधारण के साथ लोकप्रिय संगीत (पापुलर अथवा पाप म्यूज़िक)
भारतीय संगीत के प्रकार -
भारतीय संगीत को सामान्यत: 3 भागों में बाँटा जा सकता है:
शास्त्रीय संगीत - इसको मार्ग भी कहते हैं।
उपशास्त्रीय संगीत
सुगम संगीत
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख पद्धतियां हैं -
हिन्दुस्तानी संगीत - जो उत्तर भारत में प्रचलित हुआ।
कर्नाटक संगीत - जो दक्षिण भारत में प्रचलित हुआ।
हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मन्दिरों में। इसी कारण दक्षिण भारतीय कृतियों में भक्ति रस अधिक मिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत में श्रृंगार रस।
उपशास्त्रीय संगीत में ठुमरी, टप्पा, होरी, कजरी आदि आते हैं।
सुगम संगीत जनसाधारण में प्रचलित है जैसे -
भजन
भारतीय फ़िल्म संगीत
ग़ज़ल
भारतीय पॉप (Pop) संगीत
लोक संगीत
Sr sangeet me surityo ki sankhya kitni hoti h
Sangit ke svar ke kitne prakar ke hote hai
Sangeet kitne prakar ke hote h
Sangit ratanakar ke lekhak koon hai
वाघो के कितने प्रकार होते है
वाघों के कितने प्रकार है
शास्त्रीय संगीत में लय के कितने प्रकार होते है
संगीत के कितने भाग होते हैं
Sangit kitna ptacar ka ho ta hai or un ka kya phiyad hai
वाघो के कितने प्रकार है
Gyara rad ka sangeet man kesy prayog kare
Music kise kahte hai
sangeet ke Swar kitne Hote Hain
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Sangeet ketne prakat ka hota h espat ke kiye