Bhumi Sanrakhshan Par Nibandh भूमि संरक्षण पर निबंध

भूमि संरक्षण पर निबंध



Pradeep Chawla on 21-10-2018

‘जीवेम शरदः शतम्’ - हम सौ वर्ष तक स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं। ‘सुजलाम् सुफलाम् शस्य श्यामलां’ धरती माँ को हमारे भारत देश में वंदनीय कहा गया है क्योंकि भूमि ही तो सम्पूर्ण जीव-जगत को जीवनदान देती है। यही कारण है कि हमारे जीवन का विकास सीधे-सीधे हमारे भू-संसाधनों से जुड़ा है। भूमि प्रकृति का वह अनुपम उपहार जो बुनियादी रूप से हमारे जीवन के विकास हेतु अनिवार्य है। हमारे वैदिक ग्रन्थों में भूमि की पर्याप्तता, सतत उपलब्धता और उत्पादकता वृद्धि हेतु अनेक प्रार्थनाएँ की गई हैं। हमारे अनेक मंत्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है और मानव सभ्यता के विकास का इतिहास इस बात का साक्षी है कि भूमि सर्वोपरि है।

धरती फसलों के रूप में सोना उगलती है लेकिन पैदावार ज्यादा लेने के मोह में अब अधिकांश लोग भू-प्रबंध पर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता नहीं समझते। कितने स्वार्थी हो गये हैं हम? सतत एवं व्यापक खेती और अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के प्रयोग से थकी-हारी धरती आखिर कब तक हमारा साथ देगी? लेकिन हम बेखबर हैं कि हमारी मिट्टी खराब हो रही है। पानी अब खुद पानी माँग रहा है और प्रदूषित हो रहा है। कारण है हमारी घोर लापरवाही, उदासीनता, असावधानी और अनभिज्ञता। अब वक्त आ गया है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर इन्हें बचाएँ। तभी हमारा जीवन भी बच सकेगा।

हम जानते हैं कि भू-संरक्षण के मामले में हमसे चूक हो रही है किन्तु इतिहास गवाह है कि जब-जब भू-संसाधनों को संरक्षित नहीं किया गया, उनका अति उपयोग या जमकर दुरुपयोग किया गया, तब-तब सभ्यताओं का विनाश हुआ। मिट्टी, पानी, हरियाली, जीव-जन्तु, फसलें, पशु चारा, रेशे, ईंधन, औषधियाँ, फल-फूल, और सब्जी से लेकर रोटी, कपड़ा और मकान आदि की हमारी सभी आवश्यकताएँ भूमि की सहायता से पूरी होती हैं। हमारे सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भी भूमि संसाधन बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं। अतः हमारे जीवन के विकास में भूमि की महत्ता सर्वविदित है। पर्याप्त और उर्वर भूमि के अभाव में प्रगति तो दूर हमारा जीना भू दूभर हो जाता है।

निरन्तर बढ़ती जनसंख्या के कारण भूमि की माँग का ग्राफ तेजी से ऊपर की ओर जा रहा है। गाँव, खेत, शहर सब बढ़ रहे हैं। विभिन्न प्रयोजनों के लिये भूमि की माँग दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। दूसरी ओर निरन्तर जंगलों का सफाया, अनियोजित विस्तार, बाढ़, सूखे आदि से भूमि संसाधनों का अपघटन हो रहा है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि अब प्रति व्यक्ति भूमि-संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग तो हो लेकिन किसी भी दृष्टि से उनका क्षरण अर्थात भूमि संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता में ह्रास न होने पाए क्योंकि हमारे जीवन की विकास-यात्रा भूमि पर ही निर्भर करती है।

यही कारण है कि विश्व के सभी विकासशील देशों में भूमि संरक्षण और भू-उपयोग जैसे मुद्दे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चिन्ता और चिन्तन के विषय बन गये हैं। भारत भी इस दृष्टि से अपवाद नहीं है। आमतौर पर भूमि का उपयोग और भूमि की उपयोगिता, इन दोनों में अंतर को नजरअंदाज नहीं किया जा सका है जबकि भूमि संसाधनों के संरक्षण, प्रबंध एवं विकास की दृष्टि से न केवल किसान भाइयों बल्कि प्रत्येक आम आदमी को इन जरूरी बातों से वाकिफ होना चाहिये। अतः जन-जाग्रति बेहद जरूरी है।

अनुचित ढंग से उपयोग होने अथवा करने के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति घट रही है। भूमि-संरक्षण की उपेक्षा का परिणाम है कि बीस करोड़ से भी अधिक लोग आज भी हमारे देश में भूख की चपेट में हैं। उन्हें दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है। विश्व कृषि एवं खाद्य संगठन ने इसे गम्भीर मानते हुये इस मुद्दे पर अपनी ताजा रिपोर्ट में चिन्ता प्रकट की है।

साठ के दशक में हम पेट भरने के लिये भी दूसरों पर निर्भर थे। आयातित खाद्यान्न खाते थे। हरित क्रान्ति के कारण आज हम आत्मनिर्भर हैं लेकिन प्रतिदिन 50 हजार की दर से हमारी जनसंख्या बढ़ रही है। आर्थिक सर्वेक्षण 1996 के आँकड़ों के अनुसार 1995 की तुलना में खाद्यान्न का उत्पादन 56 लाख टन कम हुआ था। विश्व कृषि पुर्वानुमान 2010 के रिपोर्ट के अनुसार कृषि में अवसर और कम होंगे। भविष्य की जटिल चुनौतियों का सामना करने क लिये जो रणनीति बनाई जाए उसमें भूमि-संसाधनों के संरक्षण का मुद्दा प्रमुख होना चाहिये। विशेष रूप से लोगों में नवचेतना एवं जाग्रति लाने पर बल देना चाहिये ताकि भूमि-संसाधनों के संरक्षण से सम्बन्धित मोर्चे पर केवल सरकारी प्रयास ही दिखाई न दें।

आम भाषा में कारगर ढ़ंग से लोगों को कर्तव्यबोध कराया जाए। इस दिशा में जनसंचार के विभिन्न माध्यम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बदली परिस्थितियों एवं समय के प्रभाव से भूमि संसाधनों में व्यापक परिवर्तन और क्षरण हुआ है और हो रहा है। साथ ही संरक्षण पर समुचित ध्यान न दिये जाने के कारण यह समस्या अब और भी गम्भीर तथा ध्यान देने योग्य बनती जा रही है। भू-क्षरण, ऊसर-बीहड़ भूमि तथा जल भराव की समस्या से निबटना सरल कार्य नहीं है। इन्हें रोकने और कम करने के लिये यह जरूरी है कि हम सब भूमि-संसाधनों के संरक्षण हेतु सदैव चेष्टा करते रहें। किन्तु इसके लिये यह जानना जरूरी है कि उर्वरकता, प्रजनन क्षमता एवं जीवनदायिनी शक्ति बनाये रखने हेतु भूमि के संरक्षण एवं प्रबंध और विकास हेतु हमें क्या करना चाहिये और हम क्या-क्या कर सकते हैं, ये बातें सभी को अच्छी तरह से पता हों। फिर मार्गदर्शन और सतत प्रेरणा का सिलसिला अनवरत चलना चाहिये। इस विषय पर एक ‘थिंक टैंक’ बनाये जाने की जरूरत है क्योंकि भूमि संरक्षण हेतु चल रहे सरकारी प्रयासों की सफलता हेतु जरूरी है कि हम सब उन उपायों को कारगर बनाने एवं उनके रख-रखाव में अपना पूर्ण सहयोग दें।

आवश्यकता इस बात की है कि लोगों की भावनाएँ जगाई जाएँ। धरती को तो हमारे देश में ‘माँ’ का दर्जा दिया गया है। फिर भला अपनी ‘माँ’ को कौन नहीं बचाना चाहेगा? जो जहाँ जिस रूप में है, जिस पद पर है, अपना योगदान स्वेच्छा से अवश्य करेगा। इसी की आज जरूरत है और यही समय की माँग है। वक्त का भी यही तकाजा है क्योंकि भूमि-संसाधनों का संरक्षण जीवन के विकास के लिये अत्यावश्यक है।

यह तथ्य देखकर ही दिल दहल उठता है कि उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता सन 1951 में 0.46 हेक्टेयर थी जो 1991 में घटकर 0.21 हेक्टेयर रह गई तथा सन 2000 में यह घटकर 0.18 हेक्टेयर हो जाने का अनुमान है। इसी प्रकार कृषि भूमि 0.25 हेक्टेयर से घटकर 0.12 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति रह गई है तथा इस सदी के अंत तक उसके 0.10 हो जाने का अनुमान है। उत्तर प्रदेश के कुल भौगोलिक भू-भाग में से करीब 46 प्रतिशत किसी न किसी रूप में अपघटित हो रहा है। देश की 40 लाख हेक्टेयर भूमि बीहड़ में परिवर्तित हो चुकी है और इसका एक-तिहाई हिस्सा उत्तर प्रदेश में है। यदि इसके फैलाव पर नियन्त्रण न हुआ तो यह सिलसिला आगे चलता रहेगा और 21वीं सदी में अनेक नदियों के जल मुक्त क्षेत्र बीहड़ों की चपेट में आ जाएँगे। वर्षा और हवा से देश भर में करीब 533.04 करोड़ टन मिट्टी का कटाव प्रतिवर्ष होता है। 60 प्रतिशत भाग एक स्थान से दूसरे स्थान पर 30 प्रतिशत भाग नदियों द्वारा समुद्रों में तथा शेष 10 प्रतिशत झीलों, जलाशयों तथा नदियों के पेट में जमा हो रहा है। हमारे देश में भूमि कटाव की दर 16.55 टन वार्षिक है जबकि औसतन इसे 4.50 से 11.20 टन वार्षिक होना चाहिये।

पर्वतीय, मैदानी, तथा वन क्षेत्र में मृदा कटाव की स्थिति क्रमशः 20 से 40, 5 से 20 तथा 20 से 60 टन प्रति हेक्टेयर है। इसी प्रकार बंजर, बीहड़ तथा चारागाहों में क्रमशः 4 से 70, 10 से 20 तथा 20 से 40 टन प्रति हेक्टेयर की गति से मृदा ह्रास हो रहा है। विश्व कृषि एवं खाद्य संगठन के आँकड़े हमें चौंकाते हैं क्योंकि भूमि संसाधनों का क्षरण जहाँ पड़ोसी देशों जैसे चीन, पाकिस्तान, तथा श्रीलंका में मात्र 20 प्रतिशत, 26 प्रतिशत तथा 10 प्रतिशत हुआ है वहीं हमारे देश में यह सर्वाधिक यानी 53 प्रतिशत हुआ है। हमारे देश में 998.76 लाख हेक्टेयर तथा उत्तर प्रदेश में 68.41 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र तथा 19.94 लाख हेक्टेयर पर अकृष्य भूमि समस्याग्रस्त है जबकि देश में 429.48 लाख हेक्टेयर विशेष समस्याग्रस्त भूमि है। कुल मिलाकर देश में 1750.20 तथा प्रदेश में 135.75 लाख हेक्टेयर से भी अधिक भूमि समस्याग्रस्त है। इस सबका कुफल यह है कि चाह कर भी हम अपना कृषि उत्पादन नहीं बढ़ा सके हैं और भूख, कुपोषण, गरीबी, बाढ़ आदि विभिन्न समस्याओं के शिकार हो रहे हैं। भूमि का अपघटन हो रहा है। आखिर कैसे पूरा कर पाएँगे हम 21वीं सदी में सभी के लिये पर्याप्त और पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने का सपना? अतः समूचे अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगता दिखाई दे रहा है। इस हेतु जरूरी है कि भूमि को बचाया जाए। ऊसर सुधार हेतु किसान भाई ढेंचा बोएं तथा जिप्सम का प्रयोग करें। चक-मार्गों तथा बनाये गये बाँधों की हिफाजत का ध्यान रखें।

यह सच है कि केवल व्यवस्था को कोसते रहने अथवा चिन्ता करने से कुछ नहीं होने वाला। आवश्यकता इस बात की है कि तत्काल पहल करके प्रयास रूपी दीपक जलाएँ। उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश के कुल 197.96 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में से 172.32 लाख हेक्टेयर हिस्से में कृषि की जाती है। इसके अतिरिक्त 48.93 लाख हेकटेयर बंजर क्षेत्र है जिसे सुधार कर उत्पादोन्मुखी बनाया जा सकता है। ऊसर तथा बीहड़ सुधार, बाढ़, नदी, जल समेट विकास कार्य, बारानी एवं सूखाग्रस्त विकास तथा अतिरिक्त कटावग्रस्त मैदानी क्षेत्रों में जो कार्य सरकार द्वारा किया जा रहा है। उसकी उपलब्धियाँ कम नहीं हैं। आगे वे और अधिक हो सकती हैं बशर्ते व्यापक जन सहयोग तथा जन भागीदारी प्राप्त हो। सभी की सहभागिता से दुरूह कार्य भी सरल हो जाते हैं। भूमि संसाधनों के संरक्षण में हमें भी अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है क्योंकि सरकार तो केवल मदद कर सकती है, रास्ता दिखा सकती है, मातृभूमि को बचाना तो हमें है। कृषि विज्ञान केन्द्र- कृषि विश्वविद्यालय और प्रसार कार्यकर्ता इसके लिये अनुकूल वातावरण बना सकते हैं।

मृदा ह्रास तथा जल अपवाह में कमी लाई जा सकती है। बढ़ते बीहड़ रुक सकते हैं, कृषि का उत्पादन तथा फसलों की सघनता बढ़ सकती है बशर्ते भूमि संरक्षण हेतु कारगर उपाय किये जाएँ और वृक्षारोपण, वनीकरण तथा ऊसर सुधार आदि पर विशेष ध्यान दिया जाए। भूमि की बढ़ती माँग, अधिक उपयोग तथा पर्यावरण के सन्तुलन पर हम समन्वित दृष्टिकोण से विचार करें तो वन, चारागाह, तथा कृषि क्षेत्र में वृद्धि और बंजर कृषि अयोग्य भूमि एवं परती क्षेत्र में कमी लाई जा सकती है। यदि इच्छाशक्ति हो तो यह काम असम्भव नहीं है। उत्तर प्रदेश में सन 1963 से प्रभावी अधिनियम लागू है। ऊसर सुधार निगम भूमि उपयोग परिषद तथा कृषि का भूमि संरक्षण अनुभाग है। देहरादून में भूमि-संरक्षण की उच्चस्तरीय संस्था है। केन्द्र एवं राज्य सरकार की विभिन्न योजनाएँ हैं। सुव्यवस्थित ढाँचा और विपुल धनराशि भी उपलब्ध है लेकिन लोगों में व्याप्त अशिक्षा और उदासीनता अवरोध हैं। जन-जागरुकता के अभाव में सारे प्रयास अपर्याप्त लगते हैं। प्रतिवर्ष नवम्बर के दूसरे सप्ताह में राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जाते हैं। विभिन्न आयोजन होते हैं ताकि लोगों में भू-संरक्षण हेतु नई सोच और समझ पैदा हो, जन-जाग्रति आये और सरकारी स्तर पर किये गये प्रयास सफल और सार्थक हों। सुरसा मुख की भांति बढ़ते नगर और कारखाने तेजी से धरती को निगल रहे हैं। परिणामस्वरूप भूमि घटती जा रही है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देश की 15.8 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को चारागाहों में परिवर्तित करने के लिये अनेक पद्धतियाँ विकसित की हैं। इसके तहत बंजर भूमि पर वृक्ष, घास और फलदार पौधे एक साथ लगाकर वर्ष भर न केवल पोषक हरा चारा उपलब्ध होगा बल्कि किसानों को फल और जलाऊ लकड़ी भी प्राप्त हो सकेगी। गौरतलब है कि देश में इस समय पशुचारे की माँग की तुलना में आपूर्ति 40 प्रतिशत कम है और पशुओं की बढ़ती आबादी के कारण यह कमी और बढ़ती जा रही है। कृषक परिषद की इन नई पद्धतियों को अपनाएँ तो उनकी भूमि की उर्वराशक्ति तो बढ़ेगी ही, साथ ही चारे की पोषकता तथा आपूर्ति में भी वृद्धि होगी।

सुझाव


भू-क्षरण को कम एवं नियन्त्रित करने, भूमि की जलधारण क्षमता में वृद्धि करने, मिट्टी की उपजाऊ-शक्ति बनाये रखने, भूमि में नमी को संरक्षित करने तथा भूमिगत जल के गहराते संकट को दूर करने के सम्बन्ध में प्रेरक स्लोगन एवं काव्यात्मक नारे कपड़े के बैनर्स, स्टिकर्स तथा दीवार पर लेखन (वाल राइटिंग) द्वारा लोकप्रिय बनाये जाएँ। खासकर छात्रों, ग्रामीण युवाओं और महिलाओं की उसमें भागीदारी बढ़ायी जाए। सक्रिय गैर-सरकारी संगठनों तथा विभिन्न प्रचार माध्यमों का उपयोग किया जाए। जन जागरुकता हेतु नुक्कड़ नाटकों, मेलों प्रदर्शनियों, संगोष्ठियों सभाओं के आयोजन हेतु अभियान चलाया जाए। पेशेवर लेखकों से प्रचार कराया जाए। पुरस्कार योजना द्वारा भूमि-संसाधन के संरक्षण क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों एवं संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जाए ताकि दूसरे लोग उनसे प्रेरणा लें और एक प्रकार का आत्म प्रेरणा का क्रम शुरू हो सके।

अपनी वसुंधरा को बचाने हेतु स्वेच्छा से दान देने वाले का आह्वान हो और प्राप्त दान पर आयकर से छूट दिलाने का प्रयास किया जाए ताकि भू-संरक्षण निधि की स्थापना की जा सके। कम बजट से अधिकतम प्रचार हेतु संचार विशेषज्ञों की सलाह ली जाए। भूमि-संरक्षण से सम्बन्धित सभी एजेंसियों की समन्वित बैठक में नई रणनीति बनाई जाए। सार्वजनिक रूप से भी सुझाव आमन्त्रित किये जाएँ। अखबारों में सतत लेखन तथा रेडियो, टीवी प्रसारण द्वारा लोगों को चेताया जाए कि यदि संरक्षण नहीं हुआ तो भूमि का क्षरण होता रहेगा और उसके भयंकर दुष्परिणाम होंगे। उन्हें बताया जाए कि उन्हें क्या करना है, वे क्या-क्या कर सकते हैं। इन सब प्रयासों से जागरुकता बढ़ेगी और परिणाम चमत्कारी एवं आश्चर्यजनक रूप से लाभकारी होंगे। आवश्यकता इस बात की है कि लोगों की भावनाएँ जगाई जाएँ। धरती को तो हमारे देश में ‘माँ’ का दर्जा दिया गया है। फिर भला अपनी ‘माँ’ को कौन नहीं बचाना चाहेगा? जो जहाँ जिस रूप में है, जिस पद पर है, अपना योगदान स्वेच्छा से अवश्य करेगा। इसी की आज जरूरत है और यही समय की माँग है। वक्त का भी यही तकाजा है क्योंकि भूमि-संसाधनों का संरक्षण जीवन के विकास के लिये अत्यावश्यक है।




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Comments Garam sea on 30-01-2023

Red sea

Kunal kumar on 24-01-2023

Vhikantola gav ke nivasi te

Ram on 07-12-2022

Bhumi sanrakshan kya hai or main line


Diksha Delu on 28-10-2022

भू संरक्षण पर एक लेख लिखिए

Pooja on 16-08-2022

Bhumi ke upay

Ratna Priya on 14-09-2020

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Aashu raj on 27-08-2020

मृदा संरक्षण पर निबंध लिखें




मात्र भूम on 13-09-2018

मात्र भूम को खुशहाल



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