Shikshan Ka Arth Aivam Paribhasha शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा

शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा



Pradeep Chawla on 09-10-2018


शिक्षण एवं अध्ययन, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बहुत से कारक शामिल होते हैं। सीखने वाला जिस तरीके से अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते हुए नया ज्ञान, आचार और कौशल को समाहित करता है ताकि उसके सीख्नने के अनुभवों में विस्तार हो सके, वैसे ही ये सारे कारक आपस में संवाद की स्थिति में आते रहते हैं।


पिछली सदी के दौरान शिक्षण पर विभिन्न किस्म के दृष्टिकोण उभरे हैं। इनमें एक है ज्ञानात्मक शिक्षण, जो शिक्षण को मस्तिष्क की एक क्रिया के रूप में देखता है। दूसरा है, रचनात्मक शिक्षण जो ज्ञान को सीखने की प्रक्रिया में की गई रचना के रूप में देखता है। इन सिद्धांतों को अलग-अलग देखने के बजाय इन्हें संभावनाओं की एक ऐसी श्रृंखला के रूप में देखा जाना चाहिए जिन्हें शिक्षण के अनुभवों में पिरोया जा सके। एकीकरण की इस प्रक्रिया में अन्य कारकों को भी संज्ञान में लेना जरूरी हो जाता है- ज्ञानात्मक शैली, शिक्षण की शैली, हमारी मेधा का एकाधिक स्वरूप और ऐसा शिक्षण जो उन लोगों के काम आ सके जिन्हें इसकी विशेष जरूरत है और जो विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आते हैं।

रचनात्मकता का सिद्धांत

रचनात्मकता शिक्षण की एक ऐसी रणनीति है जिसमें विद्यार्थी के पूर्व ज्ञान, आस्थाओं और कौशल का इस्तेमाल किया जाता है। रचनात्मक रणनीति के माध्यम से विद्यार्थी अपने पूर्व ज्ञान और सूचना के आधार पर नई किस्म की समझ विकसित करता है।


इस शैली पर काम करने वाला शिक्षक प्रश्न उठाता है और विद्यार्थियों के जवाब तलाशने की प्रक्रिया का निरीक्षण करता है, उन्हें निर्देशित करता है तथा सोचने-समझने के नए तरीकों का सूत्रपात करता है। कच्चे आंकड़ों, प्राथमिक स्रोतों और संवादात्मक सामग्री के साथ काम करते हुए रचनात्मक शैली का शिक्षक, छात्रों को कहता है कि वे अपने जुटाए आंकड़ों पर काम करें और खुद की तलाश को निर्देशित करने का काम करें। धीरे-धीरे छात्र यह समझने लगता है कि शिक्षण दरअसल एक ज्ञानात्मक प्रक्रिया है। इस किस्म की शैली हर उम्र के छात्रों के लिए कारगर है, यह वयस्कों पर भी काम करती है।


परिदृश्


ब्रूनर के सैद्धांतिक ढांचे में एक प्रमुख विचार यह है कि शिक्षण एक ऐसी सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें सीखने वाला अपने पूर्व व वर्तमान ज्ञान के आधार पर नए विचार या अवधारणाओं को रचता है। सीखने वाला सूचनाओं को चुनकर उनका रूपांतरण करता है, प्रस्थापनाएं बनाता है, निर्णय लेता है और ऐसा करते समय वह एक ज्ञानात्मक ढांचे पर भरोसा करता है। ज्ञानात्मक संरचनाएं (योजना, मानसिक प्रारूप) अनुभवों को संगठित कर सार्थक बनाती हैं और व्यक्ति को 'उपलब्ध सूचनाओं' के पार जाने का मौका देती हैं।


जहां तक निर्देशों का सवाल है, तो निर्देशक को छात्रों को सिद्धांतों की खुद खोज करने के लिए प्रोत्साहित करनी चाहिए। निर्देशक और छात्र को सक्रिय संवाद की स्थिति में होनी चाहिए ।
(सुकरात का सिद्धांत) निर्देशक का काम शिक्षण संबंधी सूचना को छात्र की समझदारी के मुताबिक रूपांतरित करना होता है। पाठ्यक्रम को कुंडलाकार तरीके से विकसित किया जाना चाहिए ताकि पढ़ने वाला अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर लगातार और ज्यादा सीखता रहे।


ब्रूनर (1966) का कहना है निर्देशन के सिद्धांत को चार प्रमुख पक्षों पर केन्द्रित होनी चाहिए:
1. सीखने की ओर झुकाव,
2. किसी भी ज्ञान की इकाई को किस तरीके से पुनर्संरचित किया जाए जिससे कि सीखने वाला उसे सबसे आसानी से आत्मसात कर सके,
3. शिक्षण सामग्री को प्रस्तुत करने का सबसे प्रभावी क्रम,
4. पुरस्कार और दंड का स्वरूप,


ज्ञान की पुनर्संरचना ऐसे तरीके से की जानी चाहिए जिससे नई प्रस्थापनाएं आसान बन सकें और सूचना को आसानी से परोसा जा सके।


हाल ही में ब्रूनर ने (1986, 1990, 1996) अपने सैद्धांतिक ढांचे को विस्तार देते हुए शिक्षण के सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं समेत कानूनी कार्रवाइयों को भी इसमें समाहित किया है।


संभावना/प्रयोग


ब्रूनर का रचनात्मकता का सिद्धांत, ज्ञान के अध्ययन पर आधारित शिक्षण दिशा-निर्देशों के लिए एक सामान्य ढांचे का कार्य करता है। सिद्धांत का अधिकांश प्रयास बाल विकास शोध (खासकर पियाजे) से जाकर जुड़ता है। ब्रूनर (1960) के सिद्धांत में जिन विचारों को रेखांकित किया गया है, वे विज्ञान और गणित शिक्षण पर केंद्रित एक सम्मेलन से निकले थे। ब्रूनर ने अपना सिद्धांत छोटे बच्चों के लिए गणित और सामाजिक विज्ञान कार्यक्रमों के संदर्भ में प्रतिपादित किया था। तर्क प्रक्रिया के लिए एक ढांचे के विकास को ब्रूनर, गुडनाउ और ऑस्टिन (1951) के काम में विस्तार से वर्णित किया गया है। ब्रूनर (1983) बच्चों में भाषा शिक्षण पर जोर देते हैं।


यह ध्यान देने योग्य बात है कि रचनात्मकता का सिद्धांत दर्शन और विज्ञान में एक व्यापक अवधारणात्मक संरचना है और ब्रूनर का सिद्धांत इसके सिर्फ एक विशिष्ट परिप्रेक्ष्य को ही सामने लाता है।


उदाहरण: यह उदाहरण ब्रूनर (1973) से लिया गया है।


“'अभाज्य अंकों के ज्ञान को एक बच्चा ज्यादा आसानी से आत्मसात कर लेता है जब वह रचनात्मक तरीके से यह सीखता है कि संपूर्ण पंक्तियों के भरे होने पर कुछ फलियों को उसमें नहीं डाला जा सकता। ऐसी फलियों की संख्या को या तो एक फाइल या अपूर्ण पंक्तियों में डाला जा सकता है जहां हमेशा पूरी पंक्ति को भरने में एक अतिरिक्त या एक कम फली रह जाती है। तब जाकर बच्चा समझता है कि इन्हीं पंक्तियों को अभाज्य कहते हैं। यहां से बच्चे के लिए एक से अधिक टेबल पर जाना आसान हो जाता है, जहां वह अभाज्य संख्याओं में घटक निकालने, गुणनफल आदि को साफ-साफ देख सकता है।”


सिद्धांत


1. दिशा-निर्देश अनुभवों और उन संदर्भों से जुड़े होने चाहिए जिससे बच्चा सीखने को तत्पर हो सके।


2. दिशा-निर्देश संरचित होने चाहिए ताकि ये बच्चों को आससानी से समझ में आ सकें। (कुंडलाकार ढांचा)


3. दिशा-निर्देश ऐसे होने चाहिए जिनके आधार पर अनुमान लगाए जा सकें और रिक्त स्थानों को भरा जा सके (यानी प्रदत्त सूचना का अतिक्रमण संभव हो सके)




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Kushan on 12-05-2019

Shichhan ki paribhasha





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment