Satnami Samaj Ki Utpatti सतनामी समाज की उत्पत्ति

सतनामी समाज की उत्पत्ति



Pradeep Chawla on 12-05-2019

गुरू घासीदास (1756 – अंतर्ध्यान अज्ञात) ग्राम गिरौदपुरी तहसिल बलौदाबाजार जिला रायपुर में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरूजी सतनाम सतनाम धर्म जिसे आम बोल चाल में सतनामी पंथ के प्रवर्तक कहा जाता है, गुरूजी भंडारपुरी को अपना धार्मिक स्थल के रूप में संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति के साथ दिये वहाँ गुरूजी के पूर्वज आज भी निवासरत है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिभेद को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिये।



अनुक्रम



1 जीवनी

2 गुरू घासीदास की शिक्षा

2.1 सात शिक्षाएँ

3 इन्हें भी देखें

4 बाहरी कड़ियाँ



जीवनी



सन १६७२ में वर्तमान हरियाणा के नारनौल नामक स्थान पर साध बीरभान और जोगीदास नामक दो भाइयों ने सतनामी साध मत का प्रचार किया था। सतनामी साध मत के अनुयायी किसी भी मनुष्य के सामने नहीं झुकने के सिद्धांत को मानते थे। वे सम्मान करते थे लेकिन किसी के सामने झुक कर नहीं। एक बार एक किसान ने तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के कारिंदे को झुक कर सलाम नहीं किया तो उसने इसको अपना अपमान मानते हुए उस पर लाठी से प्रहार किया जिसके प्रत्युत्तर में उस सतनामी साध ने भी उस कारिन्दे को लाठी से पीट दिया। यह विवाद यहीं खत्म न होकर तूल पकडते गया और धीरे धीरे मुगल बादशाह औरंगजेब तक पहुँच गया कि सतनामियों ने बगावत कर दी है। यहीं से औरंगजेव और सतनामियों का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। जिसका नेतृत्व सतनामी साध बीरभान और साध जोगीदास ने किया था। यूद्ध कई दिनों तक चला जिसमें शाही फौज मार निहत्थे सतनामी समूह से मात खाती चली जा रही थी। शाही फौज में ये बात भी फैल गई कि सतनामी समूह कोई जादू टोना करके शाही फौज को हरा रहे हैं। इसके लिये औरंगजेब ने अपने फौजियों को कुरान की आयतें लिखे तावीज भी बंधवाए थे लेकिन इसके बावजूद कोई फरक नहीं पड़ा था। लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि सतनामी साधों के पास आध्यात्मिक शक्ती के कारण यह स्थिति थी। चूंकि सतनामी साधों का तप का समय पूरा हो गया था और वे गुरू के समक्ष अपना समर्पण कर वीरगति को प्राप्त हुए। जिन लोगों का तप पूरा नहीं हुआ था वे अपनी जान बचा कर अलग अलग दिशाओं में भाग निकले थे। जिनमें घासीदास का भी एक परिवार रहा जो कि महानदी के किनारे किनारे वर्तमान छत्तीसगढ तक जा पहुचा था। जहाँ पर संत घासीदास जी का जन्म हुआ औऱ वहाँ पर उन्होंने सतनाम पंथ का प्रचार तथा प्रसार किया। गुरू घासीदास का जन्म 1756 में रायपुर जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब और साधारण परिवार में पैदा हुए थे। उन्होंने हिन्दु धर्म की कुरीतियों पर कुठाराघात किया। क्यों कि ब्राम्हणों और मन्दिर के पुजारियों द्वारा हिन्दुओं के धार्मिक शोषण का विरोध करने के कारण उन्हें समाज से दूर करने का यही मार्ग उन लोगों को सूझा था। जिसका असर आज तक दिखाई पड रहा है। उनकी जयंती हर साल पूरे छत्तीसगढ़ में 18 दिसम्बर को मनाया जाता है।



गुरू घासीदास जातियों में भेदभाव व समाज में भाईचारे के अभाव को देखकर बहुत दुखी थे। वे लगातार प्रयास करते रहे कि समाज को इससे मुक्ति दिलाई जाए। लेकिन उन्हें इसका कोई हल दिखाई नहीं देता था। वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड पर समाधि लगाये इस बीच गुरूघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की।

गुरू घासीदास की शिक्षा



बाबा जी को ज्ञान की प्राप्ति छतीशगढ के रायगढ़ जिला के सारंगढ़ तहसील में बिलासपुर रोड (वर्तमान में)में स्थित एक पेड़ के नीचे तपस्या करते वक्त प्राप्त हुआ माना जाता है जहाँ आज गुरु घासीदास पुष्प वाटिका की स्थापना की गयी है



गुरू घासीदास बाबाजी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उन्होंने ब्राम्हणों के प्रभुत्व को नकारा और कई वर्णों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। गुरू घासीदास ने मूर्तियों की पूजा को वर्जित किया। वे मानते थे कि उच्च वर्ण के लोगों और मूर्ति पूजा में गहरा सम्बन्ध है।



गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है।

सात शिक्षाएँ



सत्गुरू घासीदास जी की सात शिक्षाएँ हैं-



(१) सतनाम् पर विश्वास रखना।



(२) जीव हत्या नहीं करना।



(३) मांसाहार नहीं करना।



(४) चोरी, जुआ से दूर रहना।



(५) नशा सेवन नहीं करना।



(६) जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना।



(७) व्यभिचार नहीं करना।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments AMAN on 10-07-2023

साध बनने के लिए क्या करना है

Chaitanya Satnami on 12-03-2022

Jay satnami

Roshan lal on 09-01-2022

Roshan


satnami chamar samaj on 12-12-2020

satnami kab saty ke Marg par Chala hai kab hinsa nahi karta kab nasha nahi karta kab chori nahi kiye kab galat kam nahi kiya

बहुत अच्छा on 28-12-2019

बहुत अच्छी जानकारी

अमन बर्मन सतनामी on 16-09-2018

सदा परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा जी ब्रह्मचारी गुरु अमर दास बाबा जी शूरवीर महान प्रतापी राजा धर्म गुरु बालक दास बाबा जी सभी गुरुओं के बताएं सिद्धांत उद्देश्य सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बना सकें ऐसे ही वाणी के माध्यम से समाज को एकता में लाने के लिए और बाबा जी का परिचय बताएं और समाज को एकता के सूत्र में बांधकर सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलने को सिखाएं
हताशा हो जीवन में अगर बैठ न तू हार कर मंजिल तो यही कही है कोशिशे बेशुमार कर सतगुरु का आशीर्वाद है तुझे आगे बढ़ता जा मंजिल तुझे निश्चित मिलेगी सत्य कर्म करता जा सत्य कर्म करता जा






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