Chand Bavadi Abhaneri चाँद बावड़ी आभानेरी

चाँद बावड़ी आभानेरी



Pradeep Chawla on 12-05-2019

अनुक्रम



1 शिल्पकला का जीवंत नमूना आभानेरी की चाँद बावडी

2 आभानेरी

3 हर्षद माता मंदिर

4 सन्दर्भ



शिल्पकला का जीवंत नमूना आभानेरी की चाँद बावडी



[[File:आभानेरी 02.JPG|thumb|चाँद बावड़ी]]



कला, संस्कृति, इतिहास एवं पर्यटन क्षेत्रों की बात की जाये, तो भारत भूमि का मुकाबला तो दूर, कोई आस-पास भी खडा हुआ नजर नहीं आता। अतिथि देवो भवः सभ्यता वाले हमारे देश में कदम-कदम पर ऐतिहासिक स्थल, विजय स्तम्भ, महल, मीनारें, बावडियाँ, हर स्थल से जुडी पौराणिक गाथा, हर एक स्थान का धार्मिक महत्त्व आदि देखने या सुनने में आता है। इन स्थानों पर लोगों को धर्म से जोडने के लिए अनेकों राजाओं ने मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे एवं अन्य धार्मिक स्थान बनाये हैं। इन धार्मिक-ऐतिहासिक स्थानों की उपस्थिति को अपने मन में बिठाकर लोग एक-दूसरे का सम्मान करते हैं एवं अपने बच्चों को भी इसी तरह की शिक्षा देते हैं।

आभानेरी



जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-11) पर स्थित दौसा जिले का ह्रदय कहे जाने वाले सिकंदरा कस्बे से उत्तर की ओर कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, आभानेरी गाँव। पुरातत्व विभाग को प्राप्त अवशेषों से ज्ञात जानकारी के अनुसार आभानेरी गाँव 3000 वर्ष से भी अधिक पुराना हो सकता है, इसी गाँव में स्थित है चाँद बावडी। आभानेरी गाँव का शुरूआती नाम आभा नगरी था (जिसका मतलब होता है चमकदार नगर), लेकिन कालान्तर में इसका नाम परिवर्तित कर आभानेरी कर दिया गया।

Chand Baori

About Chand Baori

ASI protection board at Chand Baori

NPM protection board at Chand Baori



चाँद बावडी



9वीं शताब्दी में निर्मित इस बावडी का निर्माण राजा मिहिर भोज (जिन्हें कि चाँद नाम से भी जाना जाता था) ने करवाया था, और उन्हीं के नाम पर इस बावडी का नाम चाँद बावडी पडा। दुनिया की सबसे गहरी यह बावडी चारों ओर से लगभग 35 मीटर चौडी है तथा इस बावडी में ऊपर से नीचे तक पक्की सीढियाँ बनी हुई हैं, जिससे पानी का स्तर चाहे कितना ही हो, आसानी से भरा जा सकता है। 13 मंजिला यह बावडी 100 फ़ीट से भी ज्यादा गहरी है, जिसमें भूलभुलैया के रूप में 3500 सीढियाँ (अनुमानित) हैं। इसके ठीक सामने प्रसिद्ध हर्षद माता का मंदिर है। बावडी निर्माण से सम्बंधित कुछ किवदंतियाँ भी प्रचलित हैं जैसे कि इस बावडी का निर्माण भूत-प्रेतों द्वारा किया गया और इसे इतना गहरा इसलिए बनाया गया कि इसमें यदि कोई वस्तु गिर भी जाये, तो उसे वापस पाना असम्भव है।

The Ancient Palace of Chand Baori

A Public God Place in Chand Baori Campus



चाँदनी रात में एकदम दूधिया सफ़ेद रंग की तरह दिखाई देने वाली यह बावडी अँधेरे-उजाले की बावडी नाम से भी प्रसिद्ध है। तीन मंजिला इस बावडी में नृत्य कक्ष व गुप्त सुरंग बनी हुई है, साथ ही इसके ऊपरी भाग में बना हुआ परवर्ती कालीन मंडप इस बावडी के काफ़ी समय तक उपयोग में लिए जाने के प्रमाण देता है। इसकी तह तक जाने के लिए 13 सोपान तथा लगभग 1300 सीढियाँ बनाई गई हैं, जो कि कला का अप्रतिम उदाहरण पेश करती हैं। स्तम्भयुक्त बरामदों से घिरी हुई यह बावडी चारों ओर से वर्गाकार है। इसकी सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों पर महिसासुर मर्दिनी एवं गणेश जी की सुंदर मूर्तियाँ भी इसे खास बनाती हैं। बावडी की सुरंग के बारे में भी ऐसा सुनने में आता है कि इसका उपयोग युद्ध या अन्य आपातकालीन परिस्थितियों के समय राजा या सैनिकों द्वारा किया जाता था। लगभग पाँच-छह वर्ष पूर्व हुई बावडी की खुदाई एवं जीर्णोद्धार में भी एक शिलालेख मिला है जिसमें कि राजा चाँद का उल्लेख मिलता है। चाँद बावडी एवं हर्षद माता मंदिर दोनों की ही खास बात यह है कि इनके निर्माण में प्रयुक्त पत्थरों पर शानदार नक्काशी की गई है, साथ ही इनकी दीवारों पर हिंदू धर्म के सभी 33 कोटी देवी-देवताओं के चित्र भी उकेरे गये हैं। बावडी की सीढियों को आकर्षक एवं कलात्मक तरीके से बनाया गया है और यही इसकी खासियत भी है कि बावडी में नीचे उतरने वाला व्यक्ति वापस उसी सीढी से ऊपर नहीं चढ सकता। आभानेरी गुप्त युग के बाद तथा आरम्भिक मध्यकाल के स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है जिसके भग्नावशेष विदेशी आक्रमण के हमले में खण्डित होकर इधर-उधर फ़ैले हुए हैं।

Harshad Mata Temple

Harshad Mata Temple

Harshad Mata

Hindu God n Goddesses on the wall of Harshad Mata Temple

हर्षद माता मंदिर



जैसा कि नाम से ही विदित है कि हर्षद यानी हर्ष से, खुशी से, उल्लास से यानी की हर्ष एवं उल्लास की देवी को ही हर्षद माता नाम दिया गया। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि जो भी सच्चे मन से माता से अर्ज करता है, उसकी मन्नत पूरी होती है एवं उसे खुशी मिलती है। इस मंदिर का निर्माण भी राजा चाँद ने ही करवाया था। दोहरी जगती पर स्थित यह पूर्वाभिमुख मंदिर महामेरू शैली में बना हुआ है (वर्तमान में मंदिर अपनी वास्तविक स्थिति में नहीं है)। इसका मण्डप एवं गर्भगृह दोनों ही गुम्बदाकार छतयुक्त हैं। इसकी दीवारों पर देवी-देवताओं व ब्राह्मणों की प्रतिमाएँ बनाई हुई हैं (जो कि अब क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं)। यहाँ शिव पंचायत, हनुमान मंदिर एवं अन्य बहुत से मंदिर भी बने हुए हैं जो कि कला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। मंदिर के गर्भग्रह में कहीं भी सीमेंट एवं चूने का प्रयोग नहीं किया गया है, जो कि भारतीय शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण प्रदर्शित करता है।

A Shivalaya in Harshad Mata Temple Campus



मंदिर के ठीक सामने बावडी होने का मतलब साफ़ है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करे, वह पहले अपने हाथ-मुँह धोए, उसके बाद मंदिर में प्रवेश करे। और यही हमारे देश की संस्कृति भी है कि जो भी व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल में प्रवेश कर रहा है, उसका तन-मन शुद्ध होना चाहिए। कभी मंदिर में छह फ़ुट की नीलम पत्थर से बनी हुई हर्षद माता की मूर्ति हुआ करती थी जो कि सन् 1968 में चोरी हो गई थी। स्थानीय निवासियों से बात करने पर ऐसा भी पता चलता है कि माता गाँव पर आने वाले संकट के बारे में पहले ही चेतावनी दे दिया करती थी जिससे स्थानीय निवासी सतर्क हो जाते थे एवं परेशानियों का बखूबी सामना कर लिया करते थे। ऐसा भी सुनने में आता है कि 1021-26 के दौरान मोहम्मद गजनवी ने मंदिर एवं इसके परिसर में तोड-फ़ोड की तथा मूर्तियों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था। वे खण्डित मूर्तियाँ आज भी मंदिर एवं बावडी परिसर में सुरक्षित रखी हुई हैं। बाद में 18वीं सदी में जयपुर महाराजा ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।



वर्तमान में चाँद बावडी एवं हर्षद माता मंदिर दोनों ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन हैं जिन्हें विभाग द्वारा चारों ओर से लोहे की मेड बनाकर संरक्षित किया गया है। साथ ही बावडी व मंदिर से सम्बंधित ऐतिहासिक जानकारियों के लिए बोर्ड भी लगाये गये हैं। सबसे अहम बात यह भी है कि यहाँ के निवासी भी पुरा सम्पदा का महत्त्व जानते हैं एवं हर्षद माता की वर्तमान मूर्ति (जिसे की पत्थर एवं सीमेंट से बनाया गया है), यहाँ के निवासियों ने ही प्रतिष्ठित करवाई थी।[1]

The Heritage View of Chand Baori

सन्दर्भ



{{टिप्पणीसूची}एक रात में तैयार हुई थी ये तीनो बावड़ी। :- भांडारेज की बावड़ी ( दौसा)राज.



जी हाँ दौसा की चाँद बावड़ी की तरह ये बावड़ी भी कहते है कि एक रात में ही बनी थी। इतना ही नहीं ये भी कहते है कि चाँद बावड़ी , आलूदा की बावड़ी और भांडारेज की बावड़ी तीनो को ही एक रात में बनाया गया और ये तीनो सुरंग से एक-दूसरे से जुड़ी हैं।



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