Belanakaar PraKshepan बेलनाकार प्रक्षेपण

बेलनाकार प्रक्षेपण



GkExams on 04-04-2022


बेलनाकार प्रक्षेप : बेलनाकार विकासनीय सतह की मदद से बनाये गये प्रक्षेप को "बेलनाकार प्रक्षेप" कहा जाता है। आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की ऐसे प्रक्षेपों में कागज का बेलन, ग्लोब पर लपेटा जाता है और उस पर अक्षांशों और देशान्तरों के रेखाजाल को प्रक्षेपित किया जाता है। बेलन को काटकर समतल धरातल पर फैलाने से बेलनाकार प्रक्षेप बनता है।


प्रक्षेप के प्रकार :


शंकु प्रक्षेप :


ग्लोब को शंकु द्वारा इस प्रकार ढँका जाता है कि शंकु किसी एक अक्षांश पर ही ग्लोब को चारों ओर स्पर्श करता हो। परंतु ध्रुव एवं विषुवत्‌ रेखा पर शंकु का स्पर्श करना संभव नहीं, क्योंकि ये विषम परिस्थितियाँ हैं।


ग्लोब को आवृत्त करने के उपरांत किसी द्युतिमान बिंदु से प्रकाश डालकर अक्षांश देशांतर रेखाओं की छाया शंकु धरातल पर प्राप्त की जाती है। इन छायारेखाओं को स्थायी बनाकर शंकु को किसी अभीष्ट देशांतर पर काट दिया जाता है और इस प्रकार समतल धरातल पर रेखाजाल प्राप्त कर लिया जाता है जिसमें अक्षांश रेखाएँ चाप रूप होती हैं और देशांतर रेखाएँ शंकु के शीर्षबिंदु पर मिलनेवाली सरल रेखाएँ होती है।


जिस अक्षांश पर शंकु ग्लोब को स्पर्श करता है उसे "मानक अक्षांश' कहते हैं। शंकु को किसी अन्य लघु वृत्त पर भी स्पर्श कराया जा सकता है। परंतु यदि शंकु का शीर्ष ध्रुव के धुर ऊपर न रहे तो अक्षांश रेखाएँ चाप रूप में नहीं होंगी और न देशांतर रेखाएँ चाप रूप में। इस ज्यामित्तीय विधि के अतिरिक्त शंकु प्रक्षेप अज्यामितीय ढंग से भी प्राप्त किए जाते हैं।


बेलनाकार प्रक्षेप :


बेलन द्वारा ग्लोब को इस प्रकार ढँक दिया जाता है कि बेलन ग्लोब को विषुवत्‌ रेखा पर चारों ओर स्पर्श करता हो। अब किसी द्युतिमान बिंदु से प्रकाश डालकर रेखाजाल प्रक्षिप्त किया जाता है। तदुपरांत बेलन को किसी विशेष देशांतर पर काटकर खोल लिया जाता है और इस प्रकार एक आयताकार रेखाजाल समतल धरातल पर बन जाता है।


इस विधि के अंतर्गत ग्लोब के केंद्र की द्युतिमान बिंदु मानते हैं। इस प्रकार प्राप्त रेखाजाल पर देशांतर रेखाएँ उत्तर से दक्षिण की ओर खिंची हुई सरल रेखाएँ होती हैं जिनकी लंबाई विषुवत्‌ रेखा के बराबर होती है। इन प्रक्षेपों में ग्लोब के केंद्र को यदि द्युतिमान बिंदु माना जाता है तो अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी ध्रुवों की ओर एक साथ बढ़ती जाती है।


बेलन को विषुवत्‌ रेखा पर स्पर्श न करते हुए अन्य किसी वृह्त वृत्त पर भी स्पर्श कराया जा सकता है, परंतु इस प्रकार खींचे हुए रेखाजाल में अक्षांश ओर देशांतर रेखाएँ वक्र होंगी। बेलनाकार प्रेक्षेपों में ध्रुव का प्रदर्शन नहीं हो पाता, क्योंकि बेलन का धरातल ध्रुव अक्ष के समांतर होने के कारण ध्रुव की छाया अन्यत्र पड़ जाती है और बेलन के धरातल पर नहीं आती।


खमध्य प्रक्षेप :


खमध्य प्रक्षेपों की विधियों में समतल धरातल को यदि एक ध्रुव पर स्पर्श करता हुआ रखते हैं तो ऐसे प्रक्षेप ध्रुवीय खमध्य (Polar Zenithal) प्रक्षेप कहलाते हैं, यदि समतल धरातल विषुवत्‌ रेखा के किसी बिंदु पर ग्लोब को स्पर्श करता है तो ऐसे प्रक्षेप विषुवत्‌रेखीय खमध्य (Equitorial Zenithal) प्रक्षेप कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त समतल धरातल ग्लोब को ध्रुव और विषुवत्‌ रेखा के मध्य स्थित किसी बिंदु पर स्पर्श करता है तो इस प्रकार के प्रक्षेप तिर्यक्‌ खमध्य प्रक्षेप कहलाते हैं।


रूढ़ प्रक्षेप :


अज्यामितीय अथवा असंदर्श वर्ग के प्रक्षेप हैं, क्योंकि इनको गणित के सिद्धांत और तत्संबंधी गणनाओं के आधार पर बिना प्रतिबिंब डाले हुए खींचा जाता है। किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही ऐसा किया जाता है। यद्यपि इनका निर्माण सरल नहीं, फिर भी इनका उपयोग अन्य प्रकार के प्रक्षेपों की अपेक्षा अत्यधिक है और इन प्रक्षेपों पर विशेषकर संपूर्ण संसा का मानचित्र खींचा जाता है।




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