Lok Prabandhan Ke Naveen Aayam लोक प्रबंधन के नवीन आयाम

लोक प्रबंधन के नवीन आयाम



Pradeep Chawla on 14-10-2018

बदलते वैश्विक परिवेश में लोक प्रशासन भी विषयगत परिधियों के अंदर बदलाव को महसूस कर रहा है। विकास के बदलते प्रतिमान जैसे नाव उदारवादी व्यवस्था ने राज्य के स्वरुप को सिमित कर दिया है तथा बाज़ार व्यवस्था का उदय हुआ है। परंपरागत लोक प्रशासन जिसका मूल आधार प्रशासनिक ढांचा,सांस्थानिक प्रबंधन तथा लोकहित की स्थिति को संचालित करने वाले सिद्धांतो पर आधारित था,आज के युग में निष्फल हो चुके हैं।


सामान्य शब्दो में कहा जा सकता है कि नव लोक प्रबंधन का सिद्धान्त वैश्विकरण,उदारीकरण तथा निजीकरण के दौर में विल्सन और वेबर के सिद्धांतों को लोक प्रशासन के लिए असंगत करार दे रहा था। इस नए सिद्धान्त में सरकार व नौकरशाही की भूमिका में बदलाव की बात की गयी। लोक प्रशासन में नव लोक प्रबंधन का जन्म 1990 के दसक में हुआ। क्रिस्टफर हुड ने इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले किआ। इसे पोलिट के द्वारा ‘प्रबंधवाद’ कहा गया।


सामान्यतः नव लोक प्रबंध समाज एवं अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को कम करना चाहता है तथा एक उद्यमशील सरकार की स्थापना करना चाहता है।


सामान्य रूप से सरकार के तीन लक्ष्य होने चाहिए-

  1. कुशलता (Efficiency)
  2. अर्थव्यवस्था (Economy)
  3. प्रभावशीलता (Effectiveness)

नवलोकप्रबंधन : विशेषताएं

  • प्रबंधको के व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के स्थान पर परिणाम आधारित व्यवस्था पर बल दिया गया।
  • यह शास्त्रीय नौकरशाही प्रवृति की जगह संगठनों,कार्मिक एवं रोजगरपरक सेवा शर्तों को अत्यधिक लचीला बनाता है।
  • संगठनों एवं कार्मिक उद्देश्य को सफलता एवं प्रदर्शित मानको की कसौटी पर परखने पर बल दिया।
  • सरकारी गतिविधियों को बाज़ार व्यवहारों का सामना करना चाहिए।
  • सरकार के आकार को निजीकरण के माध्यम से छोटा करना चाहिए।


नवलोकप्रबंधन : केंद्रीयतत्व

  1. नीति के बजाय प्रबंधन पर बल तथा कार्यकुशलता का मूल्यांकन तथा सक्षमता पर ध्यान केंद्रित रखना।
  2. सार्वजानिक नौकरशाही को ऐसे अभिकरणों के रूप में समूहबद्ध करना जो ”पैसा दो,प्राप्त करो” के आधार पर कार्य करे।
  3. प्रतियोगिता को बढ़ावा देने के लिए अर्ध बाजार व्यवस्था या ठेके/अनुबंध का प्रयोग।
  4. प्रबंधन की एक शैली को अपनाना जो उत्पादन लक्ष्यो सीमित अवधि अनुबंधों,धन संबंधी नवाचारों तथा प्रबंधन की स्वतंत्रता पर बल देती हो।
  5. लागत में कटौती।


नवलोकप्रबंधनपरक्रिस्टोफरहुडकेविचार


हुड ने नव लोक प्रबंधन के 7 बिंदुओं पर चर्चा की –

  1. सार्वजनिक क्षेत्र में पेशेवर प्रबंध जहाँ उत्तरदायित्व के साथ साथ प्रबंधको को अधिक स्वायत्तता पर बल दिया जाए।
  2. प्रदर्शन का एक निश्चित मानक एवं मापदंड,यह इस बात पर बल देता है कि प्रबंधको की नजर में लक्ष्य स्पष्ट होने चाहिए,साथ ही साथ उत्तरदायित्व, कार्यकुशल व उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम हों।
  3. निर्गत नियंत्रण,इसके अंतर्गत संसाधन के बंटवारों पर नियंत्रण रखा जा सके।
  4. सार्वजनिक क्षेत्रों को अत्यधिक बढ़ावा।
  5. निजी क्षेत्रों की प्रबंधकीय शैली पर बल जिससे संगठन की कार्य कुशलता में वृद्धि हो सके।
  6. उच्च अनुशासन तथा संसाधनों में मितव्ययता इसके अंतर्गत संसाधनों का समुचित या अनुकूलतम प्रयोग विशेषकर वित्तीय संसाधन ताकि प्रत्यक्ष लागत में कटौती हो।

यद्यपि यह कहा जा सकता है कि नव लोक प्रबंधन दक्षिणपंथी आंदोलन की देन है जिसने राज्य की भूमिका तथा सरकार के रूप में परिवर्तन किया है। यह प्रबंधकीय स्वायत्तता का समर्थन करता है।


सरकार की पुनः आविष्कार के पीछे मंतव्य यही था कि सरकारी तंत्र को गुणवत्ता तथा कार्य कुशलता की ओर प्रेरित करना और नौकरशाही प्रवृत्ति को कम करना। पश्चिमी देशों ने इसके प्रति तत्परता दिखाई और उद्यमशील सरकार के स्वरूप को निम्न आधार पर प्राप्त करने की चेष्टा की-

  • बजट को कम करके
  • सरकार के आकार को कम करके
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमो का निजीकरण करके
  • चुने हुए क्षेत्रो को ठेके पर देकर
  • निष्पादन मापक सूचकों को अपनाकर

यह कहना समाचीन होगा कि नव लोक प्रबंधन में वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ भविष्य की अवश्यकताओ को भी संज्ञान में लिया गया है।


यह सही है कि लोक प्रशासन एक विषय तथा प्रक्रिया दोनों रूपों में गतिशील है। नव लोक प्रबंधन उसी की एक झलक है।नव लोक प्रबंधन का सिद्धांत अंतर्विषयक पद्धति अपनाने पर बल देता है।यह सिद्धांत संगठनों में मानवीय तत्व का भी समावेश करता है।यह लालफीताशाही का विरोध करते हुए केंद्रीय नियंत्रण को भी कम करके प्रबंधकों को स्वायत्त बनाना चाहता है।



नवलोकप्रबंधन : आलोचनात्मकविश्लेषण

  • यह सिद्धांत समान रुप से विकसित और विकासशील देशो में लागू नहीं किया जा सकता है। यह विरोधाभासी प्रतीत होता है तथा सशक्तिकरण नकारता है।
  • क्या बाजार सशक्तिकरण को बल देता है ना कि नागरिक सशक्तिकरण की बात करता है। यह किसी राज्य व्यवस्था के अंतर्गत नागरिकों को उपभोक्ता के रूप में देखता है जिससे प्रजातांत्रिक मूल्यों का हास होता है।
  • यह अत्यधिक बाजारीकरण तथा निजीकरण पर बल देता है।
  • नवीन लोक प्रबंध सरकार को बाजार का सही उपागम मानता है तथा व्यक्तिगत या निजी प्रशासन के मूल्यों तथा तकनीकों की प्रशंसा करता है जबकि लोक प्रशासन कभी भी निजी प्रशासन को अपना उपागम नहीं बना सकता है।आधुनिक सरकार विधि के शासन का अनुकरण करती हैं ना कि बाजार संयंत्र का।
  • व्यवहारिक दृष्टिकोण से यह भी सत्य प्रतीत होता है कि अत्यधिक निजीकरण से संपत्ति के कुछ व्यक्तियों के हाथों में संकेंद्रण खतरा हमेशा बना रहता है।ऐसी व्यवस्था जहां कुछ है व्यक्तियों के हाथों में होती है वहां नौकरशाही
  • और सरकार दोनों अमीर या साधन संपन्न हाथों की कठपुतली बन जाते हैं तथा शोषण परक वातावरण उत्पन्न होता है।
  • नवीन लोक प्रबंध ने केवल आर्थिक उद्देश्य परक व्याख्या पर बल दिया है तथा सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलू की अनदेखी की है।एक अच्छा प्रशासन वह होता है जो मानव की प्रत्येक गतिविधियो में सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करता है।





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