बदलते वैश्विक परिवेश में लोक प्रशासन भी विषयगत परिधियों के अंदर बदलाव को महसूस कर रहा है। विकास के बदलते प्रतिमान जैसे नाव उदारवादी व्यवस्था ने राज्य के स्वरुप को सिमित कर दिया है तथा बाज़ार व्यवस्था का उदय हुआ है। परंपरागत लोक प्रशासन जिसका मूल आधार प्रशासनिक ढांचा,सांस्थानिक प्रबंधन तथा लोकहित की स्थिति को संचालित करने वाले सिद्धांतो पर आधारित था,आज के युग में निष्फल हो चुके हैं।
सामान्य शब्दो में कहा जा सकता है कि नव लोक प्रबंधन का सिद्धान्त वैश्विकरण,उदारीकरण तथा निजीकरण के दौर में विल्सन और वेबर के सिद्धांतों को लोक प्रशासन के लिए असंगत करार दे रहा था। इस नए सिद्धान्त में सरकार व नौकरशाही की भूमिका में बदलाव की बात की गयी। लोक प्रशासन में नव लोक प्रबंधन का जन्म 1990 के दसक में हुआ। क्रिस्टफर हुड ने इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले किआ। इसे पोलिट के द्वारा ‘प्रबंधवाद’ कहा गया।
सामान्यतः नव लोक प्रबंध समाज एवं अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को कम करना चाहता है तथा एक उद्यमशील सरकार की स्थापना करना चाहता है।
सामान्य रूप से सरकार के तीन लक्ष्य होने चाहिए-
नवलोकप्रबंधन : विशेषताएं
नवलोकप्रबंधन : केंद्रीयतत्व
नवलोकप्रबंधनपरक्रिस्टोफरहुडकेविचार
हुड ने नव लोक प्रबंधन के 7 बिंदुओं पर चर्चा की –
यद्यपि यह कहा जा सकता है कि नव लोक प्रबंधन दक्षिणपंथी आंदोलन की देन है जिसने राज्य की भूमिका तथा सरकार के रूप में परिवर्तन किया है। यह प्रबंधकीय स्वायत्तता का समर्थन करता है।
सरकार की पुनः आविष्कार के पीछे मंतव्य यही था कि सरकारी तंत्र को गुणवत्ता तथा कार्य कुशलता की ओर प्रेरित करना और नौकरशाही प्रवृत्ति को कम करना। पश्चिमी देशों ने इसके प्रति तत्परता दिखाई और उद्यमशील सरकार के स्वरूप को निम्न आधार पर प्राप्त करने की चेष्टा की-
यह कहना समाचीन होगा कि नव लोक प्रबंधन में वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ भविष्य की अवश्यकताओ को भी संज्ञान में लिया गया है।
यह सही है कि लोक प्रशासन एक विषय तथा प्रक्रिया दोनों रूपों में गतिशील है। नव लोक प्रबंधन उसी की एक झलक है।नव लोक प्रबंधन का सिद्धांत अंतर्विषयक पद्धति अपनाने पर बल देता है।यह सिद्धांत संगठनों में मानवीय तत्व का भी समावेश करता है।यह लालफीताशाही का विरोध करते हुए केंद्रीय नियंत्रण को भी कम करके प्रबंधकों को स्वायत्त बनाना चाहता है।
नवलोकप्रबंधन : आलोचनात्मकविश्लेषण
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