सन् 2000 में उत्तर प्रदेश के पर्वतीय जिलों को अलग कर के उत्तराखंड राज्य बनाया गया था। इस राज्य में अब तक 7 मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जिनमे से चारभारतीय जनता पार्टी से व शेष तीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से हैं। नित्यानन्द स्वामी राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। राज्य के डेढ़ दशक के इतिहास में यहां पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है। इसप्रकार अचानक देश्ाभर की निगाहें उत्तराख्ांड की राजनीतिक उठापटक पर आ टिकी है। उत्तराखंड में 27 मार्च, 2016 को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत प्रदत्त अधिकार का उपयोग कर राज्य में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी दे दी। राज्य के राजनीतिक घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल ने वहां राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश की थी। हालांकि अभी विधानसभा भंग नहीं की गई है। इसका मतलब यह है कि अभी भी राज्य में राज्य में नई सरकार के गठन गुंजाइश शेष है।
- उत्तराखंड के कांग्रेस के बागी विधायकों ने यहां एक स्टिंग ऑपरेशन की सीडी जारी कर दावा किया था कि मुख्यमंत्री हरीश रावत विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगे हुए हैं।
- उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद कांग्रेस ने नैनीताल हाई कोर्ट में इसे चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है, जिसे न्यायाधीश यूसी ध्यानी की पीठ की सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है।
- उत्तराखंड में राजनीतिक संकट तब शुरू हुआ जब 70 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस के 36 में से 9 विधायक बागी हो गए।
- विधानसभा में भाजपा के 28 सदस्य हैं। बजट सत्र के दौरान विवाद तब पैदा हुआ जब भाजपा ने आरोप लगाया कि बजट विधेयक पारित ही नहीं हुआ है क्योंकि कांग्रेस के पास बहुमत ही नहीं है।
- इसके बाद 28 मार्च को कांग्रेस सरकार को विश्वास मत हासिल करना था लेकिन 27 मार्च, 2016 को ही केंद्र ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया। ----------------------------------------- उत्तराखंड के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री कार्यकाल नित्यानंद स्वामी 9 नवंबर, 2000 - 29 अक्टूबर, 2001 भगत सिंह कोश्यारी 30 अक्टूबर 2001 - 1 मार्च, 2002 नारायण दत्त तिवारी 2 मार्च, 2002 - 7 मार्च, 2007 भुवन चंद्र खंडूरी 8 मार्च, 2007 - 23 जून, 2009 रमेश पोखरियाल निशंक 24 जून, 2009 - 10 सितंबर, 2011 भुवन चंद्र खंडूरी 11 सितंबर, 2011 - 13 मार्च, 2014 विजय बहुगुणा 13 मार्च, 2012 - 31 जनवरी, 2014 हरीश रावत 1 फरवरी, 2014 - 27 मार्च, 2016 राष्ट्रपति शासन 27 मार्च, 2016 से --------------------------------------- अनुच्छेद 356
- अनुच्छेद 356, केंद्र सरकार को किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति उस अवस्था में देता है, जब राज्य का संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया हो।
- यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार को किसी नागरिक अशांति (जैसे कि दंगे जिनसे निपटने में राज्य सरकार विफल रही हो) की दशा में किसी राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है (ताकि वो नागरिक अशांति के कारणों का निवारण कर सके)।
- राष्ट्रपति शासन के आलोचकों का तर्क है कि अधिकतर समय, इसे राज्य में राजनैतिक विरोधियों की सरकार को बर्खास्त करने के लिए एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। अतः वे इसे संघीय राज्य व्यवस्था के लिए एक खतरे के रूप में देखते हैं।
- 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से केंद्र सरकार द्वारा इसका प्रयोग 100 से भी अधिक बार किया गया है।
- अनुच्छेद को पहली बार 31 जुलाई 1959 को विमोचन समारम के दौरान लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई केरल की कम्युनिस्ट सरकार बर्खास्त करने के लिए किया गया था।
- 16 दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की राज्य सरकार को भी बर्खास्त किया गया था।
- राष्ट्रपति शासन (या केंद्रीय शासन) भारत में शासन के संदर्भ में उस समय प्रयोग किया जाने वाला एक पारिभाषिक शब्द है, जब किसी राज्य सरकार को भंग या निलंबित कर दिया जाता है और राज्य प्रत्यक्ष संघीय शासन के अधीन आ जाता है।
- भारत के संविधान का अनुच्छेद-356, केंद्र की संघीय सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में उस राज्य सरकार को बर्खास्त कर उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार देता है।
- राष्ट्रपति शासन उस स्थिति में भी लागू होता है, जब राज्य विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं हो।
- सत्तारूढ़ पार्टी या केंद्रीय (संघीय) सरकार की सलाह पर, राज्यपाल अपने विवेक पर सदन को भंग कर सकते हैं, यदि सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो।
- राज्यपाल सदन को छह महीने की अवधि के लिए ‘निलंबित अवस्था' मे रख सकते हैं।
- छह महीने के बाद, यदि फिर कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो उस दशा में पुन: चुनाव आयोजित किये जाते हैं।
- इसे राष्ट्रपति शासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके द्वारा राज्य का नियंत्रण बजाय एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के, सीधे भारत के राष्ट्रपति के अधीन आ जाता है, लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किये जाते हैं।
- प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल आम तौर पर सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर सेवानिवृत्त सिविल सेवक होते हैं।
- आमतौर पर इस स्थिति मे राज्य में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों का अनुसरण होता
2016 ke samay uttarakhand k mukhya nyayadheesh Kon the