Africa Me Upniveshwad अफ्रीका में उपनिवेशवाद

अफ्रीका में उपनिवेशवाद



GkExams on 18-01-2019


सन 1881 और 1914 के बीच यूरोपीय शक्तियों द्वारा अफ्रीकी भूभाग पर आक्रमण करके उस पर अधिकार, उपनिवेशीकरण, और उस भूभाग को हड़प लेने को अफ्रीका का विभाजन (Partition of Africa) कहते हैं। इसको अफ्रीका के लिये हाथापाई (Scramble for Africa) और अफ्रीका पर विजय (Conquest of Africa) भी कहते हैं। इस समयावधि को 'नव उपनिवेशवाद काल' कहते हैं।


सन 1870 में अफ्रीका के केवल 10 प्रतिशत भूभाग पर यूरोपीय शक्तियों का अधिकार था किन्तु 1914 तक उसके 90 प्रतिशत भूभाग पर यूरोप का अधिकार हो गया था। इस समय केवल अबीसिनिया (इथियोपिया) और लाइबेरिया ही स्वतन्त्र बचे थे।


सन 1884 में सम्पन्न हुए बर्लिन सम्मेलन को प्रायः अफ्रीका के विभाजन का आरम्भिक बिन्दु माना जाता है। 19 शताब्दी के अन्तिम भाग में यूरोपीय साम्राज्यों के बीच जबरदस्त राजनीतिक एवं आर्थिक स्पर्धा होने के बावजूद अफ्रीका को शान्तिपूर्ण ढंग से बाँट लिया और इस बंटवारे ने उन्हें आपस में युद्धरत होने से भी बचा लिया।


अफ्रीका का विभाजन यूरोप के इतिहास की एक अत्यंत रोमांचक घटना मानी गयी है। विभाजन के महत्वपूर्ण कार्य को अत्यंत शीघ्रता से संपादित किया गया। यद्यपि विभाजनकर्ता विभिन्न राष्ट्रों में आपस में अनेक मतान्तर थे किन्तु फिर भी बिना कोई युद्ध लड़े इस कार्य को शांतिपूर्ण ढंग से पूर्ण कर लिया गया।

कांगो के जो श्रमिक रबर संग्रह करने के कोटे को पूरा नहीं कर पाते थे , दण्ड के रूप में प्रायः उनके हाथ काट दिये जाते थे।

इंग्लैण्ड

अफ्रीका की लूट में सबसे अधिक लाभ इंग्लैण्ड को हुआ। उसके अत्यधिक विस्तृत साम्राज्य में केप ऑफ गुडहोप, नेटाल, ट्रांसवल, औरेन्ज नदी का नजदीकी क्षेत्र, रोडेशिया, मिस्र, सूडान का कुछ भाग, ब्रिटिश सोमालीलैण्ड, नाइजीरिया, गौम्बिया, गोल्डकोस्ट तथा सियरा-लियोन आदि सम्मिलित थे।

मिस्र पर इंग्लैण्ड का नियंत्रण

1798 ई. में नेपोलियन ने मिस्र पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था किंतु नील नदी के युद्ध में उसकी पराजय के बाद वहां उसका प्रभाव समाप्त हो गया और इंग्लैण्ड का मिस्र पर प्रभुत्व स्थापित हो गया। मिस्र का इंग्लैण्ड के लिए विशेष महत्व था क्योंकि मिस्र पर किसी अन्य देश का प्रभुत्व स्थापित होने से उसके भारत स्थित साम्राज्य को खतरा उत्पन्न हो जाता था।


1652 ई. में डच लोगों ने, जिन्हें ‘बोअर’ भी कहा जाता था, केप कॉलोनी में अपने उपनिवेश की स्थापना कर ली थी जो सुदूर दक्षिणी अफ्रीका के सुदूर में पड़ता था। वे अपने धार्मिक मामले में अत्यंत कठोर थे और अंग्रेजों को घृणा की दृष्टि से देखते थे। 1815 ई. के लगभग अंग्रेजों ने भी केप कॉलोनी में आकर बसना प्रारंभ कर दिया था और धीरे-धीरे वहां पर उनकी संख्या काफी बढ़ गयी। प्रारंभ में दोनों के संबंध परस्पर मधुर बने रहे किन्तु अंग्रेजों की उत्तरोत्तर बढ़ती हुई संख्या के कारण डच लोगों के हृदय में संदेह की भावना जाग्रत हुई जिसके कारण उन्होंने केप कॉलोनी को छोड़कर औरेन्ज फ्री स्टेट, ट्रान्सवाल और नेटाल में निवास करना प्रारंभ कर दिया। किंतु 1879 ई. में अंग्रेजों ने ट्रान्सवाल पर आक्रमण कर दिया, जिसके कारण अंग्रेजों और बोअर जाति के लोगों के आपसी संबंध तनावपूर्ण हो गये और युद्ध की ज्वाला धधक उठी। इस युद्ध में अंग्रेजों को पराजय का मुंह देखना पड़ा और बोअरों की स्वतंत्रता को सभी लोगों ने स्वीकार कर लिया तथा ट्रान्सवाल को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया। 1881 ई. में ट्रान्सवाल में सोने की कुछ खानों की जानकारी प्राप्त हुई जिससे प्रभावित होकर अंग्रेजों ने ट्रान्सवाल में प्रवेश करना प्रारंभ कर दिया और कहीं-कहीं पर उनकी संख्या मूल निवासी बोअरों से भी अधिक हो गई इससे बोअरों की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया। बोअर अंग्रेजों से घृणा करते थे और उन्हें 'विदेशी' कहकर पुकारते थे। इन विदेशियों का मुख्य नेता सेसिल रोड्स था। वह दक्षिणी अफ्रीका में ब्रिटिश शासन की स्थापना पर विशेष बल दे रहा था और थोड़े समय में ही उसने अफ्रीका के बहुत बड़े भाग पर अधिकार कर लिया, जो रोडेशिया कहलाया। 1890 ई. में वह केप कॉलोनी का प्रधानमंत्री चुना गया और 1896 ई. तक वह इस पद पर बना रहा। उसकी यह भी धारण थी कि अंग्रेजों को ट्रान्सवाल तथा औरेन्ज फ्री स्टेट पर भी अधिकार स्थापित कर लेना चाहिए। इंग्लैण्ड भी बोअरों के विरूद्ध अपनी पराजय का बदला लेने के लिए अवसर की प्रतीक्षा में था। 1899 ई. में उसने औरेन्ज फ्री स्टेट व ट्रान्सवाल के विरूद्ध युद्ध प्रारंभ कर दिया। प्रारंभिक युद्ध में बोअरों को कुछ सफलता प्राप्त हुई किन्तु अधिक समय तक वह अपने विजय-क्रम को बनाये रखने में सफल नहीं हो सके और अन्ततः पराजित हुए। 1902 ई. में दोनों के मध्य एक संधि हो गयी जिसके अनुसार ट्रान्सवाल तथा औरेन्ज फ्री स्टेट पर अंग्रेजों के अधिकार को स्वीकार कर लिया गया।


इस संधि के बाद बोअरों को कई सुविधाएं प्रदान की गयीं किंतु इसके बाद भी उनके असंतोष का अंत नहीं हुआ। अंततः इंग्लैण्ड की उदार सरकार ने ट्रान्सवाल व औरेन्ज फ्री स्टेट को क्रमशः 1906 ई. व 1907 ई. में स्वायत्तता प्रदान कर दी तथा ट्रान्सवाल, औरेन्ज फ्री स्टेट, केप कॉलोनी व नेटाल को ‘दक्षिण अफ्रीका संघ’ के नाम से संगठित कर दिया।

फ्रांस

फ्रांस, अफ्रीका के महत्वपूर्ण प्रदेशों, यथा मिस्र, अल्जीरिया, ट्यूनिस और मोरक्को पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता था किंतु इंग्लैण्ड ने उसका विरोध किया तथा मिस्र पर उसका अधिकार स्थापित नहीं होने दिया, क्योंकि मिस्र का इंग्लैण्ड के भारत स्थित साम्राज्य के लिए अत्यधिक महत्व था। किंतु धीरे-धीरे फ्रांस ने दक्षिण अफ्रीका के कई महत्वपूर्ण उपनिवेशों पर अधिकार स्थापित कर लिया। 1847 ई. में अल्जीरिया पर अधिकार करने के बाद फ्रांस की आंखें ट्यूनिस के प्रदेश पर लगी हुई थीं जो अल्जीरिया के पूर्व में स्थित था। इटली भी ट्यूनिस के प्रदेश की ओर लालची आंखों से निहार रहा था, किन्तु फ्रांस ने 1881 ई. में बिस्मार्क से प्रोत्साहन प्राप्त करने के बाद इस पर अधिकार कर लिया। साथ ही उसने गुआना, आइवरी कोस्ट, फ्रेंच कांगो और सहारा के नखलिस्तान पर भी संरक्षण स्थापित कर लिया। 1904 ई. में इंग्लैण्ड व फ्रांस ने मोरक्को के प्रश्न पर आपस में एक संधि कर ली और इस प्रकार फ्रांस, अफ्रीका के उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों में एक विशाल औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहा।

जर्मनी

1870-1890 ई. तक बिस्मार्क जर्मनी में चान्सलर के पद पर कार्य करता रहा। अपने प्रधानमंत्री-काल के प्रारंभिक वर्षों में वह उपनिवेश-स्थापना का घोर विरोधी था क्योंकि वह इंग्लैण्ड के साथ अपने संबंधों को खराब करना नहीं चाहता था। इंग्लैण्ड उस प्रत्येक देश को अपना शत्रु समझता था जो औपनिवेशिक दौड़ में भाग लेता था और अपनी जल-शक्ति के विस्तार का प्रयास करता था। बिस्मार्क जर्मनी को एक आत्म-संतुष्ट देश कहा करता था किन्तु बाद में निम्नलिखित कारणों से प्रेरित होकर उसने उपनिवेश-स्थापना की ओर ध्यान देना प्रारंभ कर दिया था :

  • (1) जर्मनी के औद्योगिक विकास के लिए उपनिवेश प्राप्त करना नितांत आवश्यक था।
  • (2) अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या को बसाने के लिए उसे अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता थी।
  • (3) जर्मनी के राष्ट्रीय गौरव के लिए उपनिवेशों की स्थापना अत्यंत आवश्यक थी।

प्रसिद्ध इतिहासकार गूच ने इस संदर्भ में लिखा है कि अफ्रीका की लूट के कारण जर्मनी की उपनिवेश-स्थापना की भूख में अत्यधिक वृद्धि हो गयी थी और बिस्मार्क को अन्ततः इस भूख को शांत करना ही पड़ा। औपनिवेशिक दौड़ में विलम्ब से भाग लेने के कारण बिस्मार्क अफ्रीका की लूट में समय पर सम्मिलित नहीं हो सका लेकिन फिर भी 1884 ई. से 1890 ई. तक उसने तोगोलैण्ड, कैमरून, पूर्वी अफ्रीका और दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका मेंं कुछ उपनिवेश स्थापित किये। इस प्रकार बिस्मार्क जैसा कुशल राजनीतिज्ञ भी समय की पुकार को नहीं टाल सका और उसे भी उपनिवेश-स्थापना की दौड़ में भाग लेना पड़ा, जिसका वह प्रारंभ में घोर विरोधी था।

स्पेन

स्पेन ने अफ्रीका के दक्षिण-पश्चिमी समुद्र-तट पर अपने कुछ उपनिवेश स्थापित किये। 1908 ई. में उसने जिब्राल्टर द्वीप के सामने कुछ प्रदेशों पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

इटली

इटली ट्यूनिस के प्रदेश पर अधिकार करना चाहता था, परन्तु फ्रांस द्वारा वहां अपना आधिपत्य स्थापित कर लिये जाने के कारण उसने 1883 ई. में लाल सागर के किनारे के प्रदेश इरीट्रिया पर एवं पूर्वी सोमालीलैण्ड के कुछ भाग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इटली अबीसीनिया पर अधिकार करना चाहता था किन्तु अडोवा के युद्ध में उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा। तत्पश्चात् इटली ने त्रिपोली तथा उसके आस-पास के प्रदेश पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया और उसे कालान्तर में लीबिया का नाम प्रदान किया।

पुर्तगाल

पुर्तगाल ने अंगोला पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। वह बेल्जियम कांगो के दक्षिण में स्थित था। कालान्तर में पुर्तगाल ने मोजम्बिक पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया, जिसे पुर्तगालवासी 'पूर्वी अफ्रीका' के नाम से पुकारते थे।


इस प्रकार यूरोप की महाशक्तियों ने सम्पूर्ण अफ्रीका का आपस में विभाजन कर लिया। विभाजन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंश यह था कि यह कार्य अत्यंत शांतिपूर्ण ढंग से संपादित किया गया। यद्यपि कई अवसरों पर कटुता बढ़ जाने के कारण युद्ध की संभावनाएं अत्यधिक बढ़ गयीं किंतु वार्तालाप और कूटनीति के द्वारा मतान्तरों को शांतिपूर्ण ढंग से हल कर दिया गया। विभाजन का एक उल्लेखनीय तथ्य यह था कि विभाजन अत्यंत धीमी गति से और क्रमानुसार किया गया था।




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Comments Arpit on 31-03-2020

Africa per upniveshvad ka kya prabhav pada vyakhya kijiye

Ankita on 12-05-2019

Asiya or africa me upniweshwade ka unmulan





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