ऊष्मप्रवैगिकी Sawal ऊष्मप्रवैगिकी सवाल

ऊष्मप्रवैगिकी सवाल



GkExams on 01-02-2019

ऊष्मा का स्थानांतरण तीन विधियों से होता है चालन, संवहन और विकिरण। पहली दो विधियों में द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता है, किंतु विकिरण की विधि में विद्युच्चुंबकीय तरंगों द्वारा ऊष्मा का अंतरण होता है।


ऊष्मा की एक उपशाखा अणुगति सिद्धांत (Kinetic Theory) है। इस सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमात्र लघु अणुओं के द्वारा निर्मित हैं। गैसों के संबंध में यह बहुत महत्वपूर्ण विज्ञान है और इसके उपयोग का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। विशेष रूप से इंजीनियरिंग तथा शिल्पविज्ञान में इसका बहुत महत्व है।


ऊष्मागतिकी का अधिक भाग दो नियमों पर आधारित है।

  • ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम – ऊर्जा संरक्षण नियम का ही दूसरा रूप है। इसके अनुसार ऊष्मा भी ऊर्जा का ही रूप है। अत: इसका रूपांतरण तो हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। जूल इत्यादि ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि इन दो प्रकार की ऊर्जाओं में रूपांतरण में एक कैलोरी ऊष्मा 4.18 व 107 अर्ग यांत्रिक ऊर्जा के तुल्य होती है इंजीनियरों का मुख्य उद्देश्य ऊष्मा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतर करके इंजन चलाना होता है। प्रथम नियम यह तो बताता है कि दोनों प्रकार की ऊर्जाएँ वास्तव में अभिन्न हैं, किंतु यह नहीं बताता कि एक का दूसरे में परिवर्तन किया जा सकता है अथवा नहीं। यदि बिना रोक-टोक ऊष्मा का यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तन संभव हो सकता, तो हम समुद्र से ऊष्मा लेकर जहाज चला सकते। कोयले का व्यय न होता तथा बर्फ भी साथ साथ मिलती। अनुभव से यह सिद्ध है कि ऐसा नहीं हो सकता है
  • ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम – यह कहता है कि ऐसा संभव नहीं और एक ही ताप की वस्तु से यांत्रिक ऊर्जा की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसा करने के लिये एक निम्न तापीय पिंड (संघनित्र) की भी आवश्यकता होती है। किसी भी इंजन के लिये उच्च तापीय भट्ठी से प्राप ऊष्मा के एक अंश को निम्न तापीय पिंड को देना आवश्यक है। शेष अंश ही यांत्रिक कार्य में काम आ सकता है। समुद्र के पानी स ऊष्मा लेकर उससे जहाज चलाना इसलिये संभव नहीं कि वहाँ पर सर्वत्र समान ताप है और कोई भी निम्न तापीय वस्तु मौजूद नहीं। इस नियम का बहुत महत्व है। इसके द्वारा ताप के परम पैमाने की संकल्पना की गई है। दूसरा नियम परमाणुओं की गति की अव्यवस्था (disorder) से संबंध रखता है। इस अव्यवस्थितता को मात्रात्मक रूप देने के लिये एंट्रॉपि (entropy) नामक एक नवीन भौतिक राशि की संकल्पना की गई है। उष्मागतिकी के दूसरे नियम का एक पहलू यह भी है। कि प्राकृतिक भौतिक क्रियाओं में एंट्रॉपी की सदा वृद्धि होती है। उसमें ह्रास कभी नहीं होता।
  • ऊष्मागतिकी के तीसरे नियम के अनुसार शून्य ताप पर किसी ऊष्मागतिक निकाय की एंट्रॉपी शून्य होती है। इसका अन्य रूप यह है कि किसी भी प्रयोग द्वारा शून्य परम ताप की प्राप्ति संभव नहीं। हाँ हम उसके अति निकट पहुँच सकते हैं, पर उस तक नहीं।





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Comments Ram on 19-08-2018

Good





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