Aag Par Nibandh आग पर निबंध

आग पर निबंध



Pradeep Chawla on 12-05-2019

आग दहनशील पदार्थों का तीव्र ऑक्सीकरण है, जिससे उष्मा, प्रकाश और अन्य अनेक रासायनिक प्रतिकारक उत्पाद जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और जल.[1] उत्पन्न होते हैं। ऑक्सीकरण से उत्पन्न गैस आयनीकृत होकर प्लाज्मा.[2] पैदा करते हैं। दहनशील पदार्थ में सन्निहित अशुद्धि के कारण ज्वाला के रंग और आग की तीव्रता में अंतर हो सकता है। सामान्य रूप में आग दाह पैदा करता है जिसमें भौतिक रूप से पदार्थों को क्षतिग्रस्त करने की क्षमता है।

अनुक्रम



1 आग की रसायन

2 परिचय

3 उत्पत्ति

4 सतत अग्नि

5 विद्युत काल में अग्नि

6 आग बुझाना

7 सन्दर्भ



आग की रसायन

The fire tetrahedron



दहनशील पदार्थ पर्याप्त ऑक्सीजन की उपस्थिति में जब पर्याप्त उष्मा, जो श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में सक्षम हो, संपर्क में आता है, तो आग पैदा होती है। इनमें से किसी एक की अनुपस्थिति से आग पैदा नहीं हो सकती है।



अगर आग एकबार जल जाती है यानी श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है तो जब तक ऑक्सीजन और दहनशील पदार्थ की उपस्थिति रहती है तब तक वह जलती और फैलती रहती है। आग को ऑक्सीजन और ईंधन में से किसी एक को अलग कर बुझाया जा सकता है। आग पर पानी की पर्याप्त बौछार पड़ती है तो ईंधन को ऑक्सीजन की उपस्थिति में बाधा पड़ती है और आग बुझ जाती है। आग पर कार्बन-डाइऑक्साइड के प्रयोग से भी आग बुझा जा सकती है। जंगल की आग बुझाने के लिए मुख्य ज्वाला से दूर छोटी छोटी ज्वाला पैदा कर ईंधन की आपूर्ति बंद की जाती है।

परिचय



अग्नि रासायनिक दृष्टि से अग्नि जीवजनित पदार्थों के कार्बन तथा अन्य तत्वों का आक्सीजन से इस प्रकार का संयोग है कि गरमी और प्रकाश उत्पन्न हों। अग्नि की बड़ी उपयोगिता है जाड़े में हाथ-पैर सेंकने से लेकर परमाणु बम द्वारा नगर का नगर भस्म कर देना, सब अग्नि का ही काम है। इसी से हमारा भोजन पकता है, इसी के द्वारा खनिज पदार्थों से धातुएँ निकाली जाती हैं और इसी से शक्ति उत्पादक इंजन चलते हैं। भूमि में दबे अवशेषों से पता चलता है कि प्राय पृथ्वी पर मनुष्य के प्रादुर्भाव काल से ही उसे अग्नि का ज्ञान था। आज भी पृथ्वी पर बहुत सी जंगली जातियाँ हैं जिनकी सभ्यता एकदम प्रारंभिक है, परंतु ऐसी कोई जाति नहीं है जिसे अग्नि का ज्ञान न हो।

उत्पत्ति



आदिम मनुष्य ने पत्थरों के टकराने से उत्पन्न चिनगारियाँ को देखा होगा। अधिकांश विद्वानों का मत है कि मनुष्य ने सर्वप्रथम कड़े पत्थरों की एक-दूसरे पर मारकर अग्नि उत्पन्न की होगी।



घर्षण (रगड़ने की) विधि से अग्नि बाद में निकली होगी। पत्थरों के हथियार बन चुकने के बाद उन्हें सुडौल, चमकीला और तीव्र करने के लिए रगड़ा गया होगा। रगड़ने पर जो चिनगारियां उत्पन्न हुई होंगी उसी से मनुष्य ने अग्नि उत्पन्न करने की घर्षण विधि निकाली होगी।



घर्षण तथा टक्कर इन दोनों विधियों से अग्नि उत्पन्न करने का ढंग आजकल भी देखने में आता है। अब भी अवश्यकता पड़ने पर इस्पात और चकमक पत्थर के प्रयोग से अग्नि उत्पन्न की जाती है। एक विशेष प्रकार की सूखी घास या रुई को चकमक के साथ सटाकर पकड़ लेते हैं और इस्पात के टुकड़े से चकमक पर तीव्र प्रहार करते हैं। टक्कर से उत्पन्न चिनगारी घास या रुई को पकड़ लेती है और उसी को फूँक-फूँककर और फिर पतली लकड़ी तथा सूखी पत्तियों के मध्य रखकर अग्नि का विस्तार कर लिया जाता है।



घर्षणविधि से अग्नि उत्पन्न करने की सबसे सरल और प्रचलित विधि लकड़ी के पटरे पर लकड़ी की छड़ रगड़ने की है।



एक-दूसरी विधि में लकड़ी के तख्ते में एक छिछला छेद रहता है। इस छेद पर लकड़ी की छड़ी को मथनी की तरह वेग से नचाया जाता है। प्राचीन भारत में भी इस विधि का प्रचलन था। इस यंत्र को अरणी कहते थे। छड़ी के टुकड़े को उत्तरा और तख्ते को अधरा कहा जाता था। इस विधि से अग्नि उत्पन्न करना भारत के अतिरिक्त लंका, सुमात्रा, आस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका में भी प्रचलित था। उत्तरी अमरीका के इंडियन तथा मध्य अमरीका के निवासी भी यह विधि काम में लाते थे। एक वार चार्ल्स डारविन ने टाहिटी (दक्षिणी प्रशांत महासागर का एक द्वीप जहाँ स्थानीय आदिवासी ही बसते हैं) में देखा कि वहाँ के निवासी इस प्रकार कुछ ही सेकंड में अग्नि उत्पन्न कर लेते हैं, यद्यपि स्वयं उसे इस काम में सफलता बहुत समय तक परिश्रम करने पर मिली।



फारस के प्रसिद्ध ग्रंथ शाहनामा के अनुसार हुसेन ने एक भयंकर सर्पाकार राक्षसी से युद्ध किया और उसे मारने के लिए उन्होंने एक बड़ा पत्थर फेंका। वह पत्थर उस राक्षस को न लगकर एक चट्टान से टकराकर चूर हो गया और इस प्रकार सर्वप्रथम अग्नि उत्पन्न हुई।



उत्तरी अमरीका की एक दंतकथा के अनुसार एक विशाल भैंसे के दौड़ने पर उसके खुरों से जो टक्कर पत्थरों पर लगी उससे चिनगारियाँ निकलीं। इन चिनगारियों से भयंकर दावानल भड़क उठा और इसी से मनुष्य ने सर्वप्रथम अग्नि ली।



अग्नि का मनुष्य की सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक उन्नति में बहुत बड़ा भाग रहा है। लैटिन में अग्नि को प्यूरस अर्थात्‌ पवित्र कहा जाता है। संस्कृत में अग्नि का एक पर्याय पावक भी है जिसका शब्दार्थ है पवित्र करनेवाला। अग्नि को पवित्र मानकर उसकी उपासना का प्रचलन कई जातियों में हुआ और अब भी है।

सतत अग्नि



अग्नि उत्पन्न करने में पहले साधारणत इतनी कठिनाई पड़ती थी कि आदिकालीन मनुष्य एक बार उत्पन्न की हुई अग्नि को निरंतर प्रज्ज्वलित रखने की चेष्टा करता था। यूनान और फारस के लोग अपने प्रत्येक नगर और गार्वे में एक निरंतर प्रज्वलित अग्नि रखते थे। रोम के एक पवित्र मंदिर में अग्नि निरंतर प्रज्वलित रखी जाती थी। यदि कभी किसी कारणवश मंदिर की अग्नि बुझ जाती थी तो बड़ा अपशकुन माना जाता था। तब पुजारी लोग प्राचीन विधि के अनुसार पुन अग्नि प्रज्वलित करते थे। सन्‌ 1830 के बाद से दियासलाई का आविष्कार हो जाने के कारण अग्नि प्रज्वलित रखने की प्रथा में शिथिलता आ गई। दियासलाइयों का उपयोग भी घर्षण विधि का ही उदाहरण है अंतर इतना ही है कि उसमें फास्फोरस, शोरा आदि के शीघ्र जलने वाले मिश्रण का उपयोग होता है।



प्राचीन मनुष्य जंगली जानवरों को भगाने, या उनसे सुरक्षित रहने के लिए अग्नि का उपयोग बराबर करता रहा होगा। वह जाड़े में अपने को अग्नि से गरम भी रखता था। वस्तुत जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी, लोग अग्नि के ही सहारे अधिकाधिक ठंडे देशों में जा बसे। अग्नि, गरम कपड़ा और मकानों के कारण मनुष्य ऐसे ठंडे देशों में रह सकता है जहाँ शीत ऋतु में उसेक सरदी से कष्ट नहीं होता और जलवायु अधिक स्वास्थ्यप्रद रहती है।

विद्युत काल में अग्नि



मोटरकार के इंजनों में पेट्रोल जलाने के लिए बिजली की चिनगारी (स्पार्क) का उपयोग होता है, क्योंकि ऐसी चिनगारी अभीष्ट क्षणों पर उत्पन्न की जा सकती है। मकानों में कभी-कभी बिजली के तार में खराबी आ जाने (शॉर्ट सर्किट) से आग लग जाती है। ताल (लेन्ज़) तथा अवतल (कॉनकेव) दर्पण से सूर्य की रश्मियों को एकत्रित करके भी अग्नि उत्पन्न की जा सकती है। ग्रीस तथा चीन के इतिहास में इन विधियों का उल्लेख है।

आग बुझाना



आग बुझाने के लिए साधारणत सबसे अच्छी रीति पानी उड़ेलना है। बालू या मिट्टी डालने से भी छोटी आग बुझ सकती है। दूर से अग्नि पर पानी डालने के लिए रकाबदार पंप अच्छा होता है। छोटी-मोटी आग को थाली या परात से ढककर भी बुझाया जा सकता है।



आरंभ में आग बुझाना सरल रहता है। आग बढ़ जाने पर उसे बुझाना कठिन हो जाता है। प्रारंभिक आग को बुझाने के लिए यंत्र मिलते हैं। ये लोहे की चादर के बरतन होते हैं, जिनमें सोडे (सोडियम कारबोनेट) का घोल रहता है। एक शीशी में अम्ल रहता है। बरतन में एक खूँटी रहती है। ठोंकने पर वह भीतर घुसकर अम्ल की शीशी को तोड़ देती है। तब अम्ल सोडे के घोल में पहुँचकर कार्बन डाइआक्साइड गैस उत्पन्न करता है। इसकी दाब से घोल की धार बाहर वेग से निकलती है और आग पर डाली जा सकती है।



अधिक अच्छे आग बुझाने वाले यंत्रों से साबुन के झाग (फेन) की तरह झाग निकलता है जिसमें कार्बन डाइआक्साइड गैस के बुलबुले रहते हैं। यह जलती हुई वस्तु पर पहुँचकर उसे इस प्रकार छा लेता है कि आक्सीजन की कमी के कारण आग बुझ जाती है।



ऊपर की घुंडी को ठोंकने से भीतर अम्ल (तेजाब) की शीशी फूट जाती है जो बरतन के भीतर भरे सोडा के घोल से प्रतिक्रिया करके कार्बन डाइआक्साइड गैस बनाती है। इस गैस की दाब से घोल की वेगवती धार निकलती है।



इसके मुँह को पानी भरी बाल्टी में डालकर और रकाब को पैर से दबाकर हैंडल चलाने पर तुंड (टोंटी) से पानी की धार निकलती है जो दूर से ही आग पर डाली जा सकती है।



गोदाम, दूकान आदि में स्वयंचल सावधान (ऑटोमैटिक अलार्म) लगा देना उत्तम होता है। आग लगने पर घंटी बजने लगती है। जहाँ टेलीफोन रहता है वहाँ ऐसा प्रबंध हो सकता है कि आग लगते ही अपने आप अग्निदल (फ़ायर ब्रिगेड) को सूचना मिल जाए। इससे भी अच्छा वह यंत्र होता है जिनमें से, आग लगने पर, पानी की फुहार अपने आप छूटने लगती है।



प्रत्येक बड़े शहर में सरकार या म्युनिसिपैलिटी की ओर से एक अग्निदल (फायर ब्रिगेड) रहता है। इसमें वैतनिक कर्मचारी नियुक्त रहते हैं जिनका कर्तव्य ही आग बुझाना होता है। सूचना मिलते ही ये लोग मोटर से अग्नि स्थान पर पहुँच जाते हैं और अपना कार्य करते हैं। साधारणत आग बुझाने का सारा सामान उनकी गाड़ी पर ही रहता है उदाहरणत पानी से भरी टंकी, पंप, कैनवस का पाइप (होज), इस पाइप के मुँह पर लगने वाली टोंटी (नॉज़ल), सीढ़ी (जो बिना दीवार का सहारा लिए ही तिरछी खड़ी रह सकती है और इच्छानुसार ऊँची, नीची या तिरछी की तथा घुमाई जा सकती है), बिजली के तेज रोशनी और लाउडस्पीकर आदि। जहाँ पानी का पाइप नहीं रहता वहाँ एक अन्य लारी पर केवल पानी की बड़ा टंकी रहती है। कई विदेशी शहरों में सरकारी प्रबंध के अतिरिक्त बीमा कंपनियाँ आग बुझाने का अपना निजी प्रबंध भी रखती हैं। जहाँ सरकारी अग्नि दल नहीं रहता वहाँ बहुधा स्वयंसेवकों का दल रहता है जो वचनबद्ध रहते हैं कि मुहल्ले में आग लगने पर तुरंत उपस्थित होंगे और उपचार करेंगे। बहुधा सरकार की ओर से उन्हें शिक्षा मिली रहती है और आवश्यक सामान भी उन्हें सरकार से उपलब्ध होता है।



आग लगने पर तुरंत अग्निदल को सूचना भेजनी चाहिए (हो सके तो टेलीफोन से) और तुरंत स्पष्ट शब्दों में बताना चाहिए कि आग कहाँ लगी है।



Comments Dinesh rawat on 10-12-2023

Agni par tippni

Bharat ke PM kon hain on 13-05-2022

Bharat ke PM kon hain

Varsha Kumari on 22-04-2022

Aage ke kaaran


Suman on 24-08-2021

Aag Kaise Mai Mahina Mein lagti hai aur kaise bujhai Jaati Hai

आग के on 10-04-2021

आग के बारे मे पूरी जानकारी

ankita chaudhary on 17-08-2020

chamki bukhar par essey

Ckf on 19-05-2020

Vma


Satyam Kumar on 07-05-2020

Science ke tarike se kisi Ko experiment karke aapko jalana hai nibandh sahit





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