रावणा शब्द का अर्थ राव+वर्ण से है अर्थात योद्धा जाति यानी की राजाओं व सामंतों के रियासतों की सुरक्षा करने वाली एकमात्र जाति जिसे रावणा राजपूत नाम से जाना जाए। इस नाम की शुरुआत तत्कालीन मारवाड़ की रियासत के रीजेंट सर प्रताप सिंह राय बहादुर के संरक्षण में जोधपुर नगर के पुरबियों के बॉस में सन 1912 में हुई है। जिस समय इस जाति के अनेकानेक लोग मारवाड़ रियासत के रीजेंट के शासन और प्रशासन में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभा रहे थे। स्मरण रहे की सर प्रताप सिंह राय बहादुर आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती से बहुत प्रभावित थे और आर्य समाज जोधपुर के प्रथम संस्थापक प्रधान थे। रावणा राजपूत क्षत्रिय वर्ण से विभक्त राजपूत जाति का वह समूह / वर्ग है जो रियासतकाल में भूमि न रहने पर पर्दा प्रथा कायम नहीं रख पाया । इसलिए रियासतों और ठिकानों में सेवक के विभिन्न पदों (दरोगा , हजुरी , वजीर , कोठारी , भण्डारी , हवलदार , कोतवाल आदि) पर रहकर या कृषक के रूप में अपने परिवार का जीविकोपार्जन किया। रावणा राजपूत गौरवशाली क्षत्रिय वर्ग का वह समाज है, जो देश-प्रेम, त्याग, वीरता, मर्यादा, प्रियता एवं देश सेवा भाव के कारण अपना पृथक अस्तित्त्व रखता है। राजपूतों के इस वर्ग का अपना गौरवशाली अतीत एवं इतिहास है। आज यह नवसृजित नाम मारवाड़ की सीमाओं को लांग कर राजस्थान के अनेक ज़िलों में प्रचलित है।
The meaning of Rawna (Ravana) is from RAV + VERNA, it is the only caste to protect the princely states of the warrior race, which is known as Rawna Rajput. This name came to existence in 1912 in the Jodhpur city progeny under the patronage of Sir Pratap Singh Rai Bahadur, the regent of the Marwar state. Ravana Rajput is a group / class of Rajput caste divided by Kshatriya, they cant maintain the certain practice and they have no land in their possession. Therefore, living in princely states and places, but livelihoods of their familys they were dependent on working as a farmer and posted in different positions like (Daroga, Hazuri, Wazir, Kothari, Bhandari, Havaldar, Kotwal etc) in the princely states. Ravana Rajput is a society of glorious Kshatriya class, which keeps its separate existence due to love for their motherland renunciation, bravery, dignity, affection and country service. This class of Rajputs has its own glorious past and history. Today this newly created names are prevalent in many districts of Rajasthan by beyond the boundaries of Marwar. [1]
भ्रांतियां और उनका निवारण कर्नल जेम्स टॉड कृत राजस्थान गजेटियर व बाद में स्वार्थी व मक्कार लेखकों एवं इन्हीं के आधार पर तैयार मारवाड़ जनगणना रिपोर्ट - 1891 ई. या मर्दुमशुमारी में इन भूमिहीन और पिछड़े राजपूतों पर निम्नानुसार शब्दों के साथ मन गढंत व ईर्ष्या द्धेष से तैयार परिभाषाओं का समावेश कर इन्हें राजपूत (क्षत्रिय) वंश से अलग थलग करने का प्रयास किया गया। पद सूचक जाति नाम से पहचान कायम कर चुके भूमिहीन राजपूत को बाद में कुछ मक्कार लेखकों द्वारा पासवान के इतिहास से जोड़ने का भी प्रयास किया गया जो बाद में इस भूमिहीन राजपूत समूह द्वारा रावणा राजपूत से अलग पहचान कायम कर स्पष्ट करने का प्रयास किया गया। रजपूत: मुता नैणसी द्वारा हस्तलिखती ख्यात जो वि. स. 1700 में लिखी गयी। उसके अनुसार जो नौकरी, सिपहगिरी आदि साधारण कार्य करने वाले व सामान्य स्थिति वाले क्षत्रिय। दरोगा: यह एक ’पद’ हुआ करता था। जितने भी कारखाने (सरकारी विभाग) थे वे सब जिन वफादार लोगों के पास पीढ़ी दर पीढ़ी रहा करते थे उन्हें ’दरोगा’ कहा करते थे इनकी देख रेख में दरीखाना (सभाभवन), तबेला, ताशखाना, सिलाईखाना, रसोड़ा, बग्गीखाना, गउखाना, फीलखाना, शतुरखाना, फर्राश खाना, पालकी खाना तथा मर्दानी व जनानी ड्योढ़ी इत्यादि के कार्य वफादारी व ईमानदारी से हुआ करते थे। इस प्रकार राज्य (हाउस होल्ड) में जितने भी विभाग हैं वे सब इनके (दरोगा) अधिकार में रहा करते थे और ये काम इनके पुश्तैनी होने से पीढ़ी दर पीढ़ी भी रहा करते थे। दरोगण: दरोगा की स्त्री, जो अन्य सेवा करने वाली साधारण स्त्रियों की अध्यक्षता किया करती थी। हजूरी: हाज़रिये अर्थात हर वक़्त राजाओं की सेवा में उपस्थित रहने वाले हाज़रीन। यह एक पदवी है। वज़ीर: यह एक महत्वपूर्ण पद है जो राजा के सलाहकार के रूप मे मुख्य राज्य कार्यकर्ता को कहते हैं। यह भी एक पदवी है। ख्वास: यह एक पदवी है जो राजा के ख़ास एवं निकटतम व्यक्ति को मिला करती थी वैसे यह पदवी ’नाई जाति’ के लिए जो राजाओं के नाई थे उनके लिए थी। लेकिन सामान्यतः अन्य जाति के लोगों को भी यह पदवी राजा दिया करते थे जो बहुत काम लोगों को व्यक्तिशः मिली हो यह पदवी उनके किसी ख़ास कार्य के लिए ही मिलती थी। भंडारी (बडारी) / कोठारी: राजाओं महाराजाओं के काल में अन्न व खाद्य सामग्री के कोठार हुआ करते थे उनके उचित देख-रेख के लिए यह कार्य भी अक्सर पुश्तैनी ही किया जाता था। इसमें कोई भी जाति का व्यक्ति हो सकता था अधिकतर वैश्य या राजपूत ही होते थे जिन्हें बाद में ’कोठारी’ भी कहा जाता था या ’भंडारी’ भी कहते थे इन्हीं शब्दों के प्रचलन से भंडारी से बडारी शब्द का जन्म हुआ वैसे इस कार्य को उचित दर्ज़े का माना जाता था। बडारण: भंडारे के कार्य करने वाली स्त्री को भंडारण या बडारण कहते थे। डाबड़ी: मारवाड़ व ढूंढाड़ में ’डाबड़ी’ कंवारी लड़की को कहते हैं। ये किसी भी जाति की कंवारी लडकी के सम्बोधन मे उपयोग आता है। परडायत: राजरानियों व ठकुरानियों द्धारा ख़रीदे जाने वाली वह कुंवारी लडकियां जो किसी भी जाति- माली, ब्राह्मणी, जाटणी, सीरवन आदि की होती थी बाद में इनको गाने बजाने का काम सिखाया जाता था। एक-एक रानी के पास 40 या 50 कुंवारी लडकियां होती थी जिन्हें मारवाड़ में तालीवालियें, जयपुर में अरवाडे, बूंदी में धाया श्री कहते थे। इनमे से कोई राजाओं को पसंद आने पर उन्हें पावों में सोना पहनने को मिल जाता था तो ये ’परडायत’ कहलाती थी तब इनका दर्ज़ा रानी के पीछे माना जाता था। यदा कदा इनमे से किसी ख़ास को जो राजाओं के पास होती बाद में इन्हे पावों में जड़ाऊ जेवर सोने के पहनने को मिलते तो यह ’पासवान’ कहलाती थी। इनका दर्ज़ा रानियों के ऊपर व महारानियों के बाद होता था। इनके पुत्रों को ’राव राजा’ का खिताब दिया जाता था। पावों में सोना पहनना: राजा महाराजाओं के काल में वही औरतें पावों में सोना पहनती थीं जो उनकी महारानी या रानियां हों, बाद बिन ब्याहे किसी कुंवारी लड़की को राजा की खास बनाते थे तो वह बाद में राजा के पास परदे में अन्य रानियों की तरह रहती तथा उस पर पर्दा कर दिया जाता था। पासवान: यह एक दर्ज़ा या पदवी है, जो महिला रानियों या ठकुराणियों द्धारा इनके मनोरंजन के लिए खरीदी जाती या राजाओं - महाराजाओं द्धारा अपने पास बिन ब्याहे रखी जाती थी जिन्हें महारानियों के बाद का दर्ज़ा होता था व रानियों के ऊपर का दर्ज़ा प्राप्त होता था यह महिलायें व इनके पुत्र जिन्हें राजगद्दी मिलने पर राव राजा कहा जाता था यह राजा के उतने ही निकट होते थे जितनी अन्य रानियां व उनके पुत्र। ’पासवान’ शब्द महिलाओं के लिए ही उपयोगी था। उनकी संतान भी राजा महाराजाओं की संतान कहलाती थी सिर्फ गद्दी पर बैठने या उत्तराधिकारी का अधिकार नहीं था। लेकिन इन्हीं पासवानों या पड़दायतों की संतानों को ही ’गोद’ लेकर जमीदारी, जागीरदारी बांटने के सेंकडों उदहारण हैं। ख्वास पासवान: छूट का चाकर भी कहा जाता था ये बे-रोक-टोक महलों में राजाओं महाराजाओं के पास चाहे वे पौढ़े हो, सोते हो, अरोगते हो, नहाते हो, चाहे किसी भी हालत में हो, जा सकते थे इसलिए ’ख्वास पासवान’ यानी ’छूट का चाकर’ कहलाते थे। चाकर: यह मारवाड़ी भाषा का शब्द है जिसका मतलब नौकर, हाली, सर्वेंट, सेवक, दास आदि के लिए राजा महाराजा अपनी भाषा में बातचीत या पत्रव्यवहार से सम्बोधित करने में लाते थे। चाकरी (सेवा) करने वाली किसी भी जाति के हो सकते थे जैसे- जाट, माली, गुर्जर, नाई आदि ये सब चाकर ही कहे जाते थे अर्थात जो लोग चाकरी का मुआवजा (नौकरी का मूल्य अर्थात मासिक वेतन) नगद या वास्तु से लेते थे चाकर कहलाते थे। गोला गोली: यह जाति नहीं बल्कि कर्म है, विदेशी भाषा में गोल उसे कहते हैं जो बेईमानी करता है छली-कपटी होता है, नमक हराम होता है, बेवफा होता है, चोरी चकारी करता है, उपकार भुला के अपकार करता है और बिना किसी कारण के किसी को हानि पहुंचाता है। जिसके यह कर्म होते हैं वही गोला कहलाता है। चाहे वे किसी भी जाती के स्त्री पुरुष हों। यह एक गाली है।
AAP,Ek, dum 100%,such, Bola hai
साले, राजपूत हमे नीचा बोलते है हमे कहते है आप गोला हो, बर्तन साफ करते हो
मेवाड़ा गोत्र की उत्त्पति कहा से हुई
रावणा राजपूत एक क्षत्रिय जाति है
दरोगा समाज की कुलदेवी कौन सी है
समाज के उन योद्धाओं के नाम ह जो समाज में हुवे थे
दरोगा एक जाति नही पदवी थी कई लोगो ने इसको अलग जाति बना कर भाइयों में फुट दल ऊंच नीच कर अलग कराया राजा एक ही बनता था बाकी सब उसके नौकर होते थे भाई भी उसको या योद्धा को ठिकाने की जागीर di जाती थी उसका काम राज्य की राजस्व प्राप्त कर राज कोश में जमा करना और अपनी व्यवस्थाओं के लिया आय लेना जिससे सेना बना राज्य के लिए अन्य से लड़ सके , राव राजा को पडदायत का पुत्र कहा हे लेकिन उनके रिश्ते कई राजाओं मैं और ठिकाने दारों में हुए तो वो अलग कैसे हुए, राजपूत कोई जाति नही थी ये अकबर मुगल राजा के द्वारा राज करने वाले राजा के पुत्र को राजपूत्र कहा जो बाद मैं राजपूत हो गया , सब क्षत्रिय हे ऊंच नीच का भेद भाव पैसे वाले और गरीब का भेद ही अलग करदेता हे कई राजाओं,ठिकानेदारों के ओलाद नही होती थी तो वो आश्रमों में जाति थी वहा आश्रम के प्रयासों से हुई पुत्र को क्या कहेंगे ,
आप रावणा,हजुरी,वजीर,दरोगा जो भी है आप भारत के मुलनिवासी है। किंतु आप स्वयं को कभी भी राजपूत नहीं कहे क्योंकि राजपूत एक विदेशी कौम है राजपुत विदेशी आक्रमणकारी शक,हुआ, कुषाणो से निकले हैं जिसने आपको गुलाम बनाया था।
आप रावणा,हजुरी,वजीर,दरोगा जो भी है आप भारत के मुलनिवासी है। किंतु आप स्वयं को कभी भी राजपूत नहीं कहे क्योंकि राजपूत एक विदेशी कौम है राजपुत विदेशी आक्रमणकारी शक,हुण, कुषाणो से निकले हैं जिसने आपको गुलाम बनाया था।
दरोगा राजपूत कोन सी जाती हैं।
What is daroga
तु कौन है
What is rawana rajput
Darogajatikonhe
a
SC h ya St obc
पहले के दरोगे वफादार होते थे
Rana
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रावणा राजपूत जाति की कुलदेवी का नाम