अपने हुनर के दम पर विश्व को खूबसूरत बनाने में भगवान विश्वकर्मा के वंशज धीमान समुदाय का अहम योगदान है। हिमाचल के हर जिला में इस बिरादरी की मजबूत पकड़ है। लगभग 10 से 11 लाख की आबादी वाला यह समुदाय 6.80 लाख मतदाताओं के दम पर सिसासी हवाओं का रुख बदलने का मादा रखता है। प्रदेश में किस तरह अनोखी पहचान बनाए हुए है धीमान समुदाय, बता रहे हैं राजेश धीमान…
10
लाख से ज्यादा धीमान समुदाय की आबादी हिमाचल में
6.80
लाख के करीब मतदाता धीमान बिरादरी से
60
प्रतिशत युवा वोटर
80
प्रतिशत ग्रेजुएट
विश्व निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाली विश्वकर्मा की संतान यानी धीमान समुदाय समाज की अहम कड़ी है। यही कड़ी एक-दूसरे की पूरक बनकर सामाजिक, राजनीतिक और सबसे अहम अर्थिक जगत को मजबूती से जोड़ती है। देश के हर हिस्से में यह समुदाय अपनी बुद्धिमता और कुशल कारीगरी के दम पर अपनी अलग और गौरवमयी पहचान बनाए हुए है। हिमाचल प्रदेश की बात करें तो यहां धीमान समुदाय विशेष महत्त्व रखता है। प्रदेश के हर जिला में उक्त समुदाय की पकड़ है। लौहार, तरखान, चितेरे, कंगेड़, जांगीड़ और रामगढि़या जातियों से सुसज्जित धीमान समुदाय की हिमाचल में लगभग 10 से 11 लाख की आबादी है। इसमें से 6.80 लाख मतदाता हैं, जो कि सिसायत को बदलने का मादा रखते हैं। इन 6.80 लाख मतदाताओं में 60 प्रतिशत युवा वोटर हैं। हैरानी की बात है कि प्रदेश की राजनीति में अहम रोल अदा करने वाले धीमान समुदाय को सियासत में उचित प्रतिनिधत्व नहीं मिल पाया है। यह उस समुदाय की दास्तां है, जिसने देश को सातवां राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के रूप में दिया हो। हिमाचल प्रदेश को कभी चुनाव न हारने वाला एक सशक्त नेता और शिक्षा मंत्री स्व. ईश्वर दास धीमान के रूप में दिया हो। हालांकि सीपीएस नंद लाल, वित्तायोग के अध्यक्ष कुलदीप कुमार, मनोहर धीमान और पूर्व शिक्षा मंत्री के पुत्र अनिल धीमान उक्त समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, लेकिन यह प्रतिनिधित्व धीमान समुदाय के लिए नाकाफी है। राज्य में रही विभिन्न पार्टियों की सरकारें भी धीमान समाज के कल्याण की तरफ विशेष ध्यान नहीं दे पाई हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपने कांगड़ा प्रवास के दौरान धीमान कल्याण बोर्ड बनाने की घोषणा की थी, लेकिन हैरानी की बात है कि घोषणा के सात महीने बीत जाने के बाद भी धीमान कल्याण बोर्ड बनाने की ओर सरकार का ध्यान नहीं गया है। जन्म से इंजीनियर कहलाने वाले धीमान समुदाय के जो लोग अपने पुश्तैनी काम को आगे बढ़ा रहे हैं, उनकी सुरक्षा की ओर भी सरकार का ध्यान नहीं गया है। अरसे से धीमान कल्याण महासभा की मांग रही है कि पुश्तैनी काम बढ़ई (कारपेंटर) या लौहारगिरी से जुड़े उक्त समुदाय के लोगों को सरकार बीमा योजना से जोड़े, लेकिन यह मांग भी अब तक अधूरी है। यही नहीं, विश्वकर्मा की यह संतान अरसे से विश्वकर्मा दिवस यानी 17 सितंबर को अवकाश की मांग कर रही है, पर सरकार है कि इन महत्त्वपूर्ण मागों को अनसुना कर रही है। विश्व को अपने हुनर से खूबसूरत बनाने वाले धीमान समुदाय ने शिक्षा से लेकर सरकारी नौकरी, व्यापार से लेकर राजनीति और विशेष तौर पर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपनी धाक जमाई है, लेकिन इन लोगों की दिक्कतों की तरफ सरकार का रवैया सकारात्मक नहीं है।
इन क्षेत्रों में धीमान
हिमाचल प्रदेश का 1966 में जब पुनर्गठन हुआ तो उस समय पंजाब से जिला कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, कुल्लू, लाहुल-स्पीति, बंजार तथा आउटर सराज के क्षेत्र सम्मिलित हुए। साथ ही जिला शिमला, सोलन तथा सिरमौर में भी पंजाब से कुछ क्षेत्र काटकर मिलाए गए। इन सभी स्थानों पर लौहार, तरखान, चितेरे जातियां रहती थीं, जो आज भी हैं। उनमें आपस में रोटी-बेटी का रिश्ता है। मंडी सदर, सुंदरनगर, मोहनघाटी, लडभड़ोल, शिमस, ऊटपुर, संधोल, सरकाघाट, बिलासपुर सदर, बरठीं, झंडूता, चंबा के सिहुंता, बनीखेत व चुवाड़ी के अलावा प्रदेश के हर हिस्से में धीमान समुदाय के लोगों का निवास है।
जन्म से ही इंजीनियर
आविष्कारों व रचनाओं के धनी बढ़ई और लौहार जाति के आविष्कारों की ही हर शख्स नकल कर कला हासिल करता है। उक्त समाज के लोगों और बच्चों को पैदायशी इंजीनियर भी कहा जाता है।
… और उस तरह का बन गया ‘उस्तरा’
धीमान समुदाय की कारीगरी का अंग्रेज भी लोहा मानते थे। लोहा पिघलाने की तकनीक, लकड़ी की कारीगरी, काष्ठ कला, चित्रकारी आदि ऐसी कई शिल्प कलाएं थीं, जिन्होंने अंग्रेजों को भी अचंभित किया। कहते हैं कि अंग्रेजों ने एक धारदार ब्लेड तैयार किया और भारत आकर कहा कि हमने ब्लेड की ऐसी धार बनाई है, जिससे आसानी से दाढ़ी काटी जा सकती है। फिर क्या था लौहारों ने भी उसी तरह की धार तैयार कर दी और अंग्रेजों को बताया कि देखो हमने भी उस तरह का ब्लेड तैयार किया है। यहीं से उस तरह यानी उस्तरा का नामकरण हुआ।
सियासत में इनका डंका
वर्ष 1982 में भाजपा से गणू राम गेहड़वीं से विधायक रहे हैं, जबकि खनन विभाग भी उन्होंने संभाला।
वीरेंद्र कुमार दो बार हिमाचल प्रदेश के विधायक रहे। इनकी पत्नी निर्मला धीमान और पुत्र नवीन धीमान भी जसवां परागपुर से हिमाचल प्रदेश विधानसभा पहुंचे।
कभी चुनाव न हारने वाले भाजपा से स्व. ईश्वर धीमान। अपनी जिंदगी में उन्होंने छह बार विधानसभा चुनाव (मेवा, भोरंज) लड़ा और हर बार जीत हासिल की। मृत्य के बाद उनके पुत्र डा. अनिल धीमान ने भोरंज से उपचुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
वर्तमान में वित्त आयोग के अध्यक्ष व चिंतपूर्णी के विधायक कुलदीप कुमार विधानसभा उपाध्यक्ष, सहकारिता मंत्री और औद्योगिक मंत्री भी रह चुके हैं।
कांग्रेस विधायक और वर्तमान में मुख्य संसदीय सचिव नंद लाल पहली बार 2007 में रामपुर से विधायक बने और 2012 में फिर विधायक चुने गए।
गंगथ (अब इंदौरा) से बोध राज धीमान भी प्रदेश विधानसभा पहुंचे हैं
इंदौरा से 2012 के चुनावों में मनोहर धीमान निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे और जीत दर्ज की।
महान चित्रकार सरदार सोभा सिंह
प्रसिद्ध चित्रकार सरदार सोभा सिंह को कौन नहीं जानता। रामगढि़या परिवार में 29 नवंबर, 1901 को श्री हरगोबिंदपुर जिला गुरदासपुर में जन्में सरदार सोभा सिंह ने विश्व भर में पहचान बनाई है। अंद्रेटा स्थित आर्ट गैलरी में उनकी चित्रकला को देख देश ही नहीं, विदेशों से आए सैलानी भी रोमांचित हो जाते हैं। यहां उनके कलात्मक प्रयासों का प्रदर्शन है, जो दुनिया भर में बेजोड़ है। सरदार सोभा सिंह ने अनेक चित्र बनाए, जिसमें सिख गुरुओं पर उन्होंने ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। लोग ऐसा मानते हैं कि 1969 में गुरु नानक की 500वीं जयंती पर उनके द्वारा बनाया गया गुरु नानक देव का चित्र बहुत ही आकर्षित करने वाला था। इसके अलावा उनके द्वारा बनाई गई कांगड़ा की दुल्हन, सोहनी-महिवाल, हीर-रांझा की पेंटिंग हर किसी को मोहित कर लेती है।
सरदार जस्सा सिंह रामगढि़या
महान शूरवीर और रामगढि़या मिसल के संस्थापक सरदार जस्सा सिंह रामगढि़या का जन्म 1723 में हुआ था। वह तरखान मूल के थे और उनका नाम जस्सा सिंह ठोका (कारपेंटर) था। उन्होंने सिख मिसलों के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। पंजाब पर काबिज होकर कर-संग्रहण की योजना को अमल में लाकर स्वतंत्रता को धरातल पर उतारा। मुगल बादशाह की कुर्सी के निचले भाग का चबूतरा उखाड़कर दरबार साहिब अमृतसर में स्थापित किया। धीमान समुदाय से संबंधित जस्सा सिंह रामगढि़या के अधीन जसवां, डाडासीबा और आसपास के क्षेत्र लगभग 50 साल तक रहे।
चंदू लाल रैणा ने कांगड़ा कलम को विश्व भर में दिलाई पहचान
कला जगत के लिए कांगड़ा कलम अनुपम भेंट है। 18वीं शताब्दी के मध्य में जब बसोहली चित्रकला समाप्त होने लगी, तब यहां इतने अधिक विभिन्न प्रकार के चित्र बने कि इसे कांगड़ा चित्रकला के नाम से जाना जाने लगा। इस कला के मुख्य स्थान गुलेर, बसोहली, चंबा, नूरपुर, बिलासपुर और कांगड़ा हैं। बाद में यह शैली मंडी, सुकेत, कुल्लू, अर्की, नालागढ़ और गढ़वाल में भी अपनाई गई। महाराजा संसार चंद कटोच (1776-1824) के शासन काल में यह शैली शीर्ष तक पहुंची। कांगड़ा चित्रकला का मुख्य विषय शृंगार है। कांगड़ा (लदवाड़ा) के चितेरे चंदू लाल रैणा ने इस चित्रकला को यौवन तक पहुंचाया और विश्व भर में कांगड़ा कलम अलग पहचान दिलवाई। उनके बाद सतपाल रैणा ने इसे पुनर्जीवित किया और अब अनिल रैणा इसे आगे बढ़ा रहे हैं।
यह है इतिहास ऐसे हुई उत्पति
विश्वकर्मा पुराण के अनुसार उस अनंत नारायण की आज्ञा से जब ब्रह्मा जी ने पृथ्वी का निर्माण कर लिया तो उन्हें इसे स्थिर रखने की चिंता हुई। जब ब्रह्मा जी ने इसके लिए नारायण की स्तुति की तो स्वयं नारायण ने विराट विश्वकर्मा का रूप धारण कर इस डगमगाती पृथ्वी को स्थिर किया। विश्वकर्मा पुराण के अनुसार इस संसार का कोई ऐसा अणु नहीं है, जिसमें आप विद्यमान न हों। तीन लोक, चौदह भुवन सब इनकी कृति है। संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए विश्वकर्मा ने अपने पांचों पुत्रों के सहयोग से पृथ्वी के अंतस्थल से सोना, चांदी, लोहा तथा अनेक प्रकार की धातुएं व रत्न, आभूषण और पाषाण निकाले। वनों से चुन-चुनकर उच्च कोटि की लकड़ी का संग्रह किया। वेधशालाएं, पाठशालाएं, कार्यशालाएं, देवालय, रास्ते, कुएं, गोदाम, हवादार आवास आदि बनाकर संसार को रहने योग्य व सुंदर बनाया। विश्वकर्मा के पांचों पुत्रों में क्रमशः मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी व दैवज्ञ थे। इन पांचों पुत्रों को ब्राह्मण वर्ण में रखकर प्रभु विश्वकर्मा ने शिल्पकला में पारंगत किया।
धीमान कल्याण बोर्ड की अधिसूचना जल्द जारी हो
धीमान कल्याण महासभा के प्रदेशाध्यक्ष सरदार अवतार सिंह का कहना है कि 13 जनवरी, 2017 को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपने कांगड़ा प्रवास के दौरान धीमान कल्याण बोर्ड बनाने का ऐलान किया था, लेकिन सात महीने बीत जाने के बाद भी इसकी अधिसूचना जारी नहीं हो पाई है। उनका कहना है कि धीमान समुदाय के अधिकतर लोग कृषि पर डिपेंड हैं, लेकिन आधुनिकीकरण के कारण इनका पुश्तैनी काम लुप्त होता जा रहा है, सरकार को इस बारे मे सोचना चाहिए और विशेष योजना चलाई जानी चाहिए। उक्त समुदाय को कृषक मजदूर घोषित करना चाहिए। इसके अलावा सामाजिक सुरक्षा बीमा योजना से जोड़ा जाना चाहिए। काम करने के दौरान हादसों का डर रहता है। ऐसे में सरकार को अपंगता पर पांच लाख और मृत्यु पर दस लाख रुपए सहायता राशि दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि तरखान और लौहार में रोटी-बेटी का रिश्ता है, लेकिन एक समुदाय को ओबीसी वर्ग में रखा गया है और दूसरे को एससी वर्ग में। अतः एक ही समुदाय में रखी गई यह खाई भी सरकार को दूर करनी चाहिए।
नियुक्तियों में हो रहा अन्याय
समाजसेवी एवं नव भारत एकता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीसी विश्वकर्मा कहते हैं कि भर्तियों में ईमानदारी से चयन नहीं होता है और पिछड़े व दलित वर्गों के अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में कम अंक देकर उनके कोटे को ही समायोजित कर दिया जाता है। उनका कहना है कि सरकार आरक्षित वर्ग का बैकलॉग स्वंय तैयार करती है और फिर सालों तक इसे भरा नहीं जाता। ओबीसी में सरकार ने 12 प्रतिशत आरक्षण रखा है, लेकिन अभी तक चार प्रतिशत ही भरा गया है। इसी तरह एससी वर्ग को 25 प्रतिशत आरक्षण रखा है, लेकिन यह भी 15 प्रतिशत पर सिमट गया है, जो कि उक्त समुदाय के साथ अन्याय है।
सामाजिक सुरक्षा दे सरकार
ठेकेदार सकत्तर सिंह धीमान का कहना है कि प्रदेश सरकार को धीमान कल्याण बोर्ड के गठन की अधिसूचना तुरंत जारी करनी चाहिए। उनका कहना है कि सरकार ने उनके लिए योजनाएं तो चलाई हैं, लेकिन उनका लाभ लेने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है, जिस वजह से अधिकांश लोग इनका लाभ नहीं उठा पाते। अतः इस प्रक्रिया को आसान किया जाना चाहिए। साथ ही समाजिक सुरक्षा की ओर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए।
शिक्षा से ही उत्थान संभव
नगरोटा सूरियां कालेज के एसोसिएट प्रोफेसर एचएल धीमान कहते हैं कि व्यक्ति हो या समुदाय जब तक इन्फार्मेशन और इंस्पीरेशन से वंचित हैं, उसका माकूल उत्थान असंभव है। उत्थान सिर्फ शिक्षा से हो सकता है। हमारे लोग जन्मजात से विवेकी और बुद्धिमान होते हैं। यही वजह है कि उन्हें धीमान कहा जाता है, परंतु इनकी बुद्धिमता में उस जानकारी का अभाव है, जो सम्मान व सत्ता तक ले जाती है। इसलिए संगठित होने बहुत जरूरी है। बुद्धिमता और विवेक का इस्तेमाल उस तर्ज पर होना चाहिए, जिस तर्ज पर अभिजात्य शक्तियां अपने समुदाय के उत्थान के लिए करती आ रही हैं। उत्तम और उच्च शिक्षा का तड़का ही समुदाय को अग्रणी बना सकता है।
बैकलॉग जल्द भरे सरकार
पेशे से कारपेंटर राजीव कुमार का कहना है कि पुश्तैनी काम से जुड़ा उक्त समाज घर-घर जाकर लकड़ी या लोहे का काम करता है। कभी-कभार काम के दौरान गंभीर चोट या अनहोनी हो जाती है। सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में कदम उठाए और उन्हें सामाजिक सुरक्षा बीमा योजना से जोड़े। साथ ही एससी का बैकलॉग भी जल्द भरा जाना चाहिए।
प्रशासनिक सहित अन्य सेवाओं में भी कमाया नाम
धीमान समुदाय ने प्रदेश व देश को बड़ी शख्सियतें, नेता, समाजसेवी और अफसर दिए हैं। आईएएस पीसी धीमान रिटायर्ड अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं। इसी तरह आईएएस आरडी धीमान प्रिंसीपल सेक्रेटरी ऑफ लेबर एंड इंप्लाइमेंट, सोशल जस्टिस एंड इंप्लाइमेंट हैं। इंद्रेश धीमान स्टेट जियोलॉजिस्ट हैं। झंडूता के दिलेराम धीमान आईएफएस में हिमाचल से टॉपर रहे हैं। अमर सिंह संयुक्त निदेशक शिक्षा, सतपाल धीमान संयुक्त सचिव वन के अलावा आरसी चौहान आरईसी (अब एनआईटी हमीरपुर) के पहले प्रिंसीपल रहे हैं। साथ ही संत लोंगोवाल इंस्टीच्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में निदेशक पद पर भी रह चुके हैं। हिमाचल प्रदेश तकनीकी शिक्षा विश्वविद्यालय के पहले वीसी शशि कुमार धीमान, केएल धीमान नौणी विश्वविद्यालय के वीसी व प्रो. रमेश चंद डीन एंड निदेशक अडल्ट एजुकेशन एचपीयू आदि ऐसी शख्सियतें हैं, जो धीमान समुदाय को अग्रणी पंक्ति में खड़ा करती हैं। इसके अलावा भारतीय सेना में भी धीमान समुदाय से उच्च पदों पर आसीन हैं या रहे हैं। शिक्षा में अव्वल होने के कारण धीमान समुदाय ने एचएएस, एचपीएस में भी अपना परचम लहराया है।
एक ऐसा नेता, जो कभी नहीं हारा
हिमाचल की राजनीति में ‘गुरु’ के नाम से मशहूर स्व. ईश्ववर दास धीमान एक ऐसी शख्सियत थे, जो सभी के लिए सम्माननीय थे, फिर चाहे पक्ष हो या विपक्ष। अपने राजनीतिक जीवन में आईडी धीमान ने कभी कोई चुनाव नहीं हारा। वह पांच बार मेवा विधानसभा क्षेत्र और छठी बार भोरंज से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें कभी कोई हरा नहीं पाया। बेहद गरीब परिवार में 17 नवंबर, 1934 को जीआर धीमान और श्यामी देवी के घर जन्मे आईडी धीमान का बचपन बेहद गरीबी में गुजरा। उन्होंने सरकारी स्कॉलरशिप से स्कूली शिक्षा पूरी की और बतौर शिक्षक प्राथमिक पाठशाला भोरंज से करियर शुरू किया। 1960 में वह डीएवी हाई स्कूल टौणीदेवी में अध्यापक रहे। यहां पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल उनके शिष्य रहे। करीब 29 साल तक शिक्षा के क्षेत्र में सेवाएं देने के बाद उन्होंने 1989 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और भाजपा की सदस्यता लेकर राजनीति में कदम रखा। हिमाचल के इतिहास में कोई भी शिक्षा मंत्री कभी दूसरा चुनाव नहीं जीता, लेकिन श्री धीमान लगातार छह बार विधायक चुने जाने के साथ-साथ दूसरी बार शिक्षा मंत्री भी बने। वर्ष 2007 के संसदीय उपचुनाव में हमीरपुर सीट से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की जीत के पश्चात वह नेता प्रतिपक्ष चुने गए। करीब 27 सालों तक राजनीति में समय व्यतीत करने के बावजूद उनका चरित्र खुली किताब की तरह था, जिसके पन्नों पर कभी भ्रष्टाचार का नाम नहीं रहा। यही वजह थी कि विरोधी भी उनका लोहा मानते थे, मगर अपने जन्मदिन से ठीक दो दिन पहले 15 नवबंर, 2016 को प्रदेश के इस दिग्गज नेता और गुरु ने अंतिम सांस लेकर हिमाचल को झकझोर दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र डा. अनिल धीमान (वर्तमान विधायक) उपुचनाव में भोरंज से विधायक चुने गए।
देश के सातवें राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह
भारत के सातवें राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह भी धीमान समुदाय से थे। पांच मई, 1916 को पंजाब प्रांत के फरीदकोट जिला के संधवान ग्राम में जन्में ज्ञानी जैल सिंह सिर्फ एक दृढ़ निश्चयी और साहसी व्यक्तित्व वाले इनसान ही नहीं, बल्कि एक समर्पित सिख भी थे। भारतीय राजनीति में आज भी उन्हें एक निरपेक्ष और दृढ़ निश्चय वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है। उनके पिता किशन सिंह एक बढ़ई (कारपेंटर) और किसान थे। उनका वास्तविक नाम जरनैल सिंह था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ज्ञानी जैल सिंह पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के संघ के राजस्व मंत्री बने। इसके अलावा 1956 से लेकर 1962 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे। वर्ष 1972 से 1977 तक वह पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। 25 जुलाई, 1982 को उन्हें सर्वमत से राष्ट्रपति पद से नवाजा गया और 25 जुलाई 1987 तक इसी पद पर रहे।
इस तरह बंटे काम
मनु
लौह संहिता में अभ्यस्त होकर मनु लौह संबंधी शिल्प में कुशल बने। मनु ऋग्वेद और उपवेद आयुर्वेद के रचयिता व ज्ञाता थे। इनका गौत्र सानग था, जिसके 25 उपगोत्र चले, जो आगे लौहार कहलाए।
मय
इनका गौत्र सनातन था, जिनके 25 उपगोत्र हुए। मय के वंशज काष्ठ शिल्प में पारंगत थे और लकड़ी और उससे संबंधित वस्तुओं के अद्भुत नमूने पेश किए। इसी वंश के लोग आगे चलकर तरखान कहलाए।
त्वष्टा
इनका गौत्र अहभून था, जिनके भी 25 उपगोत्र हुए। त्वष्टा ने ताम्र संहिता का अध्ययन किया। इनके वंशजों ने तांबे तथा उससे संबंधित धातुओं के निर्माण में दक्षता हासिल की।
शिल्पी
विश्वकर्मा के चौथे पुत्र का गोत्र प्रत्न था, ने मिट्टी व पत्थर आदि के शिल्प में दक्षता हासिल की। इनके वंशजों ने अनेक प्रकार के भवनों व जलाश्यों का निर्माण किया।
दैवज्ञ
विश्वकर्मा के पांचवें पुत्र स्वर्ण संहिता में दक्ष थे और सोने की कारीगरी में माहिर थे। दैवज्ञ इतिहास पुराण के ज्ञाता थे। इनके वंशजों ने ही आगे जाकर सोने से संबंधित वस्तुओं का निर्माण किया।
Dhiman and gotra manikanth ke bare me koi btaa skta hai
osan
Dhiman konh
Dhiman jati Main vajan goter ki kuldevi aur sattian kahan hai
नाम का धीमान है, गोत्र चान्ना है। मिस्त्री का काम paddadaa ji,Lohe ka kaam Means Lathe Machines dada,Papa Chacha bhai sab ko karte dekha बचपन se...Dhiman MANU ji ke vanshaj hain? Lekin hmare gotra ke Kuldevi devta kaun huye ? Bhagwan vishwakarna, Manu Ya koi aur hain?
Shubham . Bhardwaj gotr dhiman cast me bhi hota hai .. vats , vashishth., Bhardwaj , Shandilya, bhargav aadi sabhi gotr Dhiman brahman jaati me hai ..
Dhiman bade hai
Kya ramgarhia aur dhimsn ek hi hai
Kya ramgarhia aur dhimAn ek hi hai
धीमान किसके वंसज है
Bhardwaj gotra dhiman me hota h kya
Dhimaan kon si category me ate h
Category of dhiman cast
Dhiman gotra jathare kanha hai
हम सभी बढ़ई ब्राह्मण ही है । चाहे धीमान शर्मा जांगिड़ जांगड़ा तेह्खान् राणा बहुत सारे सरनेम है हम बढ़ई समाज के लॉगो के ।
Kya ramgarhia or dhiman ek hi h
Jangra bade hote h ya dhiman
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Dheeman cast ki vanshavali