संतानहीनता अर्थात् जब आप बच्चे को जन्म देने में असमर्थ हों। अधिकांश पुरुष और महिलाएं यह मानते हैं कि वे बच्चे को जन्म दे सकेंगे । लेकिन सच्चाई यह है कि हर दस में से एक दंपति को गर्भधारण में कठिनाई होती है । कुछ महिलाएं तथा पुरुष बच्चा नहीं चाहते हैं । लेकिंन जो दंपति बच्चे की आशा करते हैं, उनके लिए संतानहीनता दुख, दर्द , क्रोध तथा निराशा बन जाती है ।
प्राय: ही संतानहीनता का दोष महिला के सिर पर थोंप दिया जाता है परंतु लगभग आधे मामलों में इसके लिए पुरुष जिम्मेवार होता है । कभी-कभी पुरुष इस बात पर विश्वास नहीं करता है कि यह समस्या उसेक कारण हैं, या इसके लिए दोनों जिम्मेवार हैं । वह ग़लतफ़हमी या अज्ञानता के कारण ऐसा सोच सकता है कि क्योंकि वह क्रिया करने में सक्षम हैं, इसलिए संतानहीनता के लिए वह जिम्मेवार नहीं हो सकता । इस कारण वह अपनी जांच करने से मना कर सकता है तथा उसे इस बात पर क्रोध भी आ सकता है । अधिकतर यह इसलिए होता है, क्योंकि समाज में संतानहीनता को शर्म की निगाह से देखा जाता है और पुरुष के लिए बच्चे पैदा करना मर्दानगी की निशानी समझी जाती है ।
संतानहीनता के अनके कारण है । इनमें से कुछ का उपचार संभव है और कुछ का नहीं । इस अध्याय से आपको संतानहीनता के बारे में ठीक से जानने और उसके उपचार के बारे में पता चलेगा ।
हम किसी दंपति को निःसंतान तब कहते हैं, जब दो वर्ष तक पति के साथ, परिवार नियोजन से किसी साधन का उपयोग किये बिना, नियमित रूप से यौन संबंध रहने पर भी महिला गर्भधारण न कर सके । पत्नी को अगर 3, या उससे अधिक बार लगातार गर्भपात हुए हैं, तो भी उन्हें गर्भ धारण करने की समस्या से पीड़ित माना जाता है ।
जिस दंपति को पहले एक बच्चा पैदा हो चूका है, वे भी तदोपरांत संतान से वांछित रह सकते हैं । पहला बच्चा पैदा होने के पश्चात भी कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है ।
कभी-कभी समस्या केवल पुरुष या महिला में नहीं, बल्कि दोनों में संयुक्त रूप से हो सकती है । कभी कभी ऐसा भी हो सकता है कि दोनों ही स्वस्थ हों तथा कोई भी डॉक्टर या परिक्षण संतान न होने के कारण का पता लगाने में असमर्थ हों ।
अत्यधिक शराब पीना, धुम्रपान, तम्बाकू चबाना, या नशीली दवाईयों का सेवन जैसी आदतें पुरुष, या महिला की संतान उत्पन्न करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है ।
वह बिल्कुल ही, या पर्याप्त मात्रा में शुक्राणु बनाने में असमर्थ हैं , या उसके सुक्राणुओं की गुणवत्ता में कमी हो । हो सकता है कि उसके शुक्राणु गतिशील न हों और वे, गर्भाशय में से तैर कर, अंडे तक पहुंचने में असमर्थ हों ।
महिलाओं में संतानहीनता के मुख्य कारण हैं :उसकी फैलोपियन नलिकाओं, या गर्भाशय में संक्रमण है या वे बंद हैं । नलिकाएं बंद होने से अंडा नलिकाओं में सक्रिय नहीं हो पाता है, या शुक्राणु अंडे तक नहीं पहुंच पाते हैं । गर्भाशय में संक्रमण होने, या वहां जख्मनिशान होने के कारण निषेचित अंडा गर्भाशय की अंदरूनी भित्ति से चिपक नहीं पाता है । कभी-कभी महिला को से अत्यधिक स्त्राव या दर्द होता है, जो गर्भाशय तथा में संक्रमण के सूचक हैं । परिणामस्वरूप, गर्भाशय की आतंरिक भित्ति पर जख्म के निशान पड़ जाते हैं, जिनके बारे में महिला को पता भी नहीं चल पाता है । वर्षों पश्चात उसे पता चलता है कि उसमें संतान पैदा करने की क्षमता नहीं है ।
जख्मों के पश्चात निशान (स्कारिंग) निम्न कारणों से हो सकते हैं :
कभी कभी तेजी से वजन कम करने या शरीर का वजन बहुत अधिक होने या हार्मोन युक्त दवाइयों के सेवन से भी ओवूलेशन में कठिनाई हो सकती है ।
कार्य स्थल तथा घर में खतरे जिनसे प्रजनन क्षमता हो हानि हो सकती है। ये खतरे प्रजनन क्षमता को, सुक्रणुओं तथा अंडे के निर्माण से ले कर एक स्वस्थ शिशु के जन्म तक, अनके प्रकार से नुकसान पहुंचा सकते हैं :
अगर आपको या आपके जीवन साथी को संतानहीनता की समस्या है तो :एक वर्ष गुजरने के बाद भी अगर आप गर्भधारण नहीं कर पायी हैं , तो किसी स्वास्थ्यकर्मी से मिलें । कुछ ऐसे साधारण परिणाम हैं, जिनसे अधिक पैसा भी लगता है और उनसे समस्या का कारण आसानी से पता चल जाता है । उदहारण के तौर पर, प्रयोगशाला का तकनीशियन आपके साथी के की सूक्ष्मदर्शी से जांच कर के यह देख सकता है कि उसके शुक्राणु प्रयाप्त मात्रा में, या स्वस्थ हैं, या नहीं । एक प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी, आपकी अंदरूनी जांच कर के आपके गर्भपात, नलिकाएं तथा में संक्रमण, या रसौली का पता लगा सकती है ।वह सुबह-सुबह आपके शरीर का तापमान नोट कर के अंडा विसर्जन (ओवूलेशन) होने के बारे में जानने का तरीका भी सिखा सकती है ।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ये परीक्षण आपको केवल समस्या के कारण के बारे में बताते हैं । ये उसका समाधान नहीं करते हैं । आजकल ऐसी अनके प्रभावी दवाइयां उपलब्ध हैं, जो ओवूलेशन करा सकती हैं और प्रजननता में सुधार ला सकती है ।
आप और आपके साथी, दोनों का शारीरिक परीक्षण, प्रजनन तंत्र के रोगों तथा यौन संचारित रोगों के लिए, होना चाहिए । अगर दोनों में से किसी में बी ऐसा कोई रोग पाया जाए, तो दोनों का उपचार होना आवश्यक हैं । तुरंत ही ऐसे स्वास्थ्य केंद्र या क्लिनिक में जाइए ,जहां इन रोगों का उपचार होता हो । दवाईयों की पूरी खुराक, पूरी अवधि के लिए लें । निम् हकीमों के पा जा कर अपने पैसे और समय की बर्बादी न करें ।
हालांकि एक पुरुष के शरीर में प्रतिदिन लाखों शुक्राणुओं का निर्णय होता है, इस स्वस्थ महिला प्रतिमास केवल एक अंडा ही विसर्जित करती है । अंडा विसर्जन (ओवूलेशन) के समय को ही प्रजनक काल कहते हैं । महिला केवल इसी काल में ही गर्भधारण कर सकती है । अधिसंख्य महिलाओं में यह प्रजनक काल माहवारी शुरू होने के 10 दिन पश्चात शुरू होता है और पश्चात 6-8 दिनों तक रहता है ।
शरीर में कई ऐसी लक्षण चिन्ह उत्पन्न हो जाते हैं, जिनसे आप अपने प्रजनक काल का पता लगा सकती है । इनमें सबसे सरल तरीका है अपनी की श्लेष्मा (म्यूकस) में परिवर्तनों का पता लगाना ।
अपनी की श्लेषमा का परिक्षण करना
प्रजनन काल में, महिला का गर्भाशय की ग्रीवा म्यूकस अर्थात श्लेष्मा ( एक प्रकार का तरल पदार्थ) का निर्माण करती है, जो शुक्राणुओं के गर्भाशय में प्रवेश में सहायता करते हैं । यह म्यूकस अंडे की सफेदी की भांति साफ तथा गिला होता है और आप इसे दो उँगलियों के बीच, तार की तरह खिंच सकती हैं । मासिक चक्र के बाद के भाग में यह चिपचिपा म्यूकस और गाढ़ी हो जाती है, जो पुरुष के शुक्राणुओं को गर्भाशय में प्रवेश करने से रोकती है ।
प्रति दिन म्यूकस में होने वाले परिवर्तनों का विवरण एक चार्ट में लिखें । जिस सप्ताह में म्यूकस गिला, साफ़ तथा चमकदार हो, उस अवधि में प्रतिदिन संभोग करें ।
संभोग क्रिया के दौरान, शुक्राणुओं को गर्भाशय तक पहुँचाने के लिए, सबसे अच्छी स्थिति निम्न होती है :
- आप कमर के बल लेटें और पुरुष उपर हो।
- आप करवट लेकर लेटें ।
संभोग के पश्चात उठें नहीं । कमर के बल लगभग 20 मिनट तक लेटी रहें । अपने नितंबों के नीचे एक तकिया भी रख लें । इससे शुक्राणुओं को गर्भाशय तक तेजी से पहुंचने तथा अंडे से मिलने में सहायता मिलेगी ।
संभोग के दौरान तेल या क्रीम आदि का प्रयोग न करने से भी सहायता मिलेगी।तेल और क्रीम शुक्राणुओं को मार सकते हैं, या शुक्राणुओं को अंडे तक पहुँचने में बाधक बन सकते हैं ।
उपचार शुरू करने के बाद, या उपचार के बिना भी, अनके दंपति शादी के तीसरे वर्ष में गर्भधारण कर पते हैं ।
इस प्रक्रिया में एक दाता पुरुष के को महिला के गर्भाशय में डाला जाता है । वीर्यदाता पुरुष की पहचान गुप्त रखी जाती है, विशेष कर उन मामलों में , जहां महिला के साथी का गर्भधारण के लिए सक्षम नहीं है ।
इसे टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया भी कहा जाता है । यह एक अत्यंत जटिल प्रक्रिया है, जिसका प्रचलन केवल कुछ महानगरों में ही है । यह बहुत महंगी प्रक्रिया है और कुछ विशिष्ट चिकित्सालयों में उन लोगों के लिए उपलब्ध हैं, जो इसका खर्च वहन कर सकते हैं । अनेक बार यह परक्रिया झूठी आशाओं तथा एक साधन बन जाती है क्योंकि इसकी सफलता की दर केवल 6-8% ही है ।
अनेक दंपतियों के लिए गर्भधारण करना नहीं, बल्कि गर्भ को बनाए रखना एक समस्या होती है । एक दो गर्भों का नुकसान होना एक आम बात है । यह कमजोर गर्भों को समाप्त करने का शरीर का एक तरीका है । गर्भपात अदृश्य तनाव, या चोट के कारण भी हो सकता है ।
लेकिन अगर आपको 3 या अधिक बार गर्भपात हो चुका है, तो कोई समस्या भी हो सकती है जैसे :
गर्भपात के जोखिम के सूचक हैं :
जब ये लक्षण दिखें, तो क्या करना चाहिए :
दोबारा गर्भधारण के प्रयत्न से पहले :
जब आप गर्भवती हो जाएं:
संतान के बिना जीवन
संतान न होने से कोई भी महिला या पुरुष दुखी, चिंतित, एकाकी, कुंठित या क्रोधित रह सकते हैं ।
जब आप ऐसा महसूस करें, तो सोचिए कि आप अकेली नहीं हैं । अनके क्षेत्रों में एक नी:संतान महिला को तंग, पीटा तथा बेइज्जत किया जाता है, या उसे छोड़ दिया जाता है और पुरुष दूसरी शादी कर लेता है ।
भारत में नी:संतान महिला को “बांझ” या “बंझनी” या “सुखी कोख” कहा जाता है। उसको उपचार के लिए अनेक रिवाजों तथा रीतियों का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है ।
लेकिन यह आवशयक हैं कि ऐसी स्थिति में दोनों जीवन साथी एक दुसरे का साथ दें । ऐसे लोगों से बात करें, जो आपके हितैषी हैं । आप ऐसे अन्य दंपतियों से भी मिल सकते हैं और एक दुसरे की सहायता करना सीख सकते हैं ।
नीचे दी गयी कहानियां वह वर्णन करती हैं कि लोगों में संतानहीनता की समस्या को किस प्रकार सहन किया है-
बीनू और राजा की कहानी
बीनू और राजा ने कई वर्षों तक प्रयत्न किया, परंतु उनके यहां बच्चा पैदा नहीं हुआ । शुरू में वे काफी दुखी थे, क्योंकि उनके समाज में दंपतियों से यह आशा की जाती है कि जितने बच्चे पैदा करें । परंतु इसके बाद उन्होंने यह सोचना बंद कर दिया कि बच्चों के बिना जीवन अधूरा है । उन्होंने अपने भविष्य के लिए योजना बनाना शुरू कर दिया ।
उन्होंने गांव-गांव जा कर सामान बेचने का व्यापार शुरू कर दिया । वे बड़े शहर में जाकर, वहां से सस्ते दामों पर ऊनी कपड़े खरीदते और थोड़े मुनाफे के साथ, उन्हें पास के छोटे गांवों तथा कस्बों में बेच देते । अगर उनके बच्चे होते, तो उनके लिए गांव-गांव घूमना संभव नहीं होता ।
अब जब बीनू और राजा बूढ़े हो गए हैं, तो लोग कहते हैं कि उनके चहरे एक दुसरे से मिलते हैं तथा उनके विचार भी एक जैसे हैं । वे एक दुसरे का ध्यान रखते हैं, सुख-दुख बांटते हैं और उनके काफी साझे मित्र हैं । वे, अपने पड़ोसियों की भांति, दादा-दादी तो नहीं है, पर उनके पास सुनाने के लिए अनके रोचक कहानियां हैं । गांव में हर कोई उनकी इज्जत करता है और गांव के बच्चे उन्हें घेरे रहते हैं । उन्हें उनकी कहानियां सुनना अत्यंत पसंद है ।
हमारी अपनी इच्छा से
गौरी बच्चे को जन्म देने में असमर्थ थी । वह कई वर्षों से कोशिश कर रही थी और बार बार जांच कराने पर उसने अपनी मेहनत की कमाई का काफी बड़ा अंशा गंवा दिया था । अस्पताल की नर्स ने उसे स्पष्ट रूप से बताया था कि उसके पति का बच्चा पैदा करने में सक्षम नहीं था । लेकिन उसके पति ने यह बात स्वीकार नहीं की । वह उसे बच्चा भी गोद नहीं लेने दे रहा था । उसकी सास भी, गोरी को बांझ बता कर, उसके पति पर जोर दे रही थी कि वह दूसरी शादी करे ।
एक दिन जब गौरी आपनी सास के लिए खांसी-जुकाम की दवा लेने गयी तो नर्स ने उसे एक खुशखबरी सुनायी । उसने बताया कि एक सप्ताह पहले एक महिला अपने घर वालों की यातना के डर से एक नवजात कन्या को जन्म दे कर, छोड़ कर चली गयी थी । न ही उसने अपना कोई अता पता छोड़ और न ही उसने अपना कोई अता पता छोड़ा और न ही उसने, या उसके परिवार के सदस्यों ने उस नवजात कन्या को कोई खोज-खबर ही ली ।
नर्स ने गौरी को बताया कि उस कन्या को एक मां और एक घर परिवार की आवश्यकता थी । बच्चे के लिए तरसती गौरी के लिए यह भगवान का उपहार जैसा था ।
पहले तो गौरी झिझकी । परंतु उस बेबस और अकेली कन्या को देख कर उसका दिल भर आया । उसने उस कन्या के लिए कुछ करने की ठान ली ।
वह तुरंत घर वापिस आई और उसने पति और सास से इस बारे में चर्चा की । तीन दिन तक वह सिर्फ बच्चे की रट लगाये रही । उसने न कुछ खाया, न पिया और बेबसी पर बुरी तरह रोती रही।
धीरे धीरे उसके पति को उसकी बात सुननी पड़ी और उसने गौरी की खातिर उस कन्या को देखना मंजूर कर लिया । यह एक जादुई क्षण था ।
आज वह कन्या-मुनिया स्थानीय स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली एक चुलबुली और मुसकुराती लड़की हैं । वह अपनी मां, गौरी, पिता तथा दादी को बहुत प्यार करती है और वे भी उस पर जान देते हैं । गांव के अन्य लोग को यह देखकर आश्चर्य होता है कि मुनिया के आने के बाद गोरी का पति कितना शांत मिजाज वाला हो गया है । आज अन्य लोग एक लड़की को गोद लेने के लिए उसकी आलोचना करते हैं, जिसके लिए उसे दहेज़ जुटाना होगा, तो वह उन्हें मुस्करा कर, यह कह कर चुप करा देता है कि जो प्यार मुनिया ने उसे दिया है, उसके सामने दहेज़ की समस्या कुछ भी नहीं है । वह गर्व से कहता है कि वह मुनिया को पढाएगा-लिखाएगा ।
और क्योंकि वह जंव में किसी लकड़ी को गोद लेने वाला पहला व्यक्ति है, इसलिए समय आने पर वह मुनिया के लिए एक उचित वर ढूंढ कर उसकी शादी भी कर देगा और वह गांव में दहेज़ दिए बिना बेटी की शादी वाला पहला व्यक्ति बनना चाहेगा।
गौरी मुस्करायी और उसने इश्वर को धन्यवाद दिया । उसका पति अब एक गजब का नया आदमी है, क्योंकि अब उसने मुनिया के संदर्भ में देखना शुरू कर दिया है ।
संतान न होने से पीड़ित अन्य लोगों की सहायता के लिए :
स्वास्थ्य कर्मचारी ये सब भी कर सकते हैं :
- शादी से पहले और शादी के बाद अवैध यौन संबंधों से बचना।
- अधिक लंबे समय तक हार्मोन युक्त गोलियां लेने से बचना।
- नीम हकीमों से सलाह-मशवरा न करना ।
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