Deshi Riyaasat Kya Hai देसी रियासत क्या है

देसी रियासत क्या है



GkExams on 28-12-2018


ब्रिटिश राज के दौरान अविभाजित भारत में नाममात्र के स्वायत्त राज्य थे। इन्हें आम बोलचाल की भाषा में “रियासत”, “रजवाड़े” या व्यापक अर्थ में देशी रियासत कहते थे। ये ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सीधे शासित नहीं थे बल्कि भारतीय शासकों द्वारा शासित थे। परन्तु उन भारतीय शासकों पर परोक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का ही नियन्त्रण रहता था।सन् 1947 में जब हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ तब यहाँ 565 रियासतें थीं। इनमें से अधिकांश रियासतों ने ब्रिटिश सरकार से लोकसेवा प्रदान करने एवं कर (टैक्स) वसूलने का ‘ठेका’ ले लिया था। कुल 565 में से केवल 21 रियासतों में ही सरकार थी और मैसूर, हैदराबाद तथा कश्मीर नाम की सिर्फ़ 3 रियासतें ही क्षेत्रफल में बड़ी थीं। 15 अगस्त,1947 को ब्रितानियों से मुक्ति मिलने पर इन सभी रियासतों को विभाजित हिन्दुस्तान (भारत अधिराज्य) और विभाजन के बाद बने मुल्क पाकिस्तान में मिला लिया गया।
परिचय तथा इतिहास:-मुगल तथा मराठा साम्राज्यों के पतन के परिणामस्वरूप भारतवर्ष बहुत से छोटे बड़े राज्यों में विभक्त हो गया। इनमें से सिन्ध, भावलपुर, दिल्ली, अवध, रुहेलखण्ड, बंगाल, कर्नाटक मैसूर, हैदराबाद, भोपाल, जूनागढ़ और सूरत में मुस्लिम शासक थे। पंजाब तथा सरहिन्द में अधिकांश सिक्खों के राज्य थे। आसाम, मनीपुर, कछार, त्रिपुरा, जयंतिया, तंजोर, कुर्ग, ट्रावनकोर, सतारा, कोल्हापुर, नागपुर, ग्वालियर, इंदौर, बड़ौदा तथा राजपूताना, बुंदेलखण्ड, बघेलखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, काठियावाड़, मध्य भारत और हिमांचल प्रदेश के राज्यों में हिन्दू शासक थे।ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सम्बन्ध सर्वप्रथम व्यापार के उद्देश्य से सूरत, कर्नाटक, हैदराबाद, बंगाल आदि समुद्रतट पर स्थित राज्यों से हुए। तदन्तर फ्रांसीसियों के साथ संघर्ष के समय राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को प्रेरणा मिली। इसके फलस्वरूप साम्राज्य निर्माण का कार्य 1757 ईसवी से प्रारम्भ होकर 1856 तक चलता रहा। इस एक शताब्दी में देशी राज्यों के आपसी झगड़ों से लाभ उठाकर कम्पनी ने अपनी कूटनीतिक सैनिक शक्ति द्वारा सारे भारत पर सार्वभौम सत्ता स्थापित कर ली। अनेक राज्य उसके साम्राज्य में विलीन हो गये। अन्य सभी उसका संरक्षण प्राप्त करके कम्पनी के अधीन बन गये। यह अधीन राज्य ‘रियासत’ कहे जाने लगे। इनकी स्थिति उत्तरोत्तर असन्तोषजनक तथा डाँवाडोल होती गयी। रियासतों की शक्ति क्षीण होती गयी, उनकी सीमाएँ घटती गयीं और स्वतन्त्रता कम होती चली गयी।
1757 से 1856 तक की स्थिति:- 1756 तक कर्नाटक और तंजावुर क्षेत्र ब्रिटिश कम्पनी के अधीन हो गय्। 1757 में बंगाल भी उसके प्रभाव क्षेत्र में आ गया। 1761 तक हैदराबाद के निज़ाम उसका मित्र बन गया। 1765 में बंगाल की स्वतन्त्रता समाप्त हो गयी। इसी वर्ष इलाहाबाद की सन्धि द्वारा दिल्ली के सम्राट् शाह आलम और अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ कम्पनी की मैत्री हो गयी तथा भारतय रियासतों के साथ उसके सम्बन्धों का वास्तविक सूत्रपात हुआ। 1765 से 1798 तक मराठा, अफगानों तथा मैसूर के सुल्तानों के भय के कारण आत्मरक्षा की भावना से प्रेरित होकर कम्पनी ने आरक्षण नीति द्वारा पड़ोसी राज्यों को अन्तरिम राज्य बनाया जिससे नव निर्मित ब्रिटिश राज्य शक्तिशाली मित्र राज्यों से घिर कर सुरक्षित बन गया। इस अवसरवादी नीति को अवध और हैदराबाद रियासत के साथ कार्यान्वित किया गया। इसके अनुसार दिखावे के लिये उनके साथ समानता का व्यवहार किया गया। परन्तु वास्तविकता यह थी कि इस प्रक्रिया में उन्हें अधीन बनाने, उनकी सैनिक शक्ति क्षीण करने तथा उसके सम्पन्न भागों पर अधिकार करने के किसी अवसर को कम्पनी ने अपने हाथ से बाहर न जाने दिया। रियासतों के प्रति जितनी नीतियाँ कम्पनी ने भविष्य में अपनायीं उनमें से अधिकांश अवध में पोषित हुईं। इस काल में कम्पनी ने मैसूर तथा मराठा राज्य में फूट डालकर हैदराबाद के सहयोग से उनके विरुद्ध युद्ध किये। अवध को रुहेलखण्ड हड़पने में सहायता देकर रामपुर का छोटा राज्य बना दिया। ट्रावनकोर और कुर्ग कम्पनी के संरक्षण में आ गये।
लॉर्ड वेलेज़ली की अग्रगामी नीति:- 1799 से 1805 तक लॉर्ड वेलेज़ली की अग्रगामी नीति के फलस्वरूप सूरत, कर्नाटक तथा तंजोर के राज्यों का अन्त हो गया। अवध, हैदराबाद, बड़ौदा, पूना और मैसूर सहायक सन्धियों द्वारा कम्पनी के शिकंजे में बुरी तरह जकड़ लिये गये। अब वे केवल अर्ध स्वतन्त्र राज्य भर रह गये थे इसके अतिरिक्त उनकी और कुछ भी हैसियत न थी। उनकी बाह्य नीति पर भी ब्रिटिश शासन का नियन्त्रण हो गया। सैनिक शक्ति घटा दी गयी। राज्यों में उन्हीं के खर्च पर सहायक सेना रखी गयी जिसके बल पर आन्तरिक आक्रमणों तथा विद्रोहों से उनकी रक्षा की गयी। राजाओं की गतिविधियों पर दृष्टि रखने तथा ब्रिटिश हितों की सुरक्षा एवं वृद्धि के लिये उनकी राजधानियों में ब्रिटिश प्रतिनिधि रहने लगे। राज्यों से ब्रिटिश विरोधी सभी विदेशी हटा दिये गये। अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों का फैसला ब्रिटिश कम्पनी करने लगी। ये अपमानजनक सन्धियाँ देशी राज्यों के लिये आत्मविनाश तथा ब्रिटिश साम्राज्य के लिये विकास श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ियों के समान थीं। युद्ध में परास्त होकर नागपुर और ग्वालियर भी उसी जाल में फँस गये। भरतपुर ने ब्रिटिश आक्रमणों को विफल बनाने के पश्चात् सन्धि कर ली। इसी समय से रियासतों के शासक अनुत्तरदायी होने लगे तथा उनके आन्तरिक शासन में अनेक बहानों से ब्रिटिश रेजीडेण्ट हस्तक्षेप करने लगे।



Comments jayesh on 08-06-2023

धन्यवाद सर आपकी पोस्ट काफी लाब्दायी है और हमें आपके आर्टिकल्स पड़ना काफी ज्यादा अच्छा लगता है. आप हमारे देश के लिए काफी अच्छा काम कर रहे है इस प्रकार से और बेतरीन आर्टिकल्स हमरे लिए पोस्ट करते रहिये.

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Santanu Kumar on 04-03-2023

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