शराब
शराब का सेवन यदि कम या सीमित मात्रा में किया जाए तो इसे कई देशों में सामाजिक रूप से ठीक माना जाता है सामान्यतया इसका सेवन सुख, एक समाजिक क्रिया, प्रेरणा या उत्तेजना के रूप में किया जाता है। शराब के सेवन के पीछे कई सामाजिक, सांस्कृतिक कारक भी उत्तरदायी होते हैं जैसे उच्च वर्गों में सामाजिक रूप से इसके सेवन को मान्यता दी जाती है। बेरोजगारी, बचपन में माता पिता की मृत्यु, पति-पत्नी का कामकाजी होना, मित्रों का दबाव, फैशन, विज्ञापन आदि ऐसे कारक हैं जिससे व्यक्ति में शराब या मदिरापान की आदत विकसित होती है। व्यसन वर्तमान समाज की एक गंभीर समस्या है इसकी गम्भीरता को दो आधारों पर देखा जा सकता है :
(१) केवल भारत में ही नहीं विश्व स्तर पर इसके निवारण हेतु कार्यक्रम बनाने के प्रयास किए जा रहे है,
(२) वर्तमान समय में कम आयु युवा पीढ़ी तथा विद्यालय और महाविद्यालय में भी इसके सेवन का प्रचलन निरन्तर बढ़ता जा रहा है।
इसके सेवन का एक बड़ा कारण चिन्ताओं और तनावों से क्षणिक मुक्ति प्राप्त करना है। धीरे-धीरे यह उसे व्यसनी बना देती है। यह एक शान्तिकर पदार्थ है यद्यपि यह नसों को शान्त करते हुए तनाव को कम करती है। परन्तु साथ ही इसके अधिक सेवन से निर्णय क्षमता मन्द होने लगती है।
शामक/अवसादक/शान्तिकर पदार्थ
व्यसन के इस प्रकार में शान्तिदायक या पीड़ाशामक मादक पदार्थ आते हैं। शामक या अवसादक पदार्थ केन्द्रीय नाड़ीमण्डल को अशक्त करते हुए नींद उत्पन्न करते हैं। अतः इसका प्रभाव शान्तिकारक होता है। इस श्रेणी में ट्रैक्विलाइजर (शांति प्रदान करने वाले द्रव्य) और बार्बिट्युरेट आते हैं। सामान्यतया इन द्रव्यों का प्रयोग शल्य चिकित्सा के पूर्व और बाद में रोगियों के आराम और शिथिलीकरण के लिए किया जाता है। इसी प्रकार से चिकित्सीय दृष्टि से उच्च रक्तचाप, अनिद्रा और मिरगी के रोगी को उपचार देने के लिए भी शमक द्रव्यों का उपयोग किया जाता है। कम मात्रा में लेने पर व्यक्ति को शिथिलता का अनुभव कराते हुए ये द्रव्य सांस की गति व दिल की धड़कन को धीमा कर व्यक्ति को आराम पहुँचाते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में इन पदार्थों का प्रयोग व्यक्ति को चिड़चिड़ा, आलसी और निश्क्रीय बना देता है। शामक द्रव्यों का निर्धारित मात्रा से अधिक खुराक के रूप में प्रयोग व्यसनी के सोचने, काम करने, ध्यान देने की शक्ति को कम करते हुए भयावह स्थिति को उत्पन्न करता है।
उत्तेजक पदार्थ
उत्तेजक द्रव्य अधिकांशतः मुख से लिए जाते हैं लेकिन कुछ पदार्थ जैसे मेथेड्रीन इंजेक्शान द्वारा भी लिए जाते हैं। इन पदार्थो का व्यसन करने वाले व्यक्तियों में शारीरिक निर्भरता की तुलना में मानसिक निर्भरता अधिक होती है अतः अचानक बन्द कर दिए जाने पर ये मानसिक अवसाद उत्पन्न करते है और व्यक्ति की स्थिति भयावह हो जाती है। उत्तेजक मादक पदार्थों का सेवन निद्रा और उदासी को दूर करते हुए व्यक्ति का चुस्त, सक्रिय और फुर्तीला बनाता है। डॅाक्टर द्वारा ऐम्फेटामाइन की मध्यम डोज थकान को नियंत्रित करती है इनमें कैफीन और कोकीन भी सम्मिलित है परन्तु ऐम्फेटामाइन का दीर्घकालिक भारी उपयोग बौद्धिक, भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक विकारों को उत्पन्न करता है। अपराध जगत में ऐम्फेटाइन ‘अपर्स या पेपपिल्स ड्रग के नाम से मशाहूर है। इन उत्तेजक पदार्थों को अचानक बन्द कर देने से मानसिक बिमारियां व आत्महत्या जन्य अवसाद उत्पन्न होते हैं।
नार्कोटिक/स्वापक/तन्द्राकर पदार्थ
अफीम के विभिन्न रूप में उपलब्ध चरस, गांजा, भांग, हैरोइन (स्मैक, ब्राउन शुगर मारफीन, पैथेडीन) आदि व्यसन की नार्कोटिक श्रेणी में सम्मिलित हैं और प्रायः पौधों से प्राप्त होते हैं। व्यक्ति इन पदार्थों का व्यसनी चिन्ता, उदासी, और विवाद को दूर करने के प्रयास के कारण हो जाता हैं। तन्द्राकर पदार्थ शामक पदार्थों के समान ही नाड़ीमण्डल पर अवसादक प्रभाव उत्पन्न कर व्यसनी व्यक्ति में आनन्द, सामर्थ्य, हिम्मत, जैसी भावनाओं को उत्पन्न करते हैं। हैरोइन मार्फीन, पेथेडीन और कोकीन या तो कश के रूप में लिए जाते है या फिर तरल पदार्थ के रूप में इंजेक्शन द्वारा अफीम, गांजा, चरस आदि को व्यक्ति या तो नाक से खींचता है या चिलम का सहारा लेता है लेकिन इन सभी पदार्थों का अत्यधिक प्रयोग व्यक्ति की भूख कम करता है। नार्कोटिक पदार्थों का सेवन बन्द कर देने से अन्तिम डोज लेने के 8 से 12 घण्टे बाद कम्पन्न, पसीना आना, दस्त मिचलाहट पेट व टांगों में ऐंठन, मानसिक वेदना जैसे लक्षण प्रकट होने लगते हैं। इन सब अवस्थाओं से गुजरने पर व्यक्ति महसूस करता है कि जैसे वह जीते जी नरक भोगकर आया है।
गांजे की अधिक मात्रा लती व्यक्ति को आनन्द की अपेक्षा आतंक महसूस कराता है तथा इसका सेवन बन्द कर देने पर व्यक्ति अचानक हिंसक हो उठता है या पागलों के समान सड़को पर दौड़ने लगता है। इस श्रेणी के सभी उत्पाद कोशिका की सारी कार्यवाही को अस्त-व्यस्त कर देते हैं। मस्तिष्क की कोशिकाओं के साथ ऐसा होने पर असाधारण संवेदनायें उभरने लगती हैं।
विभ्रामात्मक पदार्थ / भ्रामोत्पादक / भ्रान्तिजनक पदार्थ
इन पदार्थों में सर्वाधिक व्यसन एल.एस.डी. (LSD) का किया जाता है। यह एक कृत्रिम रासायनिक पदार्थ है। यह नशीला पदार्थ इतना शक्तिशाली है कि इसकी एक तोले से ही तीन लाख डोज बनाये जाते हैं। नमक के दाने से भी कम इसकी मात्रा मनुष्य में कई मनोरोगमय प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करता है। इस पदार्थ के सेवन के 8-10 घण्टे तक नींद आना लगभग असम्भव है। एल.एस.डी. लेने के पश्चात गांजे के समान ही फ्लैशबैक की घटना प्रारम्भ हो जाती है, व्यक्ति हिंसक होकर अपराध भी कर बैठता है तथा यह पूर्ण भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं। चिकित्सकों के द्वारा इन पदार्थों के सेवन की सलाह कभी नहीं दी जाती, ऐसे पदार्थों का सेवन बन्द कर देने पर अतिभय, अवसाद, स्थायी मानसिक असंयम पैदा हो जाता है।
ताम्रकूटी / निकोटीन पदार्थ
ताम्रकूटी पदार्थों में सिगरेट, बीड़ी, सिगार, चुरूट, नास (Snuff) तम्बाकू सम्मिलित हैं। तम्बाकू की खेती की जाती है जिसके पत्ते चौड़े और कड़वे होते हैं। ताम्रकूटी पदार्थों का कोई चिकित्कीय उपयोग नहीं होता परन्तु शारीरिक निर्भरता का जोखिम रहता हैं। यह व्यसनी में शिथिलन पैदा कर केन्द्रीय नाड़ीमण्डल को उत्तेजित करती है तथा उबाऊपन को दूर करती है। तम्बाकू का अधिक सेवन दिल की बीमारी, फैंफड़े के कैंसर, श्वास नली जैसे रोग उत्पन्न करता है। इसका सेवन तीन प्रकार से किया जाता है :-
1. धूम्रपान द्वारा,
2. नस्य या सूंघने से,
3. पान में रखकर या चूने के साथ मलकर।
परन्तु लोग इसे नशा नहीं मानते क्योंकि इस पदार्थ को छोड़ने के कोई अपनयन लक्षण नहीं होने व अपराध का कारण नहीं बनने के कारण कानून भी इसे नशो की श्रेणी में नहीं रखता। विभिन्न शहरों में द्रव्य व्यसन की दर 17 से 25 प्रतिशत के बीच मिलती है। जिनमें तम्बाकू एवं शराब के लगभग 65 प्रतिशात से अधिक व्यसनी मिल जाते हैं।
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