ये हैं आधुनिक और पारंपरिक सिंचाई के तरीके :- टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली ड्रिप प्रणाली सिंचाई की उन्नत विधि है, जिसके प्रयोग से सिंचाई जल की पर्याप्त बचत की जा सकती है। यह विधि मृदा के प्रकार, खेत के ढाल, जल के स्त्रोत के अनुसार अधिकतर फसलों के लिए अपनाई जा सकती हैं। इस विधि का उपयोग पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा है। सीमित जल संसाधनों और दिनों दिन बढ़ती हुई जलावश्यकता और पर्यावरण की समस्या को कम करने के लिए ड्रिप सिंचाई तकनीक बहुत कारगर सिद्ध होगी। जिन क्षेत्रों में भूमि को सममतल करना मंहगा और कठिन या असंभव हो उन क्षेत्रों में व्यावसायिक फसलों को सफलतापूर्वक उगाने के लिए ड्रिप सिंचाई तकनीक सबसे अच्छी विधि है। ड्रिप तंत्र एक अधिक आवृति वाला ऐसा सिंचाई तंत्र है जिसमें जल को पौधों के मूलक्षेत्र के आसपास दिया जाता है। ड्रिप सिंचाई के द्वारा पौधे को आवश्यकतानुसार जल दिया जा सकता है। ड्रिप सिंचाई के द्वारा 30-40 प्रतिशत तक उर्वरक की बचत, 70 प्रतिशत तक जल की बचत होती है। फव्वारा सिंचाई फव्वारा द्वारा सिंचाई एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा पानी का हवा में छिड़काव किया जाता है और यह पानी भूमि की सतह पर कृत्रिम वर्षा के रूप में गिरता है। पानी का छिड़काव दबाव द्वारा छोटी नोजल या ओरीफिस में प्राप्त किया जाता है। पानी का दबाव पम्प द्वारा भी प्राप्त किया जाता है। कृत्रिम वर्षा चूंकि धीमें-धीमें की जाती है, इसलिए न तो कहीं पर पानी का जमाव होता है और न ही मिट्टी दबती है। इससे जमीन और हवा का सबसे सही अनुपात बना रहता है और बीजों में अंकुर भी जल्दी फूटते हैं। खेती-किसानी से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप यह एक बहुत ही प्रचलित विधि है जिसके द्वारा पानी की लगभग 30-50 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है। देश में लगभग सात लाख हैक्टर भूमि में इसका प्रयोग हो रहा है। यह विधि बलुई मिट्टी, ऊंची-नीची जमीन तथा जहां पर पानी कम उपलब्ध है वहां पर प्रयोग की जाती है। इस विधि के द्वारा सिंचाई करने पर पौधों की देखरेख पर खर्च कम लगता है तथा रोग भी कम लगते हैं। सतही सिंचाई प्रणाली भारत में अधिकतर कृषि योग्य क्षेत्रों में सतही सिंचाई होती है। इसमें प्रमुख है नहरों से नालियों द्वारा खेत में पानी का वितरण किया जाना तथा एक किनारे से खेत में पानी फैलाया जाना है। इस प्रणाली में खेत के उपयुक्त रूप से तैयार न होने पर पानी का बहुत नुकसान होता है। यदि खेत को सममतल कर दिया जाए तो इस प्रणाली में भी पानी की बचत की जा सकती है। आजकल लेजर तकनीक से किसान अपना खेत समतल कर सकते हैं। इससे जलोपयोग दक्षता में वृद्धि होती है। फलस्वरूप फसलों की पैदावार बढ़ जाती है।
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सिंचाई कैसे किया जाता है इसके तरीके
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पारंपरिक सिंचाई की सुविधा में आधुनिक सिंचाई पद्धति सरल क्यों हैं
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