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इसलिए यह कहा जा सकता है कि भाषा के आधार बने राज्यों ने ईश भारत को मजबूत किया है, एकता के नए सूत्र में पिरोया है,
विभिन्नताओं से परिपूर्ण हमारा भारत सदियों से है। ईश प्रश्न की उतर हमारा हमारा सस्वर्णिम इतिहास में देखने से सायद मिल जायेगा , पता चल जाएगा कि आधुनिक भारत मे ईश तरह की प्रश्न की उपज मात्र कुछ चुनींदा लोगो के मस्तिष्क की उपज थी, ऐसा इशीलये क्योंकि वर्तमान समय मे तो बहुत से भाषाएँ लुप्त हो चुकी है और कुछ उसकी राह पर है। लेकिन हमारा इतिहास में दश हजार से भी जयदा संख्या में भाषाएँ बोली जाती थी। जब उस समय भी लोग मिल जुलकर रहते थे , क्योंकि कोई भी राजा ने ईश तरह से किसी से के जातिगत वक्तिगत समाजिक स्वतंत्रता और प्रत्यक्ष हस्तछेप करने की कोशिश नही की और यही कारण है कि लोग भारत को एक अखण्ड भारत बनाये रखा, लेकिन आधुनिक भारत मे सवंत्रता से पूर्व कुछ लोगो ने कुछ वेक्तियो ने कुछ महत्वपूर्ण चुनींदा भाषा को किसी वर्ग रियासत पर थोपने की भी बात करी,पूरा जोर सोर से, इसका परिणाम तो कुछ निकला नही लेकिन, दंगा, आगजनी, मार काट, नफरत जैसी चीजो का बीच बो दिया। क्योंकि इनलोगे के वक्तिगत मामले में शिधा हस्तक्षेप था, कोई तमिल जानने वाला हिन्दी को जबरन कैसे अपना सकता है। इशीलये। स्वत्रंत भार
विभिन्नताओं से परिपूर्ण हमारा भारत सदियों से है । ईश प्रश्न की उतर हमारा हमारा सस्वर्णिम इतिहास में देखने से सायद मिल जायेगा,पता चल जाएगा कि आधुनिक भारत में ईश तरह की प्रश्न की उपज मात्र कुछ चुनींदा लोगो के मस्तिष्क की उपज थी,ऐसा इशीलये क्योंकि वर्तमान समय में तो बहुत से भाषाएँ लुप्त हो चुकी है और कुछ उसकी राह पर है । लेकिन हमारा इतिहास में दस हजार से भी ज्यादा संख्या में भाषाएँ बोली जाती थी। जब उस समय भी लोग मिल जुलकर रहते थे,क्योंकि कोई भी राजा ने ईश तरह से किसी से के जातिगत वक्तिगत सामाजिक स्वतंत्रता और प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं की और यही कारण है कि लोग भारत को एक अखण्ड भारत बनाये रखा,लेकिन आधुनिक भारत में सवंत्रता से पूर्व कुछ लोगो ने कुछ वेक्तियो ने कुछ महत्वपूर्ण चुनींदा भाषा को किसी वर्ग रियासत पर थोपने की भी बात करी,पूरा जोर सोर से,इसका परिणाम तो कुछ निकला नहीं लेकिन,दंगा,आगजनी,मार काट,नफरत जैसी चीजों का बीच बो दिया। क्योंकि इनलोगे के वक्तिगत मामले में शिधा हस्तक्षेप था,कोई तमिल जानने वाला हिन्दी को जबरन कैसे अपना सकता है । इशीलये। स्वतंत्र भार
ईश प्रश्न का उत्तर भारतीय इतिहास के कुछ वर्ष पूर्व जाने से प्राप्त हो सकता है, भारत का सविधान, हमारा सविधान, ही हमारी भगवत गीता है, कुरान है, बाइबिल है, भारत के पांच हाजर वर्ष पूर्व की इतिहासों पर नजर डालें तो ,सँस्कृति से लबरेज, नैतिक मूल्यों,उनके आदर्शों से भावविभोर, एक दूसरे के लिए स्मामन , समाज ने लोकतंत्र ,राजतंत्र, वैसे ही जैसे आज। सविधान ने लिखित है, बोलने की आजादी, घूमने की आजादी, धार्मिक आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी, ये सारे गुण हमारे इतिहास में थे है और अभी भी है, लेकिन स्वरूप वैसा नही है, भारत एक अजूबा है सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड के लिए 33 करोड़ देवी द्ववताओ और से लबरेज़ सनातन संस्कृति, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिख, क्रिस्चन, पारसी, यहूदी, अनेक भाषा बोलने , लोगे के पहनाए, खान पान, ,गोरे काले,शावले, हर तरह के लोग है ईश पृथ्वी के स्वर्ग देश भारत मे , विभिन्नताओं से परिपूर्ण ईश समाज मे लोकतंत्र प्रजातन्त्र , धर्मनिरपेक्ष जैसे गुण लोगो के स्वभाव में थे, जब आप देखते है कि इतनी विभिन्नता होते हुए भी सभी मिलजुलकर रह रहे है, एक दूसरे की गले मिल रहे, सुख दुख में साथ है। भल
ईश प्रश्न का उत्तर भारतीय इतिहास के कुछ वर्ष पूर्व जाने से प्राप्त हो सकता है,भारत का संविधान,हमारा संविधान,ही हमारी भगवत गीता है,कुरान है,बाइबिल है,भारत के पांच हजार वर्ष पूर्व की इतिहासों पर नजर डालें तो,सँस्कृति से लबरेज,नैतिक मूल्यों,उनके आदर्शों से भावविभोर,एक दूसरे के लिए स्मामन,समाज ने लोकतंत्र,राजतंत्र,वैसे ही जैसे आज। संविधान ने लिखित है,बोलने की आजादी,घूमने की आजादी,धार्मिक आजादी,अभिव्यक्ति की आजादी,ये सारे गुण हमारे इतिहास में थे है और अभी भी है,लेकिन स्वरूप वैसा नहीं है,भारत एक अजूबा है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए 33 करोड़ देवी द्ववताओ और से लबरेज़ सनातन संस्कृति,इस्लाम,बौद्ध,जैन,सिख,क्रिस्चन,पारसी,यहूदी,अनेक भाषा बोलने,लोगे के पहनाए,खान पान,, गोरे काले,शावले,हर तरह के लोग है ईश पृथ्वी के स्वर्ग देश भारत में,विभिन्नताओं से परिपूर्ण ईश समाज में लोकतंत्र प्रजातंत्र,धर्मनिरपेक्ष जैसे गुण लोगो के स्वभाव में थे,जब आप देखते है कि इतनी विभिन्नता होते हुए भी सभी मिलजुलकर रह रहे है,एक दूसरे की गले मिल रहे,सुख दुख में साथ है । भल
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इशीलये कह सकते कि भाषा की आधार बने राज्यो ने ईश भारत को सुदृढ़ किया है एकता के नए धागे में पिरोया है,