Nirmann Kala Ki Visheshta निर्माण कला की विशेषता

निर्माण कला की विशेषता



GkExams on 11-01-2019

” भारतीय कला का इतिहास ”


भारतीय कला एवम वास्तुशास्त्र :- “दर्शन और जीवन का घनिष्ट सम्बन्ध है, दोनों का लक्ष्य पराश्रेय की खोज है, दर्शन जीवन की मीमांसा करता है “।


” दर्शन सम्पूर्ण जीवन की व्याख्या करने तथा


उसका महत्व निर्धारण करने का एक प्रयास है “।


भारतीय कला की प्राचीनता :- भारतीय कला का इतिहास अत्यंत प्राचीन है । प्रागतिहासिक काल में मानव ने जंगली जानवरों बारहसिंघा, भालू , हाथी, आदि के चित्र बनाना सीख लिया था । महाराष्ट में स्थित कुछ गुफाओं में प्रागतिहासिक काल के चित्र बनता था, जिसका वह शिकार करता था । अनेक स्थानो पर मानव की कला के प्रमाण प्राप्त हुए हैं । इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय कला आदिकालीन है ।


यह परम्परा का प्रेम (Love for Tradetion) भारतीय संस्कृति सभ्यता का उन्नति का कारण है ।


विविध आयाम स्थापत्य :- सिन्धु सभ्यता की स्थापत्य कला :- प्राचीन भारत की दृष्टी से हड़प्पा सभ्यता की कला अत्यंत प्राचीन है । हड़प्पा सभ्यता के निर्माता नगर और भवन निर्माण कला में दक्ष थे । मोहनजोदडो में एक सार्वजनिक भवन एवम विशाल स्नानाघर के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिनसे हड़प्पा स्थापत्य कला पर प्रकाश पड़ता है ।


मौर्यकालीन स्थापत्य कला :- मौर्यसम्राठो ने राजप्रसादो, स्तूपों, चैत्यो, विहारों, तथा मठों का निर्माण कराया। चन्द्रगुप्त मौर्य ने पाटलीपुत्र का राजप्रसाद बनवाया जिसकी प्रशंसा ‘मेगस्थनीज’ ने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ ने की है ।


सम्राट अशोक का राजमहल भी उच्चकोटि की स्थापत्य कला का नमूना था यह मानव कृति न होकर देवतओं की रचना है । मौर्य सम्राट अशोक ने चोदह ‘शिलालेखों’, स्तम्भ लेख’ और ‘गुफालेख’ भी निर्मित कराये ।


शुगु वंश के सम्राट पुष्यमित्र ने सुदर्शन झील का निर्माण कराया । सातवाहनो के काल में अनेक भवनों का तथा गुहा चेल्यों का निर्माण हुआ । अजंता की गुफ़ाओं का निर्माण भी इसी काल में हुआ ।


गुप्तकालीन स्थापत्य कला :- गुप्तकाल में राजप्रसाद, स्तम्भ, स्तूप, गुफाओं तथा मंदिरों का निर्माण हुआ । गुप्तकाल की कला की उत्कृष्टता का अनुमान अमरावती, नागार्जुन कोंडा तथा अजंता के भित्तिचित्रों से लगया जा सकता है ।


1. राजप्रसाद :- महाकवि बाणभट्ट ने अपने ग्रन्थ ‘कादम्बरी’ में शुद्रक के महल का वर्णन किया है । ‘मुछकटीकम’ में भी वसंतसेना के महल का उल्लेख मिलता है, कालिदास के ग्रंथो के कई राजप्रासादो की भव्यता एवम सुन्दरता का पता चलता है ।


2. स्तम्भ :- गुप्तकाल में बना इलाहाबाद का ‘प्रशस्ती स्तम्भ लेख : सम्राट सुमुद्रगुप्त के वीरतापूर्ण कार्यों की यादगार हैं । इसका निर्माता हरीसेन था । अन्य स्तम्भो में सम्राट स्कंदगुप्त का कीर्ति स्तम्भ (कहोम, गोरखपुर) तथा ऐरण का विष्णु स्तम्भ स्थापत्य कला का अदभुत नमूना है ।


3. गुफाएँ : – गुप्तकाल में निर्मित अजंता, एलोरा, बाघ अदि की गुफायें भी स्थापत्य कला के पुत्र हैं ।


4. मंदिर :- गुप्तकाल में मंदिर निर्माण कला की अभूतपूर्व उन्नति हुई । इस काल के प्रमुख मंदिर हैं – देवगढ का दसावतार मंदिर (ललितपुर) भीतरगाँव का मंदिर (कानपुर) तिगावा का विष्णु मंदिर (जबलपुर) भुमरा का शिव मंदिर (नचनाकुथर), दह्प्रव्तिया का पार्वती मंदिर (असम) बोधगया, साँची तथा सारनाथ के बौद्ध मंदिर इत्यादि ।


5. अन्य कलाकृतियाँ :- गुप्तकाल में अनेक बौद्ध मठो, स्तूपो तथा विहारों का भी निर्माण हुआ, जिनमें साँची तथा सारनाथ के स्तूप विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।


राजपूत कालीन स्थापत्य कला :- राजपूत राजाओं ने दुर्ग, झीले, राजमहल तथा मंदिर आदि बनवाये चित्तौड , रणथम्बोर, मांडू व ग्वालियर के किला इस काल की वास्तुकला का सर्वश्रेष्ट उदहारण है, ग्वालियर के किले में ‘राजामान सिंह’ का महल तथा उदयपुर का ‘जगमन्दिर महल’ जयपुर का हवामहल और अनेक भवन प्रसिद्ध है ।


बुन्देलखंड में खुजराहो का कन्द्रियानाथ महादेव मंदिर आबू पर्वत पर बना जैन मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर, पार्शवनाथ का मंदिर आदि सम्पूर्ण भारत भारत में प्रसिद्ध है ।


दक्षिण भारत की स्थापत्य कला :- दक्षिण भारत में राष्ट्कुल, चालुक्य, पल्वल, चोल पड्डय तथा चेर राजाओं ने स्थापत्य कला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया, दक्षिण भारत मे चालुक्य शैली में बना ऐहाल का विष्णु मंदिर विशेष प्रसिद्ध है । सुदूर दक्षिण में पल्ल्वों ने द्रविड़ शैली में अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण कराया जिनमें तंजोर का मंदिर और ‘माम्ल्लापुरम’ के मंदिर दर्शनीय हैं ।


मूर्तिकला :- प्राचीन भारत की मूर्तिकला गुप्तकाल से पूर्व की मूर्तिकला के चिन्ह भी प्राचीन भारत में पाये जातें हैं । सिन्धु नदी घाटी की खुदाई में अनेक मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं, ये मूर्तियाँ मानव तथा पशुओं की हैं । ये मिट्टी पत्थर तथा कांसे की बनाई जाती थी तथा इन्हें रंगा भी जाता था । सारनाथ तथा अन्य स्थानों पर पाई जानें वाली मूर्तियाँ गुप्तकाल मूर्तिकला पर उत्त्कृष्ट प्रकाश डालती है ।


मूर्तिकला की शैलीयोँ :-


1. गंधार कला :- कुषाण सम्राट कनिष्क के काल में गंधार कला शैली का विकास हुआ । यह कला भारतीय व यूनानी कला मिश्रण होने के कारण ‘इन्डोग्रिक कला’ भी कहलाती है इस कला की मूर्तियाँ गान्धार, अफगानिस्तान, तक्षशिला, चीन, कोरिया, जापान, आदि स्थानों पर मिलती है इस कला शैली में महात्मा बुद्ध की केशविहीन सिर तथा आभूषणहीन शरीर वाली मूर्तियाँ बनाई गई और शरीर की बनावट मूछें, नसे अदि बहुत स्पष्ट रूप से दर्शाई गई है तथा सिर के चारों ओर प्रभामंडल भी बनाया गया है ।


2. मथुरा कला :- शक कुषाण युग में मथुरा और उसके निकटवर्ती त्रो में इस कला की मूर्तियाँ लाल पत्थर की बनाई हुई हैं इनमें महात्मा बुद्ध को का खड़े दिखाया गया है और इनका शरीर वस्त्रों से ढका हुवा है । मथुरा कला की सुर्तियाँ साँची, भरहुत, बोधगया तथा मुथरा के संग्रहालयों में रखी हुई हैं इस कला के अंतगर्त बोधी वृक्ष, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, कृष्ण-बलराम, कार्तिकेय, नटराज, हनुमान, लक्ष्मी, दुर्गा आदि देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी बनी है । मथुरा कला में जैन मुर्तिओं के नमूने भी मिलते हैं ।


3. सारनाथ कला :- सारनाथ में बोद्ध तथा हिन्दू धर्म की मूर्तियाँ विशेष रूप से बनी । सारनाथ कला की मूर्तियों में भगवान बुद्ध को धर्मचक्र के साथ दिखाया गया है । सारनाथ की ‘बुद्ध की बैठी मूर्ति’ अति सुन्दर है । इस कला की अनेक मूर्तियाँ कोलकता के संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई है ।


गुफाओं की चित्रकला :- प्राचीन काल की गुफा चित्रकला के नुमुने (विशेष रूप से गुपत्काल के) अजन्ता, एलोरा और बाघ की गुफाओं में मिलते हैं इन गुफाओं के चित्रों का सुर्जन मोर्याकाल से लेकर गुपत्काल तक हुवा । अजन्ता, एलोरा एवम बाघ की गुफाओं में महतमा बुद्ध के जीवन से सम्बंधित दृश्य चित्रकारी बड़ी सजीव, मनोहर, कलात्मक और चितकर्ष्क है ।


सल्तनतकाल की स्थापत्य कला :- सल्तनतकाल की स्थापत्य कला की प्रमुख कूर्तियों का विवरण निम्नलिखित है :-


1. दास वंश की स्थापत्य कला:- दास वंश के प्रथम सुल्तान कुतुबद्दीन ऐबक ने दिल्ली में कुतुबमीनार, कुव्वत-उल-ईस्लाम मस्जिद और अजमें में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिदे बनवाईं इल्तुमिस के शासनकाल में हौज-ए -सम्शी और ईदगाह का निर्माण कराया गया ‘बलबन का मकबरा’ भी इसी युग की देन है ।


2. खिलजी वंश की स्थापत्य कला :- खिलजी वंश के शासकों में अल्लाउद्दीन खिलजी का नाम उल्लेखनीय है । इसके शासनकाल में सिरी का किला, अलाई-दरवाजा, हजार-सितून-महल, हौज-ए-इलाही, हौज-ए-खास आदि का निर्माण कराया गया था ।


3. तुगलक वंश की स्थापत्य कला :- जोनपुर, फतेहाबाद, हिसार तथा फिरोजाबाद अदि नगरों का निर्माण फिरोज तुगलक के शासन काल में किया गया । उसके पुर्ववर्ती सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने कोटला का किला तथा अन्य बहुत सी इमारतें बनवाई ।


4. सैय्यद तथा लोदी वंश की स्थापत्य कला :- सैय्यद सुल्तानों ने अठपहलु मकबरों का निर्माण कराया सिकंदर लोदी का मकबरा, पोली का गुम्बद, छोटे खां गुम्बद, बड़ा गुम्बद अदि लोदी काल की प्रमुख इमारते हैं।


5. दक्षिण भारत की स्थापत्य कला :- बहमनी शासकों ने गुलबर्गा की मस्जिद बनाकर स्थापत्य कला का सुन्दर उदहारण प्रस्तुत किया था । इस प्रकार विजयनगर के राजाओं ने विजयनगर को एक सुन्दर नगर बना कर इस नगर के सन्दर्भ में अब्दुलरज्जाक ने लिखा है :- “सम्पूर्ण विश्व में न ऐसा नगर देखा गया है ना ही सुना गया है ।”


मुगलकालीन स्थापत्य या वास्तुकला :- मुग़ल सम्राटों के समय में स्थापत्य कला का विकास इस प्रकार हुआ ।


1. बाबर की स्थापत्य कला : – मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक बाबर स्थापत्य कला का उच्च कोटि का पारखी था । वह उस सुन्दर स्थापत्य कला से प्रभावित हुआ , जिसे ग्वालियर में उसने मान सिंह और और विक्रमाजीत द्वारा निर्मित किये गये महलों में देखा था । बाबर ने कुस्तुतूनिया से कारीगरों को बुलाकर आगरा, ग्वालियर, धौलपुर, असीरगढ़, कोल (अलीगढ) सीकरी और बयाना में अनेक भवन निर्मित कराये । परन्तु बाबर द्वारा बनवाये गये स्थापत्य कला के प्रतिरूपों में केवल दो ही प्रतिरूप वर्तमान में मिलते हैं उसके द्वारा निर्मित भवनों में एक पानीपत के कबुलबाग में और दूसरी रुहेलखण्ड के संभल जिले में जामा मस्जिद है, ये दोनों इमारते 26 ई0 में बनवाई गयी ।


2. हुमायूँ की स्थापत्य कला :- हुमायूँ भी स्थापत्य कला का प्रेमी था परन्तु पूरा जीवन युद्ध में व्यतित हो जाने के कारण भवन निर्माण न करा सका । हुमायूँ ने एक भवन ‘दीन विशेष पनाह’ निर्मित कराया और दो मस्जिदों क्रमश : आगरा एवम हिसार में निर्मित बराइ अकबर के शासनकाल के प्राम्भिक वर्षो में हुमायूँ का मकबरा नामक भवन का निर्माण हुआ ।


3. अकबर की स्थापत्य कला :- अकबर के शासनकाल में भारतीय स्थापत्य कला के क्षेत्र में एक क्रांति आ गई । अकबर को स्थापत्य कला विशेष प्रेम था । अकबर ने आगरा का अकबरी महल, जहाँगीरी महल, फतेह्पुर सीकरी के भवन आदि निर्मित कराये थे जो फतेहपुर सीकरी के प्रमुख भवनों में से थे, दीवाने आम, दीवाने खास, पंचमहल, तुर्की सुल्तान, कोठी जोधाबाई का महल आदि इमारतें अपनी इमारते अपनी सुन्दरता और कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है ।


4. जहाँगीर की स्थापत्य कला :- जहाँगीर की स्थापत्य कला की अपेक्षा चित्रकला से अधिक प्रेम था । उसके समय में केवल दो ही प्रमुख भवन निर्मित किये प्रथम जहाँगीर का मकबरा (लाहौर) जिसका निर्माण नूरजहाँ ने कराया, दूसरा अत्मदुदेला का मकबरा है ।


5. शाहजहाँ की स्थापत्य कला :- शाहजहाँ के शासनकाल में मुग़ल स्थापत्य कला का स्वर्ण युग था। शाहजहाँ के शासनकाल के प्रमुख भवन निम्न हैं :-


क. आगरा का किला, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मच्छी भवन, शीश महल, झरोखा दर्शन, मुसम्मन बुर्ज, नगीना तथा मोती मस्जिद ।


ख. दिल्ली का लालकिला


ग. ताजमहल आदि


शाहजहाँ के अन्य भवनों में दिल्ली की जामामस्जिद, आगरा मस्जिद, लाहौर की बजीर खान मस्जिद, अलीवर्दी का मकबरा, शालीमार बाग, अंगा की मस्जिद आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।


6. औरंगजेब की स्थापत्य कला :- शाहजहाँ के पश्चात शासनकाल में मुग़ल स्थापत्य कला का पतन आरम्भ हो गया । औरंगजेब स्थापत्य कला के प्रति उदासीन था, उसने अपनी पत्नी रबिया-उद -दौरानी का मकबरा निर्मित करवाया जो अत्यधिक साधारण था, इसकी सजी हुई मेहराबों और अन्य सजावट में कोई विशेषता नहीं है इसके अलावा उसने दिल्ली की जमा मस्जिद , ‘बादशाही मस्जिद’ के नाम से निर्मित कराई लेकिन यह मस्जिद स्थापत्य कला का सुन्दर उदहारण प्रस्तुत नहीं कर सकी ।


मुगलकालीन चित्रकला :-


1. बाबर की चित्रकला – बाबर अपने साथ ईरानी चित्रकारों को भारत लाया था । उसमें अनेक ग्रंथों की हस्तलिखित प्रतिओं को इन चित्रकारों से चित्रकारों से चित्रित कराया था ।


2. हुमायूँ की चित्रकला – हुमायूँ ने ईरान के दो महान चित्रकारों ‘मीर सैय्यद अली तथा ख्वाजा अब्दुल समद’से भेंट की और उन्हें भारत ले आया । उसने इन चित्रकारों को ‘दास्ताने आमिर हम्जा’ नामक ग्रन्थ को चित्रित करने का आदेश दिया ।


3. अकबर की चित्रकला – अकबर चित्रकला का विशेष प्रेमी था उसके प्रयासों से हिन्दू तथा ईरानी शैलीयों का सुन्दर समन्वय हुआ, अकबर के चित्रकारों में हस्तलिखित पुस्तके, प्रसादो की दीवारों, वस्तुओं तथा कागजों आदि पर सुन्दर चित्र बनवाये ।


4. जहाँगीर की चित्रकला :- जहाँगीर का काम मुग़ल चित्रकला का स्वर्ण युग था । जहाँगीर स्वं एक चित्रकार था, जहाँगीर कालीन प्रमुख चित्रकार थे – अबुल हसन, उस्ताद मंसूर, फारुक बेग, गोवर्धन, मनोहर, बिशनदास, आगरजा, मुराद, आदि इनमें अबुल हसन अदितीय चित्रकार था । इसकी चित्रकला एवम कुर्तियों की प्रसंशा जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में भी की थी ।


5. शाहजहाँ की चित्रकला – शाहजहाँ चित्रकला की अपेक्षा स्थापत्य कला का विशेष प्रेमी था, शाहजहाँ ने अपने दरबारी चित्रकारों से राजमहल तथा शाही दरबार के चित्र बनवाये, औरंगजेब चित्रकला का विरोधी था, उसके काल में मुग़ल चित्रकला का पतन हो गया ।


भारतीय कला का प्रमुख प्रतिक ‘कमल’ है ।


भारत में विभिन्न कालों में कला के विभिन्न केंद्र रहे हैं, जिनका सक्षीप्त वर्णन निम्न है :-


मौर्यकालीन कला केंद्र :- सारनाथ, अफगानिस्तान, साँची, इलाहाबाद, गया, परखम ।


गुप्तकालीन कला केंद्र :- जबलपुर, एलोरा, अजंता, पाटिलपुत्र, मथुरा, और सारनाथ ।


सल्तनतकालीन कला केंद्र :- दिल्ली, अजमेर, जोनपुर, फतेहाबाद, हिस्सार अदि ।


प्राचीन समय से ही कलाकार और कलाप्रेमियों का सम्मान होता आया है इसके लिये ‘जहाँगीर’ ने तो कह डाला – “मैं चित्रकारी और चित्रकार से घृणा करने वाले लोगों को नफरत से देखता हूँ “।


वर्तमान समय प्राचीन (अतीत) धरोहरों को संजोने का है, जिसके लिये हमें अपनी विलक्षण बुद्धि का प्रयोग करना होगा और आधुनिक समाज में कला और कलाकारों, कला केन्द्रों का महत्व समझकर उनको उनके गंतव्य तक पहुँचाना होगा । वर्तमान में प्रत्येक शहर में महानगर में कला केंद्र स्थित है । इसी क्रम को जारी रखते हुए कला रूचि कमल को खिलाने के लिये अनुराग शर्मा जी ने ‘यूनाइटेड आर्ट फेयर’ नाम का ‘कमल’ खिलाया जो हमारी सोई हुई कला भावनाओं को जागृत करने के लिये प्रयतन हैं ।


“एक छोटा सा मंदिर UAPL जिसके हम सब पुजारी हैं, पुरोहित मंदिर के अनुराग शर्मा, कलाकार अनुयायी






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