Nanaji Deshmukh Ki Samagra Gram Vikash नानाजी देशमुख की समग्र ग्राम विकास

नानाजी देशमुख की समग्र ग्राम विकास



GkExams on 11-10-2022


नानाजी देशमुख के बारें में (Short Biography of Nanaji Deshmukh) : 11 अक्टूबर 1916 को जन्मे नानाजी देशमुख भारत देश के महान व्यक्तियों में से एक थे। नानाजी को मुख्य रूप से एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। नानाजी का असली नाम "चंडिकादास अमृतदास देशमुख" था। और वह एक गरीब मराठी ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखते थे।


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इन्होने भारतीय कांग्रेस के सामने खुद की पार्टी खड़ी करने का विचार किया। फिर वर्ष 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संघ के साथ मिल कर भारतीय जन संघ की स्थापना की थी। यही आगे चलकर देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) बनी।


इनको वर्ष 1999 में पद्म विभूषण से सम्मानित (nanaji deshmukh yojana) किया गया था। इसके 20 साल बाद 2019 में नानाजी को भारत रत्न देने का फैसला लिया गया।


नानाजी देशमुख की समग्र ग्राम विकास :




इसमें कोई शक नही है की नानाजी का मुख्य योगदान राजनीति में नहीं ग्रामोदय में रहा है। उनके द्वारा स्थापित चित्रकूट का विश्वविद्यालय ग्रामीण विकास का मॉडल है। 11 फरवरी 1968 को पं. दीनदयाल के अकाल निधन के बाद नानाजी ने दीनदयाल स्मारक समिति का पंजीयन कराकर एक नए अध्याय की शुरुआत की।


इसके बाद 20 अगस्त 1972 से विधिवत ‘एकात्म मानव दर्शन’ के सिद्धांत को व्यवहारिक धरातल पर उतारने हेतु ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ कार्यालय नई दिल्ली में नानाजी के नेतृत्व में कार्य करने लगा। 1991 में भगवानन्दजी महाराज के आग्रह पर नानाजी चित्रकूट आये। चित्रकूट में करीब 500 गांवों में नैतिक मूल्यों के साथ व्यापक सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए वहीं जम गए।


ध्यान रहे की चित्रकूट परियोजना संस्थागत विकास और ग्रामीण विकास के एक मॉडल के रूप में अनोखा प्रयास है। इसमें ऐसे विकास पर जोर दिया गया है, जो भारत के लिए सबसे उपयुक्त है। वह जनता की शक्ति पर आश्रित है। उन्होंने सिखाया कि शोषितों और उपेक्षितों के साथ एक रूप होकर ही प्रशासन और राजकाज का गुर सीखा जा सकता है। यह भी कि युवा पीढ़ी में सामाज निर्माण की चेतना जगाना बेहद जरूरी है।


नानाजी देशमुख का निधन :




आख़िरकार 27 फरवरी 2010 को नानाजी देशमुख ने 95 साल की उम्र में चित्रकूट स्थित भारत के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय में रहते हुए अन्तिम साँस (nanaji deshmukh death) ली थी।


आपको बता दे की नानाजी भारत के उन गिने - चुने लोगों में से थे जिन्होंने अपना शरीर छात्रों के मेडिकल शोध हेतु दान करने का वसीयतनामा (इच्छा पत्र) मरने से काफी समय पूर्व 1997 में ही लिखकर दे दिया था, जिसका सम्मान करते हुए उनका शव अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली को सौंप दिया गया। भारत देश के विकास में नानाजी का बहुत योगदान है, गाँव में विकास को महत्ता उन्ही ने लोगों को बताई। ऐसे महान हस्ती को GKEXAMS.COM प्रणाम करता है।




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