Chlorine Gas Banane Ki Vidhi क्लोरीन गैस बनाने की विधि

क्लोरीन गैस बनाने की विधि



Pradeep Chawla on 04-09-2018

क्लोरीन अतिसक्रिय रासायनिक तत्व। शेले ने (Scheele) 1774 ई. में काले

मैंगनीज डाइआक्साइड की म्यूरिएटिक अम्ल पर क्रिया में हरे पीले रंग की गैस

प्राप्त की, जिसे वे ‘फ्लाजिस्टन’ रहित म्यूरिएटिक अम्ल कहते हैं। लवाज़िए

(Lavoisier) तथा बर्थोले (Berthollet) इसे आक्सीजन का ही यौगिक समझते थे।

1810 ई. में डेवी (Davy) ने फास्फोरस, गंधक एवं कार्बन ऐसी वस्तुओं का इस

गैस में आक्सीजन से, यदि हो तो, संयोग कराकर पहिचाने हुए आक्साइड प्राप्त

करने के विचार से प्रयोग किए और यह प्रमाणित किया कि इस गैस में आक्सीजन

नहीं है और वास्तव में यह एक तत्व है। हरा पीला रंग होने से डेवी ने ही इस

गैस का नाम क्लोरीन रखा।



क्लोरीन यौगिक रूप में व्यापक रूप से मिलता है। लवण निक्षेपों में, समुद्र

के पानी में और जीवों तथा वनस्पतियों में सोडियम तथा पोटैशियम के क्लाराइड

बहुत मिलते है। इनके अतिरिक्त कई अन्य धातुओं के क्लोराइड खनिजों में भी

उपलब्ध हैं। क्लोरीन की आवश्यकता सामान्यतया इन्हीं बड़े बड़े सोडियम

क्लोराइड के निक्षेपों, शैल लवण अथवा खारे पानी को सुखाकर प्राप्त होनेवाले

लवण से पूरी की जाती है :



साधारणतया हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा मैंगनीज डाइआक्साइडकी क्रिया द्वारा क्लोरीन गैस तैयार की जाती है।



4HCI + MnO2= MnCI2 + CI2+2H2O


इस आक्सीकरण के लिये दूसरी वस्तुएँ भी, जैसे लेड परआक्साइड, पोटैसियम

डाइक्रोमेट, पोटैसियम परमैंगनेट, ब्लीचिंग पाउडर इत्यादि भी उपयुक्त हो

सकते हैं। सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पर पोटैसियम परमैंगनेट की क्रिया से

साधारण ताप ही सरलता से यह गैस मिलती है। रसायनशाला में क्लोरीन प्राप्त

करने के लिये इसी क्रिया का उपयोग होता है। प्राप्त क्लोरीन सांद्र गंधक के

अम्ल से सुखाकर हवा के अधोमुख विस्थापन (downward displacement) द्वारा

गैस जार में इकट्ठा किया जाता है। गैस की थोड़ी मात्रा के लिए कुछ धातुओं

के क्लोराइड, जैसे क्यूप्रिक क्लोराइड, अधिक उपयोगी हैं। इन्हें गरम कर

शुद्ध क्लोरीन प्राप्त हो सकता है। अधिक मात्रा में अथवा क्लोरीन की सतत

प्राप्ति के लिये गैस सिलिंडर उपयुक्त होते हैं।



आक्सीजन अथवा हवा के साथ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का गैसीय मिश्रण उत्प्रेरक

(तॉबे के क्लोराइड) पर प्रवाहित करने पर क्लोरीन मुक्त होता है :



4 CHI+O2= 2H2 O+ 2CI2


क्लोरीन के उत्पादन की डीकन (Deacon) विधि इसी क्रिया पर आधारित है।



क्लोरीन के औद्योगिक उत्पादन के लिए प्रारंभिक विधियों में मुख्यता

हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के आक्सीकरण का ही उपयोग हुआ है। साधारण नमक तथा

सांद्र गंधक के अम्ल से प्राप्त हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से सीधे मैंगनीज

डाइआक्साइड के खनिज पाइरोलुसाइट (Pyrolusita) द्वारा अभिक्रिया में क्लोरीन

प्राप्त होती है :



2NaCI+ 2H2SO4 + MnO2= Na2 SO4 + MnSO4+CI2+2H2O


(Leblanc) की क्षार बनाने की विधि के विकास से क्लोरीन के उत्पादन में

विशेष सहायता मिली, क्योंकि हाइड्राक्लोरिक अम्ल का जो इस विधि में उपजात

के रूप में प्राप्त होता है, क्लोरीन तैयार करने के उद्योग में उचित उपयोग

हुआ। इस विधि की मुख्य कठिनाई मैंगनीज डाइ-आक्साइड का खर्च होना था, जिसके

उपयोगी रूप में पुन:- प्राप्ति के लिए आगे चलकर चूने के दूध के प्रयोग की

वेल्डन (Weldon) विधि अपनाई गई।



हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पर हवा के आक्सिजन की क्रिया, विशेषकर ताँबे के

क्लोराइड जैसे उत्प्रेरक की उपस्थिति में, अधिक उपयोगी हुई। डीकन की इस

विधि में दो कठिनाइयाँ थीं-पहला आर्सेनिक अथवा गंधक के यौगिकों द्वारा

उत्प्ररेक का निष्क्रिय होना तथा दूसरा प्राप्त क्लोरीन का दूसरी गैसों से

मिश्रित रहना। यह मिश्रण विशेषकर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल गैस, जलवाष्प तथा हवा

के नाइट्रोजन से होता है। इसके लिए क्रिया के पहले ही शुद्ध की गई गैसों

का उपयोग तथा प्राप्त क्लोरीन से वांछित गैसों का उचित विधियों द्वारा दूर

करना आवश्यक है।



यद्यपि नमक के विलयन से विद्युद्विश्लेषण द्वारा क्लोरीन प्राप्त करने विधि

1851 ई. से ही विदित थी, परंतु उत्पादन के लिये इसका उपयोग

विद्युत्‌-डाइनेमो-मशीन का अधिक विस्तार होने के बाद ही हुआ। इस समय तो

औद्योगिक आवश्यकता का लगभग सभी क्लोरीन इसी विद्युद्विश्लेषण की विधि

द्वारा प्राप्त होता है। इसके लिये अनेक प्रकार के सेल बने हैं।



कास्टनर-केलनर सेल

(Castner Kellner-Cell) -पूरा संयंत्र तीन

भागों में इस प्रकार विभाजित रहता है जिससे उपयुक्त वस्तुएँ प्रत्यक्ष

संपर्क में आ सकें। सेल के पेंदे में रखे पारे से, जो तीन भागों तक







एक यांत्रिक युक्ति के कारण सेल के एक सिरे से पारद प्रवेश करता है। सेल के

भीतर नमक का विलयन (जिसका प्रवेश तथा निष्क्रमण दिखाया नहीं गया है) उसी

दिशा में बहता है जिसमें पारद। विद्युद्विश्लेषण द्वारा उत्पन्न पारद तथा

सोडियम का संरस, सेल के बाहर, एक अन्य कोष्ठ में जाता है, जहाँ वह जल के

संपर्क में आता है। सोडियम निकल जाने के पश्चात्‌ पारद सेल में पुन: आ जाता

है और ऊपर का क्रम फिर चालू हो जाता है।



फैला रहता है, होकर ही संपर्क संभव होता है। नमक के विलयन में ग्रैफाइट के

धनाग्र तथा दूसरें भाग में पानी अथवा सोडियम हाइड्राक्साइड लोहे के ऋणाग्र

सहित, रहता है। सेल के पारे को, जो विद्युदवरोधक द्वारा ऋणाग्र से जुड़ा

रहता है, उत्केंद्रीय (occentric) पहिया अथवा हवा द्वारा हिलाते रहने से

उन्मुक्त सोडियम का प्रवाह संभव होता है, जिससे सोडियम दूसरे भाग में आकर

सोडियम हाइड्राक्साइड बना सके।



दूसरे प्रकार के मुख्य सेल ऐसबेस्टस डायफ्राम (asbestos diaphragm) का

प्रयोग करते हैं। इनमें अति प्रसिद्धगिब्स (Gibbs), ऐलेन-मूर (Allen-moore)

तथा नेलसन (Nelson) के सेल हैं। गिब्स सेल में ग्रैफाइट का धनाग्र

ऐसबेस्टस के डायफ्राम द्वारा बेलनाकार तथा सछिद्र लोहे के ऋणाग्र से पृथक्‌

होता है। इसमें सोडियम हाइड्राक्साइड बहुत शुद्ध नहीं प्राप्त होता।



पिघले हुए सोडियम क्लोराइड के विद्युद्विश्लेषण से क्लोरीन तथा सोडियम प्राप्त करने की विधि पर इधर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है।



क्लोरीन हरे-पीले रंग की तीव्र गंधयुक्त गैस है और बहुत कम मात्रा में होने

पर भी अपनी तीखी और विशेष गंध द्वारा पहिचानी जा सकती है। यह विषैली गैस

है। इसमें श्वास लेने से श्लेष्मा झिल्ली (Mucous-Nembrane) तथा फेफड़े

तुरंत आक्रांत होते हैं। इस भारी गैस का आपेक्षिक घनत्व 2.249 (आक्सीजन 1)।

पानी में यह विलेय है। आयतन में तिगुना से अधिक 100 सें. पर घुल जाता है।

ताप बढ़ने से विलेयता घटती है। जलीय विलयन को क्लोरीन जल कहते हैं। आरंभ

में क्लोरीन जल हलके हरे पीले रंग का रहता है, पर रख देने पर

हाइड्रोक्लोरिक अम्ल बनने से रंगहीन हो जाता हैं। संतृप्त विलयन से ठंढा

करने पर क्लोरीन हाइड्रेट के मणिभ प्राप्त होते हैं। अन्य द्रवों में भी यह

घुलता हैं, परंतु सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन में विलेयता कम है। इसका

उपयोग गैस के इकट्ठा करने में किया जाता है।



1. क्लोरीन के निकलने का मार्ग; 2. नमक के विलयन का प्रवेश; 3. हाइड्रोजन

का निकास मार्ग; 4. धनाग्र; 5. ऋणाग्र से विद्युतीय संबंध; 6. ब्राह्य

पात्र; 7. छिद्रित बेलनाकार ऋणाग्र; 8. बेलनाकार तनुपट; 9. दाहक सोडे का

निकास मार्ग तथा 10. सेल का आधार। छिद्रित ऋणाग्र पर उन्मुक्त सोडियम की

नमक के विलयन के साथ अभिक्रिया होती है, जिससे दाहक सोडा तथा हाइड्रोजन

बनता है। कार्बन धनाग्रों पर क्लोरीन उन्मुक्त होती है।



क्लोरीन का द्रवीकरण सरलता से होता है (क्रांतिक ताप 1440 सें. तथा दबाव

76.1 वायुमंडलीय है)। द्रव क्लोरीन पीला होता है, और अधिक ठंढा करने से

पीला ठोस रूप प्राप्त होता है। द्रव का घनत्व-33.60 सें. पर 1.507 ग्राम घ.

सें है। क्लोरीन का द्रवणांक--103.50 सें. तथा क्वथनांक--34.60 सें. हैं।

क्लोरीन गैस बहुत से तत्वों से क्रिया करती है। इसमें धात्विक तथा अधात्विक

दोनों ही हैं। कुछ में तो इतनी ऊष्मा निकलती है कि वस्तुएँ जल उठती हैं।

ऐंटिमनी या आर्सेनिक के चूर्ण तथा फास्फोरस की इसी प्रकार क्रिया होती है।

ताँबा, लोहा, सीसा, बंग इत्यादि भी क्लोरीन से संयोग कर तत्संबंधी क्लोराइड

बनाते हैं। धातुओं से होनेवाली इन क्रियाओं में जलवाष्प की उपस्थिति तथा

धातु की स्थिति (चूर्ण अथवा ढेर) विशेष महत्वपूर्ण होती है। यद्यपि

हाइड्रोजन तथा क्लोरीन गैस का सूखा मिश्रण अँधेरे में बहुत समय तक रखा जा

सकता हैं, तथापि प्रकाश या गर्मी मिलने पर धड़ाके के साथ क्रिया होती है।



बहुत से रासायनिक यौगिकों, जैसे सल्फर डाइआक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड,

फास्फोरस ट्राइक्लोराइड इत्यादि से अकेले अथवा उत्प्रेरक की उपस्थिति में

क्रिया होती है। बुझे चूने से क्लोरीन संयुक्त होकर ब्लींचिंग पाउडर बनाता

है। कार्बनिक यौगिकों से भी क्लोरीन की क्रिया होती हैं, जिससे प्रतिस्थापक

या योगशील यौगिक प्राप्त होते है। तारपीन से भीगा कागज क्लोरीन में जल

उठता है। क्लोरीन विरंजक होता है। वस्त्र, कागज, तेल इत्यादि रंग हटाने और

उन्हें परिष्कृत करने में प्रयुक्त होता है। यह कृमिनाशक भी होता है। पेय

पानी को जीवाणुरहित करने में इसका उपयोग व्यापक रूप से होता है। क्लोरीन से

पानी का उपचार करने पर टायफायड से होनेवाली मृत्युसंख्या में बहुत कमी हो

गई है। नालियों की सफाई में भी यह काम आता है।



क्लोरीन के अनेक कार्बनिक यौगिक, जैसे क्लोरोफार्म, कार्बन टेट्रा क्लोराइड

आदि ओषधियों में काम आते हैं। धातुओं के निर्माण में भी क्लोरीन का

महत्वपूर्ण योग है। हाइड्रोजन के साथ इसका यौगिक हाइड्रोजन क्लोराइड बनता

है। हाइड्रोजन क्लोराइड गैसीय पदार्थ है, जो जल में बहुत विलेय होता है। इस

जलीय विलयन को ही साधारणतया हाइड्राक्लोरिक अम्ल कहते है। यह बहुमूल्य

अभिकर्मक और अनेक औद्योगिक पदार्थों के निर्माण में प्रयुक्त होता है।

क्लोरी ऑक्सीयौगिक भी बनता हैं पर यह ऑक्सीयौगिक अपेक्षया अस्थायी होते

हैं। क्लोरीन के आक्सीअम्ल महत्व के हैं और वे उनके कुछ लवर बड़े औद्योगिक

महत्व के हैं।




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Comments Banti from rajesthan on 25-01-2024

Cl direct Nacl se bahar nahi aa skti kya

Raj kumar on 11-01-2024

neltion sel duaara chlorine

H.T.T.P on 20-02-2023

Computer ke langugage me H.T.T.p ka full fam kya hoga.


Yash kumar on 15-10-2022

क्लोरीन गैस का सचित्र वर्णन

Ankit Singh on 13-07-2022

2.2:257

Abhishek Kumar Verma on 14-06-2021

प्रयोगशाला विधि से क्लोरीन बनाते वक्त उसे जल तथा सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल में से क्यों गुजारा जाता है

Hame gas dekhani hai on 10-05-2021

Hame gas dekhani hai


Sumit on 21-01-2021

Banane ki prayogshala vidhi uska Chitra rang kaise bharenge usmein



Shuaib on 07-06-2020

Deacon vidhi dwara chlorine gas ki chemical and physical properties kaun kaun si hoti hai

Chlorine gas on 19-08-2020

Chlorine gas

क्यों क्यों क्यों on 18-09-2020

प्रयोगशाला विधि में क्यों क्लोरीन को जल तथा सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल मे से गुजारा जाता है?



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