महासागर में ठंडी एवं गर्म दो प्रकार की जलधाराएं बहती है इनमें गर्म जलधारा का प्रभाव पड़ोसी तट पर गर्म एवं ठंडी जलधारा का प्रभाव पड़ोसी तट पर ठंडा होता है।
महासागर के जल के सतत एवं निर्देष्ट दिशा वाले प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं। वस्तुतः महासागरीय धाराएं, महासागरों के अन्दर बहने वाली उष्ण या शीतल नदियाँ हैं। प्रायः ये भ्रांति होती है कि महासागरों में जल स्थिर रहता है, किन्तु वास्तव मे ऐसा नही होता है। महासागर का जल निरंतर एक नियमित गति से बहता रहता है और इन धाराओं के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक धारा में प्रमुख अपवहन धारा (ड्रिफ्ट करंट) एवं स्ट्रीम करंट होती हैं। एक स्ट्रीम करंट की कुछ सीमाएं होती हैं, जबकि अपवहन धारा करंट के बहाव की कोई विशिष्ट सीमा नहीं होती। पृथ्वी पर रेगिस्तानों का निर्माण जलवायु के परिवर्तन के कारण होता है। उच्च दाब के क्षेत्र एवं ठंडी महासागरीय जल धाराएं ही वे प्राकृतिक घटनाएं हैं, जिनकी क्रियाओं के फलस्वरूप सैकड़ों वर्षों के बाद रेगिस्तान बनते हैं।
महासागरीय धारा बनने के मुख्यत: तीन कारण होते हैं - प्रथम तो जल में लवण की मात्रा एक स्थान की अपेक्षा दूसरे स्थान पर बदलती है, इसलिए सागरीय जल के घनत्व में भी स्थान के साथ-साथ परिवर्तन आता है। द्रव्यों की प्राकृतिक प्रवृत्ति जिसमें वे अधिक घनत्व वाले क्षेत्र की ओर अग्रसर होते हैं, के कारण धाराएं बनती हैं। दूसरे कारण में सूर्य की किरणें जल की सतह पर एक समान नहीं पड़तीं। इस कारण जल के तापमान में असमानता आ जाती है। इसके कारण संवहन धारा (कन्वेक्शन करंट) पैदा होते हैं। तीसरा कारण सागर की सतह के ऊपर बहने वाली तेज हवाएं होती हैं। उनमें भी जल में तरंगें पैदा करने की क्षमता होती है। ये तरंगें पृथ्वी की परिक्रमा से भी बनती हैं। इस घूर्णन के कारण पृथ्वी के उत्तरी हिस्से में घड़ी की दिशा में धाराएं बनती हैं। इस प्रकार मुख्य कारणों में निम्न आते हैं:
पृथ्वी पर अनेक धाराएं बहती हैं। इन सब में गल्फ स्ट्रीम सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इस स्ट्रीम में जल नीला एवं उष्ण हो जाता है। इसका बहाव मेक्सिको की खाड़ी के उत्तर से कनाडा तक होता है। यही कारण है कि लंदन एवं पेरिस कम ठंडे रहते हैं जबकि नॉर्वे के तटीय इलाके पूरे वर्ष बर्फ रहित रहते हैं। इसके अलावा, ब्राजील करंट, जापान, उत्तर भूमध्य रेखा, उत्तर प्रशांत महासागरीय तरंग आदि विश्व की प्रमुख सागरी धाराओं में गिने जाते हैं।
धारा | महासागर | प्रकृति |
---|---|---|
खाड़ी के उत्तर स्ट्रीम | अटलांटिक महासागर | गर्म |
उत्तरी अटलांटिक धारा | उत्तरी अटलांटिक महासागर | गर्म |
कैनरी धारा | उत्तरी अटलांटिक महासागर | ठंडी |
लेब्राडोर धारा | उत्तरी अटलांटिक महासागर | ठंडी |
अलास्का की धारा | उत्तरी प्रशांत महासागर | गर्म |
क्यूरोशियो (जापान) धारा | उत्तरी प्रशांत महासागर | गर्म |
उत्तरी प्रशांत महासागर धारा | उत्तरी प्रशांत महासागर | गर्म |
ब्राजील धारा | दक्षिण अटलांटिक महासागर | गर्म |
बेंगुला धारा | दक्षिण अटलांटिक महासागर | गर्म व ठंडी |
पूर्व ऑस्ट्रेलियाई धारा | दक्षिण प्रशांत महासागर | गर्म |
हम्बोल्ट (पेरू) धारा | दक्षिण प्रशांत महासागर | ठंडी |
पश्चिम पवन धारा | दक्षिण प्रशांत महासागर | ठंडी |
ऒयाशिओ (कामचटका) | धारा उत्तरी प्रशांत महासागर | ठंडी |
ऑस्ट्रेलियाई धारा | पश्चिम हिंद महासागर | ठंडी |
इक्वेटोरियल धारा | प्रशांत महासागर | गर्म |
कैलीफोर्निया की धारा | प्रशांत महासागर | ठंडी |
अगुलहास धारा | हिंद महासागर | गर्म |
महासागरीय धाराएं सागरीय जीवन के लिए अत्यावश्यक होती हैं। ये सागरीय जीव-जंतुओं के लिए आहार का मुख्य स्रोत होती हैं। सागर तरंगों से गर्म जल शीतल जल वाले क्षेत्रों तक जाता है। इसके विपरीत सागरीय तरंगों का असर भू-तापमान पर भी पड़ता है। सतही सागरीय धाराओं का ज्ञान पोत-परिवहन पर होने वाले व्यय को काफ़ी हद तक नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। इनके कारण ही ईंधन की खपत पर बड़ा प्रभाव पड़ता है, जो व्यय और यात्रा समय में काफी कमी लाता है। पुराने समय में तो सागरीय धाराओं व वायु दिशा ज्ञान और भी महत्त्वपूर्ण हुआ करता था। इसका एक अच्छा उदाहरण अगुल्हास धारा है, जिसने कारण पुर्तगाली नाविकों व अन्वेषकों को काफ़ी समय तक भारत आने से रोके रखा। आज भी संसार भर के नौवहन प्रतियोगी सागरीय धाराओं का लाभ उठाते हैं। महासागरीय धाराएं सागरीय जीवन के लिये भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। इसका एक उदाहरण ईल मछली है।
सागरीय धाराओं का ज्ञान सागरीय कर्कट के अध्ययन में भी सहायक होता है। इसका उलट भी सत्य है। ये धाराएं विश्वपर्यन्त तापमान निश्चित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जो धाराएं उत्तरी अंधमहासागर का उष्ण जल उत्तर-पश्चिमी यूरोप तक लाती हैं, वहां के तटीय क्षेत्रों में बर्फ जमने नहीं देतीं। इस कारण वहां के पत्तनों में जलपोतों की आवाजाही बाधित नहीं होती।
हाल ही में वैज्ञानिकों ने दक्षिणी महासागर के हिंद महासागर के क्षेत्र में एक शक्तिशाली जल प्रवाह कि खोज की है। ये उस तंत्रजाल का एक महत्वपूर्ण भाग है जो जलवायु परिवर्तनों को प्रभावित करता है। इस सागरीय प्रवाह की मात्रा लगभग चालीस अमेजन नदियों के जल की मात्रा के बराबर है। यह स्थान ऑस्ट्रेलिया की राजधानी, पर्थ से 4200 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। उनके अनुसार महासागर की सतह से तीन किलोमीटर की गहराई पर उपस्थित यह जल प्रवाह उन महासागरीय धाराओं के वैश्विक जाळ में एक महत्वपूर्ण पथ है जो जलवायु परिवर्तनों को प्रभावित करते हैं।
Which one of the following currents has a warming influence on the neighbouring coast
mahasagriya dharao me kiska padosi tat par garm effect padta h
उतरी प्रशांत प्रवाह में 150⁰ पश्चिमी देशांतर देशों के नाम बताइए
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