Manavadhikar Ki Paribhasha मानवाधिकार की परिभाषा

मानवाधिकार की परिभाषा



GkExams on 12-05-2019

मानवाधिकार से तात्पर्य व्यक्ति के ऐसे अधिकारो से है जो जीवन स्वतंत्रता , समता एवं गरिमा से सम्बन्ध्ति है तथा संविधान द्वारा अथवा अंतर्राष्ट्रीय प्रसविदातओं द्वारा प्रत्यामूल किये गये हैं तथा भारतीय न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है ।

मानवाधिकार की उपयुक्त परिभाषा का विश्लेषण किया जाये तो इसके निम्लिखित अवयव प्राप्त होते हैं ।

1. यह अधिकार व्यक्ति के जीवन,स्वतंत्रता , समानता एवं गरिमा से सम्बन्ध्ति हैं ।

2. ये अधिकार भारतीय संविधान द्वारा प्रस्तावित किये गए हैं या

3. ये अधिकार अन्तर्राष्ट्रीय प्रसविदाताओ द्वारा प्रत्याभूत किये गये है तथा

4 ये अधिकार भारतीय न्यायालयों द्वारा परिवर्तनीय हैं ।



उपरोक्त अधिकारों का हनन जिस व्यक्ति का होता है उस व्यक्ति को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 18 (3) अंतर्गत क्षतिपूर्ति की अनुशंसा कर सकता है । जो इस प्रकार है:



धारा 18 (3 ) के अंतर्मागत अंतरिम क्षतिपूर्ति हेतु अनुशंसा करने की शक्ति मानवाधिकार हनन के मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का लक्ष्य केवल दोषी व्यक्तियों को दंडित कराना ही नहीं होता है अपितु उसका लक्ष्य पीडित एवं क्षुब्ध् व्यक्तियों को तत्काल राहत प्रदान कराना भी होता है । कई ऐसे मामले होते है जिनमें पीड़ित व्यक्तियों को तत्काल अन्तरिम सहायता की आवश्यकता होती है । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग परिषद की जांच के पशचात यदि इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि मानवाधिकार का हनन हुआ है तो पीडित एवं क्षुब्ध् व्यक्ति को तत्काल अंतरिम क्षतिपूर्ति प्रदान करने हेतु धारा 18 के खण्ड (3) के अन्तर्गत सम्बन्ध्ति सरकार अथवा प्राधिकारी से अनुसशंसा कर सकता है ।





मौलिक अधिकार संरक्षण’’

मौलिक अधिकार संरक्षण क्या है ? इनकी संख्या कितनी है ? प्रत्येक किस अनुच्छेद के अंर्तगत आता है ? किस प्रकार इनसे संरक्षण प्राप्त किया जा सकता है ?

मौलिक अधिकार हमारे वे अधिकार है जो संविधन में लिखित है । अगर कोई इनका उल्लंघन करता है तो उसे दण्डीत किया जायेगा, चाहे वह किसी भी प्रभाव के पद पर आसीन हो, मौलिक अधिकार जिनकी संख्या कोई ज्यादा नहीं है ।





प्रत्येक अधिकार को नियमित रूप से परिभाषित किया गया है । मानव के छः मौलिक अधिकार को संविधन में 42वें संशोधन द्वारा 1976 में शामिल किया गया। मौलिक अधिकारों को मौलिक अधिकार इसलिए कहा गया क्योंकि यह व्यक्ति के विकास के लिए अति आवश्यक होते हैं । इस कारण इन्हे संविधान में सम्मिलित किया गया है । मौलिकअधिकारोंको आपातकालीन स्थिती के हटाए जाने के बाद मौलिक अधिकारोंको लागू कर दिया जाता है ।



नागरिकों को संविधानिकअधिकारोंकी रक्षा हेतु न्यायालय व उच्चतमन्यायालयों तक पहुँच कर अपील कर सकते हैं । इसमें न्यायालयों का यह कर्तव्य होगा कि वह लोगों के अधिकारों की रक्षा हेतु प्रलेख जारी कर सकते हैं । प्रमादेश प्रलेख द्वारा न्यायालय किसी व्यक्ति अथवा संस्था को उसके सार्वजनिक दायित्वों तथा कर्तव्यों को लागू करने का आदेश दे सकता है


Pradeep Chawla on 12-05-2019

मानव अधिकारों से अभिप्राय मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से है जिसके सभी मानव प्राणी हकदार है। अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं के उदाहरण के रूप में जिनकी गणना की जाती है, उनमें नागरिक और राजनैतिक अधिकार सम्मिलित हैं जैसे कि जीवन और आजाद रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार .

इतिहास



अनेक प्राचीन दस्तावेजों एवं बाद के धार्मिक और दार्शनिक पुस्तकों में ऐसी अनेक अवधारणाएं है जिन्हें मानवाधिकार के रूप में चिन्हित किया जा सकता है। ऐसे प्रलेखों में उल्लेखनीय हैं अशोक के आदेश पत्र, मुहम्मद (saw) द्वारा निर्मित मदीना का संविधान (meesak-e-madeena) आदि.



आधुनिक मानवाधिकार कानून तथा मानवाधिकार की अधिकांश अपेक्षाकृत व्यवस्थाएं समसामयिक इतिहास से संबंध हैं। द ट्वेल्व आर्टिकल्स ऑफ़ द ब्लैक फॉरेस्ट (1525) को यूरोप में मानवाधिकारों का सर्वप्रथम दस्तावेज़ माना जाता है। यह जर्मनी के किसान - विद्रोह (Peasants War) स्वाबियन संघ के समक्ष उठाई गई किसानों की मांग का ही एक हिस्सा है। ब्रिटिश बिल ऑफ़ राइट्स ने युनाइटेड किंगडम में सिलसिलेवार तरीके से सरकारी दमनकारी कार्रवाइयों को अवैध करार दिया. 1776 में संयुक्त राज्य में और 1789 में फ्रांस में 18 वीं शताब्दी के दौरान दो प्रमुख क्रांतियां घटीं. जिसके फलस्वरूप क्रमशः संयुक्त राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा एवं फ्रांसीसी मनुष्य की मानव तथा नागरिकों के अधिकारों की घोषणा का अभिग्रहण हुआ। इन दोनों क्रांतियों ने ही कुछ निश्चित कानूनी अधिकार की स्थापना की।



मानवाधिकारों को लेकर अक्सर विवाद बना रहता है। ये समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि क्या वाकई में मानवाधिकारों की सार्थकता है। यह कितना दुर्भाग्यपू्‌र्ण है कि तमाम प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारी और गैर सरकारी मानवाधिकार संगठनों के बावजूद मानवाधिकारों का परिदृश्य तमाम तरह की विसंगतियों और विद्रूपताओं से भरा पड़ा है। किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है मानवाधिकार है। भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा देती है।




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Comments सँदीप on 01-11-2020

रबयब





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