Rajya Soochi Me Kitne Vishay Hai राज्य सूची में कितने विषय है

राज्य सूची में कितने विषय है



Pradeep Chawla on 12-05-2019

भारतीय संविधान के 11 वे भाग में केंद्र और राज्यों के बीच विधायी सबंधों का उल्लेख किया गया है। संविधान का अनुच्छेद 245 संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण राज्यों के आधार पर करता है जिसमें कहा गया है कि इस संविधान के उपबंधो के अधीन रहते हुए संसद भारत के सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र अथवा उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकेगी तथा किसी राज्य का विधानमंडल उस सम्पूर्ण राज्य के अथवा उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकेगा। वही अनुच्छेद 246 विधान की विषय वस्तु को विभाजित करता है, जो कि निम्नलिखित है।















संघ सूची- अनुसूची 7 की सूची 1 को संघ सूची कहते है। उसमे 99 प्रविष्टियाँ है। इन प्रविष्टियों मे राष्ट्रीय महत्व के विषय सम्मिलित है, जैसे भारत की रक्षा,विदेश कार्य, वायु मार्ग , करेंसी और सिक्का, रेल,बैंक ,टेलीफोन,डाक और तार आदि ।







राज्य सूची- अनुसूची 7 की सूची 2 को राज्य सूची कहते है, उसमे 61 प्रविष्टियां है। इस सूची में वे विषय हैं जिन पर राज्य विधान बनाने की अनन्य शक्ति है। इसके अंतर्गत है लोक वयव्स्था,पुलिस, स्थानीय शासन, कृषि, कारागार, एल्कोहली लिकर पर उत्पादक-शुल्क आदि।







समवर्ती सूची – संविधान की अनुसूची 7 की सूची 3 का नाम समवर्ती सूची है, इसमे 52 प्रविष्टियां हैं संविधान का संशोधन करके 5 प्रविष्टियों को समवर्ती बनाया गया है । यह है न्याय प्रशासन,जनसंख्या नियंत्रण, बाट और माप, वन और शिक्षा आदि । संघ और राज्य-दोनों ही इन प्रविष्टियों पर विधि बनाने में सक्षम है।







अवशिष्ट शक्तियाँ- अवशेष विषय संयुक्त राज्य अमरीका, स्विट्जरलैण्ड और आस्ट्रेलिया में अवशेष विषयों के सम्बन्ध में कानून निर्माण का अधिकार इकाइयों को प्रदान किया गया है, लेकिन भारतीय संघ में कनाडा के संघ की तरह अवशेष विषयों के सम्बन्ध में कानून निर्माण की शक्ति संघीय संसद को प्रदान की गई है(जैसे साइबर लॉं) किन्तु संघ को यह शक्ति है कि वह राज्य विधि को निरस्त कर दे या उसके स्थान पर विधि प्रतिस्थापित कर दे । संघ सूची और राज्य सूची में स्पर्धा होने पर संघ सूची को अधिमान दिया जाएगा ।







विशेष उपबन्ध: उपर्युक्त तीनों सूचियों में शक्ति वितरण की जो योजना प्रस्तुत की गयी है। वह केवल सामान्य काल के लिए है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी विशिष्ट परिस्थितयां भी हैं जिनमें या तो उक्त व्यवस्था स्थगित कर दी जाती है या संघीय संसद के विधायी अधिकारो का दायरा राज्य सूची तक बढ़ जाता है संसद को इस प्रकार की शक्ति प्रदान करने वाले संविधान के प्रमुख प्रावधान इस प्रकर है:







राष्ट्रीय हित का विषय होने पर - अनुच्छेद 249– जब राज्य सभा 2/3 से बहुमत से यह संकल्प पारित करती है कि ऐसा विधान राष्ट्रीय हित मे आवश्यक या समीचीन है तो संसद को अधिनियम बनाने की शक्ति मिल जाती है। संसद एक वर्ष के लिए उसपर कानून बना सकती है। अवधि का विस्तार करने के लिए फिर से संकल्प पारित किया जा सकता है।







राज्य के विधानमंडलों की इच्छा प्रकट होने पर- अनुच्छेद 252- के अनुसार अगर दो या दो से अधिक राज्य यह उचित समझें कि राज्य सूची में दिये गए किसी विषय पर संसद को कानून बनाना चाहिए, तो वह ऐसा कर सकती है,किन्तु ऐसा कानून केवल उन राज्यों पर लागू होगा, जिन्होने इसका अनुरोध किया था ।







अंतर्राष्ट्रीय संधि के पालन हेतु -अनुच्छेद 253 के अधीन संसद को किसी अन्य देश या देशों के साथ की गई किसी संधि,करार अथवा किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन या निकाय में किए गए किसी विनिश्चय के कार्यान्वन की शक्ति है।संसद संधि को कार्यन्वित करने के लिए राज्य सूची में प्रगणित किसी विषय पर भी विधान बना सकती है।







संकटकालीन उदघोषणा स्थिति में- अनुच्छेद 352 –आपात की उद्घोषणा की स्थिति में राज्य सूची मे दिये गए किसी भी विषय पर केन्द्रीय सरकार कानून बना सकती है।







राज्य में संवैधानिक व्यवस्था भंग होने पर- अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल के प्रतिवेदन पर अथवा आत्म-संतुष्टि के आधार पर किसी राज्य का काम संविधान की धाराओं के अनुसार नहीं हो सकता है तो संविधान की धाराओं के अनुकूल उदघोषणा करके सभी कार्यकारी शक्तियों का स्वयं प्रयोग कर सकता है।







भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200– राष्ट्रपति को लगभग निषेधाधिकार की शक्ति देता है। राज्यपाल को राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक के विचारार्थ सुरक्षित रखने की असीम शक्ति देता है। यह अनुच्छेद राज्यपाल को यह निर्देश भी देता कि वह राष्ट्रपति के विचारार्थ किसी ऐसे विधेयक को रोक सकता है, जैसे कि वे विधेयक जिनसे उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरा हो सकता है।







अनुच्छेद-254-(2)- समवर्ती सूची में दिये गए विषयो से संबन्धित विधेयक भी राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित किए जा सकते है।







अनुच्छेद 31 ए में जागीर का अधिग्रहण,सार्वजनिक हित में किसी संपत्ति के प्रबंधन को अपने हाथों में लेना,समुचित प्रबंध हेतु दो या उससे अधिक निगमों का मिलाना(अनुच्छेद 31 ए)।







अनुच्छेद 360- वित्तीय आपातकालीन की स्थिति में।







जिस प्रकार विधायी शक्तियों का विभाजन किया गया है, उससे संघीय सरकार को शक्तिशाली बनाया गया है। अवशेष शक्तियों का संघ को सौंपा जाना, (अनुच्छेद 248)। संसद की शक्तियों मे वृद्धि के प्रावधान (अनुच्छेद 249, 250 और 252) संघीय तथा राज्य कानून की अवरुद्धता की स्थिति में संघीय कानून की सर्वोच्चता (अनुच्छेद 251), राज्य विधेयकों के संबंध में राष्ट्रपति की निषेषाधिकार की शक्ति, अंतर्राष्ट्रीय कानून –इन सब से पूर्णतया स्पष्ट है कि विधायी क्षेत्र मे केंद्र की स्थिति अत्यंत श्रेष्ठ है।




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