Khad Aivam Urvarak Me Antar खाद एवं उर्वरक में अंतर

खाद एवं उर्वरक में अंतर



Pradeep Chawla on 31-10-2018



गाय



घोड़ा



सूअर



भेड़



जल



84



76



80



58



92



89



97.5



86.5



ठोस पदार्थ



16



24



20



42



8.0



11.0



2.5



13.5



राख



2.4



3



3



6



2.0



3.0



1.0



3.6



कार्बनिक पदार्थ



13.6



21



17



36



6.0



8.0



1.5



9.9



नाइट्रोजन



0.3



0.5



0.6



75



0.8



1.2



0.3



1.4



फास्फोरस




(P2O5)



0.25



0.35



0.45



0.6



--



--



0.12



0.05



चूना और मैग्नीशिया



0.4



0.3



0.3



1.5



0.15



0.8



0.05



0.6



सल्फर ट्रायक्साइड (SO3)



0.05



0.05



0.05



0.15



0.15



0.15



0.05



0.25



नमक



0005



लेश



0.05



0025



0.1



0.2



0.5



0.25



सिलिका



16



2.0



1.6



3.2



0.01



0025



लेश



लेश





ये आँकड़े स्टोएकहार्ट (Stoekhardt) के है।

पशुओं का मलमूत्र सीधे खेतों में डाला जा सकता है पर उसे सड़ा गलाकर डालना ही अच्छा होता है। ऐसी खाद पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के साथ-साथ मिट्टी की दशा भी सुधारती है और मिट्टी में पानी को रोक रखने की क्षमता बढ़ाती है। गोबर को घासपात के साथ मिलाकर कंपोस्ट तैयार करके प्रयुक्त करना अच्छा होता है।

पशुओं का मूत्र भी अच्छी खाद है। पशुओं के चारे का अधिकांश नाइट्रोजन मूत्र के रूप में ही बाहर निकलता है। मूत्र के साथ यदि कंपोस्ट तैयार किया जाय तो वह खाद अधिक मूल्यवान होती है।

साधारणतया तीसरे या चौथे वर्ष खेतों में खाद डाली जाती है और केवल विशेष परिस्थितियों में ही प्रतिवर्ष डाली जा सकती है।

हरी खाद-ताजे, हरे पेड़, पौधों को मिट्टी में जोत देने से कार्बनिक पदार्थ मिट्टी में मिल जाते है। इससे ह्यूमस के साथ साथ ऊतकों में उपस्थित पोषक तत्व भी पौधों को मिल जाते हैं। ये हरे पौघे घासपात, फलीदार, पौधे, सनई, रिजका, सेंजी आदि होते है, जो खेतों में बोए जाते और प्रौढ़ होने पर जोत दिए जाते है। फलीदार पौधों के साथ साथ वेफीदार पौधे भी अच्छे समझे जाते है। इनके सिवाय ग्वानों (इसमें 25 प्रतिशत तक P2O5 रहता है), मछली चूरा (इसमें 5 से 10 प्रतिशत नाइट्रोजन और इतना ही फा2 औ5 रहता है) तथा तेलहन खली (इसमें 5 से 7 प्रतिशत नाइट्रोजन और 2 से 3 फा2 औ5 और 1 से 2 प्रतिशत K2O रहते है) भी कार्बनिक खाद है।

खनिज या अकार्बनिक खाद-


सन्‌ 1910 से पहले संयुक्त नाइट्रोजन के केवल दो ही स्रोत, कोयला और लवणनिक्षेप थे। अब स्थिति बदल गई है और नीचे के आँकड़ो से पता लगता है कि कृत्रिम रीति से संयुक्त नाइट्रोजन के निर्माण में कितनी प्रगति हुई है।

संसार के नाइट्रोजन उर्वरक उत्पादन के आँकड़े (ये संयुक्त नाइट्रोजन के 1,000 मीटरी टन में दिए गए है):

उर्वरकों के प्रकार



1959-60



1960-61



ऐमोनियम सल्फेट



3,087



3,146



ऐमोनिम नाइट्रेट (उर्वरक के लिए)



1,375



1,602



नाइट्रोचॉक (कैल्शियम ऐमोनियम नाइट्रेट



1,728



1,858



ऐमोनिया और अन्य विलयन



1,524



1,668



यूरिया (उर्वरक के लिए)



597



780



कैल्शियम साइनेमाइड



331



304



सोडियम नाइट्रेट



227



185



कैल्शियम नाइट्रेट



442



465



नाइट्रोजन के अन्य रूप



3,037



3,335



गत वर्ष से वृद्धि



9.1%



8.4%





अधिकांश नाइट्रोजनीय उर्वरकों में नाइट्रोजन या तो नाइट्रिक नाइट्रोजन के रूप में, या ऐमोनिया नाइट्रोजन के रूप में, अथवा इन दोनो रूपों में रहता है। नाइट्रीकारी बैक्टीरिया के अधिक सक्रिय न रहने पर भी नाइट्रोजन पौधों को तत्काल उपलब्ध होता है। यह मिट्टी के कलिलों से अवशेषित नहीं होता और जल्द पानी में घुलकर निकल जाता है। दूसरी ओर मिट्टी कलिल से ऐमोनिया जल्द अवशोषित हो जाता है और नाइट्रीकारी बैक्टीरिया उसे धीरे-धीरे नाइट्रेट में परिणित करते है। यह जल घुलघुलाकर निकल नहीं जाता, बल्कि इसका प्रभाव खेतों में अधिक समय तक बना रहता है।

यूरिया में नाइट्रोजन सबसे अधिक रहता है। इससे इसका महत्व अधिक है। मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्माणुओं से उत्पन्न ऐंजाइमों के कारण यह बहुत शीघ्र ऐमोनियम कार्बोनेट में परिणत हो जाता है, जो फिर नाइट्रीकारी बैक्टीरिया से आक्सीकृत होकर जल, कार्बन डाइ-आक्साइड और नाइट्रिक अम्ल में परिणत हो जाता है।

फास्फोरस-


पिसी हुई फास्फेट चट्टानों का सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा उपचारित करने से सुपरफास्फेट प्राप्त होता है। जलविलेय उर्वरकों में सुपरफास्फेट अत्यंत महत्व का होता है। सल्फ्युरिक अम्ल के उपचार से अविलेय ट्राकैलसियम फास्फेट [ Ca3 (PO4)2]विलेय मोनोकैलसियम फास्फेट [Ca (H2 PO4) 2 ] में परिणत हो जाता है। सुपरफास्फेट में 15 प्रतिशत तक P2O5 रहता है।

डबल या ट्रिपल सुपरफास्फेट में जल विलेय P2O5 45 से 50 प्रतिशत तक रहता है। यह उच्चकोटि के फास्फेट खनिज को फास्फरिक अम्ल द्वारा उपचारित करने पर (फास्फेट खनिज के तापीय विघटन से भी) प्राप्त होता है। पिसा हुआ फास्फेट खनिज अम्लीय मिट्टी के लिए, जिसका पीएच 6 से नीचा हो, लाभप्रद हो सकता है। ऐसी दशा में ट्राइकैलसियम फास्फेट धीरे-धीरे विघटित होकर उपलब्ध रूप में आ जाता है।

बेसिक स्लैग-


कुछ पाश्चात्य देशों के लोहेके खनिजों में फास्फरस की मात्रा अपेक्षया अधिक रहती है। ऐसे खनिजों से प्राप्त स्लैग में 12 से 20 प्रतिशत P2O5 40 से 50 प्रतिशत चूना (Ca O), 5 से 10 प्रतिशत लोहा (Fe O और Fe2 O3), 5 से 10 प्रतिशत मैंगनीज (Mno) और 2 से 3 प्रतिशत मैग्नीशियम (Mgo) रहता है। उपोत्पाद के रूप में लाखों टन बेसिक स्लैग के इस्पात के कारखानों में प्रतिवर्ष उत्पन्न होता है। फास्फोरस खाद का यह सबसे सस्ता और उपयोगी स्रोत है।

नाइट्रोफास्फेट-


फास्फेट चट्टान के सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा उपचार से कैलसियम सल्फेट भी बनता है। यह उर्वरक को हल्का बना देता है और फास्फोरस (P2O5) की प्रतिशतता को भी कम कर देता है। कुछ समय से फास्फेट चट्टान के विघटन के लिये नाइट्रिक अम्ल का उपयोग होने लगा है। इससे फास्फेट सांद्र ही नहीं होता, वरन्‌ उसमें उपयोगी खाद नाइट्रोजन भी आ जाता है। इसमें कठिनता है कैलसियम नाइट्रेट के निकालने की, क्योंकि यह बहुत ही आर्द्रताग्राही होता है। इसके निकालने के लिए (1) हिमीकरण, या (2) कार्बन डाइ-आक्साइड के साथ अभिक्रिया, या (3) ऐमोनियम सल्फेट अथवा पोटैशियम सल्फेट के साथ अभिक्रिया का उपयोग हो सकता है। भारत ऐसे देश के लिए, जहाँ गंधक की कमी है, नाइट्रो-फास्फेट का उत्पादन लाभप्रद हो सकता है।

पोटैशियम उर्वरक-


पोटैशियम उर्वरकों में सबसे अधिक उपयोग में आनेवाला लवण पोटैशियम क्लोराइड नामक प्राकृतिक खनिज (KCI. Mg CI2, 6H2O) और कुछ अन्य खनिजों में यह रहता है और उससे अलग करना पड़ता है। कुछ पौधों के लिए पोटैशियम क्लोराइड हानिकारक होता है। इससे पोटैशियम सल्फेट अधिक पसंद किया जाता है।

कभी-कभी यह समस्या खड़ी हो जाती है कि कार्बनिक उर्वरक अच्छे हैं या अकार्बनिक। मिट्टी से पौधे उर्वरकों को आयन के रूप में ही ग्रहण करते हैं। यह महत्व का नहीं कि आयन कार्बनिक पदार्थो से जैविक विघटन द्वारा प्राप्त होते हैं या अकार्बनिक उर्वरकों से सीधे प्राप्त होते हैं। दोनों के परिणाम एक होते हैं। अंतर केवल यह है कि अकार्बनिक उर्वरकों में पोषक तत्व आयन के रूप में ही रहते हैं, जब कि कार्बनिक उर्वरकों में धीरे-धीरे विघटित होकर आयन के रूप में आते हैं। इस कारण कार्बनिक उर्वरकों की क्रिया अपेक्षया मंद होती है और गँवार किसानों के लिए इनका उपयोग निरापद होता है। ऐसी खादों में पोषक तत्वों, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम की मात्रा भी कम रहती है, अत: अति का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। यह सच है कि मिट्टी के ह्यूमस के लिये कार्बनिक खाद अत्यावश्यक है। अकार्बनिक खाद से ह्यूमस नहीं प्राप्त होता। अत: कार्बनिक और अकार्बनिक खादों में संतुलन स्थापित होना आवश्यक है, जिसमें मिट्टी के ह्यूमस की वृद्धि के साथ साथ आवश्यक पोषक तत्व पौधों को मिलते रहें।

मिट्टी की उर्वरता के लिए ह्यूमस महत्वपूर्ण है। उसपर विशेष ध्यान देने से ही उर्वरता बढ़ सकती है। पौधों अथवा मिट्टी के विश्लेषण से मिट्टी में पोषक तत्वों के अभाव का पता लगता है। किंतु केवल मिट्टी के विश्लेषण से पोषक तत्वों की कमी का पता नहीं लगता। पोषक तत्व मिट्टी में होने पर भी वे ऐसे रूप में रह सकते है कि पौधे उन्हें ग्रहण करने में असमर्थ हों। अत: बहुत सोच समझकर ही उर्वरकों का व्यवहार करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान में हानि हो सकती है। यह सच है कि हमारी मिट्टी में सैकड़ों वर्षो से फसल उगाते उगाते उर्वरता का ्ह्रास हो गया है तथा उर्वरक के व्यहार से उपज बहुत कुछ बढ़ाई जा सकती है, पर आवश्यकता से अधिक अकार्बनिक उर्वकरों के व्यवहार से पाश्चात्य देशों, विशेषकर अमरीका में, हानि होती देखी गई है।

सं. ग्रं.-फूलदेव सहाय वर्मा : खाद और उर्वरक (1960)। (स. व.)
भारत में खाद के कारखाने-भारत में सुपर फास्फेट का उत्पादन 1906 में ही तमिलनाडू के रानीपेट स्थित एक कारखाने ने आरंभ कर दिया था; किंतु बड़े पैमाने पर उद्योग के रूप में रासायनिक खादों के उत्पादन का कार्य पाँचवें दशक के आरंभिक वर्षो में ही शुरू हुआ। 1950 में रासायनिक खाद के नौ कारखाने खुले और धीरे धीरे उनकी संख्या बढ़ने लगी। 1973 ई.आते आते इसके पचास कारखाने हो गए और इन कारखानों में 1973-74 के वर्ष में 10.60 लाख टन रासायनिक खाद तैयार हो गई है।

भारत सरकार ने 1961 में एक भारतीय खाद निगम की स्थापना की थी। उसके अंतर्गत छह कारखाने सिंदरी (बिहार), नांगल (पंजाब), ट्रेंब (महाराष्ट्र), गोरखपुर (उत्तरप्रदेश), नामरूप (असम) और दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में हैं। बरौनी (बिहार), रामगुंडम्‌ (अंाध्र प्रदेश), तालचरे (उड़ीसा), हल्दिया (पश्चिम बंगाल), कोरबा (मध्य प्रदेश), में नए कारखाने निर्माणाधीन हैं। पुराने कारखानों में नामरूप सिंदरी, ट्रांबे, गोरखपुर और नंगल का विस्तार किया जा रहा है।

खाद निगम के इन कारखानों के अतिरिक्त कुछ निजी कारखाने भी है जिनमें फर्टिलाइजर्स ऐंड केमिकल्स (त्रिवांकुरु) के अतंर्गत कोचीन और अलवाये के कारखाने हैं। यह रासायनिक खादों के उत्पादन में अग्रणी हैं। मद्रास और वाराणसी में निजी क्षेत्र के अन्य कारखाने हैं। राउरकेला इस्पात संयंत्र से संलग्न राउरकेला रासायनिक खाद का एक कारखाना है जो 1962 में चालू हुआ था। इस प्रकार का नैवेलि में एक कारखाना है जो नैवेली लिग्नाइट निगम से संबद्ध है।

कोक भट्ठी संयंत्र के 34 उत्पादों सहित सिंदरी, नंगल, ट्रांबे, राउरकेला, अलवाये, नैवेलि, नामरूप गोरखपुर, दुर्गापुर कोचीन तथा मद्रास स्थित सरकारी कारखानों और एन्नूर, वाराणसी, बड़ौदा, विशाखापत्तन, कोटा, गोवा और कानपुर के निजी कारखानों की कुल क्षमता 31 मार्च, 1974 को 19.39 लाख टन नत्रजन थी। 18 अन्य बड़ी परियोजनाएँ जिनकी समन्वित क्षमता 22.22 लाख टन नत्रजन और 6.62 लाख टन P2 O5 की है, कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं : इनमें से बरौनी खेतड़ी, तूती कोरन, और काँदला के नए कारखाने लगभग तैयार हैं तथा नामरूप कोटा और विशाखापत्तन के पुराने कारखानों का विस्तृतीकरण पूरा होने की अवस्था में है। इन कारखानों की क्षमता 8.22 लाख टन फास्फेट की है।(परमेश्वरीलाल गुप्त)




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Rahul Kumar singh on 23-01-2023

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