Hindi Bhasha Aur Iski Shikshan Vidhiyan हिन्दी भाषा और इसकी शिक्षण विधियाँ

हिन्दी भाषा और इसकी शिक्षण विधियाँ

GkExams on 11-10-2022


शिक्षण क्या है : यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बहुत से कारक शामिल होते हैं। सीखने वाला जिस तरीके से अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते हुए नया ज्ञान, आचार और कौशल को समाहित करता है ताकि उसके सिखने के अनुभवों में विस्तार हो सके, वैसे ही ये सारे कारक आपस में संवाद की स्थिति में आते रहते हैं।





इस प्रकार इस लेख में हम सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियां जैसे - निरीक्षण विधि,वाद विवाद विधि, प्रश्नोत्तर विधि, इकाई विधि, संकेंद्रीय विधि, स्त्रोत संदर्भ विधि, कार्य गोष्ठी विधि, प्रादेशिक विधि, सामूहिक विवेचना विधि एवं प्रयोगात्मक विधि का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।


निरीक्षण विधि :



  • निरीक्षण से तात्पर्य है- किसी वस्तु, घटना या स्थिति का सावधानीपूर्वक अवलोकन करना। अतः इस विधि में बालक किसी वस्तु, स्थानीय स्थिति को देखकर ही उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करता है।
  • यह विधि ‘देखकर सीखना’ सिद्धांत पर आधारित है।
  • छोटी कक्षाओं में स्थानीय भूगोल पढ़ाने में इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
  • विभिन्न प्रकार की फसलें, विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतिया, विभिन्न प्रकार की संस्कृतिया आदि प्रकरण पढ़ाने में इस विधि का उपयोग किया जा सकता है।


  • वाद-विवाद विधि :


  • यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है, जो क्रियाशीलता के सिद्धांत पर आधारित है।
  • यदि मे शिक्षक तथा छात्र मिलकर किसी समस्या या प्रकरण पर अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं तथा आपसी सहमति द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास करते हैं।
  • इस विधि के दो रूप होते हैं।



  • इकाई विधि :


  • इस विधि के प्रवर्तक एच.सी मॉरिसन है।
  • यह वर्तमान समय की महत्वपूर्ण विधि मानी जाती है।
  • इस विधि में विषय वस्तु को आवश्यकतानुसार कई इकाइयों में बांट लिया जाता है। और उन इकाइयों के अनुसार ही शिक्षण कार्य किया जाता है।
  • इकाई किसी पाठ्यक्रम,पाठ्यवस्तु, विषय वस्तु, प्रयोगात्मक कक्षाओं तथा विज्ञान और विशेषकर सामाजिक अध्ययन का प्रमुख उप विभाजन है।



  • स्त्रोत संदर्भ विधि :


  • भूतकाल इन घटनाओं द्वारा छोटे एवं शेष चिन्ह (अवशेष) स्त्रोत कहलाते हैं।
  • संदर्भ से तात्पर्य प्रमाणिक ग्रंथों की विषय वस्तु से होता है जिन का निरूपण प्राथमिक एवं सहायक स्त्रोतों के गहन अध्ययन एवं अनुसंधान के बाद किया जाता है।
  • विषय के प्रकांड विद्वानों द्वारा लिखित एवं पीएचडी आदि के स्वीकृत ग्रंथ विषय संदर्भ की श्रेणी में आते हैं।
  • यह विधि निरीक्षण विधि के समान ही है। इस विधि में शिक्षक विभिन्न स्त्रोतों का प्रदर्शन कर शिक्षण कार्य को आगे बढ़ाता है।



  • संकेद्रीय विधि :



  • यहाँ सामाजिक अध्ययन के अंतर्गत भूगोल शिक्षण के लिए यह सर्वाधिक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण विधि मानी जाती है।
  • इस विधि में छात्रों को पहले अपने गृह प्रदेश का ज्ञान दिया जाता है।
  • यह विधि सरल से कठिन की और सीखने के सिद्धांत पर आधारित है।


  • क्रियात्मक विधि :



  • इस विधि में छात्र अपने आप कार्य करता है, और ज्ञान प्राप्त करता है। शिक्षक की यह जिम्मेदारी होती है कि वह आवश्यक अनुकूल वातावरण तैयार करें एवं छात्रों का उचित मार्गदर्शन करें।
  • यह विधि प्राथमिक से माध्यमिक स्तर तक के लिए उपयुक्त विधि मानी जाती है।
  • यह विधि “करके सीखने” के सिद्धांत पर कार्य करती है।
  • बालक स्वयं करके सीखता है, जिस से प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।


  • कार्य गोष्ठी विधि :



  • सामूहिक विचार-विमर्श हेतु कार्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। लगभग 30-40 व्यक्ति एक निश्चित स्थान पर एकत्रित होते हैं, तथा 4-5 दिन जमकर किसी विषय या समस्या पर विचार-विमर्श करते हैं।
  • जो कोई व्यक्ति कार्य गोष्ठी में भाग लेता है, उसे कुछ ना कुछ करना नितांत जरूरी होता है। अतः सभी छात्र क्रियाशील रहते हैं।
  • कार्य गोष्ठी में शिक्षण सत्र को दो पारियों में विभाजित किया जाता है।


  • प्रयोगात्मक विधि :


  • इसे वैज्ञानिक विधि भी कहते हैं।
  • इसमें शिक्षक छात्रों को दिशा-निर्देश प्रदान करता है। वह छात्रों का मार्गदर्शक माना जाता है।
  • शिक्षक केवल योजना बनाता है एवं अन्य सहायक सामग्रियों के बारे में छात्रों को निर्देशित करता है।
  • ‘भूगोल’ अध्ययन के लिए यह उपयुक्त विधि मानी जाती है।
  • माध्यमिक व उच्च माध्यमिक स्तर के लिए यह उपयोगी विधि है।



  • सामूहिक विवेचना विधि :


  • इस विधि को समाजिककृत अभिव्यक्ति तथा परिवीक्षित अध्ययन विधि भी कहते हैं।
  • शिक्षक की परिवीक्षण में बालक को के द्वारा किया जाने वाला अध्ययन समाजिकृत परिवीक्षित अध्ययन कहलाता है।
  • इस विधि के अंतर्गत कक्षा में छात्रों के कई समूह बना दिए जाते हैं। तथा छात्र सामूहिक रूप से विषय वस्तु का निर्धारण करते हैं।
  • विद्यार्थी अपनी इच्छा अनुसार कार्य करके सामूहिक रूप से किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास करते हैं।



  • प्रादेशिक विधि :


  • इस विधि के प्रवर्तक हरबर्टसन है।
  • ‘प्रादेशिक’ शब्द का अर्थ है,’प्रदेश से संबंधित’ अर्थात जब स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार शिक्षण कार्य किया जाता है। वह प्रादेशिक विधि कहलाती है।
  • ‘भूगोल’ के अध्ययन के लिए यह अच्छी विधि मानी जाती है।



  • प्रश्नोत्तर विधि :


  • यूनानी दार्शनिक ‘सुकरात’ को इस विधि का जनक माना जाता है। अतः इसे “सोकरेटिक मेथड” भी कहते हैं।
  • इस विधि में शिक्षक छात्रों से प्रश्न पूछता है। और पाठ का विकास आगे से आगे होता रहता है।
  • पूछे जाने वाले प्रश्न या तो पूर्व ज्ञान से संबंधित होते हैं अथवा विषय वस्तु से संबंधित होते हैं।
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    Pradeep Chawla on 16-10-2018


    Check link below -


    http://www.manuu.ac.in/DDE-SelfLearnmaterial/BEDD115DST.pdf


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    Comments Deepak raghuwanshi on 01-03-2022

    Hindi shikshan vidiyan

    Manohar saini on 24-10-2020

    हिंदी कि शिक्षण विधिया

    Laxman on 24-09-2018

    Thanks

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