Pratap Narayann Mishra Baat प्रताप नारायण मिश्र बात

प्रताप नारायण मिश्र बात

GkExams on 04-10-2022


प्रताप नारायण मिश्र के बारें में : यह एक भारतेन्दु मन्ण्ल के प्रमुख लेखक, कवि और पत्रकार थे। इनका जन्म 24 सितंबर, 1856 को हुआ था। यह भारतेंदु जैसी रचनाशैली, विषयवस्तु और भाषागत विशेषताओं के कारण "प्रति-भारतेंदु" और "द्वितीय हरिश्चंद्र" कहे जाने लगे थे।




पंडित प्रताप नारायण मिश्र (pratap narayan mishra ka jeevan parichay) की भाषा सरल,सुबोध, और चटाखेदार भी कह सकते है। इनकी बोली खड़ी बोली थी। इस प्रकार के महान लेखक इस धरती पर कम ही जन्म लेते है। जिनकी प्रतिभा देखते ही बनती है।


प्रताप नारायण मिश्र की रचनाएँ :




निबंध संग्रह :


  • प्रताप पियूष
  • निबंध नवनीत
  • प्रताप समीक्षा



  • नाटक संग्रह :


  • कलि प्रभाव
  • हठी हम्मीर
  • गी-संकट



  • रूपक संग्रह :


  • कति कौतुक
  • भारत-दुर्दशा
  • ज्वारी-खुआरी
  • समझदार की मौत



  • काव्य संग्रह :


  • मन की लहर
  • शृंगार-विलास
  • लोकोक्ति-शतक
  • प्रेम-पुष्पावली
  • दंगल खण्ड
  • तृप्यन्ताम्
  • ब्राडला- स्वागत
  • मानस विनोद
  • शैव-सर्वस्व
  • प्रताप-लहरी



  • प्रताप नारायण मिश्र की मृत्यु :




    प्रताप नारायण मिश्र जी भारतेन्दु जी के व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित थे तथा उन्हें अपना गुरु मानते थे। ये वाग्वैदग्ध्य के धनी थे और अपनी हाजिरजवाबी एवं विनोदी स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे। कानपुर में 38 वर्ष की अल्पायु में ही 6 जुलाई, 1894 में ये स्वर्ग सिधार गए।


    प्रताप नारायण मिश्र का निबंध बात :




    यदि हम वैद्य होते तो कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्‍याख्‍या करते तथा भूगोलवेत्ता होते तो किसी देश के जल बात का वर्णन करते। किंतु इन दोनों विषयों में हमें एक बात कहने का भी प्रयोजन नहीं है। इससे केवल उसी बात के ऊपर दो चार बात लिखते हैं जो हमारे सम्‍भाषण के समय मुख से निकल-निकल के परस्‍पर हृदयस्‍थ भाव प्रकाशित करती रहती है। सच पूछिए तो इस बात की भी क्या बात है जिसके प्रभाव से मानव जाति समस्‍त जीवधारियों की शिरोमणि (अशरफुल मखलूकात) कहलाती है।


    शुकसारिकादि पक्षी केवल थोड़ी सी समझने योग्‍य बातें उच्‍चरित कर सकते हैं इसी से अन्‍य नभचारियों की अपेक्षा आद्रित समझे जाते हैं। फिर कौन न मान लेगा कि बात की बड़ी बात है। हाँ, बात की बात इतनी बड़ी है कि परमात्‍मा को सब लोग निराकार कहते हैं तौ भी इसका संबंध उसके साथ लगाए रहते हैं। वेद ईश्‍वर का बचन है, कुरआनशरीफ कलामुल्‍लाह है, होली बाइबिल वर्ड आफ गाड है यह बचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं सो प्रत्‍यक्ष में मुख के बिना स्थिति नहीं कर सकती। पर बात की महिमा के अनुरोध से सभी धर्मावलंबियों ने "बिन बानी वक्‍त बड़ योगी" वाली बात मान रक्‍खी है। यदि कोई न माने तो लाखों बातें बना के मनाने पर कटिबद्ध रहते हैं।


    यहाँ तक कि प्रेम सिद्धांती लोग निरवयव नाम से मुँह बिचकावैंगे। 'अपाणिपादो जवनो गृहीता' इत्‍यादि पर हठ करने वाले को यह कहके बात में उड़ावेंगे कि "हम लँगड़े लूले ईश्‍वर को नहीं मान सकते। हमारा प्‍यारा तो कोटि काम सुंदर श्‍याम बरण विशिष्‍ट है।" निराकार शब्‍द का अर्थ श्री शालिग्राम शिला है जो उसकी स्‍यामता को द्योतन करती है अथवा योगाभ्‍यास का आरंभ करने वाले कों आँखें मूँदने पर जो कुछ पहिले दिखाई देता है वह निराकार अर्थात् बिलकुल काला रंग है। सिद्धांत यह कि रंग रूप रहित को सब रंग रंजित एवं अनेक रूप सहित ठहरावेंगे किंतु कानों अथवा प्रानों वा दोनों को प्रेम रस से सिंचित करने वाली उसकी मधुर मनोहर बातों के मजे से अपने को बंचित न रहने देंगे।


    जब परमेश्‍वर तक बात का प्रभाव पहुँचा हुआ है तो हमारी कौन बात रही? हम लोगों के तो "गात माहिं बात करामात है।" नाना शास्‍त्र, पुराण, इतिहास, काव्‍य, कोश इत्‍यादि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्‍य एक-एक ऐसी पाई जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जाने वाली अथच लोक परलोक में सब बात बनाने वाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है पर बुद्धि दौड़ाइए तो ईश्‍वर की भाँति इसके भी अगणित ही रूप पाइएगा।


    बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, टेढ़ी बात, खरी बात, खोटी बात, मीठी बात, कड़वी बात, भली बात, बुरी बात, सुहाती बात, लगती बात इत्‍यादि सब बात ही तो है? बात के काम भी इसी भाँति अनेक देखने में आते हैं। प्रीति बैर, सुख दु:ख श्रद्धा घृणा, उत्‍साह अनुत्‍साहादि जितनी उत्तमता और सहजतया बात के द्वारा विदित हो सकते हैं दूसरी रीति से वैसी सुविधा ही नहीं। घर बैठे लाखों कोस का समाचार मुख और लेखनी से निर्गत बात ही बतला सकती है। डाकखाने अथवा तारघर के सारे से बात की बात में चाहे जहाँ की जो बात हो जान सकते हैं। इसके अतिरिक्‍त बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात आ पड़ती है, बात जाती रहती है, बात उखड़ती है।


    हमारे तुम्‍हारे भी सभी काम बात पर निर्भर करते हैं - "बातहि हाथी पाइए, बातहि हाथी पाँव।" बात ही से पराए अपने और अपने पनाए हो जाते हैं। मक्‍खीचूस उदार तथा उदार स्‍वल्‍पव्‍ययी, कापुरुष युद्धोत्‍साही एवं युद्धप्रिय शांतिशील, कुमार्गी सुपथगामी अथच सुपंथी कुराही इत्‍यादि बन जाते हैं। बात का तत्‍व समझना हर एक का काम नहीं है और दूसरों की समझ पर आधिपत्‍य जमाने योग्‍य बात बढ़ सकता भी ऐसों वैसों का साध्‍य नहीं है। बड़े-बड़े विज्ञवरों तथा महा-महा कवीश्‍वरों के जीवन बात ही के समझने समझाने में व्‍यतीत हो जाते हैं। सहृदयगण की बात के आनंद के आगे सारे संसार तुच्‍छ जँचता है। बालाकों की तोतली बातें, सुंदरियों की मीठी-मीठी, प्‍यारी-प्‍यारी बातें, सत्‍कवियों की रसीली बातें, सुवक्‍ताओं की प्रभावशाली बातें जिसके जी को और का और न कर दें उसे पशु नहीं पाषाण खंड कहना चाहिए। क्‍योंकि कुत्ते, बिल्‍ली आदि को विशेष समझ नहीं होती तो भी पुचकार के 'तू तू' 'पूसी पूसी' इत्‍यादि बातें क दो तो भावार्थ समझ के यथा सामर्थ्‍य स्‍नेह प्रदर्शन करने लगते हैं। फिर वह मनुष्‍य कैसा जिसके चित्त पर दूसरे हृदयवान की बात का असर न हो।


    बात वह आदणीय है कि भलेमानस बात और बाप को एक समझते हैं। हाथी के दाँत की भाँति उनके मुख से एक बार कोई बात निकल आने पर फिर कदापि नहीं पलट सकती। हमारे परम पूजनीय आर्यगण अपनी बात का इतना पक्ष करते थे कि "तन तिय तनय धाम धन धरनी। सत्‍यसंध कहँ तून सम बरनी"। अथच "प्रानन ते सुत अधिक है सुत ते अधिक परान। ते दूनौ दसरथ तजे वचन न दीन्‍हों जान।" इत्‍यादि उनकी अक्षरसंवद्धा कीर्ति सदा संसार पट्टिका पर सोने के अक्षरों से लिखी रहेगी। पर आजकल के बहुतेरे भारत कुपुत्रों ने यह ढंग पकड़ रक्‍खा है कि 'मर्द की जबान (बात का उदय स्‍थान) और गाड़ी का पहिया चलता ही फिरता रहता है।'


    आज और बात है कल ही स्‍वार्थांधता के बंश हुजूरों की मरजी के मुवाफिक दूसरी बातें हो जाने में तनिक भी विलंब की संभावना नहीं है। यद्यपि कभी-कभी अवसर पड़ने पर बात के अंश का कुछ रंग ढंग परिवर्तित कर लेना नीति विरुद्ध नहीं है, पर कब? जात्‍योपकार, देशोद्धार, प्रेम प्रचार आदि के समय, न कि पापी पेट के लिए। एक हम लोग हैं जिन्‍हें आर्यकुलरत्‍नों के अनुगमन की सामर्थ्य नहीं है। किंतु हिंदुस्‍तानियों के नाम पर कलंक लगाने वालों के भी सहमार्गी बनने में घिन लगती है।


    इससे यह रीति अंगीकार कर रखी है कि चाहे कोई बड़ा बतकहा अर्थात् बातूनी कहै चाहै यह समझे कि बात कहने का भी शउर नहीं है किंतु अपनी मति अनुसार ऐसी बातें बनाते रहना चाहिए जिनमें कोई न कोई, किसी न किसी के वास्‍तविक हित की बात निकलती रहे। पर खेद है कि हमारी बातें सुनने वाले उँगलियों ही पर गिनने भर को हैं। इससे "बात बात में वात" निकालने का उत्‍साह नहीं होता। अपने जी को 'क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने' इत्‍यादि विदग्‍धालापों की लेखनी से निकली हुई बातें सुना के कुछ फुसला लेते हैं और बिन बात की बात को बात का बतंगड़ समझ के बहुत बात बढ़ाने से हाथ समेट लेना ही समझते हैं कि अच्‍छी बात है।


    Source - Gadyakosh.org

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    Pradeep Chawla on 14-09-2018


    Check link below -



    http://www.hindipath.in/2015/08/pratap-narayan-mishra-jeevan-parichay.html


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    Comments Kanchan Yadav on 13-09-2021

    Baat paath ki Vyakhya

    Pratap Narayan Mishra on 04-09-2021

    Yadi a Hote To kab aur bete ke 70 baat ki Raksha karte iska answer batao

    Baat kahani ka sarans on 04-07-2021

    Baat kahani ka sarans

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    Vansh ojhs on 07-02-2021

    बात का सारांश

    Beyakha on 12-08-2020

    Partap Narayan mishra ka baat namk path ki beyakhya

    88 on 18-02-2020

    Baat path k saransh

    Pankajkumar on 04-12-2019

    प्रताप नारायण मिश्र की माता का नाम क्या था

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    Rishikesh Yadav on 13-09-2019

    Baat paath ka saransh

    navneet kori on 05-08-2019

    baat-yadi hum vadya hote......ki byakhya karte ki byakhya

    यदि on 03-07-2019

    यदि हम वैघ होते तो काफ और पित्त के सहमती बात की व्याख्या करते तथा

    विशाल on 24-05-2019

    बात पाठ का सरांश

    Alok on 12-05-2019

    Nirakar parmatma ka smbandh baat se kaise hai

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    Ashish on 07-10-2018

    Ham apne hriday sth bhav ko

    Abhorre on 22-09-2018

    Lekh né bharat ke kuputro dawara mard ki jaban ka kya arth y?

    Eastern bano on 10-09-2018

    Gdansk ki rekhankit veyakhya 1 ka kha

    Shivansh on 07-09-2018

    हम अपने हृदयस्थ
    भावों अभिव्यक्ति किसके माध्यम से करते हैं

    Ajay on 05-09-2018

    Baat nibandh k grammar ka sarlikaran

    Vishnu on 26-08-2018

    Bat ki Kahani par experience

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    Vishnu on 26-08-2018

    Bat ki Kahani first line ki vykhya


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