वर्धा हिंदी शब्दकोश
प्राक्कथन
भूमिका
पुल्लिंग स्त्रीलिंग
शिक्षक शिक्षिका
प्राध्यापक प्राध्यापिका
मंत्री मंत्राणी
डॉक्टर डॉक्टरनी
अध्यक्ष अध्यक्षा
संपादक संपादिका
आजकल दोनों के लिए पहला रूप ही चलता है।
कुछ समय पूर्व तक महिला डॉक्टर के लिए 'डॉक्टरनी' का प्रयोग होता था। आजकल दोनों के लिए 'डॉक्टर' शब्द का ही प्रयोग होता है और 'डॉक्टरनी' का प्रयोग 'डॉक्टर की पत्नी' के लिए सीमित हो गया है।
हिंदी में कुछ वर्षों पहले बहुवचन सर्वनाम (प्रथम पुरुषवाचक) 'हम' का प्रयोग स्त्रीलिंग में भी होता था, जैसे- हम जाती हैं। आजकल यह प्रयोग लुप्त हो गया है। आजकल युवावर्ग में एक नई प्रवृत्ति विकसित हो रही है कि 'आप' (स्त्रीलिंग) के साथ पुल्लिंग का प्रयोग हो रहा है, जैसे- 'आप कब आईं?' की जगह 'आप कब आए?'।
प्रविष्टि के रूप में सदैव ही शब्द का एकवचन रूप लिखा जाता है। लेकिन कुछ शब्द प्रविष्टि के रूप में तभी बहुवचन में लिखे जाते हैं जब उनका अर्थ भिन्न रूप में प्रचलित हो जाता है, जैसे- आदाब। यह 'अदब' का बहुवचन है। चूँकि 'आदाब' स्वतंत्र रूप से 'अभिवादन, नमस्कार' के अर्थ में इस्तेमाल हो रहा है और अदब 'साहित्य, कला, शिष्टता, आदर, तमीज़' के अर्थ में प्रयुक्त हो रहा है। इसलिए आदाब की नई प्रविष्टि दी गई है।
इंग्लिश से आगत शब्दों में भी इसी नियम का पालन किया गया है। प्रचलन में कुछ ऐसे शब्द भी आ गए हैं जो दोनों वचनों में प्रयोग होते हैं, जैसे- 'फ़ुट' और 'फ़ीट'। हमने 'फ़ुट' को ही प्रविष्टि में दिया है। आगत शब्दों में बहुवचन बनाने के लिए हम अपने प्रत्ययों का प्रयोग करते हैं, जैसे- 'बस' से 'बसें' बनता है, 'बसेज़' नहीं। लेकिन हिंदी में विशेषतया अख़बारों में इंग्लिश शब्दों के बहुवचन भी धड़ल्ले से प्रयुक्त हो रहे हैं, जैसे- 'क्रेडिट कार्ड्स', 'कस्टमर्स'। अख़बारों से एक उदाहरण देखिए- ''अपने वी आई पी कस्टमर्स के लिए ये कार्ड्स डिज़ाइन किए गए हैं।'' अभी तो संक्रमण काल है। यह भविष्य ही बता पाएगा की हिंदी में ऐसे रूप मान्य हो पाएँगे या नहीं।
हिंदी में कुछ शब्दों की दो-दो वर्तनियाँ प्रचलित हैं। इसका कारण यह है कि बोलचाल का रूप लिखित रूप से भिन्न हो गया है और आजकल उच्चरित रूप भी लिखा जाने लगा है। हिंदी में कुछ शब्द ऐसे हैं जहाँ दो समान महाप्राणों का इस्तेमाल हुआ है, जैसे- 'भाभी' और 'फूफा'। हिंदी में इनको 'भाबी' और 'फूपा' भी बोला जाने लगा है लेकिन मानक वर्तनी में अभी भी 'भाभी' और 'फूफा' चल रहा है। यही समस्या 'चाभी' के साथ है। 'चाभी' भी 'चाबी' लिखा जाने लगा है।
इंग्लिश उच्चारण [केअर] है। लेकिन हिंदी की वर्तनी व्यवस्था के अनुसार 'ए' के बाद का 'अ', 'य' लिखा जाता है, जैसे- शेयर, मेयर आदि। कुछ हिंदी शब्दों में 'र' और 'ड़' का अंतर पाया जाता है, जैसे- घबड़ाना : घबराना, रबर : रबड़, पूरी : पूड़ी, कंकड़ : कंकर। दो वर्तनियों के अन्य उदाहरण ये हैं- निबौरी : निबोली, सँभालना : सम्हालना। हिंदी में पारंपरिक वर्तनी में 'त्यौहार' लिखा जा रहा है जबकि इसका उच्चारण [त्योहार] हो गया है। इसी प्रकार 'न्यौता, न्योता' जैसे शब्दों के दोनों रूप चल रहे हैं।
अध्येताओं की सुविधा के लिए कोशकारों का कर्तव्य है कि वे किसी शब्द के एक रूप को मानक रूप चुने और दूसरे शब्द के अर्थ में 'देखें' लिख दें। वैसे यह काम केंद्रीय हिंदी निदेशालय जैसी संस्था ही कर सकती है। यह निर्णय आवृत्ति के आधार पर लिया जा सकता है। हमारे पास यह सुविधा नहीं है, इसलिए हमारा चयन यादृच्छिक है।
हिंदी में इस कथन (हिंदी में जैसा लिखा जाता है, वैसा पढ़ा जाता है) का इतना प्रचार हो चुका है कि लोग इसको ही सच मानने लगे हैं। ऐसा शत-प्रतिशत सही नहीं है। यह हिंदी भाषियों के लिए भले ही कोई समस्या नहीं है, लेकिन विदेशियों के लिए बहुत बड़ी समस्या है। उपर्युक्त कथन के कारण अधिकतर हिंदी कोशों में न तो शब्दों का उच्चारण लिखा जाता है और न ही उच्चारण के संकेत दिए जाते हैं। विदेशी प्रयोक्ता की सुविधा के लिए यहाँ उच्चारण के कुछ नियम दिए जा रहे हैं।
लिखित अंतिम 'अ' का उच्चारण तभी होता है जब अंत में दो व्यंजन हों, जैसे- कर्म, कष्ट आदि। अधिकतर स्थितियों में अक्षरांत 'अ' अनुच्चरित रहता है। संस्कृत में अक्षरांत में 'अ' उच्चरित होता है। यदि संस्कृत के किसी शब्द में अंत में अ न बोला जाए तो 'हल' चिह्न लगाना ज़रूरी है, जैसे- पश्चात्। हिंदी वर्तनी व्यवस्था में इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप 'हल' चिह्न लगाएँ या नहीं, जैसे- 'पश्चात्-पश्चात'। उच्चारण में दोनों ही समान रूप में व्यंजनांत बोले जाते हैं। इसी दृष्टि से इस कोश में शब्दांत में 'हल' चिह्न नहीं लगाया गया है।
'ह' के पूर्व 'अ' का उच्चारण ह्रस्व 'ऐ' हो जाता है, जैसे- 'कहना'। हिंदी में ह्रस्व 'ऐ' लिखने की कोई व्यवस्था नहीं है। 'य' और 'व' के पूर्व का व्यंजन उच्चारण में द्वित्व हो जाता है, जैसे- विन्यास [विन्-न्यास], विश्वास [विश्-श्वास]। 'संवाद' जैसे शब्दों में 'व' के पूर्व अनुस्वार का उच्चारण दंत्योष्ठ्य [म्] होता है जो हिंदी में नहीं लिखा जा सकता। यदि पूर्वप्रत्यय के बाद शब्द आए तो बाद का शब्द अपने ढंग से उच्चारित होता है, जैसे - 'बेलगाम' का उच्चारण बे-लगाम है, न कि बेल-गाम।
हिंदी मे शब्दांत अनुस्वार म् बोला जाता है, जैसे- अहं, स्वयं। अन्य स्थानों पर अनुस्वार का उच्चारण इस बात पर निर्भर करता है कि उसके पूर्व कौन-सा व्यंजन है। इसलिए उसे वर्गीय नासिक्य व्यंजन कहा जाता है। विसर्ग का उच्चारण [ह] की तरह होता है।
'ऐ' के तीन उच्चारण हैं। पहले प्रकार का उच्चारण 'है' आदि शब्दों में मूल स्वर की तरह होता है। दूसरे प्रकार का उच्चारण संध्यक्षर के रूप में [अइ] होता है जब यह 'य' के पूर्व आता है, जैसे- भैया, नैया तैयार, सैयद आदि। तीसरा उच्चारण [अय्] होता है जो अकसर तत्सम शब्दों में आता है, जैसे- ऐतिहासिक।
'औ' के भी तीन उच्चारण हैं। पहले प्रकार का उच्चारण 'और' आदि शब्दों में मूल स्वर की तरह होता है। दूसरे प्रकार का उच्चारण कौवा/कौआ आदि शब्दों में संध्यक्षर की तरह [अउ] होता है। तीसरा उच्चारण [अव्] है, जो प्रायः तत्सम शब्दों में आता है, जैसे- गौरव, सौरभ आदि।
बहन/बहिन शब्द में 'ह' के पूर्व 'अ' का उच्चारण [ह्रस्व 'ऐ'] है और 'ह' के बाद 'अ' का उच्चारण [ह्रस्व 'ए'] है।
हिंदी में 'लुहार' और 'लोहार' दोनों रूप चल रहे हैं। लेकिन उच्चारण में [ह्रस्व 'ओ'] बोला जाता है जो कि देवनागरी में नहीं लिखा जा सकता।
अंत में, इस कोश के जो प्रेरणास्रोत रहे हैं, जिनके तगादों की मार ने इस प्रथम प्रयास को अंजाम तक पहुँचाया, ऐसे कुलपति श्री विभूति नारायण राय के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। अपनी पत्नी-सह-प्रेमिका डॉ. साधना सक्सेना का अहसान तो मैं आजीवन नहीं भूल सकता, जिन्होंने अपनी गंभीर बीमारी के दौरान भी कोश कार्य में मेरी सक्रिय मदद की।
रामप्रकाश सक्सेना
प्रधान संपादक
संकेत सूची
व्युत्पत्ति संबंधी
(अ.) अरबी
(इं.) इंग्लिश
(इता.) इतालियन
(इब.) इबरानी
(गु.) गुजराती
(ग्री.) ग्रीक
(ची.) चीनी
(ज.) जर्मन
(जा.) जापानी
(त.) तमिष (तमिल)
(तु.) तुर्की
(प.) पश्तो
(पं.) पंजाबी
(पु.) पुर्तगाली
(फ़ा.) फ़ारसी
(फ़्रें.) फ़्रेंच
(बं.) बंगला (बंगाली)
(ब.) बर्मी
(म.) मलयालम
(रू.) रूसी
(लै.) लैटिन
(सं.) संस्कृत
(स्वे.) स्वेडिश
संयुक्त रूप
(सं.+फ़ा.) संस्कृत + फ़ारसी
(सं.+अ.) संस्कृत + अरबी
(हिं.+तु.) हिंदी + तुर्की
(हिं.+फ़ा.) हिंदी + फ़ारसी
(हिं.+इं.) हिंदी + इंग्लिश
(इं.+हिं.) इंग्लिश + हिंदी
(इं.+फ़ा.) इंग्लिश + फ़ारसी
(इं.+सं.) इंग्लिश + संस्कृत
(तु.+सं.) तुर्की + संस्कृत
(तु.+हिं.) तुर्की + हिंदी
(तु.+फ़ा.) तुर्की + फ़ारसी
(पु.+हिं.) पुर्तगाली + हिंदी
(पु.+फ़ा.) पुर्तगाली + फ़ारसी
(पु.+सं.) पुर्तगाली + संस्कृत
(फ़ा.+सं.) फ़ारसी + संस्कृत
(फ़ा.+हिं.) फ़ारसी + हिंदी
(अ.+फ़ा.) अरबी + फ़ारसी
शाब्दिक कोटि संबंधी
[सं-पु.] संज्ञा पुल्लिंग
[सं-स्त्री.] संज्ञा स्त्रीलिंग
[सर्व.] सर्वनाम
[वि.] विशेषण
[क्रि-स.] क्रिया सकर्मक
[क्रि-अ.] क्रिया अकर्मक
[अव्य.] अव्यय
[क्रि.वि.] क्रिया विशेषण
[पूर्वप्रत्य.] पूर्वप्रत्यय
[परप्रत्य.] परप्रत्यय
[क्रि-सहा.] क्रिया सहायक
[मु.] मुहावरा
[यो.] योजक
[नि.] निपात
[पर.] परसर्ग
[लोको.] लोकोक्ति
अर्थ संबंधी
{अ-अ.} अप्रचलित अर्थ
{अशि.} अशिष्ट अर्थ
{ला-अ.} लाक्षणिक अर्थ
{व्यं-अ.} व्यंग्यात्मक अर्थ
{शा-अ.} शाब्दिक अर्थ
Kru kha par aata he
Tatsamrup charcha
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History-world
Age
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Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
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Science
Science and Technology
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