भारत में आने वाले प्रवासी पक्षी
प्रवास का अर्थ है यात्रा पर जाना या दूसरे स्थान पर जाना किन्तु उनका यह प्रवास केवल अपने देश में सीमित नहीं होता, वरन् सुदूर विदेशों तक होता है।
पक्षियों पर हुए अध्ययन से यह पाया गया है कि भारत के पक्षी लगभग 10,000 किलोमीटर का सफर तय करके रूस के निकट साइबेरिया पहुंचते हैं, और इसी प्रकार उस देश के पक्षी भारत में आते हैं, जो पक्षी भारत में आकर सर्दियां गुजारते हैं वे उतरी एशिया, रूस, कजाकिस्तान तथा पूर्वी साइबेरिया से यहां आते हैं। 2,000 से 5,000 किलोमीटर की दूरी तो ये आसानी से उड़कर पार कर लेते हैं, यद्यपि इसमें समय इन्हें काफी लगता है। फिर भी यह बहुत आश्चर्यजनक है कि समुद्री और दुर्गम रेगिस्तानी प्रदेशों को ये कैसे पार कर लेते हैं क्योंकि इन कठिन स्थानों को वायुयान से पार करने में मनुष्य भी हिचकिचाते हैं फिर ये पक्षी इन्हें कैसे पार कर लेते हैं जबकि ये आकार में बहुत बड़े भी नहीं होते। इनमें गेहवाला जैसी छोटी चिड़िया और छोटे-छोटे परिंदे भी सम्मिलित हैं। हमारे देश में मंगोलिया से आकर सर्दियां गुजारने वाले पक्षी तथा मंगोलिया में जाकर गर्मियां गुजारने वाले पक्षी हंस दोनों देशवासियों को आश्चर्य में डाल देते हैं। इसी प्रकार भारत का सुप्रसिध्द पक्षी राजहंस भारत में सर्दियां गुजारता है और तिब्बत जाकर मानसरोवर झील के किनारे अण्डा देता है। पक्षियों का यह विचित्र स्वभाव देखकर पक्षी विज्ञान के विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
पक्षी प्रवास पर क्यों जाते हैं: 1. जलवायु परिवर्तन 2. उनकी अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति, किन्तु पक्षियों को यह कैसे ज्ञात हो जाता है कि अब उन्हें दूसरे देश चल देना चाहिए? और वे रास्ता कैसे पहचान जाते हैं? जाते या आते समय रास्ता कैसे याद रखते हैं। आदि अनेक प्रश्न बहुत ही कठिन हैं। इनका उत्तर यह दिया जाता है कि ये सब बातें पक्षियों की शारीरिक बनावट और मौसम परिवर्तन से संबंधित है। जिससे वे अपने परंपरागत गुणों के कारण जन्म से ही परिचत होते हैं। ऐसा माना जाता है कि पक्षियों की किसी भी प्रजाति का जीवनकाल करीब 20 लाख साल का होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि वे अपने इतने वर्षों के गुणों व स्वाभाविक प्रवृत्तियों से उपरोक्त सब बातें अनायास जान लेते हैं और प्रवास पर चल पड़ते है। दूसरे परिंदों के शरीर से निकलने वाले हारमेन ही इन्हें ऋतु परितर्वन, जैसे पतझड़ में दिनों के छोटे होने व बसंत में बड़े होने आदि की सूचना दे देते हैं। जब वे प्रवास में रहते हैं या यात्रा करते हैं, तब सूर्य ही उनका प्रमुख दिशासूचक यंत्र होता है। कौन-सा ज्ञान तंतु इस कार्य में उनकी मदद करता है, यह बात वैज्ञानिक अभी नहीं जान पाए हैं किन्तु यह जान लिया गया है कि रात में उड़ने वाले पक्षी नक्षत्रों का उपयोग दिशासूचक के रूप में करते हैं। यह तथ्य बहुत ही आश्चर्यजनक है। पक्षी प्रवास पर जाते समय अपने शरीर को प्राकृतिक रूप से उस योग्य बना लेते हैं, यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है। देखा गया है कि प्रवासी बत्तख के वजन में बसंत ऋतु में भारत को प्रस्थान करते समय लगभग 150 ग्राम की वृध्दि हो चुकी होती है।
जब बर्फीले क्षेत्र में भालू और सियार परिस्थितिवश ही शीतनिन्द्रा को जाते हैं तो वे अपने शरीर की चर्बी कई महीने पहले से बढ़ाना शुरू कर देते हैं। मेंढक भी शीतनिद्रा को जाते हैं, और इसके पहले वे खूब खा-पीकर मोटे ताजे हो जाते हैं। लोमड़ी तो अपनी गुफा में महीनों पहले से भविष्य के लिए मांस आदि इकट्ठा करना शुरू कर देती है, जो बर्फ और ठंड के कारण महीनों खराब नहीं होता व उसके काम में आता है। दूसरे इस समय भोजन न मिलने पर उनके शरीर की बढ़ी हुई चर्बी जो धीरे-धीरे जलती रहती है। उन्हें जीवनदान देती रहती है। इस प्रकार शीत निद्रा व प्रवास के लिए जाते समय पशु-पक्षी स्वाभाविक रूप से अपने शरीर को विकट परिस्थितियों के लायक बना लेते हैं।
पशु-पक्षियों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक अभी तक यह ज्ञात नहीं कर पाए हैं कि पक्षियों के प्रवास पर मार्ग कौन सा होता है? उनके उड़ान भरने का निश्चित समय कौन सा है? वे किस-किस स्थान पर यात्रा करते हैं।
क्या वे हर वर्ष प्रवास का मार्ग बदल देते हैं?
इस काम में दो देशों, जिस देश से पक्षी प्रवास कर निकले है तथा जिस देश में पहुंचेंगे के पक्षी वैज्ञानिकों का सहयोग व योजना आवश्यक होती है।
किन्तु वैज्ञानिक यह कैसे जान लेते हैं कि ये पक्षी प्रवासी है? इसके लिए एक वैज्ञानिक तरीका इन वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है वह है पक्षियों के पैर में चिन्हित एल्युमीनियम का छल्ला डालना। धातु के ये छल्ले दो मिलीमीटर से लेकर 19 मिली मीटर तक बड़े होते है। छोटे-छल्ले छोटे पक्षियों के पैर में पहनाये जाते हैं।
पूरी तरह बंद न होने वाले ये छल्ले पक्षियों की टांगों में आसानी से पहनाए जा सकते हैं। पक्षियों को छल्ला पहनाने से यह ज्ञात हो जाता है कि कहां कहां तक उड़कर आए हैं व कहां लौटे हैं। यह खोज व शोध के नवीन पध्दति है जो अत्यंत रोचक भी है। हमारे देश में बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी एक महत्वपूर्ण संस्था है जो पशु पक्षियों के अध्ययन का कार्य करती है। यह संस्था प्रवासी पक्षियों को आधुनिक जालों और कोहरा जाल मिस्ट नेट आदि से पकड़कर ये छल्ले उनके पांवों में डालती है। इस पर इन्फार्म बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी लिए अर्थात् यहां पक्षी कहां कब किस देश में किस दशा में मिला इसकी सारी जानकारी उक्त संस्था को दीजिए, यह निवेदन लिखा होता है। वैज्ञानिक ऐसे प्रवासी पक्षी का सारा विवरण लिखकर इस संस्था को भेजते हैं।
इसी प्रकार विदेशों में भी अनेक संस्थाएं हैं जो पक्षियाें को छल्ले पहनाती हैं तथा अपने देश में मिलने वाली पक्षियों की सूचना संबंधित देशों को भेजती हैं। इससे यह बात बहुत आसानी से जान ली जाती है कि कौन से पक्षी किस देश के हैं, तथा वे किस-किस देश के हैं, तथा वे किस-किस देश में प्रवास के लिए जाते हैं। यह कार्य बहुत ही नाजुक प्रकार का होता है। पक्षियों के प्रवास का यह क्रम अनिश्चित-सा है ऐसा कदापि मत मान लीजिएगा। इसमें एक निश्चितता है और उसके पीछे वैज्ञानिक कारण है।
जिस प्रकार गर्मियों में हम ठण्डे स्थान पर जाते हैं उसी प्रकार ठिठुरती ठंड से बचने के लिए पक्षी अपेक्षाकृत गर्म स्थानों पर जाते हैं। बहुधा इनकी यात्राएं जाड़े के दिनों में उत्तर दिशा की ओर होती है। जाड़े के दिनों में उन्हें वहां ठंड के अलावा भोजन पानी की समस्या भी सताती है, अत: वे दक्षिण की ओर जाते हैं। गर्मी के दिनों में उन्हें भोजन और पानी तथा तापमान की समस्या सताती है इसलिए ये उत्तर की ओर जाते हैं। जब ये वापस आते हैं तो अपने ही घोंसलों को ठीक-ठाक कर काम में लाने की तैयारी करते हैं। ये अपने ही घर वापस कैसे आते हैं। यह आज भी रहस्यमय बना हुआ है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कबूतर कैसे अपने घर लौट आता है?
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