लोक प्रशासन की प्रकृति
लोक प्रशासन की प्रकृति -
जिस प्रकार लोक प्रशासन की परिभाषा में कई दृष्टिकोण दिखाई देते हैं, उसी प्रकार इसकी प्रकृति के विषय में भी दो तरह के दृष्टिकोण हैं। प्रथम, व्यापक दृष्टिकोण जिसे पूर्ण विचार अथवा एकीकृत विचार कहा जाता है और दूसरा संकुचित दृष्टिकोण जिसे प्रबन्धकीय विचार कहा जाता है।
एकीकृत विचार
इस विचार के समर्थकों के मतानुसार, लोक प्रशासन लोकनीति को लागू करने और उस की पूर्ति के लिए प्रयोग की गई गतिविधियों का योग है। इस प्रकार निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सम्पादित की जाने वाली क्रियाओं का योग ही प्रशासन है, चाहे वे क्रियाएं, प्रबन्धकीय अथवा तकनीकी ही क्यों न हो। विस्तृत रूप से सरकार की सभी गतिविधियाँ चाहे वे कार्यपालिका हो तथा चाहे विधायक अथवा न्यायिक, लोक प्रशासन में शामिल हैं।
एल.डी. ह्नाइट, विलसन, डीमाक और फिफनर आदि लेखकों ने इस विचार का समर्थन किया है। एल.डी. ह्नाइट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है, ”लोक प्रशासन का सम्बन्ध उन सभी कार्यों से है जिन का प्रयोजन सार्वजनिक नीति को पूरा करना या उसे क्रियान्वित करना होता है।“ इस परिभाषा में शासन सम्बन्धी सभी क्षेत्रों की विशेष क्रियाएं आ जाती है, जैसे पत्र-वितरण, सार्वजनिक भूमि का विक्रय, किसी सन्धि की वार्ता, घायल कर्मचारी को क्षतिपूर्ति देना, संक्रामक रोग से बीमार बच्चे को अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आने से रोकना, सार्वजनिक पार्क में से कूड़ा-करकट हटाना, प्लूटोनियम का निर्माण तथा अणु शक्ति के प्रयोग का अनुपालन।“
इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए फिफनर (Pfiffner) ने कहा है, ”लोक प्रशासन का अर्थ है सरकार का काम करना चाहे वह कार्य स्वास्थ्य प्रयोगशाला में एक्सरे मशीन का संचालन हो अथवा टकसाल में सिक्के बनाना हो। लोक प्रशासन से तात्पर्य है लोगों के प्रयासों में समन्वय स्थापित करके कार्य को सम्पन्न करना ताकि वे मिलकर कार्य कर सकें अथवा अपने निश्चित कार्यों को पूरा कर सके।“
प्रबन्धकीय विचार
इस विचार के समर्थक केवल उन्हीं लोगों के कार्यों को प्रशासन मानते हैं जो किसी उद्यम सम्बन्धी कार्यों को पूरा करते हैं। प्रबन्धकीय कार्य का लक्ष्य उद्यम की सभी क्रियाओं का एकीकरण, नियन्त्रण तथा समन्वय करना होता है जिससे सभी क्रियाकलाप एक समन्वित प्रयत्न (Co-ordinated Effort) जैसे दिखाई देते हैं।
साइमन, स्मिथबर्ग तथा थॉमसन इस दृष्टिकोण के समर्थक हैं। उनके मतानुसार, ”प्रशासन शब्द अपने संकुचित अर्थों में आचरण के उन आदर्शों को प्रकट करने के लिए प्रयोग किया जाता है जो अनेक प्रकार के सहयोगी समूहों में समान रूप से पाए जाते हैं और न तो उस लक्ष्य विशेष पर ही आधारित होते हैं जिसकी प्राप्ति के लिए वे सहयोग कर रहे हैं और न उन विशेष तकनीकी रीतियों पर ही अवलम्बित हैं जो उन लक्ष्यों के हेतु प्रयोग की जाती हैं।“ इस विचार का पक्ष लेते हुए लूथर गुलिक ने भी लिखा है, ”प्रशासन का सम्बन्ध कार्य पूरा किये जाने और निर्धारित उद्देश्यों की परिपूर्ति से है।“ दूसरे शब्दों में इस विचार के समर्थक लोक प्रशासन को केवल कार्यपालिका शाखा की गतिविधियों तक ही सीमित कर देते हैं।
इन दोनों विचारों में कई पहलुओं से भिन्नता पाई जाती है। एकीकृत विचार में प्रशासन से सम्बन्धित सभी व्यक्तियों के कार्य शामिल हैं, जबकि प्रबन्धकीय विचार प्रशासन को केवल कुछ एक ऊपर के व्यक्तियों के कार्यों तक ही सीमित करता है। दूसरे शब्दों में एकीकृत दृष्टिकोण में प्रबन्धकीय, तकनीकी तथा गैर-तकनीकी सब प्रकार की गतिविधियां शामिल हैं जब कि प्रबन्धकीय दृष्टिकोण अपने आप को एक संगठन के प्रबन्धकीय कार्यों तक ही सीमित रखता है। एकीकृत दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन सरकार की तीनों शाखाओं-कार्यपालिका, विधानपालिका तथा न्यायपालिका से सम्बन्धित है। परन्तु प्रबन्धकीय दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन का संबंध केवल कार्यपालिका कार्यों से है। इन दोनों विचारों में से किसी की भी पूर्णतः उपेक्षा नहीं की जा सकती। प्रशासन का ठीक अर्थ तो उस प्रसंग पर निर्भर करता है जिस संदर्भ में शब्द का प्रयोग किया जाता है।
डिमॉक तथा कोईनिंग (Koening) ने सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए लोक प्रशासन की प्रकृति का सारांश निकालने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार,
अध्ययन के विषय के रूप में प्रशासन उन सरकारी प्रयत्नों के प्रत्येक पहलू की परीक्षा करता है जो कानून तथा लोकनीति को क्रियान्वित करने हेतु किए जाते हैं। एक प्रक्रिया के रूप में इसमें वे सभी प्रयत्न आ जाते हैं जो किसी संस्थान में अधिकार-क्षेत्र प्राप्त करने से लेकर अन्तिम ईंट रखते तक उठाए जाते हैं (और कार्यक्रमों का निर्माण करने वाले अभिकरण का प्रमुख भाग भी इसमें सम्मिलित होता है) तथा व्यवसाय के रूप में प्रशासन किसी भी सार्वजनिक संस्थान के क्रिया-कलापों का संगठन तथा संचालन करता है।
लोक प्रशासन का कार्यक्षेत्र (Scope)
लोक प्रशासन के क्षेत्र संबंधी विचार को दो भागों में बांटा जा सकता है-
(१) एक वर्ग के विचारक लोक प्रशासन की व्याख्या इतने व्यापक अर्थ में करते हैं कि लोक प्रशासन की सीमा के अन्दर सरकार के सभी विभाग तथा कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका के क्षेत्र आ जाते हैं। इस परिभाषा को स्वीकार करने पर प्रशासन के क्षेत्र में वे सभी कार्य शामिल होंगे जो सरकार की सम्पूर्ण सार्वजनिक नीतियों को निर्धारित करने तथा उन नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए किए जाते हैं परन्तु इस परिभाषा में लोक प्रशासन की अपनी विशिष्टता नहीं रह जाएगी।
(२) लोक प्रशासन के संबंध में दूसरा विशिष्ट विचार ही अधिक ग्राह्य है। इनके अन्तर्गत लोक प्रशासन का अध्ययन कार्यपालिका के उस पक्ष से संबंधित है जो व्यवस्थापिका के द्वारा निश्चित की गई नीतियों का व्यवहार में लाने का उत्तरदायित्व ग्रहण करता है। इसलिए लोक प्रशासन कार्यपालिका से ही संबंधित है और उसी के नेतृत्व में काम करता है। एफ मार्क्स के अनुसार लोक प्रशासन के अन्तर्गत वे समस्त विषय आते हैं जिनका संबंध सार्वजनिक नीति से है, स्थायी परम्पराओं के अनुसार, लोक प्रशासन के कार्य असैनिक संगठन, कर्मचारियों एवं प्रक्रियाओं से लगाये जाते हैं, जो प्रशासन को प्रभावशाली बनाने के लिए कार्यपालिका को दिए जाते हैं।
विलोबी के अनुसार, लोक प्रशासन के क्षेत्र का संबंध इन बातों से है-
(१) सामान्य प्रशासन,
(२) संगठन,
(३) कर्मचारी वर्ग,
(४) सामग्री, तथा
(५) वित्त
उपर्युक्त विचारों के प्रकाश में लोक प्रशासन के क्षेत्र को हम निम्न रूप में वर्णित कर सकते हैं-
(१) इसका संबंध सरकार के ‘क्यों’ और ‘कैसे’ से है : लोक प्रशासन का संबंध सरकार के ‘क्या’ से है जिनका अर्थ उन समस्त लक्ष्यों की उपस्थिति है जिनको हम सामग्री कहते हैं और जिनको पूर्ण करने के लिए वह प्रयत्नशील रहती है। ‘कैसे’ का संबंध उन साधनों से है जिनका प्रयोग सरकार उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करती है। वित्त, कर्मचारियों की नियुक्ति, निर्देशन, नेतृत्व इत्यादि इसके उदाहरण हैं। इसके अन्तर्गत प्रशासन के दोनों पहलू आ जाते हैं- सिद्धान्त तथा व्यवहार।
(२) कार्यपालिका की क्रियाशीलता का अध्ययन - लोक प्रशासन, प्रशासन का वह अंग है जो कार्यपालिका के क्रियाशील तत्वों का अध्ययन करता है। लोक प्रशासन का संबंध कार्यपालिका की उन समस्त असैनिक क्रियाओं से है जिनके द्वारा वह राज्य के निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने की चेष्टा करता है। लोक प्रशासन का यह संकीर्ण रूप है। प्रशासन का वास्तविक उत्तरदायित्व कार्यपालिका के ऊपर है, चाहे वह राष्ट्रीय, राजकीय अथवा स्थानीय स्तर की क्यों न हो।
(३) लोक प्रशासन का संबंध संगठन की समस्याओं से है - लोक प्रशासन में हम प्रशासनिक संगठन का अध्ययन करते हैं। सरकार के विभागीय संगठन का अध्ययन इसके अन्तर्गत किया जाता है। लोक प्रशासन के क्षेत्र में नागरिक सेवाओं (असैनिक) के विभिन्न सूत्रों, उसके संगठनों तथा क्षेत्रीय संगठनों का व्यापक अध्ययन करते हैं।
(४) पदाधिकारियों की समस्याओं का अध्ययन - लोक प्रशासन के क्षेत्र में पदाधिकारियों की भर्ती, प्रशिक्षण, सेवाओं की दशा, अनुशासन तथा कर्मचारी संघ आदि समस्याओं का व्यापक रूप से गहन अध्ययन किया जाता है।
(५) इसका संबंध सामान्य प्रशासन से है - लक्ष्य निर्धारण, व्यवस्थापिकाएवं प्रशासन संबंधी नीतियां, सामान्य कार्यों का निर्देशन, स्थान एवं नियंत्रण आदि लोक प्रशासन के क्षेत्र में सम्मिलित हैं।
(६) सामग्री प्रदाय संबंधी समस्यायें - लोक प्रशासन के अन्तर्गत क्रय, स्टोर करना, वस्तु प्राप्त करने के साधन तथा कार्य करने के यंत्र आदि का भी विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
(७) वित्त संबंधी समस्याओं का अध्ययन - लोक प्रशासन में बजट वित्तीय आवश्यकताओं की व्यवस्था तथा करारोपण आदि का अध्ययन किया जाता है।
(८) प्रशासकीय उत्तरदायित्व - लोक प्रशासन की परिधि में हम सरकार के विभिन्न उत्तरदायित्व का विवेचन करते हैं। न्यायालयों के प्रति उत्तरदायित्व, जनता तथा विधान-मंडल आदि के प्रति प्रशासन के उत्तरदायित्व का अध्ययन किया जाता है।
(९) मानव-तत्व का अध्ययन - लोक प्रशासन एक मानव शास्त्र है। मानवीय तत्त्व के अभाव में वह अपूर्ण है। अमेरिकी लेखक साइमन तथा मार्क्स ने लोक प्रशासन के अध्ययन में मानवीय तत्त्व के अध्ययन को विशेष महत्त्व दिया है। व्यक्ति ही समस्त प्रशासकीय व्यवस्था का संचालक, स्रोत, आधार तथा मार्गनिर्देशक होता है। मानव-मनोविज्ञान के अध्ययन के बिना लोक प्रशासन की विविध समस्याओं को नहीं समझाया जा सकता। प्रशासन पर परम्पराओं, सभ्यता, संस्कृति एवं बाह्य वातावरण का प्रभाव पड़ता है। लोक प्रशासन की विविध समस्याओं को हमें मानवीय व्यवहार की पृष्ठभूमि में देखना चाहिए। लोक प्रशासन एक सामूहिक मानवीय क्रिया है।
सामूहिक संबंधों का आधार क्या है तथा व्यक्ति उन आवश्यकताओं की पूर्ति किस प्रकार कर पाता है, यह विचारणीय विषय लोक प्रशासन का है। प्रशासकीय निर्णयों पर किन-किन तत्वों का व्यापक रूप से प्रभाव होता है, इसका अध्ययन हम लोक प्रशासन में करते हैं।
लोक प्रशासन के अध्ययन-क्षेत्र के बारे में विचारकों में बड़ा भेद है। मूलतः मतभेद इन प्रश्नों को लेकर है कि क्या लोक प्रशासन शासकीय कामकाज का केवल प्रबन्धकीय अंश है अथवा सरकार के समस्त अंगों का समग्र अध्ययन? क्या लोक प्रशासन सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन है अथवा यह नीति-निर्धारण में भी प्रभावी भूमिका अदा करता है।
लोक-प्रशासन : कला अथवा विज्ञान
लोक प्रशासन कला है या विज्ञान - इस विषय पर विद्वानों में मतभेद है।
लोकप्रशासन को विज्ञान मानने वालो विचारकों में लूथर, गुलिक, उर्विक, वुडरो विल्सन आदि प्रमुख हैं। इनके अनुसार लोकप्रशासन का अध्ययन क्रमबद्ध तरीके से किया जाता है जिसमे परिकल्पना, तथ्यों का संग्रह, तथ्यों की पुष्टि, तथ्यों का वर्गीकरण, तुलनात्मक अध्ययन, विश्लेषण आदि वैज्ञानिक तरीको का उपयोग कर एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है। इस प्रकार लोक प्रशासन में इन वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग करके ही सामान्य नियम स्थापित किया जाता है। विज्ञान की भाँति ही लोक प्रशासन में कुछ सर्वमान्य सिद्धान्त भी है जैसे- आदेश की एकता, नियंत्रण क्षेत्र, टेलर का वैज्ञानिक प्रबन्ध का सिद्धान्त आदि। लोक प्रशासन में विद्धमान दोषो को दूर करने व प्रशासनिक तकनीक के विकास हेतु विज्ञान की तरह ही लोकप्रशासन में भी नवीन प्रयोग किये जाते है। इसी के साथ लोक प्रशासन में तकनीकी ज्ञान की भी प्रधानता है। एक वैज्ञानिक की भाँति एक कुशल प्रशासक को भी तकनीकी ज्ञान से युक्त होना आवश्यक है ताकि वह अपने दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वाह कर सके। इन अर्थो में लोकप्रशासन को विज्ञान माना जा सकता है।
दूसरी और प्रो व्हाइट, डॉ एम् पी शर्मा, आर्टवे टिड जैसे विचारक लोकप्रशासन को कला की श्रेणी में रखते हैं। उनके अनुसार लोकप्रशासन का विकास भी कला की भांति धीरे-धीरे क्रमिक रूप से हुआ है। इस दृष्टि से लोक प्रशासन भी एक कला है जिसमे विभिन्न युगों का व्यवस्थित अध्ययन करते हुए सामान्य नियम स्थापित किये गए है। एक कलाकार के समान ही प्रशासक भी अनुभव एंव अभ्यास के आधार पर ही सफल और सिद्ध हो सकता है। जिस प्रकार कला की सफलता कुछ निश्चित नियमो पर आधारित होती है उसी प्रकार लोकप्रशासन में भी नियमो के आभाव में प्रशासको के स्वेच्छाचारिता एंव प्रशासन के स्वरूप विकृत होने की सम्भावना बनी रहती है। विकासशील होने के कारण जिस प्रकार कला के सिद्धान्तों में परिवर्तन होता रहता है ठीक उसी प्रकार लोकप्रशासन में भी विकास की प्रक्रिया निरतंर चलती रहती है और नए नियम बनते रहते है। कला के उपर्युक्त सभी लक्षणों की उपस्थिति के कारण लोकप्रशासन को एक कला के रूप में स्वीकार किया जाता है।
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