दृश्य श्रव्य सामग्री के प्रकार
दृश्य-श्रव्य सामग्री-
by Saba Pasha on 1/22/2015 in गणित शिक्षण, विज्ञान शिक्षण, सामाजिक अध्ययन शिक्षण, हिंदी शिक्षण
CTET 2015 EXAM NOTES
दृश्य-श्रव्य सामग्री
दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग छात्र और विषय सामग्री के मध्य अन्तःक्रिया को तीव्रतम गति परलाकर छात्रों को शिक्षोन्मुखी तथा जिज्ञासु बनाती है। एक अच्छे शिक्षक के लिए विषय पर आधिपत्य अध्यापन का बहुपयोगी माध्यम है।
आइए देखे ये दृश्य-श्रव्य सामग्री क्या है और इनका प्रयोग कैसे होता है।
शिक्षण-अधिगम सहायक सामग्री: महत्व, उद्देश्य एवं कार्य
शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली दृश्य श्रव्य सामग्री को निम्नलिखित विभागों में विभाजित किया जा सकता है।
(क) परम्परागत सहायक सामग्री - परम्परागत सहायक सामग्री में श्यामपट्ट पुस्तक तथा पत्र पंत्रिकायें आदि का समावेश होता है।
(ख) दृृश्य सहायक सामग्री - दृश्य सहायक सामग्री में वे सामग्री आती है जिन्हें देखा जा सकता है जैसे, वास्तविक पदार्थ चित्र मानचित्र, रेखाचित्र, चार्ट, पोस्टर्स, प्रतिमान बुलेटिन बोर्ड, फ्लैनल बोर्ड, ग्लोब तथा ग्राफ।
(ग) यांत्रिक सहायक सामग्री - यांत्रिक सहायक सामग्री में निम्न सामग्री का समावेश होता है।
श्रव्य - रेडियो, टेप, रिकार्डर, तथा अध्यापन यन्त्र
दृश्य - प्रोजेक्टर, एपिडायस्कोप तथा फिल्म स्ट्रिप्स
दृश्य श्रव्य - चलचित्र दूरदर्शन और विडियों टेप रिकार्डर व कैसेट
(क) परम्परागत सहायक सामग्री
श्यामपट्ट-
श्यामपट्ट से सब भली भांति परिचित होते है भारत में श्यामपट्ट सहायक सामग्री सहायक सामग्री की स्थिति का विवरण देते हुए शिक्षा आयोग ने लिखा है ‘‘हमारे अधिकांश विद्यालयों में विशेषकर प्राथमिक स्तर पर आज भी एक अच्छे श्यामपट्ट, एक छोटे पुस्तकालय, आवश्यक नक्शे और चार्ट, साधारण वैज्ञानिक उपकरण और आवश्यक प्रदर्शन सामग्री जैसे बुनियादी साज सामान और शिक्षक साधनों का पूर्ण अभाव सा ही है। शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिये प्रत्येक विद्यालय को इस प्रकार के बुनियादी साज सामान और शिक्षण साधनों का दिया जाता आवश्यक है। हमारी सिफारिश है कि प्रत्येक श्रेणी के विद्यालयों के लिये न्यूनतम आवश्यक शिक्षण साधनों एवं साज सामान की सूचियाॅं तैयार कर प्रत्येक विद्यालय को तुरन्त एक अच्छा श्यामपट्ट दिया जावें।
श्यामपट्ट के महत्व के विषय में ‘‘मेककल्सकी’’ के ये विचार पूर्णत सही है, श्यामपट्ट को महत्वूपर्ण दृश्य उपकरण माना जाता है यह विद्यालय में पढाई जाने वाले प्रायः प्रत्येक विषय को मानस पटल पर अंकित करने में सहायता दे सकता है यह केवल साधन है साध्य नही इसका मुख्य उद्देश्य शुद्ध मानसिक विचारों को विकसित करना है।
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यद्यपि श्यामपटट कोई आकर्षक वस्तु नही है परन्तु स्वच्छता, शुद्धता एवं तीव्रता के मानक स्थापित करने में इसका अत्यधिक महत्व है। यह एक ऐसा साधन है जो कक्षा में सदैव उपलब्ध रहता है कोई प्रकरण पढाते समय श्यामपट्ट पर बनाया गया चार्ट चित्र छात्रों को ज्ञान प्रदान करता है। साराशं लिखने हेतु नियम परिभाषा आदि लिखने हेतु, शब्दार्थ रिक्त स्थान पूर्ति हेतु, मुख्य निर्देश लिखने हेतु, सूचना अंकन तिथि ज्ञान व तालिका हेतु काम आता है।
पुस्तकों को ज्ञान का द्वार कहा जाता है जहां शिक्षण होगा, वहां पुस्तके भी अवश्य होगी और भारतीय विद्यालयो में तो इसका प्रयोग आजकल पर्याप्त मात्रा में हो रहा है। यद्यपि अनेक विद्धानों ने शिक्षा जगत मे पुस्तकीय शिक्षा के विरूद्ध आदोंलनो को जन्म दिया और इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप पुस्तकों को महत्वहीन माना भी जाने लगा किन्तु बींसवी सदी के प्रथम दो दशकों से पुनः पुस्तकों के महत्व की स्वीकार किया गया। विशेष रूप से अमेरिका मे ंप्रयोग द्वारा यह सिद्ध किया गया कि पुस्तकों को शिक्षण विधि से पृथक नही किया जा सकता। अतः पुस्तकों को शिक्षण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण साधन स्वीकार किया गया।
पत्र- पत्रिकायेंः
पत्र पत्रिकाओं का भी हिन्दी षिक्षण में महत्वपूर्ण स्थान है इनके द्वारा लोगो को भाषा व साहित्य के विषय में महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती है। ये शिक्षक एवं छात्र, दोनो के लिये उपयोगी है क्योंकि इनके द्वारा उनके ज्ञान को पूर्ण एवं आधुनिक बनाया जाता है हमारे देश में आज इनके अध्ययन पर पर्याप्त बल दिया जा रहा है क्योंकि औद्योगिकरण, नगरीकरण आदि के कारण समाज में महान परिवर्तन हो रहे है तथा जब तक शिक्षक एवं छात्र इन तत्कालीन परिवर्तनों से स्वयं अवगत नहीं होने, वे भाषा एवं साहित्य की नवीन प्रवृतियों से भी अवगत नही हो सकेगें।
(ख)दृश्य सहायक सामग्री
1. वास्तविक पदार्थ:-
छात्र वास्तविक पदार्थो को देखकर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते है वास्तविक पदार्थो को देखने पर व्यर्थ का भ्रम दूर हो जाता है और ज्ञान में स्थायित्व व दृढता आती है वास्तविक वस्तुओं के प्रदर्शन से शिक्षण में रोचकता जाती है तथा छात्र भी ज्ञान को शीध्रता से ग्रहण कर लेते है सत्य तो यह है कि वास्तविक पदार्थो द्वारा प्रदान किया हुआ ज्ञान अत्यन्त उपयोगी व स्थायी होता है।
2. चित्र -
सहायक सामग्री में चित्रों का महत्वपूर्ण स्थान होता है चित्रों की सहायता से विषय वस्तु को रोचक बनाकर छात्रों का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है चित्रों से छात्रों की कल्पना शान्ति का भी विकास होता है वास्तविकता से अधिक निकट होने के कारण इनके माध्यम से प्राप्त ज्ञान अधिक स्थाई होता है। शिक्षण में चित्रों के माध्यम से शिक्षक नवीन पाठ की प्रस्तावना निकलवाने हेतु, कठिन शब्द का अर्थ निकलवाने हेतु, पाठ के विकास हेतु प्रयोग में लाता है।
3. मानचित्र-
मानचित्रों की सहायता से विभिन्न स्थानों का क्षेत्रफल, स्थिति, उपज, जलवायु, जनसंख्या, तापक्रम आदि का प्रदर्शन किया जाता है। भाषा शिक्षण में विभिन्न राज्यों की सीमाओं, राजधानियों तथा अनेक महत्वपूर्ण स्थानों का ज्ञान सरलतम रूप में इनके द्वारा किया जा सकता है।
4. रेखाचित्र -
किसी वस्तु को पूर्णरूप से स्पष्ट करने की दृष्टि से रेखाओं द्वारा बनाया गया चित्र रेखाचित्र होता है वस्तुतः पाठयक्रम के सभी विषयों तथा लगभग सभी प्रकार की विषय वस्तु को रेखाचित्रों की सहायता से दृश्यात्मक रूप में अच्छी तरह अभिव्यक्ति किया जा सकता हैं रेखाचित्रों की कक्षा में ही शिक्षण करते समय श्यामपटट् पर तैयार किया जा सकता है? इसके सफल प्रयोग के लिये आवश्यक है कि जिन रेखाओं तथा शब्द संकेतों को इस प्रकार की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया जाये, उन्हें छात्रों द्वारा पूरी तरह समझा जायें। शिक्षण में पाठयवस्तु को शुरू-शुरू में पढानेे का प्रश्न है उसमें आरेखों से कोई सहायता प्राप्त नही होती लेकिन बाद की अवस्था में, चाहें यह प्रस्तुतीकरण की हो या अभ्यास या पुनरावृति उसमें रेखाचित्र महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकते है।
5. चार्ट-
चार्ट उस प्रदर्शनात्मक साधन को कहते है, जिसमें तथ्यों व चित्रों का समन्वय छात्रों की अधिगम में सुगमता प्रदान करता है तथा जिसमें क्रमबद्ध व तार्किक रूप में चित्रात्मक तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है इसकी सहायता से किसी घटना को क्रमित रूप में प्रदर्शित किया जाता है विभिन्न क्रियात्मक संबंधों की स्पष्ट करने हेतु चार्ट का प्रयोग आवश्यक होता है चार्ट इतनेे बडे आकार के होने चाहिये कि कक्षा में बैठे सभी बालक उनसे लाभ उठा सकें। चाटों के प्रकार - चार्ट निम्नालिखित प्रकार के होते है
6. पोस्टर्स:
पोस्टर्स में वैसे तो वस्तुओं, व्यक्तियों, स्थानों व घटनाओं के ही चित्र होते है किन्तु उनमें ये चित्रात्मक अभिव्यक्ति चित्रों की तरह बिलकुल स्पष्ट और प्रत्यक्ष ढंग से नही होती वरन् एक खास अंदाज में अप्रत्यक्ष एवं संकेतात्मक रूप में होती हेतु अपनी विशिष्ट शैली के आधार पर ये किसी मनोवृŸिा को जन्म देने, बदलने तथा किसी कार्य को करने की प्रेरणा देने मे ऐसे प्रभावी वातावरण की रचना कर सकते है जिसमें न केवल व्यक्तिगत व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाया जा सकता है वरन् आंदोलन के रूप में पूरे समूह को ही उत्तेजित किया जा सकता है।
7. प्रतिमान (माडॅल):
प्रतिमान से अर्थ किसी भी वस्तु की ऐसी प्रतिमा से है जिसे छात्र छू सके तथा उनकी जिज्ञासा को शान्त कर नवीन अनुभव प्रदान कर सके जिन बातों को चित्रों के द्वारा दृश्यनीय नही बनाया जा सकता, उन्हें माॅडल के द्वारा दृश्यनीय बनाया जा सकता है इसके माध्यम से छात्रों को किसी वस्तु का भीतरी तथा बाहरी दोनो आकारों को स्पष्ट ज्ञान प्रदान किया जा सकता है वास्तविकता का बोध कराने की दृष्टि से माॅडल अदभुत दृश्य साधन है ताजमहल, रेल का इंजन, वायुयान कक्षा में नही लाये जा सकते किन्तु उनके छोटे प्रतिमान द्वारा उनकी बनावट को प्रदर्शित किया जा सकता है।
8. बुलेटिन बोर्ड:-
इन बोर्डो पर विद्वानों के कथन तथा महत्वूपर्ण समाचारों एवं सूचनाओं एवं चित्रों आदि को प्रदर्शित किया जाता है इन बोर्डो पर प्रदर्शित सामग्री एक निश्चित क्रम में तथा छात्रों की आयु एवं मानसिक स्तर के अनुरूप होनी चाहिये, जहां सभी छात्र उसे सुविधाजनक ढंग से देख सके। वस्तुतः इस बोर्ड पर चित्र विज्ञापन, कार्टून, चार्ट, ग्राफ समाचार, विशिष्ट, पत्र पत्रिकाओं के लिख तथा बालकों के रचनात्मक कार्य प्रदर्शित किये जा सकते है।
9. फ्लेनल बोर्ड -
इस फैल्ट बोर्ड भी कहा जाता है इस बोर्ड को रंगीन फ्लेनल कपडे़ से तैयार किया जाता है भाषा की पाठ्य सामग्री जो विभिन्न अंशों में विभाजित करके पढाई जाती है, उसे क्रमशः इस बोर्ड पर प्रदर्शित करके पढाया जा सकता है। इस बोर्ड पर चित्रों को केवल थोडा सा दबाकर चिपकाया जा सकता है और प्रयोग के पश्चात् उन्हें हटाया भी जा सकता है वस्तुतः चित्रों को एक क्रम में प्रदर्शित करने और उनमें विभिन्न व्यक्तियों या वस्तुओं की तुलना करने के लिये यह साधन अत्यधिक उपयोगी है।
10. ग्लोब -
यह वास्तव में भूमि के सर्वाधिक सही प्रतिनिधित्व का रूप है चंूकि भूमि गोल है तथा ग्लोब भी गोल है, अतः इसके द्वारा छात्रों को पृथ्वी के विभिन्न भागों का ज्ञान, सूर्य ग्रहण, चन्द्रग्रहण, पृथ्वी और सूर्य का सम्बन्ध, पृथ्वी का क्षेत्रफल, दिन रात तथा पृथ्वी पर वायुमण्डल का प्रभाव आदि के विषय में विस्तृत जानकारी दी जा सकती है।
11. ग्राफ -
ग्राफ के द्वारा संख्यात्मक आंकडों को प्रस्तुत किया जाता है इसके माध्यम से संबंधों एंव विकास के प्रदर्शन के साथ साथ तुलनात्मक अध्ययन को प्रस्तुत किया जा सकता हैं शिक्षक इसका प्रयोग विभिन्न तथ्यों को स्पष्ट करने एवं उनके तुलनात्मक अध्ययन के लिये कर सकता है ग्राफ के मुख्य प्रकार इस तरह है -
चित्र ग्राफ
बार ग्राफ
वृत्त ग्राफ
लाइन ग्राफ
लिग्वाफोन किस प्रकार का साधन है
Drishya shravya samagri me bhashashikshan me antargat sabse upyukt hota h?
Drisy sravy samagri kitne prakarke hote hai
Shrvy drisy samgree hindi bhasha shikshn me enka kiya mahtv he
Kaksha adhyapan me drishy sadhan ke rup me kiska sarwadhik prayog hota hai
Shrby dirshy samgiri ke labh
Computer कोन सी सामग्री है दृश्य,या श्रब्या या दृश्य श्रव्य दोनों
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