Vidyarthi Jeevan Me Sanskaron Ka Mahatva विद्यार्थी जीवन में संस्कारों का महत्व

विद्यार्थी जीवन में संस्कारों का महत्व

Pradeep Chawla on 29-09-2018


कहा जाता है पुस्तके वो सधन है जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते है, और नैतिक शिक्षा और नैतिक मूल्यों और आदर्शो को भी स्थापित किया जा सकता है, परन्तु आज तो ऐसा कुछ भी नहीं है !
आज हम प्राय विद्यालयों में देखते है, की शिक्षा केवल नाम के लिए रह गयी है, शिक्षा के द्वारा प्राचीन समय में हमे ज्ञान तथा नैतिक मूल्यों को सिखाया जाता था !



परन्तु आज ये बहुत बड़ा प्रश्न हमारे सामने उठ खड़ा हुआ है, की आज की शिक्षा प्रणाली से हम वही ज्ञान और नैतिक मूल्यों को अर्जित कर रहे है, शिक्षार्थियों को केवल उत्तीर्ण करने के हेतु से उन्हें ज्ञान दिया जाता है, या फिर कह सकते है उन्हें तैयार किया जाता है !



और इसीसे रटंत विद्या जैसी परिकल्पना उठ खड़ी हुई है, और तोता रटंत विद्या यह साकार हो रही है, आज के युवा पीढ़ी के विद्यार्थी हर वो अनुचित कार्य कर रहे है जिसके करने के विचार से ही मन घबरा एवं सहम सा जाता है, क्या सही मायने में हम उन्हें सही ज्ञान और आदर्श सिखा रहे है ?



आख़िरकार ये जिम्मेदारी किसकी है ?



माता - पिता की , शिक्षक की , विद्यालय की , या पूरे समाज की, या सबसे अहम् भूमिका सरकार की !
सतर्कता के साथ सदैव कार्यशील एवं तत्पर रहना ही हमारे अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकती है , हमारे अर्थात सभी एक कामयाब शिक्षक या शिक्षिका और एक कामयाब शिक्षार्थी या शिक्षर्थिनी की भी !
अब बात कर ले नैतिक मूल्यों की, तो वो तो कहीं दूर दूर तक नजर ही नहीं आती !



एक शिक्षक जिसका नाम श्रवण करते ही हमारे समक्ष समाज का आदर्श, ज्ञान की मूर्ति, विवेक और सहनशीलता से परिपूर्ण न्यायप्रिय एवं अच्छी समझ रखनेवाला एक बेहतरीन इन्सान जैसी झलक हमारे आँखों के सामने आती है, परन्तु आज तो कहीं भी ऐसा दिखाई नहीं देता या मन में ऐसे विचार नहीं आते आज के इस कलयुग में शिक्षक की भी परिभाषा बदल गयी है, इतने सारे अनैतिक कार्य शिक्षको के द्वारा किये जाते है, जिनकी हम कभी परिकल्पना भी नहीं कर सकते है, और दोषारोपण केवल आज की शिक्षा प्रणाली एवं समाज और सरकार पर ही किया जाता है, ये कई हद तक सही भी है, परन्तु एक विद्यार्थी के साथ एक शिक्षक को भी अपने आदर्शो का मान रखना चाहिए ! शिक्षक नाम के गर्व को बनाये रखना चाहिए !



कहते है एक मछली पूरे तालाब को गन्दा करती है, उसी प्रकार किसी एक या दो शिक्षको के गलत कार्यो के द्वारा कहीं न कहें पूरे शिक्षक समाज पर उनकी छीटे उडी है, और इन छिटो को हम शिक्षक समाज को मिलकर ही दूर करना होगा, हमें अपने नाम के आगे गौरव की वो शिखा स्थापित करनी होगी, जिसे पार करना या वहा तक पहुचना किसी भी चरित्रहीन व्यक्ति के बस की बात न हो !



परन्तु आज की स्तिथि किसी से भी छुपी नहीं है !
आज के समाज का दर्पण एक पटल की तरह साक्षात् दिखाई देता है और सुनाई भी देता है ! लेकिन हम उस पर अमल नहीं करते है, बस हो जायेगा, होने दो , हम क्या कर सकते है ? ये रवैया ठीक नहीं, शिक्षा में आदर्श और नैतिक मूल्यों की बस खोखली बाते ही रह गयी है !



भ्रष्टाचार, आतंक , असमानता, जातिवाद, सभी का आधार कहीं न कही शिक्षा ही बनती जा रही है! शिक्षा के बल पर दुनिया जीती जा सकती है , परन्तु आज की शिक्षा व्यवस्था और उससे जुड़े लोग यह कथन असत्य कर रहे है ! आज कल घूस, दलाली, चोरी, एक खुला व्यापर सब शिक्षा जगत में आसानी से प्रवेश कर चूका है, और हो न हो ये कहीं न कहीं नैतिक मूल्यों की कमी और उसके हनन का ही एक ज्वलंत परिणाम हमारे सामने उभर कर आया है !



ज्ञान के नाम पर हम आज क्या परोस रहे है, जिससे आनेवाले भविष्य में क्या परिणाम होगा इसका शायद किसीको अंदाजा भी नहीं है या फिर अंदाजा कभी लगाया ही न गया हो,
जरा भी विचार हुआ होता तो शायद कुछ सुधार हो गए होते !
इन सबके बीच नैतिक मूल्य तो कही भी दिखाई ही नहीं पड़ते है !



परन्तु कहते है, सुबह का भूला अगर शाम को लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते ! और अभी भी बहुत समय है हमारे पास हम प्रयास कर बहुत कुछ बदल सकते है, अब हमे जरुरत है जागरूक होकर शिक्षा के जगत में आगे बढ़ने की एक विद्यार्थी को वो सारे माहौल प्रदान करने होंगे जिसमे वो अनुशासन में भी रहे, स्वतंत्र रहे, और साथ ही नए मूल्यों को और आदर्शो को भी सीखे, इन सबके द्वारा हम एक बहुत जागरूक और चेतना पूर्ण समाज की स्थापना कर सकते है, क्योंकि ये बच्चे ही भारत के आने वाले भविष्य का निर्माण करेंगे, बूँद - बूँद से सागर बनता है, वैसे ही एक एक से पूरा समाज और फिर पूरा देश ! इन कड़ीयो को बहुत मजबूती से एक दुसरे से जोड़ना होगा और कड़ीयो की लड़ी नैतिक मूल्यों से बनानी होगी, जिससे ये कड़ी एक नए आदर्श की चैन स्थापित करे, और स्वर्ग की परिकल्पना से भी सुन्दर अपना जीवन बनाये और भारत देश को आगे ले जाये, ये कहना और सुनना कितना सुगम लगता है , परन्तु ये एक सपना जैसा लगता है आज की परिस्थितियों को देखते हुए यह अशंभव सा लगता है , फिर भी अशंभव कुछ भी नहीं होता ! केवल एक मजबूत प्रयास की जरुरत, एक संगठन बनाने की जरुरत और साथ ही अपने आदर्शो को समाज के सामने प्रतिस्थापित कर शिक्षा जगत को नया उजाला प्रदान करने की आवश्यकता है, और ये तभी तक संभव नहीं होगा, जब तक माता –पिता, शिक्षक – समाज, और सरकार अपने रवैये को नहीं बदलेगी, परन्तु इसे बदलना ही होगा! वर्तमान की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर यदि भविष्य का विचार किया जाए, तो शायद कुछ बदलने की संभावना हो सकती है ! यदि देश बचाना हो और सबका जीवन सुधारना हो तो ! नहीं तो फिर क्या ?



वही शिक्षक, वही विद्यार्थी, वही समाज और वही धधकता आतंक जो आज हर व्यक्ति के मन में पनप रहा है ! परन्तु अब वह समय आया है की हमें अपनी चुप्पी तोड़नी होगी और बेहतर से बेहतरीन प्रणाली की मांग करनी होगी !

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Comments Naveen on 04-11-2023

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Vidyarthi jivan me sanskaro ka kya mahatav hota h bartiyi sanskaro ko ak file me likhkar suchibath

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